
इस साल सामान्य से अधिक बारिश होगी, मौसम विभाग का अनुमान
मौसम विज्ञान विभाग ने मंगलवार को कहा कि भारत में इस साल ‘सामान्य से अधिक’ मॉनसून बरसेगा। मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि इस साल बरसात औसत 87 सेमी से 5% अधिक रहेगी। अगर यह सच साबित होता है, तो यह ‘सामान्य से अधिक’ बारिश का लगतार दूसरा साल होगा। पिछले साल, भारत में जून-सितंबर के दौरान औसत से 8% अधिक बारिश हुई थी लेकिन 2023 में सामान्य से 6% कम बारिश हुई। वर्ष 2019 और 2024 के बीच 6 में से 4 वर्षों में सामान्य बरसात हुई है।
मौसम विभाग के सभी पूर्वानुमानों में 4% की त्रुटि की गुंजाइश रहती है लेकिन इस साल के पूर्वानुमान से इतना स्पष्ट है कि खरीफ की फसल के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध रहेगा। जलाशयों में जल स्तर बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि अगर बारिश का वितरण एक समान न रहा तो अतिवृष्टि के दिनों में कुछ इलाकों में बाढ़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
भारी बारिश और वज्रपात से उत्तर भारत में 100 से अधिक लोग मरे
उत्तर भारत के कई हिस्सों जहां बारिश और तेज़ हवा से तापमान गिरा और लोगों को राहत मिली, वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बारिश से संबंधित घटनाओं में 100 से अधिक लोग मारे गए और कई घायल हो गए।
बिहार सबसे बुरी तरह प्रभावित रहा जहां आंधी-तूफान और बरसात से दीवार और पेड़ गिरने की अलग-अलग घटनाओं में 80 लोगों की मौत हो गई। इससे फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचा है और नुकसान का प्राथमिक अनुमान 20 करोड़ से अधिक का है।
दिल्ली में भी लगातार दो दिनों तक बारिश, आंधी-तूफ़ान और डस्ट स्टॉर्म की घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई। डस्ट स्टॉर्म की वजह से दिल्ली एयरपोर्ट पर 450 से अधिक उड़ानें बाधित हुईं और हवाई अड्डे पर अफरा-तफरी की स्थिति बनी रही।
उड़ीसा में नॉरवेस्टर (काल-बैसाखी) शॉवर के कारण भुवनेश्वर में लोगों को गर्मी से राहत मिली, जबकि मयूरभंज में तेज हवाओं के कारण काफी नुकसान हुआ और एक व्यक्ति की मौत हो गई। उड़ीसा के कई जिलों के लिए भी आईएमडी ने येलो अलर्ट जारी किया है।
मौसम विभाग ने आनेवाले दिनों में बिहार और झारखंड में भारी बारिश होने की भविष्यवाणी की है, जिससे कुछ स्थानों पर बाढ़ और जलजमाव हो सकता है। कर्नाटक में, रायचुर, कोपल, गदग, धारवाड़ और हावेरी जैसे जिलों में में भी तूफ़ान और बारिश के लिए येलो अलर्ट जारी किया गया है।
दिल्ली में अप्रैल की गर्मी ने तोड़ा 3 सालों का रिकॉर्ड
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार देश में अप्रैल से जून के बीच सामान्य से ज्यादा गर्मी पड़ेगी, और हीटवेव वाले दिनों की संख्या भी अधिक रहेगी। विशेष रूप से मध्य और पूर्वी भारत और उत्तर-पश्चिमी मैदानों में अधिक लू चलेगी।
पिछले बुधवार को राजस्थान में गंभीर लू की स्थिति देखी गई, वहीं दिल्ली ने अप्रैल में पिछले तीन सालों में सबसे अधिक न्यूनतम तापमान दर्ज किया। राजस्थान के बाड़मेर जिले में 46.4 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया किया गया, जो राज्य में सबसे अधिक था।
दिल्ली में न्यूनतम तापमान 25.6 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य से 5.6 डिग्री से अधिक था। आईएमडी के अनुसार, पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए अप्रैल में दिल्ली का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंचने की उम्मीद है।
पिछला साल 2024 मानव इतिहास का सबसे गर्म साल था, और हो सकता है साल 2025 उसका भी रिकॉर्ड तोड़ दे। पिछले साल मई के महीने में दिल्ली के एक वेदर स्टेशन ने 52 डिग्री से अधिक का तापमान दर्ज किया था। हालांकि बाद में आईएमडी ने इसे सेंसर की खराबी बताकर खारिज कर दिया था। लेकिन इस साल अप्रैल के दूसरे हफ्ते में ही तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच चुका है।
अप्रैल-जून के बीच हीटवेव के दिन रहेंगे ज्यादा
मौसम विभाग ने दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों, और उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के लिए हीटवेव अलर्ट जारी किया है।
मौसम विभाग के अनुसार, अप्रैल से जून के बीच देश के अधिकांश क्षेत्रों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। केवल पश्चिमी और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में तापमान सामान्य रहने का अनुमान है।
वर्ष 2025 का मार्च धरती पर दूसरा सबसे गर्म मार्च रहा। पिछले साल 2024 में धरती पर सबसे गर्म मार्च रिकॉर्ड किया गया था। पिछले 21 महीनों में बीसवां महीना है जब सतह पर हवा का वैश्विक औसत तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 1.5 डिग्री अधिक नापा गया। यह बात कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस की रिपोर्ट में कही गई है।
आमतौर पर इन तीन महीनों के दौरान भारत में 4 से 7 हीटवेव के दिन होते हैं। लेकिन इस साल 6 से 10 दिन लू के हो सकते हैं, कुछ राज्यों में 10 से 11 दिनों के दौरान अत्यधिक गर्मी रहने की उम्मीद है। इनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ हिस्से शामिल हैं।
इसके अलावा राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के उत्तरी भागों में हीटवेव के दिन सामान्य से अधिक हो सकते हैं।
डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि अत्यधिक गर्मी से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों पर खतरा अधिक है। गर्मी से संबंधित बीमारियों में मांसपेशियों में ऐंठन, थकावट और हीटस्ट्रोक शामिल हैं। इन स्थितियों में चक्कर आना, मतली, भ्रम, दिल की धड़कन तेज हो जाना और यहां तक कि दौरे पड़ने जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।
सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबरेटिव की एक हालिया रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय शहर अत्यधिक गर्मी के लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि कुछ अल्पकालिक उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन हीटवेव से निपटने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों का अभाव है, जिसके कारण मौतों का खतरा बढ़ जाता है।
जलवायु विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी है कि भारत, अबतक जिसका तापमान अन्य देशों के मुकाबले धीमी गति से बढ़ा है, अब अगले दो से चार दशकों में तेजी से गर्म होगा।
मुंबई से लगे इलाकों में बन रहे माइक्रोक्लाइमेट ज़ोन, तापमान में असामान्य अंतर
एक अध्ययन से पता चला है कि मार्च में मुंबई और उसके उपनगरों के कुछ हिस्सों में तापमान में 13 डिग्री सेल्सियस तक का खतरनाक अंतर देखा गया। इससे यह संकेत मिलता है कि यहां अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव तीव्र हो रहा है। जलवायु-तकनीक स्टार्ट-अप रेस्पाइरर लिविंग साइसेंस द्वारा किये गए अध्ययन में पाया गया कि शहर में माइक्रोक्लाइमेट ज़ोन अधिक बन रहे हैं और हीट स्ट्रैस से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर काम करना होगा।
1 मार्च से 22 मार्च के बीच, वसई पश्चिम और घाटकोपर के उपनगरों में क्रमशः 33.5 डिग्री सेल्सियस और 33.3 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान दर्ज किया गया, जबकि शहर के सबसे हरे-भरे और कम घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक पवई में 20.4 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान दर्ज किया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एक ही शहर के भीतर 13.1 डिग्री सेल्सियस का आश्चर्यजनक अंतर दर्शाता है। घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों और उसी शहर के कम विकसित या हरियाली वाले हिस्सों के बीच तापमान में होने वाले महत्वपूर्ण अंतर को अर्बन हीट आइलैंड यानी यूएचआई कहा जाता है। कंक्रीट की इमारतें और सड़कें, वनस्पति की कमी और स्थानीय प्रदूषण के स्तर जैसे गर्मी बनाए रखने वाले बुनियादी ढांचे मुख्य रूप से इस अंतर को बढ़ावा देते हैं। रेस्पिरर लिविंग साइंसेज के संस्थापक और सीईओ रौनक सुतारिया ने कहा, “हम मुंबई जैसे शहरों में माइक्रोक्लाइमेट ज़ोन के निर्माण को तेजी से देख रहे हैं।”
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के 22 स्टेशनों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, वसई पश्चिम 33.5 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान के साथ सूची में शीर्ष पर रहा, इसके बाद घाटकोपर 33.3 डिग्री सेल्सियस और कोलाबा (दक्षिण मुंबई) 32.4 डिग्री सेल्सियस के साथ दूसरे स्थान पर रहा।
इसके विपरीत, पवई में औसत तापमान 20.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि चकला (अंधेरी पूर्व) में 23.4 डिग्री सेल्सियस और चेंबूर में 25.5 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया।
अध्ययन में कहा गया है कि शहर भर में तापमान के अंतर से पता चलता है कि वसई पश्चिम और पवई के बीच 13.1 डिग्री सेल्सियस का अंतर देखा गया, कोलाबा में 32.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि चकला में 23.4 डिग्री सेल्सियस था, जो 9.0 डिग्री सेल्सियस का शहरी ताप अंतर है।
घाटकोपर, 33.3 डिग्री सेल्सियस पर, चेंबूर की तुलना में 7.8 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था, जिसका औसत 25.5 डिग्री सेल्सियस था।
सुतारिया ने कहा कि तापमान में ये अंतर सिर्फ़ कागज़ी बात नहीं है। इससे लोगों में गर्मी के कारण तनाव और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ जाती हैं, खास तौर पर जो इलाके हवादार न हों या ज़्यादा आबादी वाले क्षेत्रों में।
उन्होंने कहा, “मुंबई के भीतर माइक्रोक्लाइमेट का निर्माण हो रहा है, और आंकड़ों के देखकर इसे नकारा नहीं जा सकता। यह केवल गर्मियों के बढ़ने की बात नहीं है। यह कुछ इलाकों में असंगत गर्मी के कारण हीट स्ट्रैस का सामना करने की बात है। ऐसी स्थिति में जन स्वास्थ्य और ऊर्जा मांग से लेकर शहरी नियोजन और समानता तक सब कुछ प्रभावित होता है।”
शोधकर्ताओं ने घातक सांपों के ‘विष मानचित्र’ विकसित किए, सर्पदंश की प्रकृति जानने में होंगे सहायक
शोधकर्ताओं ने स्थानीय जलवायु परिस्थितियों का उपयोग करते हुए “विष मानचित्र” विकसित किए हैं, जो भारत में व्यापक रूप से पाए जाने वाले घातक सांप रसेल्स वाइपर के विष की विशेषताओं का पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकते हैं।
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु के शोधकर्ताओं की एक टीम ने कहा कि विष मानचित्र चिकित्सकों को साँप के काटने वाले रोगियों के लिए सबसे सही उपचार चुनने में मदद कर सकते हैं। शोध के निष्कर्ष “पीएलओएस नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज” पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
आईआईएससी के पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र के लेखक कार्तिक सुनगर ने कहा, “रसेल्स वाइपर यकीनन दुनिया में चिकित्सकीय रूप से सबसे महत्वपूर्ण सांप प्रजाति है। यह किसी भी अन्य सांप प्रजाति की तुलना में अधिक लोगों को मारता है और अपंग बनाता है।”
उन्होंने कहा कि रसेल वाइपर के जहर की संरचना, उसके असर करने के तरीके और शक्ति को ठीक से समझना और उसे प्रभावी बनाने वाले जैविक और अजैविक कारकों की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है। शोधकर्ताओं ने बताया कि सांप के विष का जहरीला प्रभाव एंजाइमों की सांद्रता के कारण होता है, जो जलवायु और शिकार की उपलब्धता जैसे कारकों से प्रभावित होते हैं।
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने पूरे देश में 34 स्थानों से 115 साँपों के विष के नमूनों को इकट्ठा कर उसका विश्लेषण किया। विष के विषैले तत्वों जैसे प्रोटीन, फॉस्फोलिपिड और अमीनो एसिड को तोड़ने वाले एंजाइम के असर का परीक्षण किया गया।
एआई मॉडल से वज्रपात से लगने वाली जंगलों की आग की भविष्यवाणी संभव
इज़राइली शोधकर्ताओं ने एक नया एआई मॉडल विकसित किया है जो भविष्यवाणी कर सकता है कि बिजली गिरने से जंगल में आग लगने की सबसे अधिक संभावना कहाँ और कब है। यह 90% से अधिक सटीकता के साथ काम करता है – जंगल की आग के पूर्वानुमान में ऐसी पहली बार .ह दावा किया गया है। मॉडल बनाने के लिए, उन्होंने सात साल के वैश्विक उपग्रह डेटा के साथ-साथ वनस्पति, मौसम के पैटर्न और स्थलाकृति को दर्शाने वाले डेटा का उपयोग किया।
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हैदराबाद में 100 एकड़ जंगल की कटाई पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया
सुप्रीम कोर्ट ने बिना अनुमति के हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास 100 एकड़ जमीन पर पेड़ों को काटने के लिए तेलंगाना सरकार की कड़ी आलोचना की है। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि वह काटे गए जंगल को बहाल करने के लिए एक स्पष्ट योजना प्रस्तुत करे, और शीर्ष अधिकारियों को चेतावनी दी कि यदि वह ऐसा करने में विफल रहते हैं उनके खिलाफ गंभीर कार्रवाई की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि जंगलों को काटने की क्या जल्दी थी, विशेष रूप से छुट्टियों के दौरान। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि अब एक भी और पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए। अदालत ने वन्यजीवों को हुए नुकसान पर चिंता जताई और राज्य को निर्देश दिया कि वनों की कटाई से प्रभावित जानवरों की रक्षा करे।
कोर्ट ने कहा कि बुलडोज़रों ने उक्त क्षेत्र को पूरी तरह नष्ट कर दिया है और बताया कि इस भूमि को एक निजी पक्ष के पास गिरवी रखा गया था। कोर्ट ने ग्रीन कवर और सस्टेनेबल डेवलपमेंट की आवश्यकता पर जोर देते हुई तेलंगाना सरकार को इस मामले पर रिपोर्ट देने के लिए चार हफ़्तों का समय दिया।
इसी बीच कोर्ट ने सभी तरह की पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी है।
तेल-गैस पाइपलाइन, हाइवे के लिए मिट्टी के खनन पर नहीं लेनी होगी पर्यावरणीय मंजूरी
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने घोषणा की है कि कुछ प्रकार की परियोजनाओं के लिए आर्डिनरी अर्थ (जैसे निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली मृदा या मिट्टी) का खनन या उपयोग करने के लिए पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा रिपोर्ट किए गए एक कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, कुछ पर्यावरण सुरक्षा नियमों का पालन जरूरी होगा।
लीनियर प्रोजेक्ट जैसे तेल, गैस या स्लरी पाइपलाइन, हाईवे या रेलवे लाइन, जिनमें अक्सर 20,000 क्यूबिक मीटर से अधिक मिट्टी के खनन की आवश्यकता होती है, उन्हें इस नए नियम के अनुसार विशेष पर्यावरणीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी, यदि वे निर्दिष्ट सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करें।
यदि किसी परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता होती है, तो एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति यह सुनिश्चित करेगी कि पर्यावरण सुरक्षा नियमों का पालन किया जाए। इसके अलावा, जिला प्रशासन, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन विभाग, भूवैज्ञानिकों, आदि के अधिकारियों को लेकर बनी एक स्थानीय समिति यह तय करेगी कि विभिन्न कारकों के आधार पर प्रत्येक परियोजना के लिए कितनी मिट्टी हटाई जा सकती है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में लाए गए एक ऐसे ही नियम को अस्पष्ट और अनुचित बताकर रद्द कर दिया था।
भारत समेत 63 देशों ने वैश्विक शिपिंग टैक्स के पक्ष में दिया वोट
भारत और 62 अन्य देशों ने संयुक्त राष्ट्र की शिपिंग एजेंसी द्वारा शिपिंग उद्योग पर दुनिया का पहला वैश्विक कार्बन टैक्स लगाने के ऐतिहासिक निर्णय का समर्थन किया है। उत्सर्जन में कटौती करने के उद्देश्य से लाया गया तह टैक्स साल 2028 से लागू होगा, जिसके बाद जहाजों को या तो साफ ईंधन का उपयोग करना होगा या इस शुल्क का भुगतान करना होगा।
इस टैक्स से 2030 तक 40 बिलियन डॉलर जमा किए जा सकते हैं। हालांकि आलोचकों का कहना है कि इस कदम से 2030 तक उत्सर्जन में 10% की कमी अपेक्षित है, जो कि 20% कटौती के लक्ष्य से कम है।
इसके अलावा, इस टैक्स से गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में कोई मदद नहीं मिलेगी – जो तुवालु और वानुअतु जैसे कमजोर देशों के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। सऊदी अरब और अमेरिका जैसे कुछ देशों ने या तो वोटिंग में भाग नहीं लिया या इसका विरोध किया।
अधिक प्रदूषण करने वाले जहाजों को अधिक टैक्स देना होगा, जो 100 से 380 डॉलर प्रति टन उत्सर्जन से शुरू होगा। हालांकि इसे एक अच्छी पहल माना जा रहा है, फिर भी विशेषज्ञों का कहना है कि और कड़े कदमों की जरूरत है।
2026 तक 250 मिलियन डॉलर खर्च करेगा लॉस एंड डैमेज फंड
संयुक्त राष्ट्र का लॉस एंड डैमेज फंड 2026 तक विकासशील देशों को जलवायु आपदाओं के प्रभावों से निपटने में मदद करने के लिए 250 मिलियन डॉलर खर्च करने को तैयार है। क्लाइमेट होम न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, फंड विकासशील देशों द्वारा प्रस्तावित परियोजना को 5 मिलियन से लेकर 20 मिलियन डॉलर तक का अनुदान देगा।
आपदा की स्थिति में विस्थापित लोगों के लिए अस्थायी आवास जैसी आपातकालीन जरूरतों के लिए सरकारें फंड से सीधा बजट समर्थन भी ले सकती हैं। यह तय किया गया है कि लघुद्वीपीय विकासशील देशों (सिड्स) और अल्पविकसित देशों (एलडीसी) को शुरुआती अवधि के दौरान फंड के कम से कम 50% संसाधन प्राप्त होंगे।
प्रारंभिक चरण में परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बोर्ड अन्य अंतर्राष्ट्रीय फंडों, जैसे आईएमएफ और ग्रीन क्लाइमेट फंड, द्वारा भी सहायता दिए जाने की अनुमति दे सकता है। इसे पिछले नियमों को कमजोर करने की तरह देखा जा रहा है। बोर्ड ने लॉस एंड डैमेज फंड के सचिवालय से इसके लिए एक प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहा है।
फंड से पैसे केवल अनुदान के रूप में दिए जाएंगे। हालांकि, अनुदान प्राप्त करने वाले देश चाहें तो उन्हें अन्य प्रकार की सार्वजनिक या निजी फंडिंग के साथ मिलाने के लिए स्वतंत्र हैं।
हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक प्रवेश कर रहे पौधों की पत्तियों में, फिर आते हैं जानवरों और मनुष्यों के भीतर: अध्ययन
नेचर में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया है कि पौधों की पत्तियाँ, जिनमें फसलें भी शामिल हैं, माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक को सीधे हवा से अवशोषित करती हैं, जिसे शाकाहारी और मनुष्य खाते हैं।
डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक (5 मिलीमीटर से कम व्यास के प्लास्टिक कण) और नैनोप्लास्टिक (1,000 नैनोमीटर से कम) कई रास्तों से पत्तियों में प्रवेश करते हैं, जिसमें स्टोमेटा और क्यूटिकल जैसी सतही संरचनाएँ शामिल हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्रीनहाउस में उगाई गई सब्जियों की तुलना में बाहर उगाई गई सब्जियों में माइक्रोप्लास्टिक्स – विशेष रूप से पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट और पॉलीस्टाइनिन – का स्तर 10 से 100 गुना अधिक था। लंबे समय तक जीवित रहने वाले पौधों और पुरानी बाहरी पत्तियों में युवा या आंतरिक पत्तियों की तुलना में माइक्रोप्लास्टिक की अधिक सघन मात्रा पाई गई।
देश के 77 शहरों में वायु गुणवत्ता के स्तर में सुधार, 23 में गिरावट
एक नए विश्लेषण से पता चला है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत देश के 77 शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर में सुधार हुआ, लेकिन अन्य 23 शहरों में इसमें वृद्धि हुई। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषण में पाया गया है कि 2017-18 (जो कि एनसीएपी कार्यक्रम के तहत गणना के लिए एक आधार वर्ष है) की तुलना में पीएम10 (जो 10 माइक्रोन व्यास वाले मोटे प्रदूषक कण होते हैं) के स्तर में 23 शहरों में वृद्धि हुई, दो में कोई बदलाव नहीं हुआ और 77 शहरों में सुधार हुआ।
यह भी पाया गया कि एनसीएपी के तहत 130 शहरों में से 28 में अभी भी कंट्यूनियस एंबिएंट एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन (सीएएक्यूएमएस) नहीं हैं, जो दिखाता है कि रियल टाइम एयर क्वॉलिटी निगरानी के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाना बाकी है। सीआरईए टीम द्वारा 1 अप्रैल, 2024 से 31 मार्च, 2025 (वित्त वर्ष 24-25) की अवधि के लिए सीएएक्यूएमएस वाले शेष 102 शहरों के पीएम10 डेटा का विश्लेषण किया गया।
विश्लेषण में कहा गया है कि दिल्ली में (वित्त वर्ष 24-25) पीएम10 का सालाना स्तर सबसे अधिक 206 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया, जिसके बाद मेघालय में बर्नीहाट में 200 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पटना में 180 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया – ये सभी राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से तीन गुना अधिक है। पिछले वर्ष (वित्त वर्ष 23-24) की तुलना में, 69 एनसीएपी शहरों में पीएम10 के स्तर में कमी आई, जबकि 33 में वृद्धि देखी गई।
ड्रोन के ज़रिये समुद्र के प्रदूषण पर नज़र
शोधकर्ताओं ने समुद्र जल में प्रदूषण का डाटा इकट्ठा करने के लिए एक विशेष ड्रोन तैयार किया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत काम करने वाले राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) ने एक इंडस्ट्री पार्टनर के साथ मिलकर यह ड्रोन बनाया है जिसका वज़न 85 किलोग्राम है और यह अपने साथ 25 किलो भार ले जा सकता है।
अपने विशेष सेंसरों की मदद से प्रदूषण के अलावा यह ड्रोन समुद्री टोपोग्राफी की जानकारी भी इकट्ठा करेगा। इस ड्रोन का आधा वज़न इसकी बैटरी के कारण है जो इसे करीब 45 मिनट तक उड़ा सकती है। इसे बनाने के लिए सरकार के मिशन मौसम कार्यक्रम के तहत 2024 में प्रोजेक्ट शुरु किया गया। वैज्ञानिकों ने कहा है कि तेज़ हवाओं के साथ अन्य समुद्री परिस्थितियों का खयाल रखकर यह ड्रोन बनाया गया है।
वैश्विक बिजली उत्पादन में स्वच्छ ऊर्जा की हिस्सेदारी 40%: रिपोर्ट
थिंक-टैंक एम्बर की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में दुनिया की 40 प्रतिशत से अधिक बिजली सौर, पवन, हाइड्रो और परमाणु ऊर्जा जैसे स्वच्छ स्रोतों से उत्पादित की गई। खासकर चीन और भारत में सौर ऊर्जा का विकास सबसे तेज गति से हुआ। इसके बावजूद, बढ़ती गर्मी के कारण बिजली की मांग में भी वृद्धि हुई, जिससे जीवाश्म ईंधन का अधिक उपयोग हुआ और ग्लोबल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया।
साल 2012 के बाद से हर तीन साल में सौर ऊर्जा क्षमता दोगुनी हुई है, लेकिन अभी भी इससे वैश्विक बिजली का 7 प्रतिशत से भी कम प्राप्त होता है। फ़िलहाल हाइड्रोपावर सबसे बड़ा स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है, जिसके बाद पवन और परमाणु आते हैं। इस प्रगति के बावजूद, ऊर्जा की बढ़ती जरूरतें उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों के लिए चुनौती बनी हुई हैं।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत जर्मनी को पछाड़ कर पवन और सौर ऊर्जा से बिजली का उत्पादन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
भारत की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता 11% बढ़ी
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के अनुसार भारत ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत प्रगति की है। पिछले साल 29.52 गीगावाट की रिकॉर्ड वार्षिक क्षमता जोड़ने के साथ, देश में कुल स्थापित अक्षय ऊर्जा (आरई) क्षमता 31 मार्च 2025 तक 220.10 गीगावाट तक पहुंच गई है, जो पिछले वित्तीय वर्ष तक 198.75 गीगावाट थी।
जो 10.74 प्रतिशत की वृद्धि है। इस वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान सोलर एनर्जी का रहा, जिसकी क्षमता में 23.83 गीगावाट की वृद्धि हुई। यह पिछले वर्ष में 15.03 गीगावाट से की वृद्धि से उल्लेखनीय रूप से अधिक है। देश में कुल स्थापित सौर क्षमता अब 105.65 गीगावाट तक पहुंच गई है। इसमें ग्राउंड-माउंटेड इंस्टॉलेशन की हिस्सेदारी 81.01 गीगावाट, रूफटॉप सोलर की 17.02 गीगावाट, हाइब्रिड प्रोजेक्ट्स के सौर घटकों की 2.87 गीगावाट और ऑफ-ग्रिड सिस्टम की 4.74 गीगावाट है।
भारत की सौर पैनल निर्माण क्षमता पहुंची 25.3 गीगावाट
मेरकॉम द्वारा हाल ही में जारी स्टेट ऑफ सोलर पीवी मैनुफैक्चरिंग इन इंडिया 2025 रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत की सोलर मॉड्यूल बनाने की क्षमता बढ़कर 25.3 गीगावाट और सोलर सेल बनाने की क्षमता 11.6 गीगावाट हो गई। रिपोर्ट के अनुसार इस वृद्धि के दो मुख्य कारण थे।
पहला नियोजित या निर्माणाधीन सौर परियोजनाओं की बड़ी संख्या और दूसरा सरकार द्वारा एप्रूव्ड लिस्ट ऑफ़ मॉडल्स एंड मैन्युफैक्चरर्स (एएलएमएम) सूची को पुनः लाया जाना। एएलएमएम भारत सरकार द्वारा बनाई गई एक सूची है। इसमें अनुमोदित कंपनियों और सौर उत्पादों के मॉडल के नाम शामिल होते हैं। सरकार-समर्थित कई सौर परियोजनाओं में केवल इन्हीं का उपयोग किया जा सकता है। यह नियम घरेलू निर्माण को बढ़ावा देता है।
दिल्ली सरकार की ईवी नीति में पेट्रोल-डीज़ल दोपहिया वाहनों पर बैन का प्रस्ताव
दिल्ली सरकार की आगामी ईवी पॉलिसी 2.0 में इलेक्ट्रिक वाहन एडॉप्शन के लिए कई प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वाली महिलाओं को 36,000 रुपए तक सब्सिडी मिल सकती है। यह सुविधा केवल पहले 10,000 आवेदकों तक सीमित है जिनके पास ड्राइविंग लाइसेंस हो।
इलेक्ट्रिक ऑटो-रिक्शा और मालवाहक वाहनों को भी सब्सिडी मिलेगी। 15 अगस्त, 2025 के बाद से नए सीएनजी ऑटो पंजीकरण या नवीनीकरण की अनुमति नहीं दी जाएगी। ड्राफ्ट नीति में यह भी सुझाव दिया गया है कि पेट्रोल, डीजल और सीएनजी पर चलने वाले दो-पहिया वाहनों को 15 अगस्त, 2026 से प्रतिबंधित कर दिया जाए। इस बाबत पेट्रोल-डीज़ल और सीएनजी से चलने वाले दोपहिया वाहनों की स्क्रैपिंग पर भी 10,000 रुपए तक का इंसेंटिव दिया जा सकता है यदि यह वाहन 12 साल से अधिक पुराने न हों।
कोलकाता में होगा भारत का सबसे बड़ा ईवी चार्जिंग हब
भारत का सबसे बड़ा सिंगल-साइट इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) चार्जिंग हब, एज़ऊर्जा द्वारा दक्षिण कोलकाता के ठाकुरपुकुर में विकसित किया जा रहा है। इसमें 300 चार्जर होंगे, जो चीन की 650-चार्जर सुविधा के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हब होगा। एंड्रयू यूल एंड को की दो एकड़ भूमि पर निर्मित यह 7.5 करोड़ रुपए की परियोजना अगस्त तक तैयार होने की उम्मीद है।
यह स्नैप-ई के 300 इलेक्ट्रिक कैब को सपोर्ट करेगा और इसमें फ़ास्ट और स्लो दोनों गति से चार्जिंग हो सकेगी। सौर पैनलों और बैटरी द्वारा हब को 40% बिजली मिलेगी। एज़ऊर्जा की योजना कोलकाता-आसनसोल राजमार्ग पर भी ईवी चार्जिंग स्टेशन लगाने और कोलकाता में एक अन्य प्रमुख हब के द्वारा ई-मोबिलिटी बढ़ाने की योजना बना रही है।
चीन में मार्च में ऑटो बिक्री में लगभग एक दशक के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर, कीमतों में कटौती का फ़ायदा
चीन के बिजनेस पेपर जिमियन की रिपोर्ट के अनुसार, चीन में कार की बिक्री का ग्राफ बढ़ा है। मार्च में इसमें 14% की वार्षिक वृद्धि हुई और बिक्री 2 मिलियन यूनिट हो गई। ग्राफ में बढ़ोतरी सरकार के “ट्रेड-इन कार्यक्रम” मिलने वाले लाभ के कारण जारी है। चाइना पैसेंजर कार एसोसिएशन (CPCA) के डेटा से पता चलता है कि पिछले साल की तुलना में कीमतों को लेकर प्रतिस्पर्धा कम हुई है। पेपर के मुताबिक मार्च की वृद्धि 2018 के बाद से “सबसे तेज़” गति से हुई बढ़ोतरी है हालांकि, कार निर्यात में एक साल पहले की तुलना में 8% की गिरावट आई है।
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2024 में दुनिया के नए कोयला प्रस्तावों में एक तिहाई भारत के रहे जिनकी कुछ क्षमता 38.4 गीगावॉट है। यह 2015 के बाद से यह सबसे अधिक है। माइनिंग, प्रोसेसिंग, यूटिलाइजेशन और कोयले से जुड़े रिसर्च, डेवलपमेंट और नीति में बदलाव जैसी रेग्युलेटरी योजनाओं को कोयला प्रस्ताव कहा जाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की कुल कोयला बिजली उत्पादन क्षमता का 96 प्रतिशत 10 देशों के कारण है जिसमें 87 प्रतिशत भारत और चीन का हिस्सा है। भारत की 38.4 गीगावॉट की प्रस्तावित क्षमता का 60 प्रतिशत पब्लिक फंड से सरकारी कंपनियां खड़ी करेंगी।
नए कोयला प्रस्तावों से भारत की निर्माण पूर्व कोयला प्लांट क्षमता 81.4 गीगावॉट हो गई है जो कि 2023 के मुकाबले 75 प्रतिशत अधिक है। भारत में चल रहे कोयला बिजलीघरों की क्षमता में भी मामूली वृद्धि हुई है। कुल 5.8 गीगावॉट के नई कोयला बिजलीघर बने और 0.2 गीगावॉट क्षमता के प्लांट बन्द हुए जिससे 5.6 गीगावॉट का इज़ाफा हुआ जो 2019 के बाद से अब तक का सर्वाधिक है।
भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है और इसकी लगभग 75 प्रतिशत बिजली कोयला बिजलीघरों से आती है। भारत ने इस वर्ष पहली बार कोयला उत्पादन में 1 बिलियन के लक्ष्य को पार किया है। वर्ष 2024 में कोयला बिजली उत्पादन के जो नए प्लांट प्रस्तावित हैं उनकी कुल क्षमता का 92 प्रतिशत चीन और भारत के बिजलीघरों से होगा।
ट्रम्प के टैरिफ बढ़ाने से तेल की कीमतों में गिरावट, अमेरिका की शेल गैस उत्पादों को खतरा, ड्रिलर परेशान
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी शेल ऑयल उत्पाद “कई सालों में अपने सबसे गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप की व्यापार नीति के कारण अचानक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट ने इस क्षेत्र के कुछ सेक्टरों को चौपट कर दिया है”। अधिकारियों ने ऐसी चेतावनी दी है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को चीन के साथ व्यापार युद्ध को बढ़ाने के बाद तेल की कीमतों में गिरावट आई, हालांकि उन्होंने अन्य देशों पर टैरिफ लगाने पर फिलहाल 90 दिनों की रोक की घोषणा की।
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, ट्रम्प द्वारा “मुक्ति दिवस” पर पारस्परिक टैरिफ की घोषणा के बाद पिछले सप्ताह में तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बाद – जो $72 प्रति बैरल से $55 प्रति बैरल के न्यूनतम स्तर पर जा पहुंची थी – अब तेल की कीमतें बढ़कर $62 हो गई। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, तेल की गिरती कीमतें आर्थिक गतिविधि में निराशा का संकेत देती हैं और “यह मंदी का संकेत हो सकता है क्योंकि निर्माता उत्पादन में कटौती कर रहे हैं, व्यवसाय यात्रा लागत में कटौती कर रहे हैं और परिवार छुट्टियों की योजनाओं को टाल रहे हैं”। ब्लूमबर्ग ने रिपोर्ट की कि ट्रम्प का “व्यापार युद्ध तेजी से बढ़ती अमेरिकी एनर्जी स्टोरेज इंडस्ट्री पर लागत बढ़ाएगा – और इसमें मंदी आयेगी।”
ओडिशा में इंडियन ऑइल करेगा 61,000 करोड़ का निवेश
इंडियन ऑइल ने ओडिशा के पारादीप में एक पेट्रोकैमिकल कॉम्प्लेक्स के लिए 61,000 करोड़ के निवेश का फैसला किया है। पिछले हफ्ते नई दिल्ली में हुई ओडिशा इंवेस्टर मीट में कंपनी ने राज्य सरकार के साथ प्राथमिक समझौते पर दस्तखत किये। कंपनी के कहा कि यह “किसी एक लोकेशन में इंडियन ऑइल द्वारा अब का सबसे बड़ा निवेश” होगा। इंडियन ऑइल पारादीप में 15 मिलियन टन प्रति वर्ष क्षमता का रिफायनरी प्रोजेक्ट पहले ही चला रही है।