बाकू में गुरुवार को समाप्त हुई जलवायु वार्ता में नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर कोई सहमति नहीं बन पाई। नवंबर में होने वाली कॉप29 से पहले यह वार्ताओं का आखिरी दौर था। इससे पहले बॉन में हुई बैठक भी बेनतीजा रही थी। क्लाइमेट फाइनेंस कौन देगा इसे लेकर विवाद बना हुआ है। और वार्ताओं के ताज़ा दौर के बाद कॉप29 के दौरान सालाना 100 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को संशोधित करना अब मुश्किल दिख रहा है।
विकसित देश चाहते हैं कि एशिया की अधिक उत्सर्जन करने वाली उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे चीन और अमीर खाड़ी देश भी क्लाइमेट फाइनेंस में योगदान करें। जबकि विकासशील देश यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं, यानि 1992 में यूएन क्लाइमेट संधि अपनाने के समय जिन देशों को औद्योगिक घोषित किया गया था वही क्लाइमेट फाइनेंस दें।
इससे पहले स्विट्ज़रलैंड और कनाडा डोनर्स की संख्या में विस्तार करने के जो प्रस्ताव लेकर आए थे उसे विकासशील देशों ने खारिज कर दिया। विकासशील देशों के जी77 समूह की ओर से बोलते हुए भारत ने साफ कर दिया कि क्लाइमेट फाइनेंस देना विकसित देशों का लक्ष्य होना चाहिए और इस व्यवस्था में बदलाव की जरूरत नहीं है।
भारत ने कई अमीर देशों की तुलना में अधिक क्लाइमेट फाइनेंस दिया: रिपोर्ट
एक नए विश्लेषण के अनुसार भारत ने 2022 में बहुपक्षीय विकास बैंकों के माध्यम से 1.28 बिलियन डॉलर का क्लाइमेट फाइनेंस प्रदान किया। यह कई विकसित देशों के योगदान से भी अधिक था।
यह विश्लेषण यूके स्थित थिंक टैंक ओडीआई और ज़ूरिक क्लाइमेट रेजिलिएंस एलायंस ने किया है।
उक्त रिपोर्ट से पता चलता है कि केवल 12 विकसित देशों ने 2022 में अंतर्राष्ट्रीय क्लाइमेट फाइनेंस में उनका उचित हिस्सा प्रदान किया। ये देश हैं — नॉर्वे, फ्रांस, लक्ज़मबर्ग, जर्मनी, स्वीडन, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, जापान, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम और फिनलैंड।
शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिका अपना उचित योगदान देने में विफल रहा और क्लाइमेट फाइनेंस में बड़े अंतर का कारण मुख्य रूप से यही है। ऑस्ट्रेलिया, स्पेन, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम ने भी इस संबंध में अपेक्षाकृत खराब प्रदर्शन किया।
भारत ने 2022 में अन्य विकासशील देशों को 1.287 बिलियन डॉलर दिए, जो कि ग्रीस (0.23 बिलियन डॉलर), पुर्तगाल (0.23 बिलियन डॉलर), आयरलैंड (0.3 बिलियन डॉलर) और न्यूज़ीलैंड (0.27 बिलियन डॉलर) जैसे कुछ विकसित देशों के योगदान से कहीं अधिक है। जबकि चीन ने 2.52 बिलियन डॉलर प्रदान किए, ब्राजील ने 1.135 बिलियन डॉलर, दक्षिण कोरिया ने 1.13 बिलियन डॉलर और अर्जेंटीना ने 1.01 बिलियन डॉलर दिए।
केंद्र ने की राज्यों को खदानों पर टैक्स लगाने का अधिकार देने के फैसले की समीक्षा की मांग
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 25 जुलाई के फैसले की समीक्षा का अनुरोध किया है जिसमें कोर्ट ने राज्यों को अपनी भूमि से खनिजों के निष्कर्षण पर रॉयल्टी वसूलने और खनन की गई भूमि पर कर लगाने की अनुमति दी थी। केंद्र ने उस फैसले की समीक्षा की भी मांग की है जिसमें राज्यों को 1 अप्रैल, 2005 के बाद से बकाया कर एकत्र करने की अनुमति दी गई थी।
जुलाई 25 को सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने बहुमत से फैसला देकर 1989 में इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु मामले में सात जजों के फैसले को खारिज कर दिया था। इस फैसले में कहा गया था कि रॉयल्टी एक टैक्स है जिसे राज्य नहीं लगा सकते क्योंकि यह संविधान की संघ सूची के अंतर्गत आता है।
कोर्ट ने 25 जुलाई के फैसले में यह भी कहा था कि संविधान की राज्य सूची में ‘भूमि’ की परिभाषा के अंतर्गत खनिज-युक्त भूमि सहित हर प्रकार की भूमि शामिल है। केंद्र ने इस व्याख्या का विरोध किया है और कहा है कि यदि ऐसी व्याख्या अपनाई जाती है, तो ‘खनिजों पर संपूर्ण संवैधानिक संघीय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी’।
पर्यावरणीय क्षति के अपराधीकरण के समर्थन में 80% भारतीय: सर्वे
पांच में से लगभग चार भारतीय चाहते हैं कि सरकारी अधिकारियों या बड़े व्यवसायों द्वारा प्रकृति और जलवायु को गंभीर नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों को आपराधिक बनाया जाए। इप्सोस यूके द्वारा आयोजित और अर्थ4ऑल और ग्लोबल कॉमन्स अलायंस (जीसीए) द्वारा कमीशन किए गए ग्लोबल कॉमन्स सर्वे 2024 में यह बात सामने आई है। इससे यह भी पता चला कि पांच में से लगभग तीन (61 प्रतिशत) भारतीयों का मानना है कि सरकार जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षति से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास कर रही है।
सर्वे में हिस्सा लेने वाले 90 प्रतिशत आज प्रकृति की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। 73 प्रतिशत को लगता है कि पृथ्वी महत्वपूर्ण पर्यावरणीय “टिपिंग पॉइंट” के करीब पहुंच रही है, जहां वर्षावन या ग्लेशियर जैसी जलवायु या प्राकृतिक प्रणालियां अचानक बदल सकती हैं या भविष्य में उन्हें बनाए रखना कठिन हो सकता है।
जबकि 54 फीसदी का मानना है कि पर्यावरणीय खतरों के बारे में कई दावे बढ़ा-चढ़ाकर किए गए हैं। लगभग पांच में से चार भारतीयों का मानना है कि मानव स्वास्थ्य और कल्याण प्रकृति के स्वास्थ्य और कल्याण से निकटता से जुड़ा हुआ है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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