Newsletter - October 7, 2022
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित द्रौपदी का दांडा-2 चोटी पर हुये एवलांच में कम से कम 10 पर्वतारोहियों की मौत हो गई। यह हादसा पिछले मंगलवार को हुआ। सभी पर्वतारोही नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रशिक्षु थे। संस्थान की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया कि इस पर्वतारोहण दल में कुल 41 सदस्य थे जिसमें 34 ट्रेनी शामिल थे। मंगलवार सुबह 4 बजे चोटी से लौटते हुये ये दल एवलांच की चपेट में आ गया। गुरुवार देश शाम तक राहत कर्मियों की टीम बर्फ में दबे पर्वतारोहियों तक नहीं पहुंच पाई थी। आशंका जताई जा रही है कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है।
जानकार इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या इस एवलांच के लिये सितंबर की असामान्य बारिश ज़िम्मेदार है। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में देहरादून स्थित वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक मनीष मेहता ने इसे एक ‘पाउडर एवलांच’ बताया है जब बारीक और ढीली बर्फ चोटी से खिसक जाती है। मेहता के मुताबिक एवलांच तब होता है जब किसी चोटी की बर्फ को रोक पाने की क्षमता से अधिक हिम वहां पर जमा हो जाये। उत्तराखंड में यह एवलांच की पहली घटना नहीं है पिछले साल नन्दादेवी अभ्यारण्य पर त्रिशूल चोटी पर हुये एवलांच में भी नौसेना के 4 सदस्य फंस गये थे।
मॉनसून की समाप्ति: 27% ज़िलों में सूखा, मराठवाड़ा में 40 लाख हेक्टेयर पर उगी फसल तबाह
पिछले शुक्रवार मॉनसून सीज़न की समाप्ति के बाद मौसम विभाग ने कहा कि इस साल 1 जून और 30 सितंबर के बीच सामान्य से 6 प्रतिशत अधिक बरसात हुई लेकिन जुलाई-अगस्त में बारिश के असमान वितरण के कारण इस साल गंगा के मैदानी इलाकों का बड़ा हिस्सा सूखा प्रभावित रहा। भारत के 188 ज़िलों में सामान्य से कम (20 से 59 प्रतिशत की कमी) बारिश हुई और 7 ज़िलों में सामान्य से बहुत कम (60 प्रतिशत से अधिक कमी) बारिश हुई। झारखंड, बिहार, यूपी, पंजाब, हरियाणा, असम, दिल्ली और उत्तराखंड में सामान्य से कम बारिश हुई।
मध्य भारत में सामान्य से 19 प्रतिशत अधिक और दक्षिणी प्रायद्वीप में सामान्य से 22 फीसद अधिक बरसात दर्ज हुई। आधिकारिक रूप से 1 जून और 30 सितंबर के बीच का वक्त मॉनसून सीज़न माना माना जाता है। उत्तर पश्चिमी भारत में सामान्य के मुकाबले 1 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। लेकिन पूर्वी व उत्तर पूर्वी भारत में 18 फीसदी कम बारिश हुई।
उधर असामान्य और अनिश्चित मौसम का असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ रहा है। इस साल मराठवाड़ा में ही 36 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल पर लगी फसल इस कारण तबाह हो गई।
अन्य महासागरों की तुलना में चार गुना तेजी से अम्लीय हो रहा है आर्कटिक महासागर
एक नए अध्ययन में पाया गया है की आर्कटिक महासागर अन्य महासागरों की तुलना में चार गुना तेजी से अम्लीय हो रहा है। आर्कटिक महासागर, जो वायुमंडल में सभी कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का एक तिहाई हिस्सा अवशोषित करता है, जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण अधिक अम्लीय हो गया है। अध्ययन के अनुसार, पिछले तीन दशकों में आर्कटिक क्षेत्र में समुद्री बर्फ के तेजी से नुक़सान ने दीर्घकालिक अम्लीकरण की दर को तेज कर दिया है।
उत्तरी ध्रुव में तेजी से समुद्री-बर्फ पिघलने के कारण CO2 का अवशोषण ज़्यादा हो रहा है, जिसकी गति से वैज्ञानिक हैरान हैं | उनके अनुसार आर्कटिक समुद्री जीवन के लिए इसके प्रभाव भयंकर होंगे। वैज्ञानिकों का अनुमान है की यदि पश्चिमी आर्कटिक में समुद्री बर्फ का गायब होना जारी रहता है, तो यह प्रक्रिया अगले कुछ दशकों में और तेज हो सकती है।
चक्रवाती तूफान इयान का कहर, फ्लोरिडा और क्यूबा में 60 लोगों की मौत
चक्रवाती तूफान इयान – जो पिछले हफ्ते अमेरिका में फ्लोरिडा के दक्षिण पश्चिमी तट से टकराया था – के कारण 62 लोगों की मौत हो गई है। यहां 240 किलोमीटर प्रति घंटा तक की रफ्तार से हवायें चलीं और बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। पूरे इलाके में बत्ती गुल रही और फ्लोरिडा में 6,00,000 लोगों को बिना बिजली गुजारा करना पड़ा। उत्तरी कैरोलिना में भारी बारिश और तेज़ हवायें चलीं।
फ्लोरिडा में लैंडफॉल के बाद इसका असर क्यूबा में भी देखा गया। इस हफ्ते हवाना में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे क्योंकि तूफान के बाद वहां 27 सितंबर के बाद से बिजली बहाल नहीं की जा सकी।
स्विस हिमनदों के पिघलने की सबसे तेज़ रफ्तार
पिछले सौ साल में (जब से हिमनदों के पिघलने का रिकॉर्ड रखा जा रहा है) इस साल स्विटज़रलैंड के ग्लेशियर सबसे तेज़ रफ्तार से पिघले हैं। हिमनदों की मॉनिटरिंग करने वाली संस्था ग्लेमॉस (GLAMOS) के मुताबिक इस साल ग्लेशियरों ने अपने बचे हुये हिस्से का 6% खो दिया जो कि अब तक की सबसे अधिक क्षति है। यह 2003 में हुये रिकॉर्ड मेल्ट का लगभग दोगुना है। आंकड़ों के हिसाब से कुछ ग्लेशियर गायब हो गये हैं। यहां एक जगह तो सिर्फ चट्टान ही दिखी जो कि 1000 साल से बर्फ में दबी थी। एक दूसरी जगह एक विमान का मलबा दिखा जो कई साल पहले दुर्घटनाग्रस्त होकर एल्प्स में गिरा था।
क्लाइमेट एक्शन में फिसड्डी साबित हुईं दुनिया की ज़्यादातर सरकारें
दुनिया की अधिकतर सरकारें क्लाइमेट एक्शन में फेल रही हैं और पिछले एक साल में उन्होंने बातों के सिवा कुछ खास नहीं किया। पिछले साल नवंबर में ग्लासगो सम्मेलन (कॉप 26) में सभी देशों ने 2030 के लिये तय किये गये क्लाइमेट लक्ष्य के हासिल करने के लिये संकल्प लिये थे जिसके लिये इस साल 23 सितम्बर की समय सीमा रखी गयी थी। इस डेडलाइन के पूरा होने पर अब पता चला है कि जिन 200 देशों ने ग्लासगो संधि पर दस्तख़त किये उनमें से महज़ 23 देशों ने संयुक्त राष्ट्र सचिवालय में अपनी योजना की अपडेटेड जानकारी दी है।
इनमें से भी अधिकतर देशों ने जमा किये गये दस्तावेज़ में यह बताने के बजाय कि वह अपने क्लाइमेट एक्शन को कैसे अधिक प्रभावी बनायेंगे, केवल नीतिगत ब्यौरे ही बताये हैं। अगले सम्मेलन से पहले एडाप्टेशन फाइनेंस को लेकर ग्लासगो में किये गये वादों पर लगभग कुछ नहीं किया गया। सितंबर के अन्त तक अमेरिका, यूके, यूरोपीय कमीशन, स्पेन और कनाडा ने कुछ नहीं किया। एडाप्टेशन फंड जिन 356 मिलियन डॉलर की बात कही गई थी उसमें 230 मिलियन (कुल फंड का 65%) अभी दिया ही नहीं गया।
ढांचागत परियोजनाओं को जल्दी स्वीकृति देने के लिये सिंगल विंडो सिस्टम
सरकार ने तय किया है कि साल के अंत तक देश में सभी पर्यावरण, वन, वाइल्ड लाइफ और तटीय क्षेत्र में रेग्युलेशन (सीआरज़ेड) से जुड़ी स्वीकृतियां सिंगल विंडो क्लीयरेंस के तहत देने की शुरुआत हो जायेगी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी मिलने में देरी को खत्म करने के लिये ऐसा किया जा रहा है। परिवेश नाम से पहले ही इस तरह की अनुमतियों के लिये एक व्यवस्था चल रही है। लेकिन सरकार परिवेश 2.0 शुरू कर रही है जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों वाली स्टीयरिंग कमेटी होगी जो किसी प्रोजेक्ट का आकलन एक ही समय साथ-साथ करेगी।
अरावली में बैंक्वेट हॉल, मनोरंजक परिसरों ने मांगी मंजूरी
उधर पर्यावरण मंत्रालय की परिवेश वेबसाइट पर दस्तावेजों के अनुसार, हरियाणा की अरावली पहाड़ियों में कई बैंक्वेट हॉल, मनोरंजक परिसरों और आवास परियोजनाओं ने वन मंजूरी के लिए आवेदन किया है। ये ऐसी परियोजनाएं हैं जो वन संरक्षण कानून की धारा 4 के तहत अधिसूचित भूमि पर स्थित हैं, और कुछ मामलों में, पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए) की धारा 5 के तहत आने वाली ज़मीन पर हैं। पिछले महीने ऐसे 30 से अधिक परियोजना प्रस्ताव वन मंजूरी के लिए प्रस्तुत किये गए।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि इन परियोजनाओं को वन मंजूरी देना उल्लंघन को नियमित करने जैसा होगा क्योंकि वे साइट-विशिष्ट गतिविधियां नहीं हैं और वन भूमि के बाहर भी की जा सकती हैं। गुरुग्राम स्थित वन विशेषज्ञ चेतन अग्रवाल ने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा, “एक शादी या बैंक्वेट हॉल या बगीचा कहीं भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा, हरियाणा में 3.6% पर देश में सबसे कम वन क्षेत्र है, इसलिए इसे निर्माण की अनुमति देने के बजाय अपने जंगलों को बचाने और पुनर्जीवित करने का प्रयास करना चाहिए।
दिल्ली में ई-बसों को लाने से बच सकती हैं कई लोगों की जान
जापान के क्यूशू विश्वविद्यालय के शोध में कहा गया है कि अगर दिल्ली की सारी बसों को इलैक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिया जाये तो शहर में वाहनों से निकलने वाले 76 प्रतिशत प्रदूषण को कम किया जा सकता है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सीएनजी चालित बसें पार्टिकुलेट मैटर समेत कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित करती हैं जबकि इलैक्ट्रिक बसों से कोई इमीशन नहीं होते हैं। अभी दिल्ली में 7000 से अधिक सीएनजी से चलने वाली और केवल 250 इलैक्ट्रिक बसें ही हैं। हालांकि दिल्ली सरकार ने कहा है कि 2025 तक महानगर में 8000 ई बसें होंगी।
मोंगाबे हिन्दी से बातचीत में इस अध्ययन के शोधकर्ता तावोस हसन भट ने कहा कि अगर दिल्ली चलने वाली सारी बसें सिर्फ इलेक्ट्रिक बसें ही हो तो पीएम 2.5 का कुल उत्सर्जन हर साल 44 टन तक कम किया जा सकता है। भट के मुताबिक इससे वायु प्रदूषण से हर साल होने वाले 1370 मौतों को रोका जा सकता है। कई लोग सांस की बीमारी से भी बच जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसी स्थिति में हर साल स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले में लगभग 311 करोड़ रुपये की बचत भी होगी।
एनजीटी ने मार्बल स्लरी का इस्तेमाल बंद करने को कहा
देश की हरित अदालत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को मार्बल स्लरी के उपयोग और उसकी अनियमित डंपिंग को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करने के लिए कहा है। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया गया है कि मार्बल पॉलिश इकाइयों द्वारा भूजल का अवैध दोहन नहीं किया जाए।
साथ ही उद्योगों को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज मानकों का पालन करना चाहिए। इतना ही नहीं इससे जुड़े उद्योगों के पास कैप्टिव या संयुक्त मार्बल स्लरी के उपयोग की योजना होनी चाहिए।
डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर में कहा गया है कि कोर्ट का यह आदेश 26 फरवरी, 2022 को एनजीटी में एस श्रीनिवास राव द्वारा दायर आवेदन के जवाब में आया है। अपने आवेदन में उन्होंने आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में हरिश्चंद्रपुरम रेलवे स्टेशन के पास कृषि भूमि पर मार्बल स्लरी की अवैज्ञानिक तरीके से की जा रही डंपिंग की शिकायत कोर्ट से की थी। निम्मदा, पेद्दाबम्मीदी और येत्तुरलाप्पु में स्थित मार्बल पॉलिश इकाइयों से मार्बल स्लरी पैदा हो रही है। अपने 28 सितंबर 2022 को दिए आदेश में एनजीटी ने कहा है कि मार्बल स्लरी को जमा करना पर्यावरण के लिए फायदेमंद नहीं है, जबकि इसका व्यावसायिक उपयोग पता है।
बढ़ते प्रदूषण से हो रही है भारतीय महिलाओं में खून की कमी
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) दिल्ली के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अध्ययन में पाया कि वायु प्रदूषण और उसमें मौजूद प्रदूषण के महीन कण जिन्हें हम पीएम 2.5 के नाम से जानते हैं उनके लम्बे समय तक संपर्क में रहने से एनीमिया का खतरा बढ़ सकता है। खून की कमी और एनीमिया भारत की औरतों में एक गंभीर समस्या है।
भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु की करीब 53.1 फीसदी महिलाएं और युवतियां ऐसी हैं जो इसकी शिकार हैं।सिर्फ यही नहीं, भारत में जितनी फीसदी महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त है वो वैश्विक औसत से भी 20 फीसदी ज्यादा है। आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत उन देशों में शामिल हैं जहां 15 से 49 वर्ष की युवतियों और महिलाओं में एनीमिया का प्रसार सबसे ज्यादा है। शोध में यह बात भी सामने आयी की शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में एनीमिया का प्रसार कहीं ज्यादा है। राज्यों में भी जहां नागालैंड में 22.6 फीसदी 15 से 49 वर्ष की महिलाएं और युवतियां एनीमिया से ग्रस्त थी वहीं झारखंड में यह आंकड़ा 64.4 फीसदी तक दर्ज किया गया था।
दिल्ली-गाजियाबाद-गुरुग्राम सहित 9 शहरों में खराब हुई वायु गुणवत्ता
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 05 अक्टूबर 2022 को जारी एयर क्वालिटी ट्रैकर रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 153 शहरों में से 48 में हवा ‘बेहतर’ रही, जबकि 60 शहरों की श्रेणी ‘संतोषजनक’, 36 में ‘मध्यम’ रही। वहीं 9 शहरों बद्दी (229), दिल्ली (211), धारूहेड़ा (215), गाजियाबाद (248), ग्रेटर नोएडा (234), गुरुग्राम (238), खुर्जा (211), नोएडा (215) और पानीपत (221) में वायु गुणवत्ता खराब रही।
देश के 153 शहरों में गाजियाबाद की हवा सबसे ज्यादा खराब थी जहां प्रदूषण का स्तर 248 दर्ज किया गया, वहीं शिवसागर में हवा सबसे ज्यादा साफ थी।
दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 211 दर्ज किया गया है और दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में है। देश के अन्य प्रमुख शहरों में जैसे मुंबई में वायु गुणवत्ता सूचकांक 75 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण के ‘संतोषजनक’ स्तर को दर्शाता है। जबकि कोलकाता में यह इंडेक्स 40, चेन्नई में 129, बैंगलोर में 104, हैदराबाद में 74, जयपुर में 114 और पटना में 43 दर्ज किया गया।
फ्लाई-ऐश से संबंधित शटडाउन से पिछले तीन वर्षों में हुआ 17 बिलियन यूनिट से अधिक बिजली का नुकसान
हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि फ्लाई ऐश यानी कोयला बिजली संयंत्रों से निकलने वाली राख – जो कि प्लांट से होना वाला एक प्रमुख प्रदूषण भी है – ने भारत में 17.6 अरब यूनिट बिजली उत्पादन का नुक़सान किया है। मंथन अध्ययन केंद्र के आशीष सिन्हा और सेहर रहेजा द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि 2019 और 2022 के बीच, देश में राख से संबंधित मुद्दों के कारण थर्मल पावर प्लांट बंद होने से 17,625.46 एमयू (80% की बिजली उत्पादन क्षमता के आधार पर की गई गणना) बिजली उत्पादन का घाटा हुआ है।
अध्ययन के अनुसार, इन वर्षों में 17 बिजली इकाइयां एक महीने से अधिक समय तक बंद रहीं, उनमें से कुछ को बार-बार बंद किया गया था, और पांच यूनिट एक बार में 100 दिनों से अधिक के लिए बंद थीं। यह विश्लेषण केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की दैनिक उत्पादन रिपोर्ट (डीजीआर) के आंकड़ों पर आधारित है।
नवीकरणीय ऊर्जा के साथ समेकित जीवाश्म ईंधन बिजली परियोजनाएं अब बिना समझौते कर सकती हैं बिजली आपूर्ति
नए मानदंडों के तहत, थर्मल पावर प्लांट कहीं भी अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित कर सकते हैं और अतिरिक्त समझौते के बिना ऊर्जा की आपूर्ति कर सकते हैं। मरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार नए मानदंड ‘नवीकरणीय ऊर्जा और स्टोरेज पावर के साथ साथ समेकित कर के ताप/जल विद्युत् स्टेशनों के उत्पादन और शेड्यूलिंग’ पर संशोधित कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
नए दिशानिर्देश सभी नए और मौजूदा कोयला और गैस आधारित बिजली संयंत्रों या जल विद्युत स्टेशनों को उसी परिसर के भीतर सह-स्थित या बाहर की परियोजनाओं में अक्षय ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने या साफ ऊर्जा की खरीद अनुमति देते हैं। जीवाश्म ईंधन बिजली परियोजनाएं अपने मौजूदा विद्युत् क्रय समझौतों के अनुरूप बिजली की आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा का उपयोग कर सकती हैं। मरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, इस मिश्रण में आरई के हिस्से को डिस्कॉम के अक्षय खरीद दायित्व के अनुपालन के तौर पर गिना जाएगा।
ग्रिड-स्केल बैटरी के घरेलू निर्माताओं को मिल सकती है $2.5 बिलियन की सहायता
भारत सरकार देश में ऊर्जा भंडारण की लागत को कम करने के उद्देश्य से ग्रिड-स्केल बैटरी के घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए $2.5 बिलियन (करीब 20,000 करोड़ रुपये) की सब्सिडी योजना शुरू करने की सोच रही है। ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा कि सरकार एक निश्चित अवधि में बैटरी निर्माताओं को प्रोत्साहन देने की चर्चा के शुरुआती चरण में है और कुल सब्सिडी लगभग 200 अरब रुपए हो सकती है। उन्होंने ने कहा कि भारत लिथियम के व्यापार पर चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया से लिथियम आयात करने पर विचार कर रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, भारत 2030 तक अपने कोयला बिजली संयंत्रों को 25% तक विस्तारित करने की योजना बना रहा है, जब तक कि सस्ता भंडारण उपलब्ध न हो।
राजस्थान नियामक: सौर ऊर्जा बाहर बेचने वाली कंपनियां राज्य को दे 10% मुफ्त
राजस्थान बिजली नियामक आयोग ने राज्य सरकार को सलाह दी है कि वह राज्य के बाहर बिजली बेचने वाले सौर ऊर्जा उत्पादकों को राज्य की वितरण कंपनियों को 10% मुफ्त बिजली देने का नियम बनाने पर विचार करे।
इस कदम का समर्थन करने वालों की दलील है कि उत्पादक भूमि के विशाल खंड, बिजली के बुनियादी ढांचे और पर्यावरण समेत स्थानीय क्षेत्रों के पूरे पारितंत्र का उपयोग करते हैं, जो कि किसी भी अन्य उद्योग द्वारा उपयोग किए जाने की तुलना में बहुत अधिक है, इसलिए उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह राज्य की वितरण कंपनियों को मुफ्त बिजली की आपूर्ति करें जो आगे स्थानीय आबादी तक पहुंचे जा सकती है।
लेकिन सौर उद्योग के प्रतिनिधियों ने कहा कि राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम पहले से ही राज्य के बाहर के ग्राहकों को आपूर्ति करने वाले बिजली उत्पादकों से 2 लाख रुपए प्रति मेगावाट ले रहा है और यदि राज्य इस योजना पर आगे बढ़ता है तो यह देश में एक गलत मिसाल कायम करेगा।
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में पहले से ही 14,000 मेगावाट की स्थापित सौर क्षमता है और इस सौर समृद्ध राज्य ने बहुत सारी जमीन पर परियोजनाओं की अनुमति भी दे रखी है।
टाटा मोटर्स ने अपनी लोकप्रिय टियागो हैचबैक का एक इलेक्ट्रिक मॉडल लॉन्च किया है। इसकी कीमत 849,000 रुपए से शुरू होती है, जिसके कारण यह देश की सबसे किफायती इलेक्ट्रिक कार है। टाटा एकमात्र वाहन निर्माता है जो वर्तमान में भारत में ईवी का निर्माण कर रहा है और टियागो ईवी द्वारा यह देश के इलेक्ट्रिक कार बाजार में अपनी बढ़त को और मजबूत बनाने की उम्मीद कर रहा है।
टियागो ईवी भारत की अगली सबसे किफायती ईवी — टाटा की टिगोर कॉम्पैक्ट सेडान के इलेक्ट्रिक वर्जन से काफी सस्ती है, जिसकी कीमत लगभग 12,18,044 रुपए से शुरू होती है। टियागो ईवी की परिचालन लागत गैसोलीन वर्ज़न के मुकाबले लगभग सात गुना कम होने की उम्मीद है।
हीरो वीडा इलेक्ट्रिक स्कूटर ने गुरुग्राम में स्थापित किया अपनी तरह का पहला इंस्टालेशन
हीरो मोटोकॉर्प की मोबिलिटी कंपनी वीडा 7 अक्टूबर 2022 को अपना पहला प्रोडक्ट लॉन्च कर रही है। ग्राहकों के बेहतर अनुभव के लिए वीडा ने गुरुग्राम के साइबर हब में एक अनूठा, अपनी तरह का इंस्टॉलेशन स्थापित किया है। हीरो मोटोकॉर्प के आर एंड डी सेंटर और सेंटर ऑफ इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी (सीआईटी), जयपुर में परीक्षित वास्तविक भागों और प्रोटोटाइप्स को कांच के केस में प्रदर्शित किया गया है।
हीरो मोटोकॉर्प ने अपने पहले इलेक्ट्रिक स्कूटर के लिए ताइवान की गोगोरो के साथ साझेदारी की है। गोगोरो अपनी बैटरी स्वैपिंग तकनीक के लिए जानी जाती है, जो कथित रूप से नई वीडा स्कूटर में प्रयोग की जाएगी। हीरो ने इलेक्ट्रिक स्कूटर की फास्ट चार्जिंग तकनीक के लिए एथर एनर्जी के साथ भी करार किया है।
विद्युत वाहनों के सुरक्षा मानकों की समय सीमा सरकार ने दिसंबर तक बढ़ाई
इलैक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को बैटरी मानकों को हासिल करने के लिये 1 दिसंबर तक का समय दे दिया गया है। दुपहिया ईवी वाहनों की बैटरियों में लग रही आग और इस कारण दुर्घटनाओं के बाद केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्रालय ने इस साल इन मानकों की शर्त रखी थी और वाहन निर्माताओं को 1 अक्टूबर तक इन्हें हासिल करना था। मंत्रालय ने अपने ताज़ा प्रेस रिलीज़ में कहा है कि अब दो चरणों में ये सेफ्टी मानक पूरे करने होंगे। पहला चरण 1 दिसंबर 2022 और दूसरा 31 मार्च 2023 है।
न्यूयॉर्क ने आईसीई प्रतिबंधित कर 2035 तक 100% ईवी बिक्री का रखा लक्ष्य
न्यूयॉर्क 2035 तक नई अंतर्दहन इंजन (आईसीई) कारों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करने वाला अमेरिका का तीसरा राज्य बन गया है। न्यूयॉर्क का नया कानून कैलिफोर्निया के कानून से काफी मिलता-जुलता है, जिसे इस साल की शुरुआत में लागू किया गया था। राज्य की योजना है कि अगले 13 वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों सहित शून्य-उत्सर्जन वाहनों की बिक्री बढ़ाई जाए। न्यूयॉर्क की सरकार का लक्ष्य है कि 2026 तक नई कारों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों का हिस्सा 35 प्रतिशत, 2030 तक 68 प्रतिशत और 2035 तक 100 प्रतिशत हो।
चीन 2024 तक हर साल बनाएगा 80 गीगावॉट कोयला बिजली संयंत्र?
एक नई रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि चीन की योजना 2024 तक हर साल 80 गीगावॉट नई कोयला बिजली परियोजनाएं शुरू करने की है। चीनी मीडिया समूह कैक्सिन ने ‘कई उद्योग स्रोतों’ का हवाला देते हुए यह लेख प्रकाशित किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश की पांच प्रमुख बिजली उत्पादन कंपनियों को 2021 में 36 बिलियन युआन (£18 बिलियन) का नुकसान हुआ।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने देश के बाहर 14 बिजली संयंत्रों का निर्माण पूरा कर लिया है और 27 और जल्द ही पूरा कर लेगा। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर और पीपल ऑफ एशिया फॉर क्लाइमेट सॉल्यूशंस के अनुसार, इन संयंत्रों से प्रति वर्ष लगभग 14 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होने की संभावना है।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख का आग्रह: तेल और गैस पर अप्रत्याशित लाभ कर लगाएं अमीर देश, जलवायु वित्त के लिए करें राजस्व का उपयोग
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने अमीर देशों से तेल और गैस कंपनियों पर अप्रत्याशित लाभ कर (विंडफॉल प्रोफिट टैक्स) लगाने का आग्रह किया है। गुट्रिस ने पिछले सप्ताहांत में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में सुझाव दिया कि इससे जो राजस्व प्राप्त होगा उसका उपयोग विकासशील देशों के क्लाइमेट फाइनेंस वित्त के लिए किया जा सकता है, जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। एंटोनियो गुट्रिस ने विकसित देशों से इस राजस्व का उपयोग बढ़ती खाद्य और ऊर्जा लागत से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए करने का भी आग्रह किया।
फ्रांस ने सीओपी26 में किया वादा निभाया, तेल और गैस के लिए लोक वित्त को किया प्रतिबंधित
फ्रांस ने घोषणा की है जो उसकी निर्यात क्रेडिट एजेंसी, बीपीआई फ्रांस द्वारा जीवाश्म ईंधन के लिए लोक वित्त (पब्लिक फाइनेंस) को प्रतिबंधित करती है। यह इस साल के अंत तक जीवाश्म ईंधन के लिए अंतरराष्ट्रीय लोक वित्त को समाप्त करने की उसकी सीओपी26 में की गई की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
विशेषज्ञों के अनुसार, इससे उन दूसरे देशों पर ऐसा ही करने का दबाव बढ़ेगा जिन्होंने पिछले साल के ग्लासगो स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर किए थे, जैसे कि जर्मनी, अमेरिका और कनाडा। फ्रांस के अलावा यूके, डेनमार्क, बेल्जियम और स्वीडन जैसे अन्य देशों ने भी अपनी ग्लासगो प्रतिबद्धता के अनुरूप नीतियां प्रकाशित की हैं। एक विश्लेषण से पता चलता है कि यदि सभी बाकी देश भी ऐसा ही करते हैं, तो सालाना 28 अरब डॉलर जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर स्थानांतरित किए जा सकते हैं।
कार निर्माताओं का वैश्विक उत्सर्जन बताई गई संख्या से 50% अधिक है: शोध
एक नए शोध से पता चला है कि कार निर्माताओं द्वारा वैश्विक उत्सर्जन उनकी बताई गई मात्रा से 50% अधिक है। ट्रांसपोर्ट एंड एनवायरनमेंट (टी एंड ई) की रिपोर्ट के अनुसार, हुंडई-किआ और बीएमडब्ल्यू जैसी कंपनियां अपने उत्सर्जन को क्रमशः 115% और 80% तक कम करके बता रही हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह कार कंपनियों में निवेश करने वाले वित्तीय संस्थानों के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि यूरोपीय संघ 2023 से कार निर्माताओं द्वारा उनके स्कोप 3 (अप्रत्यक्ष) उत्सर्जन का खुलासा करना अनिवार्य करने को तैयार है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश के नजरिए से देखा जाए तो वास्तविकता यह है कि कार कंपनियां भी तेल कंपनियों जितनी ही कार्बन गहन हैं।