क्या ‘विकास’ के प्रस्तावित कदम कर देंगे लक्षद्वीप को तबाह?

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - July 1, 2021

पानी सोखती बिजली: नई स्टडी बताती है कि मानकों के 6 साल बाद भी देश के 50% कोयला बिजलीघर पानी के इस्तेमाल से जुड़े नियमों का पालन नहीं कर रहे। फोटो : Vitaly Vlasov from Pexels

देश के 50% कोयला बिजलीघर नहीं कर रहे जल खपत नियमों का पालन

कोयला बिजलीघर न केवल वायु प्रदूषण करते हैं, पानी का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं। अब एक अध्ययन में यह पता चला है कि देश के आधे कोयला बिजलीघर साफ पानी के सीमित इस्तेमाल की गाइडलाइनों का पालन नहीं कर रहे। ये बात दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट यानी सीएसई के अध्ययन में सामने आयी है। सीएसई ने इस स्टडी के दौरान कुल 132 कोल पावर प्लांट्स का अध्ययन किया जिनकी कुल क्षमता 154 गीगावॉट थी। इनमें से 23 कोल प्लांट (31 गीगावॉट) समुद्र जल का इस्तेमाल कर रहे हैं जिन पर सरकार की 2015 में बनाये वॉटर यूज़ मानक लागू नहीं होते। बाकी 112 में से केवल 55 कोल प्लांट (64 गीगावॉट) नियमों का पालन करते पाये गये जबकि 54 कोयला बिजलीघर (59 गीगावॉट) इन नियमों का पालन नहीं कर रहे। 

कोयला बिजलीघरों के लिये पानी की खपत को लेकर साल 2015 में नियम बनाये गये जिन्हें 2018 में संशोधित भी किया गया। समुद्र का पानी इस्तेमाल करने वाले प्लांट्स को इन नियमों से छूट है लेकिन फ्रेश वॉटर का इस्तेमाल करने वाले प्लांट अगर 1 जनवरी 2017 से पहले लगे हों तो वह प्रति मेगावॉट घंटा बिजली उत्पादन में 3.5 घन मीटर से अधिक पानी की खपत नहीं कर सकते जबकि 1 जनवरी 2017 के बाद के प्लांट्स के लिये यह सीमा 3 घन मीटर की है। सीएसई की स्टडी में पाया गया कि नियमों का पालन न करने वाले बिजलीघरों में ज़्यादातर महाराष्ट्र और यूपी की सरकारी कंपनियां हैं।  

राहत कार्य के बाद सुंदरवन में प्लास्टिक कचरे का ढेर  

पिछले महीने आये यास चक्रवात के बाद चले राहत कार्य से सुंदरवन में कचरे का ढेर जमा हो गया। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक यहां की नदियों, तालाबों और ज़मीन में प्लास्टिक बोतलों के साथ खाने के पैकेट और पाउच जमा हो गये। प्रशासन की ओर से चलाये गये सफाई अभियान में पहले 10 दिन में ही करीब 10 टन कचरा निकाला जा चुका है और यह अभियान अभी जारी है।  सुंदरवन पश्चिम बंगाल के उत्तर और दक्षिण 24 परगना में फैला हुआ है और यास चक्रवात के कारण यहां 2 लाख हेक्टेयर से अधिक फसल और बाग़वानी को नुक़सान पहुंचा था। राहत एजेंसियों ने चक्रवात पीड़ितों की मदद तो की लेकिन ठोस कचरा प्रबंधन की कोई व्यवस्था न होने के कारण प्लास्टिक के कूड़े का ढेर लग गया है। 

उत्तर भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की प्रगति धीमी; केवल 1/3 क्षमता पर जलाशय

भारत के मानसून में थोड़ी कमी देखी जा रही है क्योंकि देश भर में इसकी प्रगति धीमी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने कहा कि मानसून उत्तर में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पंजाब के कुछ हिस्सों से ज़रूर गुज़रा लेकिन अनुकूल परिस्थितियों न होने के कारण इन राज्यों के शेष हिस्सों में इसके आगे बढ़ने की संभावना अगले 6-7 दिनों में नहीं है। आईएमडी ने आने वाले दिनों में उत्तर पश्चिम, पश्चिम और मध्य भारत में कम बारिश की भविष्यवाणी की है।

आईएमडी के अनुसार, जून के पहले तीन हफ्तों में, देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य और सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई। हालांकि, आठ पूर्वोत्तर राज्यों ने वर्षा की कमी की सूचना दी। अरुणांचल प्रदेश इस सूची में शीर्ष पर था और वहां  वर्षा में 60% की कमी दर्ज की गई। लक्षद्वीप, गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ भी इस सूची में शामिल हैं ।

दक्षिण-पश्चिम मानसून की धीमी प्रगति के कारण भारत के जलाशयों में अपनी क्षमता का केवल एक तिहाई पानी बचा है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा भंडारण पिछले साल की तुलना में कम है, लेकिन यह अभी भी इसी अवधि के 10 साल के औसत से बेहतर है। 

यूरोप ने मीथेन उत्सर्जन को छुपाया?

क्या यूरोप अपने मीथेन उत्सर्जन के आंकड़ों को छुपा रहा है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इन्फ्रारेड कैमरों की मदद से सात यूरोपीय देशों में मीथेन लीक के 120 मामलों का पता लगाया है जिनकी रिपोर्टिंग नहीं की गई। अमेरिकी थिंक-टैंक क्लीन एयर टास्क फोर्स (सीएटीएफ) ने हंगरी, जर्मनी, चेक गणराज्य, इटली, रोमानिया, पोलैंड और ऑस्ट्रिया से आंकड़े एकत्रित किये। यह आंकड़े काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि 20 साल के अंतराल में मीथेन कार्बन डाई ऑक्साइड के मुकाबले 84 गुना अधिक ग्लोबल वॉर्मिंग करती है।


क्लाइमेट नीति

माइनिंग की चोट: लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉट की नई रिसर्च के मुताबिक बेल्लारी में हो रही माइनिंग फिर वहां के किसानों के लिये सिरदर्द बन रही है। फोटो :jplenio from Pixabay

बेल्लारी में फिर माइनिंग से किसानों की मुश्किल बढ़ी

कर्नाटक के बेल्लारी में एक बार फिर से माइनिंग बढ़ने खनन क्षेत्र का भूमि अधिकारों का रिकॉर्ड स्पष्ट न होने से  यहां के किसानों और मूल निवासियों के लिये मुश्किल खड़ी हो रही है। भूमि संबंधी विवादों का डाटाबेस बनाने और रिसर्च करने वाली संस्था लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच (एलसीडब्लू)  की रिसर्च बताती है कि बेल्लारी के जिन गांवों में माइनिंग हो रही है उनमें से कई इलाके सरकार के राजस्व रिकॉर्ड में नहीं है और किसानों को इसके क़ानूनी पट्टे नहीं दिये गये हैं। इस रिसर्च पर आधारित एक समाचार रिपोर्ट वेबसाइट द मॉर्निंग कॉन्टैक्स्ट ने प्रकाशित की है और यहां पढ़ी जा सकती है। 

महत्वपूर्ण है कि बेल्लारी में खनन पर लगी पाबंदियां सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में हटा दी थीं। एलसीडब्लू की रिसर्च के मुताबिक किसानों के पास क़ानूनी अधिकार न होने के कारण माइनिंग कंपनियां उनका शोषण कर रही हैं और ज़मीन छिन रही है। किसानों का कहना है माइनिंग की धूल से उनकी मक्का, प्याज और मूंगफली की फसल चौपट हो रही है और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। 

विशेषज्ञों ने लक्षद्वीप के मामले पर राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी 

देश के 60 वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर कहा है कि लक्षद्वीप डेवलपमेंट अथॉरिटी रेग्युलेशन का ड्राफ्ट वापस लिया जाना चाहिये। इसके नये नियमों लक्षद्वीप को एक बड़ा पर्यटन केन्द्र बनाने के लिये हैं लेकिन इन विशेषज्ञों का कहना है कि नये बदलाव लक्षद्वीप की भौगोलिक स्थिति, इकोलॉजी और लम्बे मानव इतिहास  को देखते हुये सही नहीं होंगे। लक्षद्वीप में कुल 36 टापू हैं जो 32 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं और इन जानकारों ने राष्ट्रपति से ड्राफ्ट का “गंभीर पुनर्मूल्यांकन” करने की मांग की है। इससे पहले 90 से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने इसी मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी थी और कहा था कि नये बदलाव लक्षद्वीप को तबाह कर देंगे। 

केरल में प्रस्तावित सेमी हाई-स्पीड रेलवे लाइन से पर्यावरण को खतरा 

केरल के उत्तरी और दक्षिणी इलाकों को जोड़ने के लिये प्रस्तावित सेमी-हाई स्पीड रेलवे लाइन पर पर्यावरणविदों की नज़र है। उनका मानना है कि ये रेलवे लाइन इस क्षेत्र की जैव विविधता के लिये ख़तरा पैदा करेगी। करीब 64,000 करोड़ रुपये का  ये सिल्वर लाइन प्रोजेक्ट 1,383 हेक्टेयर ज़मीन पर फैला होगा। इस क्षेत्र में रिहायशी इलाकों के अलावा वेटलैंट, बैकवॉटर, जंगल और धान के खेत हैं। पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा। उन्होंने ये भी कहा कि इस प्रोजेक्ट से पहले किसी तरह का वैज्ञानिक, तकनीकी या सामाजिक और पर्यावरण प्रभाव आंकलन नहीं किया गया है। 

जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन  (COP26) पर संकट?

इस साल नवंबर में ग्लासगो में होने वाले जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (COP26) के आयोजक इस सम्मेलन की कामयाबी को लेकर सशंकित और चिंतित है। उनकी चिन्ता है कि जी-7 जैसे अमीर देशों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अब तक अपने लक्ष्य पूरा करने के लिये पर्याप्त काम नहीं किया है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है पेरिस संधि के तहत विकासशील देशों को 10,000 करोड़ डालर सालाना फंड का वादा। इस रकम को देने में अमीर देशों का अनमनापन हाल में हुए जी-7 समिट में दिखा जहां कनाडा और जर्मनी 10,000 करोड़ डालर के फंड के लिये अपना हिस्सा देने को तैयार थे लेकिन इटली इटली केवल 10 करोड़ डालर ही जुटा पाया। दूसरी ओर अमेरिका देश के भीतर कोयले का इस्तेमाल बन्द करने की जी-7 देशों की प्रस्तावित संधि से पीछे हट गया जबकि जापान जो कोयले पर काफी हद तक निर्भर है इसका इस्तेमाल बन्द करने को सहमत था। 


वायु प्रदूषण

घर में है संकट: घरेलू प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या है और नेचर कम्युनिकेशन में छपी रिसर्च कहती है कि 2017 में वायु प्रदूषण से होने वाली 10 लाख मौतों को टाला जा सकता था। फोटो:Ashwini Chaudhary on Unsplash

वायु प्रदूषण से जुड़ी 25% मौतों के लिये घरेलू धुंआं ज़िम्मेदार

देश में वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों में 25% यानी एक चौथाई के पीछे घरेलू प्रदूषण एक कारक है। साइंस जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक अध्ययन में 2017 और 2019 के बीच हुई उन मौतों का विश्लेषण कर यह बात कही है जिनके पीछे वायु प्रदूषण एक कारण था। इस शोध में खाना पकाने और हीटिंग के लिये घरों में इस्तेमाल ठोस बायो फ्यूल के जलने से निकलने वाले 15 प्रदूषकों को एक-चौथाई (25%) पीएम 2.5 के लिये ज़िम्मेदार माना गया। उद्योग करीब 15% और ऊर्जा क्षेत्र 12.5% पार्टिकुलेट मैटर के लिये ज़िम्मेदार है। 

इस अध्ययन के मुताबिक साल 2017 में कुल 8,66,566 लोगों के मरने के पीछे पीएम 2.5 एक कारण था और साल 2019 में यह आंकड़ा 9,53,857 रहा।  शोध कहता है कि अगर घरों में जलने वाले ठोस बायो फ्यूल के प्रदूषण को रोका जाता तो एक चौथाई मौतों को रोका जा सकता था। शोध बताता है कि साल 2017 में प्रदूषण से जुड़ी 10 लाख मौतों को टाला जा सकता था।  दुनिया में पार्टिकुलेट मैटर से जुड़ी सभी मौतों में 58% हिस्सा भारत और चीन का है। 

घरेलू धुंआं प्रदूषण से होने वाली 25% मौतों के लिये ज़िम्मेदार 

अपने तरह के पहले अध्ययन में वायु प्रदूषण और मौसम के जानकारों ने पाया है कि मुंबई और पुणे के उन इलाकों में सबसे अधिक कोरोना के मामले सामने आये जहां वाहनों और उद्योगों का प्रदूषण सबसे अधिक था।  इन्हीं इलाकों में कोरोना के कारण सबसे अधिक लोगों की जान भी गई। एयर क्वालिटी डाटा और कोरोना के प्रभाव को लेकर यह स्टडी उड़ीसा की उत्कल यूनिवर्सिटी, आईआईटी भुवनेश्वर और  इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी पुणे के विशेषज्ञों ने यह अध्ययन किया। विशेषज्ञों ने पिछले साल मार्च और नवंबर के बीच मुंबई और पुणे समेत देश के 16 ज़िलों में कोरोना के मामलों और इन इलाकों में पीएम 2.5 के स्तर का अध्ययन किया। यह पाया गया कि अधिक प्रदूषण वाले इलाकों का कोरोना के मामलों और उससे जुड़ी मौतों के साथ स्पष्ट संबंध था।  

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलेगा ओजोन प्रदूषण का पता 

अमेरिका के ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में विकसित की गई टेक्नोलॉजी से अब धरती पर ओजोन के स्तर सटीक पूर्वानुमान दो सप्ताह पहले किया जा सकेगा। धरती की सबसे निचली सतह जिसमें हम रहते हैं उसे ट्रोपोस्फीयर कहा जाता है। ओजोन इसके ऊपर की सतह स्ट्रेटोस्फियर या समताप-मंडल में होती है। वहां ओजोन की होना हमारे लिये लाभकारी है लेकिन अगर ओजोव ट्रोपोस्फियर में आ जाये तो मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है। अब वैज्ञानिकों यह मुमकिन किया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से दो सप्ताह पहले ओजोन के प्रदूषण का पता लगाया जा सकेगा इससे इस दूसरे दर्जे के प्रदूषण से लड़ने में मदद मिलेगी। ओजोन एक रंगहीन गैस है और अगर पृथ्वी की सतह के पास अधिक मात्रा में हो तो फेफड़ों और दूसरे अंगों पर ज़हरीला प्रभाव डाल सकती है।


साफ ऊर्जा 

बड़ा निवेश लेकिन सवाल कायम: रिलायंस ने सोलर पैनल निर्माण के लिये 74 हज़ार करोड़ की घोषणा की है लेकिन वही कंपनी तेल और गैस के व्यापार में लगी सबसे बड़ी कंपनियों में भी है। फोटो: Image by Bishnu Sarangi from Pixabay

रिलायंस ने क्लीन एनर्जी में $ 1,000 करोड़ निवेश की घोषणा की

देश की सबसे बड़ी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने घोषणा की है कि वह अगले कुछ साल में सोलर पैनल निर्माण क्षेत्र में  एक हज़ार करोड़ अमेरिकी डालर यानी करीब 74,000 करोड़ रुपये निवेश करेगी। रिलायंस का कहना है कि वह सौर ऊर्जा से जुड़े उपकरणों को बनाने  के लिये गुजरात के जामनगर में 4 ‘गीगाफैक्ट्री’ लगायेगी। इन कारखानों में सोलर पैनलों के अलावा इलैक्ट्रिक बैटरियां, ग्रीन हाइड्रोजन और हाइड्रोजन फ्यूल सेल बनाये जायेंगे। माना जा रहा है कि अलग यह योजना सही तरीके और सही भावना से लागू हुई तो नेट ज़ीरो लक्ष्य में भारत की कोशिशों के लिये काफी उपयोगी होगी। विश्लेषकों ने रिलायंस की इस घोषणा का स्वागत किया लेकिन चेताया है कि कंपनी अभी भी गैस और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) में निवेश कर रही है जो साफ ऊर्जा की कोशिशों को बेकार कर देगा। महत्वपूर्ण है कि रिलायंस ग्रुप का सालाना राजस्व 50 हज़ार करोड़ रुपये का है और वह दुनिया के सबसे बड़े आइल रिफाइनरों में भी गिना जाता है। 

महामारी के बावजूद क्लीन एनर्जी का ग्राफ बढ़ना जारी 

इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (इरीना) की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि सौर और पवन ऊर्जा की दरें कोरोना महामारी के व्यापक असर के बावजूद कम होती रहीं। पिछले साल साफ ऊर्जा के जितने संयंत्र लगे उसका करीब 62% (162 गीगावॉट) क्षमता के संयंत्रों में साफ ऊर्जा के की दरें सबसे सस्ते जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस इत्यादि) से कम रही। ‘रिन्यूएबल पावर जनरेशन कॉस्ट इन 2020’ नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि साफ ऊर्जा की कीमतें लगातार गिर रही हैं। रिपोर्ट ये कहती है कि छतों पर सबसे सस्ती सोलर (रूफ टॉप) पावर के मामले में भारत एक मानक बन गया है। साल 2013 और 2020 के बीच घरों में छतों पर सोलर की कीमत में 73% की गिरावट हुई है।


बैटरी वाहन 

ईवी की ओर: नई नीति के तहत बैटरी वाहनों का बाज़ार बढ़ाने के लिये गुजरात सरकार करीब 870 करोड़ रुपये की सब्सिडी देगी। फोटो: (Joenomias) Menno de Jong from Pixabay

गुजरात सरकार ने ईवी पॉलिसी जारी की

गुजरात सरकार ने राज्य में विद्युत वाहनों (ईवी) का बाज़ार बढ़ाने के लिये अपनी ईवी पॉलिसी जारी की है। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि साल 2025 तक 2 लाख बैटरी वाहन सड़क पर हों। इनमें 70 हज़ार इलैक्ट्रिक तिपहिया और 20 हज़ार इलैक्ट्रिक कार शामिल हैं। इस नीति में यह बात भी शामिल है कि हर हाउसिंग सोसायटी को चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिये नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट देना पड़ेगा। राज्य सरकार अगले चार साल तक वाहनों की कीमत पर 10 हज़ार रुपये प्रति किलोवॉट के हिसाब से छूट भी देगी और इसका कुल खर्च 870 करोड़ रुपये आयेगा। सरकार का अनुमान है कि इस नीति के कारगर तरीके से लागू होने से 2025 तक कार्बन इमीशन में करीब 6 लाख टन कटौती होगी।  

विद्युत वाहन: कनाडा ने समय सीमा में 5 साल की कटौती की   

कनाडा सरकार ने पूरी तरह इलैक्ट्रिक वाहनों की बिक्री के लिये समय सीमा में 5 साल कटौती कर दी है। पहले कनाडा ने लक्ष्य रखा था कि साल 2040 से देश में पूरी तरह इलैक्ट्रिक वाहन ही बिकेंगे और आईसी इंजन (पेट्रोल, डीजल और गैस आधारित) वाहनों की बिक्री नहीं होगी लेकिन अब यह समय सीमा घटाकर 2035 कर दी गई है। इसका मतलब यह कि इस समय सीमा के बाद ऑटो निर्माता केवल पूरी तरह बैटरी से चलने वाले वाहन ही बना और बेच सकेंगे। महत्वपूर्ण है कि कनाडा में अभी कुल वाहनों की बिक्री में बैटरी वाहनों का हिस्सा केवल 4% ही है। हर नये बैटरी वाहन की बिक्री पर सरकार कुछ छूट देगी जिसके लिये 60 करोड़ डॉलर का बजट रखा है।


जीवाश्म ईंधन

खनन शुरू: ऑस्ट्रेलिया में अडानी ग्रुप के विवादित कोयला प्रोजेक्ट में खनन शुरू हो गया है। कंपनी ने इस पर करीब 11,000 करोड़ का निवेश किया है। फोटो : BRAVUS MINING & RESOURCES

अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया में कोयला खनन शुरू किया, इसी साल भारत को भी निर्यात

अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया में विवादित रहे कार्मिकल कोल प्रोजेक्ट में आखिरकार खनन शुरु कर दिया है और इस साल के अंत तक वह भारत सहित कई देशों को कोयला निर्यात करने लगेगा।  ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड प्रांत में अडानी ग्रुप ने 2010 में इस प्रोजेक्ट की घोषणा की थी लेकिन स्थानीय इकोलॉजी पर इसके प्रभाव को लेकर पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका काफी विरोध किया। इस कारण कई अन्तर्राष्ट्रीय निवेशकों ने इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिया। अडानी ग्रुप ने शुरुआत में इस प्रोजेक्ट के तहत 1650 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 92,000 करोड़ रुपये) के निवेश की घोषणा की थी लेकिन फिर उसे इसे घटाकर 200 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 11000 करोड़ रुपये) करना पड़ा। अडानी ग्रुप ने यह कहकर इस कोल प्रोजेक्ट का बचाव किया है कि इससे भारत को सस्ता कोयला मिलेगा और ऑस्ट्रेलिया में नौकरियां पैदा होंगी।  

कोल पावर में 80% निवेश के लिए भारत समेत पांच एशियाई देश जिम्मेदार

दुनिया भर में कोल पावर में किये जा रहे 80 प्रतिशत निवेश के लिये भारत और चीन समेत पांच एशियाई देश ज़िम्मेदार हैं। कार्बन ट्रैकर समूह ने बुधवार को कहा कि नये संयंत्र महंगी कोल पावर के कारण चल नहीं पायेंगे और इससे दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिये जो लक्ष्य तय किये गये हैं उन्हें हासिल करने में देरी होगा| भारत और चीन के अलावा विएतनाम, जापान और इंडोनेशिया उन पांच देशों में हैं जो दुनिया में लगायी जा रही 80% कोल पावर के लिये ज़िम्मेदार हैं।

रिपोर्ट में  सभी नई परियोजनाओं को रद्द करने का सुझाव दिया हैं. अगर सुझाव नहीं माना गया  तो निवेशकों और करदाताओं को $ 15000 करोड़ यानी 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होगा । रिपोर्ट के मुताबिक एशिया की सरकारों को कोयले से हटकर तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) पर जाने का विरोध करना चाहिए।

चीन दुनिया का सबसे बड़ा कोयला निवेशक है। रिपोर्ट के अनुसार चीन अपने कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को  मौजूदा 1,100-गीगावाट से बढ़ाकर  1287 गीगावाट करने की योजना कर रहा है। भारत कोल पावर का दूसरा बड़ा उत्पादक है जहां अभी 250 गीगावॉट क्षमता के कोयला बिजलीघर हैं और वह 60 गीगाव़ॉट के प्लांट्स और लगाना चाहता है। कार्बन ट्रैकर का दावा है कि सोलर और विंडफार्म पहले से ही देश के मौजूदा कोयला संयंत्रों के 85% से अधिक सस्ती बिजली पैदा कर सकते हैं, और 2024 तक अक्षय ऊर्जा सभी कोयले से चलने वाली बिजली को पछाड़ने में सक्षम होगी। भारत और इंडोनेशिया में  नवीकरणीय ऊर्जा 2024 तक कोयले को पछाड़ने में सक्षम होगी। जबकि जापान और वियतनाम में कोयला 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में घाटे वाला होगा।

बांग्लादेश ने 10 कोयला बिजलीघरों का निर्माण रद्द किया 

बांग्लादेश ने देश में  प्रस्तावित 10 कोयला बिजलीघरों का निर्माण न करने का फैसला किया है। सरकार ने यह फैसला कोयले की बढ़ती कीमत और सामाजिक कार्यकर्ताओं के विरोध को देखते हुए किया है। क्लाइमेट एक्टिविस्ट देश की पावर सप्लाई को अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित करने की मांग करते रहे हैं। महत्वपूर्ण है कि पिछले एक दशक में बांग्लादेश ने तेज़ी से कोल पावर में बढ़ोतरी की लेकिन अब उन्होंने इसकी बढ़ती कीमत और क्लाइमेट प्रभाव को समझ लिया है। बांग्लादेश उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव सबसे अधिक और तेज़ी से पड़ रहा है।  सरकार का कहना है कि जब 2010 में देश का एनर्जी पालिसी बनी थी तो गैस के बाद कोयला सबसे सस्ता और प्रभावी विकल्प था लेकिन अब हालात बदल गये हैं। अभी देश की केवल 3.5% बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से आती है लेकिन सरकार का लक्ष्य 2041 तक इसे बढ़ाकर 40% करने का है। 

रूस के मेगा ऑइल प्रोजेक्ट से आदिवासियों के ख़तरा 

रूस के पूर्व-मध्य के इलाके में सरकारी कंपनी रोज़नेफ्ट के एक आइल ड्रिलिंग प्रोजेक्ट से वहां सैकड़ों साल से रह रहे आदिवासियों के जीवन के रहन सहन और जीवन को ख़तरा हो गया है। रोज़नेफ्ट यहां देश जो प्रोजेक्ट शुरू कर रही है वह रूस के अब तक के सबसे बड़े तेल प्रोजेक्ट्स में एक होगा। यह प्रोजेक्ट कारा समुद्र में तेल के भंडार के दोहन के लिये है लेकिन इससे लगे तेरा प्रायद्वीप में रहने वाले 11,000 डोल्गन आदिवासी कहते हैं कि एक मेगा इंडस्ट्रियल हब बनने से वो बर्बाद हो जायेंगे। इन आदिवासियों का जीवन आज भी शिकार और मछलीपालन पर निर्भर है। रोज़नेफ्ट का कहना है कि यहां दो आइल फील्ड में 600 करोड़ टन तेल की संभावना है और वह 2024 तक यहां से 3 करोड़ टन और 2030 आने तक सालाना 10 करोड़ टन तेल निकाल सकेगी। 

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