Newsletter - October 23, 2022
कार्बन उत्सर्जन से हुई गर्मी के कारण भारत को 15,900 करोड़ डॉलर की चोट
कार्बन उत्सर्जन के कारण हो रही ग्लोबल हीटिंग मानव उत्पादकता पर भी सीधा असर डाल रही है। क्लाइमेट ट्रांसपरेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक जी-20 देशों में भारत उत्सर्जन से बढ़ रही हीटिंग से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला देश है। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत को साल 2021 में ग्रीन हाउस गैस इमीशन के कारण बढ़ी गर्मी से 15,900 करोड़ डॉलर की क्षति हुई। क्लाइमेट ट्रांसपरेंसी – जो कि जलवायु परिवर्तन पर नज़र रखने वाले विश्व भर के संगठनों का समूह है – की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 से 2021 के बीच गर्मियों में औसत तापमान (1986 से 2005 के मुकाबले ) 0.4 डिग्री अधिक महसूस किया गया। इस कारण भारत में 16,700 करोड़ श्रमिक घंटों (लेबर ऑवर्स) का नुकसान हुआ। सभी जी – 20 देशों में भारत की अर्थव्यवस्था को इस कारण सबसे अधिक चोट पहुंची जो उसके जीडीपी की 5.4% के बराबर है। यह क्षति सेवा, निर्माण और
एक्सट्रीम वेदर के कारण भारत के चावल और गेहूं भंडार में भारी गिरावट
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के आंकड़े दिखाते हैं कि गेहूं और चावल का भंडार पिछले 5 साल में सबसे निचले स्तर पर है क्योंकि एक्सट्रीम वेदर के कारण इन फसलों के उत्पादन पर असर पड़ा है। यहां जमा किये गये अनाज को 80 करोड़ जनता तक सब्सिडी के तहत सस्ती दरों में पहुंचाया जाता है लेकिन पिछले 1 साल में सर्दियों और गर्मी दोनों ही मौसमों में फसलों पर असर पड़ा है। हालांकि आंकड़ों से पता चलता है कि एफसीआई के भंडार में अभी 5 करोड़ टन से अधिक गेहूं और चावल है जो न्यूनतम भंडारण स्तर से 66% अधिक है।
निगम का कहना है कि घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लिये देश में अभी पर्याप्त चावल है लेकिन गेहूं का भंडार 14 साल में सबसे कम है क्योंकि यूक्रेन-रूस संकट के कारण बढ़ी मांग की वजह से किसानों ने अपना गेहूं सीधे बाज़ार निजी व्यापारियों को बेचा है। तमिलनाडु समेत देश के कई हिस्सों में भारी बारिश के कारण धान की फसल पर बहुत बुरा असर पड़ा।
पिछले 50 साल में वन्य जीव आबादी 69% घटी: डब्लूडब्लूएफ
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड यानी डब्लू डब्लू एफ की लिविंड प्लेनेट इंडेक्स के मुताबिक 1970 के बाद से धरती पर वन्य जीवों की आबादी बहुत तेज़ी से कम हुई है। इसमें 69% गिरावट हुई है। जिन प्राणियों की संख्या घटी है उनमें स्तनधारी, पक्षी, उभयचर, सरीसृप और मतस्य परिवार के हैं। लातिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र में 1970 और 2018 के बीच मॉनीटर किये जा रहे वन्य जीवों की संख्या 94% कम हुई। दिसंबर में होने वाले बायोडायवर्सिटी समिट से पहले ये जानकारी काफी महत्वपूर्ण है।
इस दौर में ही दुनिया में ताजे पानी के जलीय जीवों की संख्या में 83% की कमी आई है। रिपोर्ट में पाया गया है कि 1970 से 2016 तक ताजे पानी की मछलियों की संख्या में 76% की गिरावट आई है। महत्वपूर्ण है कि इसी दौर में इंसानी आबादी दोगुना हो गई है। क्या इंसानी की धरती पर मौजूदगी बढ़ना बेज़ुबान जानवरों के लिये ख़तरा है?
नाइजीरिया में बाढ़ से सैकड़ों लोग मरे, 13 लाख से अधिक विस्थापित
नाइजीरिया के 36 में से 33 राज्यों में विनाशकारी बाढ़ ने भारी तबाही की है। इसने अफ्रीकी देश के 600 से अधिक लोगों की जान ले ली है और 13 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। अधिकारियों के मुताबिक 3,400 वर्ग किलोमीटर इलाका पानी में डूब गया और इससे आने वाले दिनों में फूड सप्लाई चेन पर प्रभाव पड़ेगा जो कि उत्तर-पश्चिम और सेंट्रल नाइजीरिया में चल रहे असंतोष से पहले ही प्रभावित है।
हालांकि साल के इस वक्त में यहां बाढ़ का होना असामान्य नहीं है लेकिन 2022 में आई ये बाढ़ कई दशकों की सबसे विनाशकारी बाढ़ है। अधिकारियों का कहना है कि अत्यधिक बारिश और पड़ोसी देश कैमरून में बांध से छोड़ा गया पानी इसकी मुख्य वजह है।
भारत अगले साल जी-20 अध्यक्ष के नाते क्लाइमेट फाइनेंस पर ज़ोर देगा
अगले साल जी-20 देशों की अध्यक्षता भारत कर रहा है और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कहा है भारत बहुराष्ट्रीय विकास बैंको और कर्ज़ की स्थिति के साथ जलवायु वित्त यानी क्लाइमेट फाइनेंस पर ध्यान केंद्रित करेगा। हाल ही में सम्पन्न हुई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक (वर्ल्ड बैंक) की सालाना मीटिंग में सीतारमण ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर बने संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कंवेन्शन (UNFCCC) का क्लाइमेट फाइनेंस के विषय पर बड़ा रोल है लेकिन उसके अलावा दूसरी संस्थाओं को भी इसमें भूमिका निभानी होगी।
इस बीच मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद ने इसी बैठक में घोषणा की कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सर्वाधिक ग्रसित 20 देश 685 बिलियन डॉलर की “अन्यायपूर्ण” कर्ज़ अदायगी को रोकने पर विचार कर रहे हैं। विश्व बैंक के एक प्रवक्ता ने इस बात को स्वीकार किया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का गरीब देशों पर भारी असर पड़ रहा है और विश्व बैंक कर्ज़ पर आधारित एक सम्पूर्ण समाधान के लिये प्रतिबद्ध है।
वैश्विक एविएशन सेक्टर ने किया 2050 के लिये “एस्पिरेशनल” नेट लक्ष्य का संकल्प
वैश्विक एविएशन सेक्टर 2050 के लिये एक “एस्पिरेशनल” नेट ज़ीरो लक्ष्य पर सहमत हो गया है। यानी इस नेट ज़ीरो लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश के हिसाब से कदम उठाये जायेंगे। अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) द्वारा मॉन्ट्रियल में आयोजित बैठक में दुनिया के 193 देशों ने इस लक्ष्य पर हामी भरी है।
एयरलाइंस से होने वाला इमीशन ग्लोबल वॉर्मिंग का एक बड़ा कारक है। इस योजना के तहत हर एयरलाइन को अपना एक बेसलाइन वर्ष निर्धारित करना होगा और उससे अधिक इमीशन को कम या निरस्त करने के कदम उठाने होंगे। हालांकि पर्यावरणविद् हालांकि इस योजना को बहुत कमज़ोर मानते हैं क्योंकि इसमें लक्ष्य को हासिल करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
जलवायु संकट: वांछित रफ्तार और पैमाने पर नहीं लागू हो रहे राष्ट्रीय संकल्प (एनडीसी)
वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (डब्लूआरआई) ने “स्टेट ऑफ एनडीसीज़ – 2022” के नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। एनडीसी (नेशनली डिटर्माइंड कांट्रिब्यूशन) पेरिस संधि के तहत किये गये वह संकल्प हैं जिनके तहत ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के लिये सभी देशों को कदम उठाने हैं। अलग अलग देशों के यह संकल्प अलग-अलग हैं लेकिन डब्लूआरआई की रिपोर्ट बताती है कि तमाम देश अपने क्लाइमेट एक्शन प्लान मज़बूत तो रह रहे हैं लेकिन यह काम उस पैमाने और रफ्तार पर नहीं हो रहा जो कि दिनों-दिन बढ़ रहे जलवायु संकट से लड़ने के लिये ज़रूरी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन अभी किये गये वादों से छह गुना कम करने होंगे। तभी धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री के नीचे रखा जा सकेगा। विकासशील देशों के लिये क्लाइमेट फाइनेंस की भारी कमी एक बड़ी दिक्कत है। एडाप्टेशन यानी अनुकूलन की दिशा में उठाये कदम दोगुने हुये हैं और न्यायसंगत अपेक्षा (इक्विटी) पर काफी ज़ोर है।
दीपावली से पहले प्रदूषण का स्तर बढ़ा, एहतियाती कदम लागू
दिवाली से पहले राष्ट्रीय राजधानी और आस-पास के क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है और हवा की गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में आ गई है।
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के अनुसार, बीते शनिवार को दिल्ली में समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 262 दर्ज किया गया। सुबह राजधानी में धुंध भी छाई रही जिससे इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रहे थे।
वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 21 अक्टूबर 2022 को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 168 शहरों में से 26 में वायु गुणवत्ता का स्तर खराब दर्ज किया गया, जबकि फरीदाबाद (312) में यह बेहद खराब रहा। गाजियाबाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300, गुरुग्राम में 242, और नोएडा में 258 पर पहुंच गया है।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के रिसर्चर सुनील दहिया ने एक ट्वीट में कहा कि दिल्ली-एनसीआर में पीएम2.5 का स्तर अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के दैनिक दिशानिर्देशों का 9-10 गुना है।
हर साल ठंड के इन शुरुआती महीनों में ख़राब होती हवा और दीवाली के त्यौहार को देखते हुए सरकार ने प्रदूषण से निबटने के लिए ग्रेडेड रिपॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत कुछ कदम उठाए हैं।
दिल्ली सरकार ने इस साल पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर जुर्माना और जेल की सजा भी हो सकती है।
वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए, दिल्ली सरकार ने ‘रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ’ अभियान की घोषणा की है।
सर्दियों में राष्ट्रीय राजधानी में हवा की गुणवत्ता ख़राब होने की बड़ी वजह है पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पराली जलाने की घटनाएं।
देखना है कि दीवाली के दौरान और बाद में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ती हैं या नहीं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इस महीने हुई बारिश की वजह से पराली जलाने का सिलसिला इस बार देर से शुरू हुआ है। वहीं दिवाली भी इस साल जल्दी आई है। ऐसे में अनुमान तो यही है कि पराली जलने की गतिविधियां बढ़ सकती हैं जिससे प्रदूषण का स्तर और बढ़ेगा।
शोधकर्ताओं की मानें तो वायु गुणवत्ता की बेहद खराब स्थिति से बचने के लिए प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों पर और सख्त कार्रवाई की जरूरत है। वहीं एक सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में हर पांच में से दो परिवार दिवाली पर पटाखे फोड़ने के लिए तैयार हैं।
उत्तर भारत के प्रदूषण बोर्डों के कुल सदस्यों में लगभग 60% जुड़े हैं प्रदूषण करने वालों
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के नये शोध में कहा गया है कि देश के 10 राज्यों के प्रदूषण बोर्डों के कुल 57% सदस्य उन उद्योगों से जुड़े हैं जो प्रदूषण करते हैं। ये वह बोर्ड हैं जिन पर देश के सबसे प्रदूषित कहे जाने वाले हिस्से गंगा के मैदानी भाग में प्रदूषण को नियंत्रित करने की ज़िम्मेदारी है। इन बोर्डों में कुल 7% ही सदस्य वैज्ञानिक, चिकित्सक या अध्येता हैं। अधिकतर बोर्ड इन न्यूनतम शर्त को पूरा नहीं करते जिसके मुताबिक कम से कम 2 सदस्य ऐसे होने चाहिये जिन्हें एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट का ज्ञान होना चाहिये।
सीपीआर ने अपनी रिसर्च में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के प्रदूषण बोर्डों का विश्लेषण किया। सीपीआर ने अपनी रिसर्च में यह पाया कि इन सभी बोर्डों में 40 प्रतिशत पद रिक्त हैं। झारखंड में 84% टेक्निकल पद खाली हैं जबकि बिहार और हरियाणा में यह आंकड़ा 75% है।
गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगो में कर रहा प्रदूषण प्रवेश
क्या आप सोच सकते हैं कि प्रदूषण किस हद तक मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने पहली बार यह पाया है कि गर्भस्थ शिशु के अंगों तक वायु प्रदूषण के अदृश्य कण पहुंच गये हैं। अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुए शोध में यह बात कही गई है।
यूरोप के एबरडीन और हैसेल्ट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया है कि अजन्मे बच्चों के फेफड़ों, जिगर और मस्तिष्क में वायु प्रदूषण के कण पहुंच रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि गर्भ के पहले तिमाही में वायु प्रदूषण के कण प्लेसेंटा को पार कर भ्रूण में प्रवेश कर सकते हैं। अध्ययनकर्ता वैज्ञानिकों ने उन भ्रूणों के ऊतकों का अध्ययन किया जिनका गर्भपात सात से बीस सप्ताह की उम्र में किया गया था। वैज्ञानिकों ने कार्बन के हज़ारों कण भ्रूण में पाये और उनका निष्कर्ष है कि वायु प्रदूषण का यह प्रभाव मानव विकास के लिये सबसे खतरनाक है क्योंकि भ्रूण में शिशु सबसे नाज़ुक दौर में होता है।
फ्रांस: अदालत ने वायु गुणवत्ता में सुधार न कर पाने पर लगाया जुर्माना
फ्रांस की सबसे बड़ी प्रशासनिक अदालत ने वायु गुणवत्ता को न सुधार पाने पर सरकार के ऊपर 1 करोड़ यूरो यानी करीब 81 करोड़ रुपये के दो नये जुर्माने लगाये हैं। पिछले साल इसी अदालत ने 1 करोड़ यूरो का जुर्माना इस ही वजह से लगाया था।
फ्रांस में पांच साल पहले ‘काउंसिल डि टाट’ अदालत ने सरकार को आदेश दिया था कि वह करीब एक दर्जन क्षेत्रों में नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड (NO2) और महीन कणों के स्तर को यूरोपीय मानको के हिसाब से कम करे। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सरकार ने जो कदम उठाये हैं उनसे यह विश्वास नहीं होता कि प्रदूषण स्तर को कम कर एयर क्वॉलिटी को वांछित स्तर पर ला सकेंगे। रायटर्स के मुताबिक जुर्माने की राशि उन पर्यावरण समूहों को मिलेगी जिन्होंने यह केस दायर किया था।
ईंधन के नियमन से शिपिंग उद्योग द्वारा होने वाला वायु प्रदूषण घटा: नासा
पिछले 17 सालों में दिन के वक्त ली गई उपग्रह की तस्वीरें बताती हैं कि समुद्रपोतों से निकलने वाले धुंयें के गुबार में कमी हुई है। साल 2020 में इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन (आईएमओ) ने वैश्विक मानक लागू किये जिसमें ईंधन में सल्फर की मात्रा को 86% किया जाना था। इस कारण जहाज़ों से छूटने वाला धुयें का गुबार (शिप ट्रेक) कम हुआ। कोरोना महामारी के कारण व्यापार में व्यवधान भी इस कमी के पीछे एक छोटा कारण है।
भारत 2030 तक करेगा 400 से 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत 2030 तक अपने अक्षय ऊर्जा भंडार में सालाना 35 से 40 गीगावाट की बढ़ोत्तरी करेगा, जो हर साल 3 करोड़ से अधिक घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस एंड क्लाइमेट एनर्जी फाइनेंस ने अनुमान लगाया है कि ऊर्जा खपत में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े देश भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 2030 तक 405 गीगावाट हो जाएगी। उम्मीद है कि यह सरकार के इस दशक के अंत तक 50 प्रतिशत बिजली उत्पादन गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से करने के लक्ष्य को भी पार कर जाएगी।
भारत सरकार का अनुमान इससे भी अधिक है। उनका मानना है कि इसी समय सीमा में 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन होगा। वर्तमान में, जीवाश्म ईंधन भारत की स्थापित ऊर्जा क्षमता का 59 प्रतिशत है, लेकिन 2030 तक ऊर्जा मिश्रण में इसका सिर्फ 31.6 प्रतिशत भाग रहने की उम्मीद है।
लेकिन कोयले को बंद करके हरित ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए धन की आवश्यकता है। हाल के अनुमानों में कहा गया है कि भारत को अपने 2030 के ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लगभग 223 बिलियन डॉलर यानी करीब 18 लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी।
वित्त वर्ष 2029/30 तक सालाना 35-40 गीगावाट की दर से बढ़ेगी भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता
भारत में घरेलू कोयला ऊर्जा का विस्तार करने के लिए नए सिरे से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन आईईईएफए के अनुसार देश की अक्षय ऊर्जा क्षमता वित्त वर्ष 2029/30 तक हर साल 35-40 गीगावाट बढ़ने का अनुमान है, जबकि थर्मल पावर की भागीदारी कम हो जाएगी।
रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% ऊर्जा उत्पादन के अपने लक्ष्य को पार कर जाएगा। इसमें उद्योगों की अक्षय ऊर्जा प्रतिबद्धताओं और अक्षय ऊर्जा की मांग-और-आपूर्ति में संभावित उछाल से सहायता मिलेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन युद्ध के कारण घरेलू स्तर पर उत्पादित ताप ऊर्जा का उपयोग संभवतः एक “अल्पकालिक समस्या” है। यूटिलिटी-स्केल सोलर के क्षेत्र में 2030 तक कुछ शीर्ष उद्योगों ने संयुक्त रूप से लगभग 231 गीगावाट की अतिरिक्त क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इसमें राज्य की एनटीपीसी 60 गीगावॉट, अदानी ग्रीन एनर्जी 45 गीगावॉट और टाटा पावर, रीन्यू पावर और एक्मे सोलर 25-25 गीगावॉट के लक्ष्य हेतु प्रतिबद्ध हैं।
जून 2022 में भारत ने घोषणा की थी कि 2030 तक देश का हरित हाइड्रोजन लक्ष्य 5 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लगभग 118 गीगावाट की अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता होगी।
चीन का मुकाबला: भारत के नेतृत्व वाले आईएसए ने की सौर उपकरण बाजार में विविधता की मांग
नई दिल्ली में सौर ऊर्जा पर एक सम्मेलन के दौरान अधिकारियों ने कहा कि देशों को जीवाश्म ईंधन से दूर, सौर ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के मार्ग में व्यवधानों को कम करने के लिए, सौर उपकरणों की आपूर्ति श्रृंखला को भौगोलिक दृष्टि से और अधिक विविध होने की जरुरत है।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, फ़िलहाल सौर ऊर्जा के लिए आवश्यक 75% उपकरणों का निर्माण चीन में किया जाता है। भारत और फ्रांस के नेतृत्व वाला 110-सदस्यीय अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) इस आपूर्ति श्रृंखला में विविधता चाहता है। सौर ऊर्जा की कीमतें कम हो रही हैं लेकिन माल ढुलाई की कीमतें बढ़ रही हैं। आईएसए के निदेशक अजय माथुर ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि सौर ऊर्जा की सस्ती कीमतों से अधिक देश लाभान्वित हों, ऐसे कई क्षेत्र होने चाहिए जहां से सौर फोटोवोल्टिक उत्पाद, उत्पादक से आपूर्तिकर्ता तक ले जाए जा सकें।
आईईए ने कहा कि हालांकि चीन के योगदान से लागत में 80% से अधिक की गिरावट आई है जिससे सौर फोटोवोल्टिक को विश्व स्तर पर सबसे सस्ती बिजली उत्पादन तकनीक बनने में सहायता मिली है, लेकिन चीन ने आपूर्ति-मांग के असंतुलन को भी बढ़ावा दिया है।
केंद्र ने पवनचक्कियों की रीपॉवरिंग के लिए मसौदा नीति जारी की
सरकार ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं की राष्ट्रीय रीपॉवरिंग नीति का एक संशोधित मसौदा जारी किया है जबकि सब-मेगावाट स्केल की पवन टर्बाइनों वाली अधिकांश पुरानी पवन ऊर्जा परियोजनाओं को अभी रीपॉवर किया जाना बाकी है।
सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि अपतटीय परियोजना क्षेत्रों के प्रति वर्गकिमी ऊर्जा उत्पादन को अधिकतम करके पवन ऊर्जा संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए रीपॉवरिंग नीति लाई जा रही है। नीति का संशोधित मसौदा तैयार करते समय “विभिन्न हितधारकों” के प्रतिनिधियों से बातचीत की गई थी। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2 मेगावाट की क्षमता से कम के विंड टर्बाइन, टर्बाइन जिनकी डिजाइन लाइफ पूरी हो चुकी है और एक क्षेत्र में मौजूदा विंड टर्बाइन्स का एक सेट रीपॉवरिंग के योग्य माना जाएगा।
चीन की विद्युत वाहन कंपनी बीवाईडी के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष के अंत तक भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बिक्री 50,000 तक पहुँचने की उम्मीद है। टेलीग्राफ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल देश में ईवी उपयोग की दर 0.4 फीसद से बढ़कर 1.8 फीसद हो गई।
बीवाईडी इंडिया के ईवी वरिष्ठ उपाध्यक्ष संजय गोपालकृष्णन ने द टेलीग्राफ को बताया कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में 22,000 इलेक्ट्रिक वाहन बेचे गए। इस वित्तीय वर्ष में अप्रैल से सितंबर तक 24,000 इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हुई है। वाहन डैशबोर्ड के अनुसार, दोपहिया, तिपहिया, चार पहिया और वाणिज्यिक वाहन मिलाकर वित्त वर्ष 22-23 में 5,15,949 ईवी इकाइयां बेची गईं। सड़क परिवहन मंत्रालय की वाहन सेवा के अनुसार, वित्त वर्ष 22-23 में अब तक 17,064 इलेक्ट्रिक मोटर कार इकाइयां पंजीकृत हो चुकी हैं। वित्त वर्ष 2021-22 में कम से कम 17,186 इलेक्ट्रिक मोटर कारों का पंजीकरण हुआ था।
2030 तक उत्तर प्रदेश के 17 शहरों में सभी सरकारी वाहन बैटरी चालित होंगे
उत्तर प्रदेश सरकार ने लक्ष्य रखा है कि 2030 तक लखनऊ सहित 17 शहरों में सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) से हो। राज्य कैबिनेट ने इसके लिए नई इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण और गतिशीलता नीति-2022 अनुमोदित की है।
नीति के अनुसार, प्रदेश सरकार ने 2025 तक प्रत्येक जिले में ई-बसों के संचालन हेतु हरित मार्ग बनाने का भी निर्णय लिया है, साथ ही अन्य शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाएगा। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक (आधिकारिक उपयोग में आने वाले) 100% सरकारी वाहन ईवी हों। उपरोक्त नीति के अनुसार नीति आयोग का लक्ष्य है कि देश में 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों का हिस्सा वाणिज्यिक कारों में 70%, निजी कारों में 30%, बसों में 40% और दो- और तिपहिया वाहनों में 80% हो। यह 2070 तक नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्य के अनुरूप है।
पश्चिम बंगाल ने 205 ईवी चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए आमंत्रित कीं बोलियां
बंगाल सरकार ने राज्य में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए ईवी चार्जिंग पॉइंट्स स्थापित करने का निर्णय लिया है। यह इंफ्रास्ट्रक्चर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में बनाया जाएगा। एचटी ऑटो की एक रिपोर्ट में आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि पश्चिम बंगाल राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड ने 205 चार्जिंग या बैटरी-स्वैपिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए निविदा जारी की है।
सूत्रों ने बताया कि एजेंसी इन चार्जिंग और स्वैपिंग स्टेशनों की स्थापना के लिए जमीन मुहैया कराएगी। साथ ही ऑपरेटरों द्वारा स्थापित किए जाने वाले स्टेशनों का रखरखाव उनके द्वारा किया जाएगा और राजस्व का एक हिस्सा भी दिया जाएगा। इन 205 चार्जिंग स्टेशनों में से 40 स्टेशन राष्ट्रीय राजमार्गों पर और शेष 165 अन्य जगहों पर लगाए जाएंगे।
पश्चिम बंगाल की ईवी नीति का लक्ष्य है कि 2030 तक राज्य में दस लाख इलेक्ट्रिक वाहन हों। सरकार ने राज्य भर में 10,000 ईवी चार्जिंग या बैटरी-स्वैपिंग स्टेशनों स्थापित करने की भी परिकल्पना की है।
बेंगलुरु-मैसूर हाईवे समेत देशभर में बीपीसीएल लगाएगी 200 चार्जिंग स्टेशंस
भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने बेंगलुरु-मैसूर हाईवे पर जल्द ही इलेक्ट्रिक चार्जिंग स्टेशंस लगाने का फैसला किया है। बीपीसीएल के कार्यकारी निदेशक (रिटेल) पी एस रवि ने बैंगलोर मिरर से कहा कि निकट भविष्य में पूरे हाईवे के पेट्रोल पंप्स पर फास्ट चार्जिंग सुविधाएं स्थापित की जाएंगी। रवि ने कहा कि बीपीसीएल छह महीनों में बेंगलुरु-मैसुरु सेक्टर समेत देश भर में 200 चार्जिंग स्टेशन शुरू करने की योजना बना रही है।
इस बीच, विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार केर्बसाइड चार्जर स्थापित करने में दिल्ली मॉडल का अनुसरण करे। केर्बसाइड ईवी चार्जिंग एक अनूठी पहल है जिसमें इलेक्ट्रिक वाहन को सड़क के किनारे स्ट्रीट लाइट पोस्ट या समर्पित चार्जिंग पोस्ट का उपयोग करके चार्ज किया जा सकता है।
2070 तक नेट जीरो प्रतिबद्धता के बावजूद 99 नई कोयला परियोजनाएं विकसित कर रहा है भारत
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) के शोध से पता चला है कि 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन के लिए प्रतिबद्ध होने के बावजूद भारत 99 नई कोयला खदानों का विकास कर रहा है। अध्ययन के अनुसार, नई खदानों से 165 गांवों और 87,630 परिवारों पर विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। यह खदानें सालाना 427 मिलियन टन कोयले का उत्पादन कर सकेंगी।
जीईएम की रिपोर्ट के अनुसार यह नई खदानें अनावश्यक हैं क्योंकि मौजूदा कोयला खदानें पहले से ही अपनी क्षमता से 36 फीसदी कम इस्तेमाल की गई हैं, और यदि इसका इस्तेमाल किया जाए तो यह बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा।
बाइडेन अमेरिकी तेल भंडार से 15 मिलियन बैरल जारी करने को तैयार
ओपेक देशों द्वारा हाल ही में उत्पादन में कटौती की घोषणा के जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन देश के रणनीतिक भंडार से 15 मिलियन बैरल तेल जारी करने के लिए तैयार हैं। संभावना है कि मध्यावधि चुनाव से पहले कीमतों को कम रखने के लिए वह सर्दियों में और अधिक तेल जारी करने का आदेश दे सकते हैं।
इस 15 मिलियन बैरल के साथ बाइडेन द्वारा मार्च में अधिकृत 180 मिलियन बैरल जारी करने का लक्ष्य पूरा हुआ। अमेरिका का रणनीतिक भंडार 1984 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर है, और इसमें लगभग 400 मिलियन बैरल तेल है। अमेरिका ने इसे घरेलू उत्पादन बढ़ाने तक की “अंतरिम” व्यवस्था बताया है।
सर्दी से पहले गैस की प्रतीक्षा कर रहे यूरोप को एलएनजी नहीं बेचेगा चीन
कड़ाके की सर्दी से पहले यूरोप के लिए बुरी खबर है। चीन की सरकारी ऊर्जा कंपनियां यूरोप को तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) को दोबारा बेचना बंद कर देंगी। चीन के नियोजन निकाय राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी) ने एलएनजी आयातकों सिनोपेक, पेट्रो चाइना और सीएनओओसी को अपने एलएनजी कार्गो को सुरक्षित रखने के लिए कहा है ताकि सर्दियों के दौरान पर्याप्त घरेलू आपूर्ति हो सके। हाल के वर्षों में, धीमी अर्थव्यवस्था और कोविड-19 महामारी के कारण एलएनजी की मांग में कमी आई है। जिसके फलस्वरूप यह कंपनियां अपने अतिरिक्त कार्गो को बड़े मुनाफे पर यूरोप को फिर से बेच रही थीं।
इस बीच, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि चीन स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते समय “विवेक” का प्रयोग करेगा — दूसरे शब्दों में, उन्हें जीवाश्म ईंधन का प्रयोग रोकने की कोई जल्दी नहीं है। गिरती अर्थव्यवस्था के बीच चीन ऊर्जा सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाना चाहता है, विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक ऊर्जा लागत में वृद्धि के बाद।