जीवाश्म ईंधन के जलने को रोककर 10 लाख मौतों को टाला जा सकता था: शोध

शोधकर्ताओं के एक वैश्विक समूह ने नेचर कम्‍युनिकेशन नामक पत्रिका में प्रकाशित अपने शोध पत्र में दावा किया है कि वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन के जलने को रोककर साल 2017 में 10,05,000 मौतों को रोका जा सकता था। इनमें आधी से ज्यादा मौतें कोयला जलने से हुए प्रदूषण की वजह से हुई हैं।

इस रिपोर्ट में वायु प्रदूषण के स्रोतों और उसके कारण सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों का बहुत व्यापक रूप से परीक्षण किया गया है।

तस्वीर एशिया की

रिपोर्ट की मानें तो भारत और चीन में अगर कोयले, तेल तथा प्राकृतिक गैस के जलने पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए तो पीएम2.5 के कारण पूरी दुनिया में होने वाली मौतों के बोझ को तकरीबन 20% तक कम किया जा सकता है।

वातावरणीय पीएम2.5 मृत्यु दर बोझ में भारत और चीन की हिस्सेदारी (58%) कुल मिलाकर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की संख्या सबसे ज्यादा है।

वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा मौतों वाले शीर्ष 9 देशों पर नजर डालें तो चीन में इस तरह की मौतों में कोयला जलने से हुए प्रदूषण का सबसे बड़ा योगदान है। वहां इसके कारण 3,15,000 मौतें हुई हैं।

भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान में ठोस जीवाश्‍म ईंधन प्रदूषण फैलाने वाला सबसे बड़ा स्रोत है।

कुछ ख़ास बातें

इस अध्ययन में क्षेत्रीय स्तर पर वायु की गुणवत्ता सुधारने संबंधी रणनीतियां तैयार करने के महत्व को भी रेखांकित किया गया है। उदाहरण के तौर पर चीन तथा भारत में घरों से निकलने वाले प्रदूषणकारी तत्व पीएम2.5 के औसत एक्सपोजर तथा उनकी वजह से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा स्रोत हैं। बीजिंग तथा सिंगरौली के आसपास के क्षेत्रों में ऊर्जा तथा उद्योग क्षेत्रों का वायु प्रदूषण में तुलनात्मक रूप से ज्यादा योगदान है।

जहाँ चीन में 2013 से 2017 के बीच कोयला जलने से हुए प्रदूषण में 60% की गिरावट आयी, वहीं 2015 से 2017 के बीच भारत में प्रदूषण के इन्हीं स्रोतों में 7% तक का इजाफा हुआ।

बात सेहत की

बारीक पार्टिकुलेट मैटर के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण के संपर्क में लंबे वक्त तक रहने से पूरी दुनिया में हर साल औसतन 40 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें ह्रदय रोग, फेफड़े का कैंसर, फेफड़ों की गंभीर बीमारी, पक्षाघात (स्‍ट्रोक), श्वास नली में संक्रमण तथा टाइप टू डायबिटीज से होने वाली मौतें भी शामिल हैं।

विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया  

यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया के स्कूल ऑफ पॉपुलेशन एंड पब्लिक हेल्थ में प्रोफेसर और इस अध्ययन रिपोर्ट के मुख्य लेखक डॉक्टर मिशाइल भावा कहते हैं, ‘‘यह अध्ययन दुनिया के उन विभिन्न देशों के लिए एक शुरुआती बिंदु है, जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी चिंता के तौर पर वायु प्रदूषण का समाधान निकालना अभी बाकी है।”

सेंट लुइस में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के विजिटिंग रिसर्च एसोसिएट और इस अध्ययन के प्रथम लेखक डॉक्टर एरिन मैकडफी कहते हैं, ‘‘सब-नैशनल लेवल पर स्रोतों पर विचार करना महत्वपूर्ण होगा। विशेष रूप से तब, जब वायु प्रदूषण को कम करने के लिए शमन संबंधी रणनीतियां तैयार की जा रही हों।”

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