भयानक तबाही के बाद मॉनसून की विदाई

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - October 2, 2020

तबाही के बाद विदाई: करीब 1.7 करोड़ लोगों को प्रभावित करने और 1,000 लोगों की जान लेने के बाद मॉनसून विदा हो रहा है | Photo: Free Press Journal

बाढ़, आपदा के बाद अब मॉनसून की वापसी शुरू

सामान्य से अधिक बरसात के बाद अब सितंबर के आखिरी हफ्ते में मॉनसून का सीज़न खत्म हो रहा है। आधिकारिक डाटा के मुताबिक सितंबर 26 तक देश में सामान्य से 9% अधिक बारिश हुई थी। नौ राज्यों में अधिक बरसात हुई जबकि 20 राज्यों में सामान्य बारिश हुई। मॉनसून के महीनों – जून से सितंबर – में बरसात का पैटर्न असामान्य था। पहले जून में 17% अधिक बारिश हुई फिर जुलाई में कुल बरसात 10% कम रही लेकिन अगस्त में 27% अधिक पानी बरसा।

उधर रेडक्रॉस की ताज़ा रिपोर्ट में बरसाती बाढ़ को भारत में “सबसे बड़ी अकेली आपदा”  बताया गया है। इसमें 1.7 करोड़ लोग प्रभावित हुए और 1,000 से अधिक लोगों की जान गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी और बाढ़ से भारत और बांग्लादेश में कुल 4 करोड़ लोग प्रभावित हुये हैं। रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि प्रभावित लोगों का यह आंकड़ा कहीं अधिक बड़ा हो सकता है क्योंकि इसके बारे में अधिक आंकड़े उपलब्ध नहीं किये जा सके।

पेरिस संधि के मानक पूरे करने पर भी बढ़ेगा समुद्र स्तर 2.5 मीटर

जहां एक दुनिया भर में चर्चा है कि जलवायु परिवर्तन के असर को रोकने के लिये पेरिस संधि में तय किये मानकों को कैसे पूरा किया जाये वहीं दूसरी ओर एक नये शोध के मुताबिक अंटार्कटिक में पिघलती बर्फ की वजह से समुद्र स्तर में 2.5 मीटर की बढ़ोतरी होना तय है। नेचर पत्रिका में छपे शोध में बताया गया है कि ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने का सिलसिला अगली सदी में भी जारी रहेगा। इससे होना वाले नुकसान की भरपाई नामुमकिन होगी। तापमान वृद्धि को पेरिस संधि के तरह रखे गई 2 डिग्री की सीमा के भीतर रोक भी लिया गया तो ध्रुवों पर बर्फ के नुकसान की भरपाई नहीं हो पायेगी।

नॉर्डिक देश: क्लाइमेट न्यूट्रल बनने की राह में खड़ी है चुनौती

उत्तरी यूरोप स्थित डेनमार्क, फिनलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड  और स्वीडन जैसे देशों (जिन्हें नॉर्डिक देश भी कहा जाता है) का लक्ष्य है साल 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का है। लेकिन उन्हें अपनी बिजली की ज़रूरत पूरा करने के लिये 290 टेरावॉट आवर (TWh) बिजली की ज़रूरत होगी यानी उनके वर्तमान उत्पादन में 75% की बढ़ोतरी होगी। साफ है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये घरों में इस्तेमाल होने वाली बिजली के अलावा उद्योगों और परिवहन के लिये भी ऊर्जा के साफ विकल्प खोजने होंगे।


क्लाइमेट नीति

वादे में विफल: दुनिया में तमाम सरकारों ने कोरोना महामारी के बाद जो रिकवरी पैकेज बनाये हैं वह कार्बन उत्सर्जन रोकने को प्राथमिकता नहीं देते | Photo: Republic World

ग्रीन रिकवरी के वादे में फेल हो रहे हैं देश: विश्लेषण

एक नई रिसर्च बताती है कि कोरोना महामारी के बाद ज़्यादातर देशों ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिये जो पैकेज बनाये हैं वह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ाने वाले हैं। ग्रीननेस ऑफ स्टिमुलस इंडेक्स नाम के इस शोध में कहा गया है अमेरिका ही रिकवरी पैकेज के नाम पर करीब 3 लाख डॉलर खर्च कर रहा है लेकिन इसमें से केवल 3900 करोड़ डॉलर ही ग्रीन प्रोजेक्ट्स पर खर्च होगा। अमेरिका उन नियमों को भी निरस्त कर रहा है जो पर्यावरण संरक्षण के लिये बनाये गये हैं। शोध के मुताबिक केवल यूरोपियन यूनियन ही ऐसा समूह है जो 75,000 करोड़ यूरो के रिकवरी पैकेज में से 37% हरित प्रोजक्ट में खर्च कर रहा है।

नल से पानी सप्लाई पर होंगे 3.6 करोड़ खर्च

सरकार ने घोषणा की है कि वह घरों पर नल से पानी सप्लाई पहुंचाने के लिये कुल 3.6 लाख करोड़ खर्च करेगी। सरकार का कहना है कि वह अगले 4-5 साल में 15 करोड़ घरों में नल से पानी सप्लाई की व्यवस्था कर देगी। जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह के मुताबिक लोगों के घरों तक साफ पानी पहुंचाने के लिये चलाये जा रहे जल जीवन मिशन के तहत यह काम किया जा रहा है।

क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिये भारत की तैयार कमज़ोर: शोध

वर्ल्ड रिस्क इंडेक्स (WRI) – 2020 रिपोर्ट के मुताबिक “क्लाइमेट रियलिटी” से निपटने के लिये भारत की तैयारी काफी कमज़ोर है। कुल 181 देशों की लिस्ट में भारत 89वें स्थान पर है यानी जलवायु परिवर्तन के ख़तरों से निपटने के लिये उसकी तैयारी बहुत कम है। दक्षिण एशिया में क्लाइमेट रिस्क की वरीयता में भारत बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बाद चौथे नंबर पर है।  हाल यह है कि श्रीलंका, मालदीव और भूटान जैसे देशों की तैयारी हमसे बेहतर है।


वायु प्रदूषण

फिर सब ओर वही धुंआं: चेतावनी के वजूद किसान फिर से पराली जला रहे हैं लेकिन क्या सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है? | Photo: Research Matters

फिर पराली का धुंआं, अक्टूबर में होगा दमघोंटू प्रदूषण

अक्टूबर आते-आते हर साल खेतों में पराली जलाने का मुद्दा दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत में गरमाने लगता है। अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि पंजाब-हरियाणा में इस साल यह सिलसिला शुरू हो गया है। महत्वपूर्ण है कि पिछले साल पराली जलाने का ये सिलसिला 25 सितंबर को शुरू हुआ लेकिन नासा की तस्वीरें बताती हैं कि इस साल  अमृतसर में 13 सितंबर को ही दो जगह खुंटी जलाई गई और 20 सितंबर तक 62 जगह खेतों में आग जल रही थी।

दिल्ली समेत उत्तर भारत को प्रभावित करने वाला पराली का यह धुंआं अक्टूबर के मध्य में सबसे अधिक घना हो जाता है। दिल्ली हाइकोर्ट ने उस याचिका पर जवाब मांगा है जिसमें कहा गया था कि पराली के धुंयें से कोविड महामारी और विकराल रूप धारण कर सकती है। इस याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और यूपी के मुख्य सचिवों के साथ वार्ता करे।

वायु प्रदूषण: जावड़ेकर के साथ 5 राज्यों के मंत्रियों की बैठक

जाड़ों में दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत में होने वाले वायु प्रदूषण से पहले पांच राज्यों के मंत्रियों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के साथ बैठक हुई। गुरुवार को हुई इस मीटिंग में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और यूपी के पर्यावरण मंत्री शामिल थे। केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने मंगलवार को कहा था कि साल 2016 में प्रदूषण कम करने की जो मुहिम शुरू की गई थी वह दिल्ली ही नहीं फरीदाबाद, गुरुग्राम, नोयडा, गाज़ियाबाद के अलावा राजस्थान और पंजाब के हिस्सों के लिये भी है।  दिल्ली सरकार ने मीटिंग में पूसा इंस्टिट्यूट में तैयार बायो डिकम्पोजर को पराली गलाने के एक विकल्प के रूप में पेश किया ताकि उसे जलाना न पड़े। ईंट भट्ठों के साथ साथ एनसीआर के 11 कोयला बिजलीघरों को बन्द करने की मांग भी इस मीटिंग में उठी।

नियमों के पालन में 65% कोयला बिजलीघर फेल

देश के 65 प्रतिशत कोयला बिजलीघर 2022 की उस तय समय सीमा का पालन नहीं कर पायेंगे जिसके भीतर उन्हें धुंआं रोकने के लिये चिमनियों में यंत्र लगाने थे। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की ताज़ा आंकलन रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट कहती है कि बहुत बड़ी संख्या में कोयला बिजलीघर मानकों को पूरा करने के मामले में “लापरवाह और आलसी” हैं।

उद्योगों से होने वाली प्रदूषण में पावर प्लांट्स का हिस्सा 60% है। कुल 45% SO2, 30% NOx और 80% मरकरी पावर प्लांट्स से निकलता है। सीएसई की नई रिपोर्ट, जिसमें इस साल अगस्त तक के हालात का आकलन किया गया है, कहती है  कि कुल बिजलीघरों में से केवल 56% नये पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) मानकों का पालन करते हैं और मात्र 35% SO2 से जुड़े उत्सर्जन मानकों के हिसाब से हैं।

यूके में पेट्रोल-डीज़ल कारें अगले 10 साल में होंगी बन्द

यूनाइटेड किंगडम योजना बना रहा है कि वह 2030 के बाद डीज़ल और पेट्रोल कारों पर रोक लगा दे। इलैक्ट्रिक कार मालिकों के लिये फ्री पार्किंग और वेल्यू एडेड टैक्स में कटौती पर विचार किया जा रहा है। ट्रांसपोर्ट विभाग द्वारा कराई गई एक स्टडी में बताया गया है कि इलैक्ट्रिक कारों की बिक्री बढ़ाने के लिये एक के बाद एक कई इंसेंटिंव देने होंगे।


साफ ऊर्जा 

बड़े कदम की ओर: रेलवे 2030 तक 20 गीगावाट क्षमता के सोलर पैनल की बात कर रहा है और अगर यह साकार हुआ तो बड़ी उपलब्धि होगी | Photo: Weather Channel

रेलवे ट्रैक के साथ-साथ बनेंगे सोलर पावर प्लांट

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया कि रेलवे खाली जगह में ट्रैक के साथ-साथ सोलर प्लांट लगा रही है। इस योजना के तहत 4.7 मेगावॉट के प्लांट को पहले ही मंज़ूरी दी जा चुकी है। छत्तीसगढ़ के भिलाई में 50 मेगावॉट और हरियाणा के दीवाना में 2 मेगावॉट के प्लांट लगेंगे। रेल मंत्रालय का दावा है कि 2030 तक ट्रैक के साथ कुल 20,000 मेगावॉट के सोलर प्लांट लगाये जायेंगे इसके लिये 3000 मेगावॉट की निविदायें आमंत्रित की जा चुकी है।

बाधाओं के बावजूद रिन्यूएबिल क्षेत्र में इच्छुक हैं कंपनियां

साफ ऊर्जा क्षेत्र में मंदी के पीछे नीतिगत समस्याएं और कोरोना के कारण बिजली की घटी मांग ज़िम्मेदार है। इसके बावजूद रिसर्च संस्था ईफा (IEEFA) की नई रिपोर्ट के मुताबिक  देसी और विदेशी निवेशकों में साफ ऊर्जा में निवेश करने की काफी इच्छा है। हाल में हुई नीलामियों से इसकी पुष्टि होती है। रिपोर्ट के मुताबिक इस साल 2020 में अब तक हुई सात नीलामियों में कंपनियां करीब 1000 करोड़ से 2000 करोड़ डॉलर का निवेश करेंगी। सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने जून में अब तक की सबसे कम बिजली दरों (रु 2.36 प्रति किलोवॉट घंटा) में 2 गीगावॉट (2,000 मेगावॉट) के प्रोजेक्ट्स का ऑक्शन( नीलाम) किया। भारत के अलावा स्पेन, इटली, कनाडा, फ्रांस और जर्मनी समेत कई देशों की कंपनियों  ने सोलर में निवेश किया है।

चीन को घरेलू उत्पादों से पीटना है तो चाहिये सरकारी मदद: टाटा

टाटा पावर रिन्यूएबिल ने कहा है कि चीनी उत्पादों की सप्लाई से टक्कर लेने के लिये घरेलू उत्पादकों के पास पर्याप्त सरकारी इंसेंटिव नहीं हैं।  कंपनी के सीईओ आशीष खन्ना ने कहा कि देसी उत्पादकों को नये टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट बनाने और स्थापित करने के लिये सरकार की मदद चाहिये तभी वह चीन से होने वाले विशाल उत्पाद को टक्कर दे सकेंगे। खन्ना ने कहा कि टाटा अभी नई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट नहीं लगायेगी क्योंकि वह सरकार की ओर से लम्बी अवधि के नीतिगत इंसेंटिव का इंतज़ार कर रही है।

कच्छ में मेगा रिन्यूएबिल एनर्जी पार्क से हो सकता है नुकसान

गुजरात के कच्छ में 41,500 मेगावॉट का प्रस्तावित हाइब्रिड रीन्यूएबिल एनर्जी पार्क वन्य जीवन और पर्यावरण को काफी नुकसान कर सकता है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित ख़बर में कहा गया है कि गुजरात सरकार ने इसके लिये 60,000 हेक्टेयर ज़मीन दे दी है। इस पार्क के लिये 1.35 लाख करोड़ का निवेश होगा और इसे 2022 तक पूरा किया जाना है। सरकार ने ज़मीन के इस हिस्से को “वेस्टलैंड” घोषित कर दिया है लेकिन स्थानीय लोगों के लिये यह काफी मायने रखती है। हाल ही में स्थानीय लोगों की याचिका पर राजस्थान हाइकोर्ट ने अडानी पावर के सोलर एनर्जी पार्क पर रोक लगा दी थी जो उस जगह बन रहा था जिसे राज्स्थान सरकार ने “वेस्टलैंड” कहा था। कच्छ के पर्यावरण कार्यकर्ता महेंद्र भनानी ने कहा है कि साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट कोयला बिजलीघरों से बेहतर होते है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इनमें पर्यावरण और ज़मीन से जुड़े मुद्दों का खयाल न रखा जाये।


बैटरी वाहन 

आत्मनिर्भरता की कोशिश: नीति आयोग का नया प्रस्ताव घरेलू ईवी बैटरी को बढ़ावा देना है लेकिन इसकी सफलता कई दूसरे कदमों पर भी निर्भर होगी | Photo: Wired

घरेलू बैटरी निर्माण के लिये 460 करोड़ डॉलर की सब्सिडी

चीन से होने वाले आयात पर निर्भरता कम करने के लिये नीति आयोग ने एक प्रस्ताव रखा है। इसके तहत भारत में इलैक्ट्रिक कार बैटरियों का उत्पादन बढ़ाने के लिये अगले 10 सालों में करीब 460 करोड़ डॉलर (करीब 34,000 करोड़ रुपये) की सब्सिडी दी जायेगी। यदि यह प्रस्ताव पास होता है तो अगले वित्त वर्ष में इसके लिये करीब 12.2 लाख डॉलर (करीब 9 करोड़ रुपये) दिये जायेंगे और हर साल इस मदद को बढ़ाया जायेगा। भारत का घरेलू बैटरी बाज़ार अभी करीब 5 गीगावॉट-घंटा का है और संभावना है कि 2030 तक यह 230 गीगावॉट-घंटा हो जायेगा। नीति आयोग का प्रस्ताव यह भी है कि 2022 के बाद चीन से आयात होने वाली लीथियम-आयन बैटरियों पर आयात शुल्क 5% से बढ़ाकर 15% कर दिया जाये ताकि घरेलू उत्पादकों का बाज़ार में हिस्सा बढ़ सके।

EV में रखरखाव का खर्च IC इंजन कारों के मुकाबले आधा

एक गैर-लाभकारी संस्था कन्जूमर रिपोर्ट्स का ताज़ा शोध बताता है कि गैसोलीन पर चलने वाले  वाहनों के मुकाबले इलैक्ट्रिक वाहनों के रखरखाव का खर्च आधा होता है। इस शोध के तहत अमेरिका में इन दो तरह की गाड़ियों और प्लग-इन हाइब्रिड वाहनों को 2 लाख मील से अधिक चलाकर उनका लाइफ टाइम रखरखाव और रिपेयर का खर्च निकाला गया। जहां बैटरी वाहनों और हाइब्रिड में यह खर्च  करीब 2.25 रुपये प्रति मील था वहीं गैसोलीन वाहनों में यह दोगुना 4.60 रुपये प्रति मील रहा।  इसी संस्था की एक अलग रिसर्च बताती है कि बैटरी वाहन गैसोलीन वाहनों के मुकाबले 60% कम उत्सर्जन करते हैं।

टेस्ला ने की आधुनिक बैटरियों की घोषणा

टेस्ला मोटर्स का दावा है कि उसने नई “टैबलेस बैटरियां” बनाकर बैटरी टेक्नोलॉजी क्षेत्र में एक कामयाबी हासिल की है। कंपनी का कहना है कि इससे मौजूदा लीथियम आयन बैटरियों की रेंज 16% तक बढ़ जायेगी। टैबलेस बैटरी में बैटरी और लोड के बीच का धातु संपर्क हटा दिया जाता है जिससे इलेक्ट्रोन को 250 से लेकर 50 मिलीमीटर तक की कम दूरी तय करनी पड़ती है। दावा किया जा रहा है कि यह बैटरी 5 गुना अधिक एनर्जी स्टोर करेगी और खर्च में प्रति किलोवॉट-घंटा करीब 14% कमी आयेगी।


जीवाश्म ईंधन

कोयला का ना कहो: इंटरनेशनल फाइनेंसिल कॉर्पोरेशन के नये नियम बैंकों को अफ्रीका और एशिया में कोयले के कारोबार से हटाने के उद्देश्य से बने हैं | Photo: Cloudinary.com

अफ्रीका और एशिया में कोल से हटने के लिये प्रोत्साहन

इंटरनेशनल फाइनेंशियल कॉर्पोरेशन (आईएफसी) ने नये नियमों की घोषणा की है। इनके तहत दुनिया भर में बैंकों को इस बात के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा कि वो अफ्रीका और एशिया के देशों में कोयले पर निवेश बन्द करें। आईएफसी का ग्लोबल बैंकिंग पॉलिसी में बड़ा प्रभाव है क्योंकि इसके बनाये  नियमों को दुनिया भर के व्यवसायिक और निजी बैंक मानते हैं। माना जा रहा है कि नये नियमों का प्रभाव ज़रूर पड़ेगा और बैंक उन कोयला या पावर कंपनियों को कर्ज़ नहीं देंगे जिनकी कोयले से हटकर साफ ऊर्जा संयंत्र लगाने की योजना नहीं है।  

पोलैंड में कोयला खनन बन्द होगा लेकिन 2049 से

पोलैंड उन यूरोपीय देशों में है जो बिजली के लिये कोयले पर सबसे अधिक निर्भर हैं। यहां सरकार ने माइनिंग सेक्टर के साथ डील की है कि जिसके तहत कोयला खदानें 2049 से स्थायी रूप से बन्द कर दी जायेंगी। जानकारों ने चेतावनी दी है कि कोयला खनन बन्द करने के लिये ये समय सीमा कतई कारगर नहीं होगी क्योंकि अगले 30 साल में कोयले से काफी विनाश हो जायेगा। खुद यूरोप ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का लक्ष्य रखा है और विशेषज्ञों का कहना है कि उससे पहले कोयले का इस्तेमाल बिल्कुल खत्म करना होगा। फिर भी इस डील को पोलैंड के लिये एतिहासिक डील माना जा रहा है क्योंकि यूरोप के भीतर पोलैंड में कोयला समर्थक लॉबी सबसे मज़बूत है जो सौर और पवन ऊर्जा जैसे सस्ते विकल्पों के बावजूद इस प्रदूषण करने वाले ईंधन के पक्ष में है।