चक्रवातों की बढ़ती चेतावनी के बीच नासा की नई पहल

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - June 4, 2021

पैनी नज़र: जलवायु परिवर्तन की बढ़ती मार के बीच इसके प्रभावों का अधिक सटीक पता लगाने के लिये नासा की नई पहल कारगर हो सकती है। फोटो - NASA

क्लाइमेट चेंज पर नज़र रखने के लिये नासा का मिशन

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने योजना बनाई है कि वह बेहतर उपग्रह टेक्नोलॉजी के ज़रिये आने वाले दिनों में धरती पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की अधिक सटीक जानकारी दे सके। नासा के अर्थ सिस्टम विभाग के प्रमुख कैरन सेंट जर्मेन ने क्लाइमेट होम न्यूज़ वेबसाइट को बताया कि जो भी जानकारी एजेंसी इकट्ठा करेगी वह जनता के लिये मुफ्त उपलब्ध होगी। इसके  प्रसार के लिये नासा दुनिया की कई कंपनियों और संस्थाओं के साथ तालमेल करेगी। 

नासा का कहना है कि उसका मिशन एक नई वेधशाला (अर्थ सिस्टम ऑब्ज़रवेट्री) विकसित करने के लिये है जो क्लाइमेट चेंज के अलावा आपदा प्रबंधन, जंगलों की आग और कृषि क्षेत्र में समस्याओं से निपटने में मदद करेगा। इस कार्यक्रम के 2027-29 में शुरू होने की संभावना है। 

भारत में पॉयजनिंग के मामलों के लिये कीटनाशक का बेधड़क  इस्तेमाल ज़िम्मेदार 

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में छपा एक नया शोध बताता है कि भारत में कीटनाशक का बे रोक-टोक इस्तेमाल, पॉयजनिंग (ज़हर से मरने या बीमार पड़ने) का प्रमुख कारण है। बीएमजे की स्टडी कहती है कि देश में हर तीन में से दो मामलों में पॉयजनिंग के पीछे कीटनाशक ही ज़िम्मेदार होता है जो जानबूझकर या अनजाने में इस्तेमाल किया गया होता है। 

इस अध्ययन में जनवरी 2010 और मई 2020 के बीच 134 रिसर्च को विश्लेषण का आधार बनाया गया जिनमें 50,000 लोगों पर अध्ययन किया गया था। कृषि और घरेलू कामकाज में कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल 63 प्रतिशत पॉयजनिंग मामलों की वजह है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में यह जानकारी 24 मई को प्रकाशित हुई जो बताती है कि वयस्क आबादी में पॉयजनिंग के मामलों का फैलाव 65 प्रतिशत और बच्चों में 22 प्रतिशत था।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इस पॉयजनिंग के बढ़ने का कारण गरीबी, खेती और कीटनाशकों का बाज़ार में आसानी से उपलब्ध होना है। इस रिसर्च के बारे में यहां विस्तार से पढ़ा जा सकता है। 

चक्रवात ताउते ने पश्चिमी तट को दी चेतावनी 

भारत ने पिछले दिनों दो हफ्ते में दो चक्रवातों का सामना किया। पश्चिमी तट पर ताउते  और पूर्वी तट पर यास। यास पिछले हफ्ते पूर्वी समुद्र तट से टकराया और 14 लोगों की जान ली। यास और ताउते दोनों ही तूफानों ने काफी तबाही की और वैज्ञानिकों का कहना है कि इनके पीछे समुद्र का बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है। 

जानकारों का कहना है कि ताउते पश्चिमी तट के विशेष रूप से अलार्म बेल की तरह है। पूर्वी तट के मुकाबले पश्चिमी तट पर आबादी बहुत घनी है लिहाज़ा वहां राहत कार्यों के लिये अधिक संसाधन और तत्परता चाहिये होगी। अब तक अरब सागर से कम ही चक्रवात उठते हैं और वह तट तक नहीं आते या कमज़ोर पड़ जाते लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। ताउते न केवल तेज़ी से तट की ओर बढ़ा बल्कि वह बड़ी जल्दी शक्तिशाली भी होता गया। मौसम विभाग ने भी इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी। हिन्दुस्तान टाइम्स का विश्लेषण कहता है कि लोगों की ज़िन्दगी और रोज़गार पर इस चक्रवाती प्रभाव का बड़ा असर पड़ेगा। 

1890-1900 के दशक से अब तक अरब सागर के मुकाबले हमेशा बंगाल की खाड़ी से ही अधिक तूफान उठे लेकिन अब अरब सागर अशान्त होता जा रहा है। 2011-2020 के बीच अरब सागर से 17 चक्रवात उठे जिनमें से 11 बहुत शक्तिशाली (वैरी सीवियर) श्रेणी के थे। 

दक्षिण भारत में 2016-18 का सूखा 150 साल में सबसे ख़राब 

भारत और अमेरिका के शोधकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण भारत में 2016-2018 के बीच पड़ा सूखा पिछले 150 साल का सबसे खराब सूखा था। जाड़ों के मौसम में सक्रिय होने वाले उत्तर-पूर्व मॉनसून की कम बारिश के कारण यह सूखा पड़ा। इसके कारण उत्तर भारत के कई शहरों में जल संकट छा गया और भारत के छठे सबसे बड़े शहर चेन्नई को 2019 में “डे-ज़ीरो” घोषित करना पड़ा।  

जानकार बताते हैं कि ऐसे सूखों क्षेत्र के कृषि उत्पादन पर काफी प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण आबादी का 60% रोज़गार के लिये खेती पर निर्भर है औऱ मॉनसून में गड़बड़ी उनके लिये बड़ा संकट पैदा करती है।


क्लाइमेट नीति

जनजातियों को राहत: एनजीटी के आदेश से गुजरात की घुमंतू जनजाति को राहत मिल सकती है जिसकी जीविका ग्रासलैंड पर ही निर्भर है। फोटो - Ovee Thorat

गुजरात की बन्नी ग्रासलैंड पर क़ब्ज़ा हटाने के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने आदेश दिया है कि 6 महीने के भीतर गुजरात के बन्नी ग्रासलैंड से सारा क़ब्ज़ा हटाया जाये।  कोर्ट ने इस विषय पर नियुक्त की गई संयुक्त समिति से कहा कि वह महीने भर के भीतर  इस बारे में एक्शन प्लान प्रस्तुत करे। एनजीटी ने मल्धारिस नाम की एक घुमंतु जनजाति की याचिका पर वन अधिकार क़ानून, 2006 की धारा 3 के तहत फैसला सुनाया।  यह जनजाति जीविका के लिये इस ग्रासलैंड पर निर्भर है। कोर्ट ने माना कि वन विभाग और राजस्व विभाग के बीच समन्वय की कमी के कारण यह क़ब्ज़ा हुआ है। 

हीराकुंड बांध: मानवाधिकार आयोग ने विस्थापितों के पुनर्वास पर ओडिशा-छत्तीसगढ़ से मांगी रिपोर्ट 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हीराकुंड बांध निर्माण से विस्थापित 26,000  परिवारों के राहत और पुनर्वास पर ओडिशा और छत्तीसगढ़ से रिपोर्ट मांगी है। एनएचआरसी ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों से कहा है कि बड़े स्तर पर हुये विस्थापन के बाद पुनर्वास में क्या खामियां रही यह एक विस्तृत रिपोर्ट में बताया जाये। आयोग ने अपने विशेष दूत बीबी मिश्रा से 8 हफ्ते के भीतर ज़मीनी हालात पर एक रिपोर्ट जमा करने को भी कहा है।

हीराकुंड बांध 70 साल पहले बना था और इसके सवा लाख एकड़ के डूब क्षेत्र में 360 गांव जलमग्न हो गये। इससे एक लाख लोग विस्थापित हुए। इस मामले में अपील करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता राधाकांत त्रिपाठी ने अपनी याचिका में कहा है कि “भ्रष्ट और आलसी नौकरशाही” के कारण पीड़ितों की तीसरी पीढ़ी आज तक इंसाफ के लिये लड़ ही रही है। 

यूके में बैंकों ने पेड़ काटने वाली फर्मों को दिये 90 करोड़ पाउण्ड 

एनजीओ ग्लोबल विटनेस द्वारा कराई गई रिसर्च में पाया गया है कि यूके के बैंकों ने दुनिया भर में सोया और पाम ऑइल जैसे उत्पादों के लिये पेड़ काटने वाली कंपनियों को 90 करोड़ पाउण्ड की फंडिंग की है।  एनजीओ ने 300 कंपनियों के साल 2020 के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इसके बाद यूके के सांसद नील पारिश ने पर्यावरण कानून में संशोधन के लिये संसद में प्रस्ताव रखा। अब तक इस तरह की फंडिंग पर यूके का पर्यावरण कानून को रोक नहीं लगाता है और केवल उन्हीं कंपनियों पर लागू होता है जो उत्पादों को सप्लाई करती हैं। नया संसोधन बैंकों को बाध्य करेगा कि वह पेड़ों के कटान में लगी कंपनियों को कर्ज़ या वित्तीय मदद न दे। 

कूलिंग की लागत घटाने के लिये समुद्र के भीतर डाटा सेंटर बनायेगा चीन 

चीन के दक्षिण द्वीप प्रांत हाइनन ने समुद्र के भीतर दुनिया का पहला व्यवसायिक डाटा सेंटर बनाना शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि ये प्रोजेक्ट अगले पांच साल में पूरा हो जायेगा। इस प्रोजेक्ट के ज़रिये चीन निरन्तर बिजली की ज़रूरतों वाले डाटा सेंटरों पर खर्च कम करना चाहता है। इससे परम्परागत बिजली स्रोतों से सप्लाई की ज़रूरत भी घटेगी। जानकार कहते हैं कि निरंतर पानी से घिरे रहने के कारण इस प्रयोग में काफी संभावनायें हैं लेकिन कुल निवेश और उसके बाद होने वाले मुनाफे का अध्ययन करना ज़रूरी है।


वायु प्रदूषण

बायोमास पर नियंत्रण: नये शोध बताते हैं कि जंगलों की आग और बायोमास बर्निंग किशोरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालते हैं। अब सरकार ने पराली को कोयलाघरों में जलाने के लिये एक्शन प्लान बनाया है। फोटो - Photo by Matt Palmer on Unsplash

पराली नियंत्रण: सरकार बायोमास को जलायेगी कोयला बिजलीघरों में

खेतों में खुंटी या पराली जलाने से हर साल प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिये सरकार ने ‘नेशनल मिशन ऑन यूज़ ऑफ बायोमास’ (बायोमास के इस्तेमाल पर राष्ट्रीय मिशन) की योजना बनाई है। सरकार का कहना है इसके द्वारा वह ताप बिजलीघरों का कार्बन फुट प्रिंट (इमीशन) कम करेगी। इस मिशन की अवधि अभी कम से कम 5 साल होगी और यह खेतों से बायोमास को बिजलीघरों तक पहुंचाने की सप्लाई चेन में बाधा को दूर करेगा। सरकार अभी ईंधन में 5% या उससे अधिक बायोमास मिलाकर शुरुआत करेगी। 

सरकार का दावा है कि इस मिशन से साफ हवा के लिये चल रहे नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) में मदद मिलेगी। हालांकि बायोमास को साफ ऊर्जा की श्रेणी में रखने को लेकर ही विवाद हैं। यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राष्ट्र इसे रिन्यूएबिल मानते हैं लेकिन कई जानकार कहते हैं कि इससे प्रदूषण कम नहीं होगा बल्कि वह एक जगह से हटकर दूसरी जगह होगा। 

फसल जलाने या जंगलों की आग से होने वाले प्रदूषण के कारण किशोरों के कद पर असर

एक नये शोध में पता चला है कि जिन 13 से 19 साल की लड़कियों ने अत्यधिक बायोमास प्रदूषण झेला उनका कद बाद में कम रह गया। यह अध्ययन कहता है कि लम्बे समय तक फसल जलने से या जंगलों में आग से उठा धुआं अगर किशोरों के फेफड़ों में जाता रहा तो उसके हानिकारक प्रभाव होते हैं। उत्तर भारत की लड़कियों पर इसका सबसे अधिक खतरा है।   यह अध्ययन बताता है कि जन्म से पूर्व और उसके बाद का प्रदूषण कद में 0.7% या 1.07 सेमी के बराबर कमी कर सकता है।  इस सर्वे में रिमोट सेंसिंग से बायोमास जलाने के अध्ययन और 13 से 19 साल की लड़कियों पर पूरे देश में किये सर्वे को मिलाया गया। 

गर्भवती महिला के प्रदूषण झेलने से नवजात शिशु को अस्थमा का ख़तरा 

अमेरिका में हुई एक नई स्टडी के मुताबिक अगर कोई महिला गर्भावस्था के दौरान स्वयं अल्ट्रा फाइन कणों (यूएफपी) का प्रदूषण झेलती है तो उसके बच्चे को अस्थमा होने की संभावना बढ़ जाती है।  यूएफपी  पर सरकार नियंत्रण नहीं रखती और उन बड़े कणों (पार्टिकुलेट मैटर) से अधिक खतरनाक होते हैं जिनकी लगातार मॉनिटरिंग होती है। 

यूएफपी वाहनों और लकड़ी के जलने से निकलते हैं और वैज्ञानिकों का कहना  है कि एक शुगर क्यूब के आकार जितनी हवा में ये कण दसियों हज़ार की संख्या में हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने यह शोध अमेरिका के बोस्टन में 400 माताओं और उनके नवजात बच्चों पर किया जिन पर गर्भवस्था से लेकर जन्म के बाद तक अध्ययन किया गया।


साफ ऊर्जा 

फोटो - Photo by Science in HD on Unsplash

कोरोना: सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट्स की लागत 5% बढ़ी

कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए हालात से साल 2021 की पहली तिमाही (जनवरी से मार्च) में बड़े सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट्स की औसत लागत 5 प्रतिशत बढ़ गई है। जहां पिछले साल इसी अवधि में प्रति मेगावॉट कीमत 4.83लाख डॉलर थी वहीं अब यह बढ़कर 5.05 डॉलर हो गई है।  वेबसाइट मरकॉम के मुताबिक यह वृद्धि कच्चे माल की बढ़ी कीमतों और महंगे हो चुके सोलर मॉड्यूल के कारण हुई है। इसी तरह रूफ टॉप सोलर (छतों पर सौर ऊर्जा पैनल) की कीमत में 3% की बढ़ोतरी हो गई है और इसे लगाने की कीमत 5.25 लाख प्रति मेगावॉट है। 

कोरोना: सौर ऊर्जा क्षेत्र में निवेश में गिरावट 

भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने सोलर सेक्टर में निवेश पर चोट की है। साल की पहली तिमाही में यह 30% गिरा है और कुल निवेश 104 करोड़ डॉलर रहा। जबकि साल 2020 की आखिरी तिमाही (अक्टूबर- दिसंबर) में यह 149 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर था।  साफ ऊर्जा क्षेत्र में सलाह देने वाली फर्म ब्रिज टु इंडिया ने दूसरी तिमाही के लिये सौर ऊर्जा क्षमता में बढ़ोतरी का अनुमान 2.3 गीगावॉट से घटाकर 1.3 गीगावॉट कर दिया है। हालांकि पहली तिमाही में ग्रिड कनेक्टेड सोलर पावर में 2.1 गीगावॉट की वृद्धि हुई थी। यह बढ़ोतरी तब हुई जब कोरोना की पहली लहर में कमी के बाद पाबंदियां हटाई गईं थी। 

बोरोसिल के मुनाफे में उछाल, घरेलू उत्पादकों ने कहा मोनोपोली से खत्म हो रहा है बिजनेस 

भारत की अकेली सोलर ग्लास निर्माता कंपनी बोरोसिल रिन्यूएबल्स का सालाना राजस्व में पिछले साल के मुकाबले 22% की बढ़ोतरी हुई और यह 502.3 करोड़ हो गया। कोरोना के बावजूद यह मुनाफा आखिरी तिमाही में बिक्री में बढ़ोतरी के कारण हुआ। जानकार कहते हैं कि चीन के घरेलू बाज़ार में सोलर ग्लास की बढ़ी मांग के कारण पूरी दुनिया में इसकी किल्लत हो गई। दुनिया का 95% वैश्विक सोलर ग्लास चीन को जाता है। बोरोसिल को सोलर ग्लास की इसी बढ़ी मांग का फायदा मिला है। 

दूसरी ओर बाज़ार में एक कंपनी के दबदबे से छोटे उत्पादक और खरीदार परेशान हैं। उनका कहना है कि मलेशिया से आयात होने वाले कांच पर टैक्स और एंडी डम्पिंग ड्यूटी ने उनके लिये बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी है और बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के लिये बराबरी का धरातल नहीं है। 

भारत 2047 तक पैदा कर देगा 295 करोड़ टन सोलर कचरा 

आईआईटी दिल्ली के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर भारत 2030 तक 347.5 गीगा टन के सौर ऊर्जा प्लांट लगाता है तो भारत इलैक्ट्रानिक वेस्ट साइकिल में करीब 295 करोड़ टन के उपकरण स्थापित हो जायेंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक सोलर उपकरण कचरे में 645 लाख करोड़ अमेरिकी डालर की महत्वपूर्ण धातुयें होंगी। इनमें से 70% को दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। 

रिसर्च में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि 645 लाख करोड़ डॉलर में से 44% सोना, 26% एल्युमिनियम और 16% कॉपर(तांबा)  होगा।  

अमेरिका: समुद्र में पवनचक्की फार्म की योजना का खुलासा 

अमेरिकी सरकार पश्चिमी तट पर समुद्र के भीतर (ऑफशोर) विन्ड पावर डेवलपमेंट का काम शुरू कर रही है। इसके तहत ढाई लाख एकड़ में करीब 380 पवन चक्कियां, कैलिफोर्निया तट से कई किलोमीटर भीतर समुद्र में लगेंगी। कैलिफोर्निया राज्य और अमेरिकी सरकार में इस बारे में एक समझौता होगा जिसके तहत राज्य केंद्रीय और उत्तरी तट को पवन चक्कियों के लिये खोलेगा। यह पश्चिमी तट पर अमेरिका का पहला व्यवसायिक ऑफशोर विन्ड फार्म होगा जो करीब 16 लाख घरों को बिजली देगा।


बैटरी वाहन 

हाइड्रोजन ईंधन सेल पर ज़ोर: दिल्ली हाइकोर्ट के आदेश में इलैक्ट्रिक मोबिलिटी में हाइड्रोजन ईंधन का इस्तेमाल बढ़ाने का ज़ोर है। फोटो - MercomIndia

दिल्ली हाइकोर्ट: फेम-II के तहत हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन पर विचार करे सरकार

एक याचिका के जवाब में दिल्ली हाइकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वो फेम-II योजना के तहत इलैक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ाने के लिये हाइड्रोजन ईंधन सेल विद्युत वाहनों पर विचार करे। सरकार के आदेश में हाइड्रोज़न ईंधन के फिलिंग स्टेशन लगाने के लिये भी कहा गया है जिससे इस टेक्नोलॉजी का नेटवर्क देश में फैलेगा। भारत इलैक्ट्रिक मोबिलिटी के मामले में अभी बहुत तरक्की नहीं कर पाया है लेकिन हाइड्रोज़न ईंधन सेल टेक्नोलॉजी इसे बढ़ाने में काफी मददगार हो सकती है। 

ईवी: ड्राफ्ट नीति में महाराष्ट्र के महत्वाकांक्षी लक्ष्य 

महाराष्ट्र सरकार ने अपनी नई ईवी नीति में कई महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की है।  इसके तहत मुंबई, पुणे , नासिक और नागपुर के चार एक्सप्रेस-वे 2025 तक पूरी तरह इलैक्ट्रिक हो जायेंगे। इसका लक्ष्य 2025 तक नये वाहनों में विद्युत वाहनों की संख्या 10% करना भी है। नीति के मुताबिक राज्य सरकार अपने बड़े शहरों में 2022 से केवल इलैक्ट्रिक वाहन ही बनायेगी। इसके अलावा मुंबई में 1,500 चार्जिंग स्टेशन लगेंगे और सभी इलैक्ट्रिक वाहनों का जल्दी पंजीयन होगा। 

टोयोटा की पहली हाइड्रोजन रेस कार मंज़िल तक पहुंचने में हुई फेल, 35 बार रिचार्ज करनी पड़ी 

हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने वाली टोयोटा की पहली रेसिंग कार अपने फर्स्ट टेस्ट में फेल हो गई। इसे मंज़िल तक पहुंचने से पहले 35 बार रिचार्ज़ करना पड़ा। कंपनी का इरादा बैटरी इलैक्ट्रिक वेहिकल (BEV) के मुकाबले इसे एक विकल्प के रूप में पेश करना था लेकिन यह तकनीकी कारणों से फेल हो गई। इसे इवेंन्ट करने का मकसद हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहनों के प्रति जागरूकता पैदा करना था। टोयोटा का दावा है कि बैटरी इलैक्ट्रिक वेहिकल के मुकाबले इस वाहन का कार्बन फुटप्रिंट काफी कम है और 10 लाख लोगों को इससे रोज़गार मिलेगा।


जीवाश्म ईंधन

कड़ा आदेश: हॉलेंड में अदालत ने देश की सबसे बड़ी तेल और गैस कंपनी को अपने इमीशन करीब 50% तक कम करने को कहा है। फोटो - Reuters

हॉलैंड: तेल और गैस कंपनी को कोर्ट का कड़ा आदेश

हॉलैंड की एक अदालत ने देश की सबसे बड़ी तेल और गैस कंपनी, रॉयल डच शेल से कहा है कि वह अपने कार्बन उत्सर्जन पूरी तरह कम करे। सिर्फ उत्पादों की कार्बन तीव्रता कम करने से काम नहीं चलेगा। उसी मूल्य के उत्पाद को बनाने में पहले की तुलना में कार्बन उत्सर्जन की गिरावट को कार्बन तीव्रता कहा जाता है। बिजली कंपनियों के खिलाफ याचिका में यह एक ऐतिहासिक फैसला है। कोर्ट ने शेल को 2030 तक (1990 के स्तर के मुकाबले) अपने इमीशन 46% कम करने को कहा है। हालांकि शेल ने पूरी तरह इमिशन कम करने की बात ठुकरा दी है क्योंकि यह उत्पादन कम करके ही मुमकिन है। 

विवादित अलास्का प्रोजेक्ट को बाइडेन दे सकते हैं मंज़ूरी 

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पर्यावरण कार्यकर्ताओं और आदिवासियों के निशाने पर आ गये हैं क्योंकि यह बात सामने आ रही है कि अब तक अनछुये रहे अलास्का में तेल गैस ड्रिलिंग प्रोजेक्ट को सरकार मंज़ूरी दे सकती है। यह प्रोजेक्ट पहले ही विवादों में रहा है जिसमें अगले 30 साल तक प्रतिदिन एक लाख बैरल तेल निकालने की योजना है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे मंजूरी दी थी। 

बाइडेन सरकार ने साफ ऊर्जा के लिये कई घोषणायें की हैं और इसने की-स्टोन एक्सएल प्रोजेक्ट को रद्द किया है। फिर भी अलास्का प्रोजेक्ट के लिये उसका आंकलन “उचित और कानून सम्मत” इन फैसलों से मेल नहीं खाता क्योंकि यह पर्यावरण को नष्ट करने के साथ आदिवासियों और वन्यजीवों के लिये काफी घातक होगा। 

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