उत्तर भारत कोहरे की चपेट में, मध्य और दक्षिणी राज्यों में शीत लहर का प्रकोप

उत्तर भारत के बड़े हिस्सों पर घने कोहरे और धुंध की मोटी चादर बिछ गई है, और मौसम विभाग ने दिसंबर मध्य तक कोहरे तथा शीत लहर की चेतावनी जारी की है। दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद में घने से बहुत घने कोहरे के कारण सुबह की यात्रा प्रभावित हुई है, हालांकि राजधानी में तापमान दिसंबर के मध्य के सामान्य स्तर से थोड़ा ऊपर बना हुआ है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने उत्तर प्रदेश में बहुत घने कोहरे और हरियाणा, पंजाब, ओडिशा तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में 16 दिसंबर तक अलग-अलग कोहरे की स्थितियों की चेतावनी दी है।

शीत लहर: मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, पश्चिमी मध्य प्रदेश, विदर्भ, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में शीत लहर का प्रकोप बढ़ रहा है, और इसके तेलंगाना तथा उत्तरी आंतरिक कर्नाटक तक फैलने की संभावना है।

आईएमडी द्वारा जारी ताजा अपडेट के अनुसार, पश्चिमी विक्षोभ लगातार सक्रिय है, जिसके कारण मौसम में यह बदलाव देखने को मिल रहा है।

जलवायु परिवर्तन ने दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में बाढ़ को और तीव्र किया: विश्लेषण

एक त्वरित ‘वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन’ अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने नवंबर की बाढ़ को और अधिक विकराल बना दिया, जिसने दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में 1,600 से अधिक लोगों की जान ले ली।

तूफान और क्षति: शक्तिशाली दितवाह (Ditwah) और सेनयार (Senyar) सहित तीन चक्रवातों ने श्रीलंका से लेकर इंडोनेशिया तक मूसलाधार बारिश की और 20 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान पहुँचाया।

गर्म महासागर: सामान्य से लगभग 0.2°C अधिक गर्म हिंद महासागर के पानी ने अतिरिक्त गर्मी और नमी प्रदान करके तूफानों को संभावित रूप से मजबूत किया।

मानवीय प्रभाव: शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव-जनित गर्मी के बिना महासागर लगभग 1°C ठंडा होता।

बाढ़ के कारण: मानसून का समय, तेज़ी से शहरीकरण और वनों की कटाई ने अत्यधिक वर्षा को विनाशकारी बाढ़ में बदल कर इस आपदा को और बढ़ा दिया।

वर्ष 2025 के आधिकारिक रूप से सबसे गर्म वर्षों में से एक होने की संभावना

वर्ष 2023 से वैश्विक तापमान का ग्राफ तेज़ी से बढ़ा है, जिस कारण 2025 अब तक के सबसे गर्म वर्षों में से एक बनने की दिशा में है। कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के आँकड़े दर्शाते हैं कि जनवरी से नवंबर तक का तापमान पूर्व-औद्योगिक (प्री इंडस्ट्रियल) औसत से 1.48 डिग्री अधिक रहा है। जिससे 2023–2025 की अवधि 1.5 डिग्री के औसत को को पार करने वाला पहला तीन साल का खंड बन सकती है।

तापमान में वृद्धि बहुत तीव्र रही है। अकेले 2023 में 2022 की तुलना में 0.3 डिग्री की तापमान वृद्धि हुई, और 2024 पूरे वार्षिक औसत के लिए 1.5 डिग्री से अधिक तापमान वृद्धि वाला पहला वर्ष बन गया।

वैज्ञानिकों का मत: वैज्ञानिकों का कहना है कि 2023 के बाद से हो रही इस स्तर की गर्मी को अकेले अल नीनो या कम प्रदूषण से नहीं समझाया जा सकता।

नया जलवायु युग: शोध अब संकेत देते हैं कि दुनिया एक नए जलवायु युग में प्रवेश कर रही है, जहाँ कठोर उत्सर्जन कटौती के बिना तापमान दशकों तक 1.5 डिग्री ऊपर रहने की संभावना है।

तेज़ हवाओं से पेड़ गिरे, उड़ानें रुकीं; साओ पाउलो के 13 लाख निवासी अब भी बिजली से वंचित

साओ पाउलो में बिजली गुल होने से 13 लाख से अधिक निवासी अँधेरे में हैं। लगभग 100 किमी/घंटा की रफ्तार वाली हवाओं ने सैकड़ों पेड़ गिरा दिए और शहर के ग्रिड को पंगु बना दिया।

बहाली का प्रयास: यूटिलिटी ईनल (Enel) ने कहा कि उसने आधे से अधिक प्रभावित ग्राहकों को बिजली बहाल कर दी थी, लेकिन दिन भर में लगभग 300,000 लोगों की बिजली फिर चली गई।

मरम्मत कार्य: अब टीमें नेटवर्क के कुछ हिस्सों का पूरी तरह से पुनर्निर्माण कर रही हैं, जिसकी पूर्ण बहाली की कोई समय सीमा नहीं है।

उड़ानें रद्द: तूफान के कारण मुख्य रूप से कॉन्गोनहास हवाई अड्डे पर लगभग 400 उड़ानें रद्द हुईं।

शहर के अधिकारियों ने, जिन्होंने धीमी प्रतिक्रिया के कारण ईनल से नाराज़गी व्यक्त की, 231 गिरे हुए पेड़ों की सूचना दी। इस साल बार-बार बिजली गुल होने से निवासियों को कैफे और मॉल से काम करना पड़ा है, पानी की आपूर्ति बाधित हुई है और जनता का गुस्सा भड़का है।

अमेज़न बढ़ रहा है 1 करोड़ साल से न देखे गए ‘हाइपर ट्रॉपिकल’ जलवायु की ओर

एक नए शोध ने चेतावनी दी है कि अमेज़न वर्षावन एक ऐसे चरम जलवायु स्थिति की ओर बढ़ रहा है जो पिछली बार 40 मिलियन से 10 मिलियन वर्ष पहले इओसीन (Eocene) और मायोसीन (Miocene) युगों के बीच मौजूद थी।

साइंस पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, यदि उत्सर्जन उच्च रहा, तो 2100 तक इस क्षेत्र को बरसात के मौसम के दौरान भी साल में 150 दिन तक तीव्र गर्म सूखे का सामना करना पड़ सकता है।

पेड़ों पर प्रभाव: शोधकर्ताओं ने पाया कि गंभीर सूखे के दौरान, पेड़ पानी और CO₂ का विनिमय बंद कर देते हैं, जिससे उनके जाइलम (xylem) में एम्बोलिज्म (embolism) का खतरा होता है और अंततः वे मर जाते हैं।

वन का परिवर्तन: वार्षिक वृक्ष मृत्यु दर आज के 1% से थोड़ा ऊपर से बढ़कर सदी के अंत तक 1.55% तक पहुँच सकती है, जिससे धीमी गति से बढ़ने वाली प्रजातियों के जीवित रहने की अधिक संभावना के साथ वन का स्वरूप बदल जाएगा।अध्ययन ने सुझाव दिया कि अन्य उष्णकटिबंधीय वन भी इसी राह पर हो सकते हैं, जिसके वैश्विक कार्बन चक्र के लिए बड़े परिणाम होंगे।

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