क्लाइमेट साइंस
Newsletter - October 15, 2020
रासायनिक खाद से ग्लोबल वॉर्मिंग, N2O का बढ़ता ग्राफ
एक नये शोध से पता चला है कि नाइट्रोजन पर आधारित खाद नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ाती है जो कि एक ग्रीन हाउस गैस है। इस गैस का रासायनिक फॉर्मूला N2O है और इसे लॉफिंग (हंसाने वाली) गैस भी कहा जाता है। आंकड़े बताते हैं कि 1980 और 2016 के बीच दुनिया में इसका उत्सर्जन 1.4% की दर से बढ़ा है। इंसानी क्रियाकलापों से होने वाले कुल N2O इमीशन में खेती का हिस्सा आधे से अधिक है। यह गैस कई दशकों तक वातावरण में रहती है और ग्लोबल वॉर्मिंग के लिये CO2 से अधिक खतरनाक है।
इस साल का सितंबर रहा सबसे गर्म: कॉपरनिक्स
ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर लगातार सुबूत मिल रहे हैं। वेदर सर्विस कॉपरनिक्स के मुताबिक इस साल सितंबर का महीना इतिहास में सबसे गर्म रहा। यह पिछले साल के सितंबर के मुकाबले 0.05 डिग्री अधिक गर्म था। एजेंसी ने साइबेरियन आर्कटिक में औसत से अधिक गर्मी की बात कही है और बताया है कि उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से यहां समंदर में बर्फ की मात्रा दूसरे निम्नतम स्तर पर है।
अमेज़न तब्दील हो सकता है खुश्क जंगलों में
अपनी घनी वनस्पति, अनगिनत जन्तु प्रजातियों, झरनों और समृद्ध जैव विविधता के लिये विख्यात अमेज़न के वर्षावन अब धीरे धीरे ऊष्ण कटिबंधीय इलाकों में पाये जाने वाले शुष्क घास के मैदानों जैसे सवाना जंगलों में तब्दील हो सकते हैं। नेचर कम्युनिकेशन नाम की साइंस पत्रिका में छपा एक नया शोध बताता है कि लगातार आग से जूझ रहा अमेज़न के 40% इलाके में वर्षा का पैटर्न बदल रहा है। इस बदलाव को आने में कई दशक लग सकते हैं लेकिन एक बार अगर ये सिलसिला शुरू हो गया तो फिर यह प्रक्रिया रोकी नहीं जा सकती न ही अमेज़न को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।
क्लाइमेट नीति
बन्द होने वाले कोल प्लांट की जगह लगेंगे साफ ऊर्जा संयंत्र
ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा है कि जो भी कोल प्लांट रिटायर होंगे उनकी जगह साफ ऊर्जा के संयंत्र लेंगे। सरकार अगर गंभीरता से इस पर काम करती है तो उसने साल 2030 तक देश की कुल ऊर्जा का 40% साफ ऊर्जा स्रोतों से बनाने का जो लक्ष्य रखा है उसे पाने का काम काफी हद तक आसान हो सकता है। इससे देश के भीतर सोलर पैनल बनाने की क्षमता भी बढ़ेगी और संभावना है कि चीन से सोलर सेल और मॉड्यूल इम्पोर्ट न करने पड़ें।
कोल ब्लॉक: पीएम के रोज़गार से जुड़े दावे का कोई आधार नहीं
इस साल कमर्शियल कोल ब्लॉक नीलामी का उद्घाटन करते हुये प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इससे लाखों रोज़गार पैदा होंगे लेकिन एक आरटीआई के जवाब में कोयला मंत्रालय ने कहा है कि इस दावे के समर्थन में कोई आंकड़ा नहीं है। जवाब में कहा गया कि कोल ब्लॉक नीलामी से रोज़गार और राजस्व को लेकर कोई डाटा उपलब्ध नहीं है। मंत्रालय ने यह जवाब रिसर्चर और लेखक संदीप पाई की आरटीआई पर दिया। पाई ने प्रधानमंत्री कार्यालय के उस प्रेस रिलीज़ को आधार बनाकर सवाल पूछा था जिसमें कोल ब्लॉक ऑक्शन से 2.8 लाख नौकरियों और 20,000 करोड़ के राजस्व की बात की बात कही गई थी।
पर्यावरण बचाने के लिये 5 करोड़ पाउंड के अवॉर्ड
ब्रिटेन के प्रिंस विलियम और जाने माने पर्यावरणविद् सर डेविड एटनबरो ने घोषणा की है कि अगले 10 सालों में 5 करोड़ पाउंड (करीब 475 करोड़ रुपये) के अवॉर्ड दिये जायेंगे। इन पुरस्कारों का नाम ‘अर्थशॉट अवॉर्ड’ होगा और यह पर्यावरण की समस्या के 50 सुझावों के लिये दिये जाने हैं। इस कैंपेन के तहत 2030 तक 5 अवॉर्ड (प्रत्येक 10 लाख पाउंड) दिये जाने हैं। हवा को साफ करने के साथ-साथ प्रकृति को बचाने के लिये यह पुरस्कार दिये जाने हैं।
यूरोपीय संसद: कार्बन इमीशन कट बढ़ाने के इरादे पर वोट
यूरोपीय संसद ने 2030 के लिये तय किये गये ग्रीन हाउस गैस इमीशन कट को बढ़ाने संबंधित प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया है। अभी यूरोपीय देशों का संकल्प ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को 2030 तक 40% कम करना है जबकि नया प्रस्ताव इस संकल्प को 60% तक ले जायेगा। यह प्रक्रिया यूरोपियन प्रस्ताविक क्लाइमेट कानून के लिये चल रही बहस का हिस्सा है। इसका मकसद है कि यूरोप 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने की जो बात करता है उसे कानूनी जामा पहना दिया जाये।
वायु प्रदूषण
पराली जलाने पर सुप्रीम कोर्ट ने 4 राज्यों के मुख्य सचिवों को तलब किया
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, हरियाणा, यूपी और पंजाब के मुख्य सचिवों को शुक्रवार को तलब किया है। ये अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिये कोर्ट के सामने हाज़िर होंगे। कोर्ट ने पराली जलाने के मामले में राज्यों की ओर से बार-बार दिये गये झूठे आश्वासन के बाद यह आदेश जारी किया है। राज्य कहते रहे हैं कि इस मामले में फसल की खुंटी को उखाड़ने के लिये उपकरण से लेकर उसे निष्पादित करने तक के सारे इंतज़ाम कर लिये गये हैं लेकिन सेटेलाइट की तस्वीरें लगातार बता रही हैं कि किसान खेतों में फसल जला रहे हैं।
केजरीवाल कैबिनेट ने ट्री-ट्रांसप्लांट नीति को मंज़ूरी दी
दिल्ली में कैबिनेट ने राजधानी में पेड़ बचाने के उद्देश्य से ‘ट्री ट्रासप्लांटेशन पॉलिसी’ यानी वृक्ष प्रत्यारोपण नीति को हरी झंडी दे दी है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि किसी भी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की ज़द में आने वाले कम से कम 80% पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया जायेगा और इन ट्रासप्लांट किये गये पेड़ों में 80% को बचना चाहिये।
ट्रांसप्लांट यानी किसी भी पेड़ को काटने के बजाये उसे जड़ समेत मशीनों द्वारा उखाड़ कर किसी दूसरी जगह लगाया जाये। इस काम के लिये संबंधित एजेंसियों का पैनल बनेगा और ट्रांसप्लांट किये गये पेड़ों की निगरानी के लिये एक ट्री – ट्रांसप्लांटेशन सेल होगी जिसमें सरकारी कर्मचारियों के साथ नागरिक शामिल होंगे लेकिन वेबसाइट डी डब्लू हिन्दी में छपी ख़बर बताती है कि यह नीति बिना किसी स्टडी या अनुभव के लाई जा रही है और इसलिये कई जानकार इसका विरोध कर रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि 10-15 साल पुराने पेड़ों को तो ट्रांसप्लांट किया जा सकता है लेकिन दिल्ली में 100-150 साल या इससे भी पुराने पेड़ हैं जिन्हें प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता। पर्यावरण कार्यकर्ता मुंबई मेट्रो के लिये रेल ट्रैक की मिसाल दे रहे हैं जहां यह प्रयोग पूरी तरह असफल रहा।
दिल्ली: वायु प्रदूषण से निपटने के लिये ‘ग्रीन वॉर रूम’
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये एक ‘ग्रीन वॉर रूम’ बनाया है। इसके ज़रिये राजधानी की एयर क्वॉलिटी और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से हुये धुंए को मॉनीटर करेगी। इस वॉर रूम को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दो वैज्ञानिकों की अगुवाई में कुल 10 लोगों की टीम चलायेगी जो सेटेलाइट की तस्वीरों के ज़रिये पराली और अन्य प्रदूषण का विश्लेषण करेगी। इन प्रदूषण स्तरों को देखते हुए तत्काल इमरजेंसी और सामान्य कदम उठाये जायेंगे।
उधर केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने बताया कि 7 अक्टूबर को पहली बार इस सीज़न में दिल्ली की एयर क्वॉलिटी “पूअर” रिकॉर्ड की गई और हालात आगे और खराब होने की आशंका है। महत्वपूर्ण है कि जाड़ों में क्लाइमेट और पराली जैसे कारणों से वायु प्रदूषण बहुत अनियंत्रित हो जाता है। जानकारों ने चेतावनी दी है कि घने प्रदूषण में कोरोना वायरस का प्रकोप और बढ़ सकता है।
भारत SO2 उत्सर्जन में अब भी सबसे आगे
ग्रीनपीस इंडिया और वायु प्रदूषण पर नज़र रखने वाली संस्था क्रिया (CREA) के मुताबिक साल 2019 में भारत के सल्फर डाइ ऑक्साइड (SO2) इमीशन करीब 6% गिरे जो कि एक बड़ा आंकड़ा है। इसके बावजूद भारत दुनिया में इस ज़हरीली गैस का सबसे बड़ा उत्सर्जक रहा। विश्व के कुल SO2 इमीशन के 21% के लिये भारत ज़िम्मेदार था। SO2 मूलत: कोयला बिजलीघरों की चिमनियों से निकलने वाली ज़हरीली गैस है जो फेफड़ों के कैंसर, हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी समस्याओं का कारण बनती है। दुनिया में रूस दूसरे नंबर का SO2 उत्सर्जन है लेकिन उसका इमीशन भारत के आधे से भी कम है।
साफ ऊर्जा
पवन-सौर हाइब्रिड क्षमता 2023 तक होगी 11.7 GW
ऊर्जा क्षेत्र में रिसर्च और एनालिसिस करने वाले इंस्टिट्यूट ऑफ़ एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाईनेनशियल एनालिसिस (IEEFA- आईफा) का अनुमान है कि साल 2023 तक भारत की विन्ड-सोलर हाइब्रिड क्षमता 11.7 गीगावॉट तक पहुंच जायेगी। आईफा ने यह आंकड़ा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मंज़ूर किये गये टेंडरों के आधार पर दिया है। अभी यह क्षमता केवल 148 मेगावॉट है अगर ऐसा होता है तो 2020 से 2023 के बीच यह 223% चक्रवृद्धि सालाना दर से बढ़ोतरी होगी और कुछ क्षमता में 80 गुना की छलांग होगी।
बिजली में साफ ऊर्जा की हिस्सेदारी 3% बढ़ी
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के मुताबिक इस साल अप्रैल से अगस्त के बीच कुल बिजली में साफ ऊर्जा (सौर, पवन इत्यादि) का हिस्सा 23% से बढ़कर 26% हुआ। इकोनोमिक टाइम्स में छपी ख़बर बताती है कि कोरोना महामारी के कारण बिजली सेक्टर में घटी डिमांड इसकी वजह है। CEA के चेयरमैन के मुताबकि भारत ने कार्बन इमीशन तीव्रता को 30-33% घटाने का जो वादा किया है उसे वह लक्ष्य 2030 तक हासिल कर लिया जायेगा।
कोरोना का असर ऊर्जा के उत्पादन और खपत पर
कोरोना महामारी के कारण जो आर्थिक मन्दी आई है उसे जाने में वक्त लगेगा। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी आईईए का कहना है कि बिजली की पूरी मांग फिर से 2025 तक ही बहाल हो पायेगी। आईईए पश्चिमी देशों को बिजली पर सलाह देने का काम करती है। एजेंसी का कहना है कोरोना की वैक्सीन और दवा आ जाती तो विश्व अर्थव्यवस्था 2021 तक वापस लौट सकती थी और बिजली की मांग 2023 तक बहाल होती लेकिन वर्तमान स्थिति में ऐसा होता नहीं दिख रहा और टाइमलाइन 2025 तक खिंच सकती है।
पावर डिमांड: भारत में भी रिकवरी की रफ्तार है सुस्त
उधर क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच (Fitch) के मुताबिक इस साल भारत में बिजली की खपत 6.6% घट सकती है और इसके उत्पादन में 6.8% कमी आ सकती है। इस दौरान पावर कैपिसिटी केवल 2.7% बढ़ने का अनुमान है। एजेंसी का कहना है कि साल 2020 के दूसरे 6 महीनों में जिस थोड़ी से रिकवरी का अनुमान था वह अभी नहीं होगा क्योंकि यह सेक्टर कई ओर से दबाव झेल रहा है। एजेंसी की रिपोर्ट कहती है 2019 और 2029 के बीच भारत ज़रूर 262 गीगावॉट के नये बिजलीघर लगा सकता है लेकिन अगर इस क्षेत्र के संरचनात्मक मुद्दों को नहीं सुलझाया गया तो इसमें भी बाधायें आयेंगी। इसके लिये भारत को देश के भीतर सोलर उपकरण निर्माण क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये नीतिगत फैसले लेने होंगे।
बैटरी वाहन
दिल्ली: EV के लिये रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन फी माफ
दिल्ली सरकार की बैटरी वाहन नीति (EV पॉलिसी) के तहत इस साल 10 अक्टूबर के बाद से सड़कों पर उतरने वाले इलैक्ट्रिक वेहिकल्स को रोड टैक्स और पंजीकरण शुल्क नहीं देना होगा। केजरीवाल सरकार का लक्ष्य है कि साल 2024 तक दिल्ली में 5 लाख बैटरी वाहन हों। नये कदम से खरीदारों को रजिस्ट्रेशन फी के 3,000 नहीं देने होंगे। इसके अलावा रोड टैक्स भी नहीं चुकाना होगा जो कि वाहन की कीमत का 4-10% तक होता है।
महत्वपूर्ण है कि इस साल कोरोना महामारी के कारण पैदा हालात से पूरे देश में 10,000 से कम इलैक्ट्रिक दुपहिया बिक पाये हैं। इस दौरान 60 लाख पेट्रोल दुपहिया बिके जबकि बैटरी टू व्हीलर की बिक्री 7,552 ही रही जो कि पिछले साल के मुकाबले 25% की गिरावट है।
भारत में हाइड्रोजन सेल से चलने वाली कार का सफल ट्रायल
भारत ने एक सफल ट्रायल रन किया है जिसमें वाहन हाइड्रोजन ईंधन सेल से चलता है। इसमें जिस आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है उसे प्रोटोन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (PEM) कहा जाता है। यह बैटरी के तापमान को 65-75 डिग्री सेल्सियस तक रखती है जो इसे सड़क के हालात के अनुकूल है। इस तकनीक को विकसित करने में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और पुणे स्थित KPIT टेक्नोलॉजी का हाथ है। अभी माना जा रहा है कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मालवाहकों (बड़े ट्रकों) के लिये होगा क्योंकि जो फ्यूल सेल बनाये गये हैं वह अधिक भारी इंजन के साथ किफायती साबित होंगे।
टेस्ला भारत में 2021 से कारें बेचेगी
जानी मानी अमेरिकी बैटरी कार कंपनी टेस्ला ने घोषणा की है कि वह 2021 भारत में कार बेचना शुरू करेगी। इसके लिये जनवरी से ऑर्डर बुक किये जायेंगे। एक बड़ा कारखाना (गीगा-फैक्ट्री) लगाने के लिये कंपनी की कर्नाटक सरकार से बात चल रही है। इससे पहले टेस्ला शंघाई में कारखाना लगा चुकी है। वैसे भारत की इम्पोर्ट ड्यूटी को लेकर टेस्ला के सीईओ ईलोन मस्क असंतोष ज़ाहिर कर चुके हैं।
जीवाश्म ईंधन
फंडिंग को लेकर सवालों के घेरे में विश्व बैंक
जर्मनी के पर्यावरण लॉबी ग्रुप अर्जवाल्ड ने पाया है कि पिछले दो सालों में वर्ल्ड बैंक ने फॉसिल फ्यूल (तेल, कोयला, गैस जैसे कार्बन छोड़ने वाले ईंधन) से जुड़े प्रोजेक्ट्स को करीब 200 करोड़ डॉलर की फंडिंग की है। ग्रुप कहता है कि 2015 में पेरिस डील होने के बाद से विश्व बैंक ऐसे प्रोजेक्ट्स में 12,00 करोड़ लगा चुका है। इसमें 1050 करोड़ डॉलर तो नये प्रोजेक्ट्स में लगे हैं। विश्व बैंक ने विकासशील देशों में संसाधनों पर निर्भरता का हवाला देते हुए इसका बचाव किया है। बैंक ने “कोरोना के साथ जंग” को भी अपनी ताज़ा फंडिंग के लिये एक कारण बताया है और कहा है कि अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाओं को तैयार करने के लिये यह ज़रूरी था।
कोल ब्लॉक नीलामी: 40% खदानों के लिये नहीं मिले बिडर
कोयला मंत्रालय द्वारा जारी किये गये आंकड़े बताते हैं कि ताज़ा कोयला ब्लॉक नीलामी की घोषणा के बाद 38 में से 15 कोयला खदानों के लिये कोई बोली लगाने वाला नहीं मिला जबकि 20 खदानों के लिये केवल एक बिडर आया। यह नीलामी कोल सेक्टर में तेज़ी लाने के उद्देश्य से की गई। वैसे कोयले की मांग गिर रही है और कोयला बिजलीघर वायु प्रदूषण रोकने के लिये तय मानकों को पूरा न करने के कारण अदालत में हैं। कोयला खदान नीलामी के वक्त यह भी कहा गया कि इससे 2.8 लाख करोड़ नौकरियां मिलेंगी हालांकि कोयला मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस आंकड़े के लिये उनके पास कोई आधार नहीं है। यह दिलचस्प है कि अडानी ग्रुप ने भी बोली लगाई हालांकि उसने पहले कहा था कि नीलामी में उसकी दिलचस्पी नहीं है।