Newsletter - December 4, 2021
प्रायद्वीपीय भारत में दर्ज की गई 143 प्रतिशत अधिक वर्षा; फसल के नुकसान पर किसानों ने की मुआवजे की मांग
एक पखवाड़े बाद भी प्रायद्वीपीय भारत में दक्षिण-पूर्वी मानसून का कहर जारी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, इस क्षेत्र में 1 नवंबर से 25 नवंबर के बीच 143.4% अधिक वर्षा दर्ज की गई। चेन्नई और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में बाढ़ का प्रकोप बना हुआ है।
बेमौसम बारिश और बाढ़ से फसलों को भारी नुकसान हुआ है। आंध्र प्रदेश के अनंतपुरमू जिले में किसानों ने फसल, विशेष रूप से केले की फसल, के नुकसान पर मुआवजे की मांग को लेकर एक महीने का विरोध मार्च शुरू किया, जो 170 गांवों होकर गुजरेगा और 780 किमी का सफर तय करेगा।
वहीं उत्तर में कश्मीर के किसानों ने कहा कि सेब की उनकी लगभग आधी फसल अग्रिम हिमपात के कारण बर्बाद हो गई। यह लगातार तीसरा साल है जब इस क्षेत्र में बेमौसम बर्फबारी ने सेब के बागानों को पूरी तरह ख़त्म कर दिया है। पिछले 20 वर्षों से इस क्षेत्र का जलवायु पैटर्न धीरे-धीरे बदल रहा है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में यह प्रवृत्ति तेज हो गई है। विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु संकट उत्पादन को ज्यादा से ज्यादा प्रभावित करेगा, और हो सकता है अगले कुछ वर्षों में बागों को बनाए रखना भी असंभव हो जाए।
जम्मू-कश्मीर हाइवे चौड़ीकरण: एनजीटी ने एनएचएआई से 129 करोड़ रुपये अलग रखने को कहा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को निर्देश दिया है कि वह उधमपुर से बानिहाल के बीच हाइवे के चौड़ीकरण प्रोजेक्ट से पर्यावरण को होने वाली क्षति की भरपाई के लिये 129 करोड़ रुपये की रकम अलग से रखे। कई रिपोर्ट सामने आयी हैं जिनसे पता चलता है कि सड़क कार्य का मलबा चिनाब और तवी नदी में फेंक दिया जा रहा है क्योंकि कोई व्यवस्थित मलबा निस्तारण ज़ोन (मक डम्पिंग यार्ड) नहीं बनाया गया। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पॉल्यूटर पेज़ (प्रदूषण करने वाला भरपाई करे) के सिद्धांत पर यह फैसला सुनाया है लेकिन जानकार कहते हैं कि पर्यावरण को होने वाली ऐसी क्षति अपूर्णीय है।
दिल्ली-एनसीआर के पावर प्लांट प्रदूषण की प्रभावी मॉनीटरिंग नहीं कर रहे: सीएसई रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के बिजलीघर और उद्योग अपने उत्सर्जनों को मॉनीटर तक नहीं कर रहे हैं जबकि राजधानी और उससे लगे इलाकों में प्रदूषण का स्तर “सीवियर” यानी बहुत हानिकारक – ए क्यू आई 400 से ऊपर – है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट में इमीशन डाटा में गड़बड़ियां पाई गईं हैं।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के पावर प्लांट्स और उद्योगों को उत्सर्जन पर लगातार निगरानी के लिये उपकरण (सीईएमएस) लगाने को कहा था और कहा था कि इसका डाटा ऑनलाइन शेयर होना चाहिये लेकिन दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश के पास सीईएमएस डाटा प्रकाशित करने का कोई पोर्टल तक नहीं है। पंजाब एनसीआर में शामिल अपने चार ताप बिजलीघरों में से केवल दो का डाटा सार्वजनिक करता है जबकि हरियाणा पांच में से केवल दो बिजलीघरों का।
रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली-एनसीआर के 11 में से 4 बिजलीघरों का डाटा सवालों में है। राजीव गांधी और गुरु हर गोविन्द नाम से बने बिजलीघरों को बन्द कर दिया गया लेकिन ठप्प होने के बाद भी वहां से सल्फर और नाइट्रस ऑक्साइड का इमीशन दिख रहा है। सीईएमएस के जो आंकड़े जनता के आगे रखे जाते हैं वह तात्कालिक डाटा हैं और पिछले लम्बे समय के आंकड़े इसमें नहीं मिलते।
दिल्ली-एनसीआर के पावर प्लांट प्रदूषण की प्रभावी मॉनीटरिंग नहीं कर रहे: सीएसई रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के बिजलीघर और उद्योग अपने उत्सर्जनों को मॉनीटर तक नहीं कर रहे हैं जबकि राजधानी और उससे लगे इलाकों में प्रदूषण का स्तर “सीवियर” यानी बहुत हानिकारक – ए क्यू आई 400 से ऊपर – है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट में इमीशन डाटा में गड़बड़ियां पाई गईं हैं।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के पावर प्लांट्स और उद्योगों को उत्सर्जन पर लगातार निगरानी के लिये उपकरण (सीईएमएस) लगाने को कहा था और कहा था कि इसका डाटा ऑनलाइन शेयर होना चाहिये लेकिन दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश के पास सीईएमएस डाटा प्रकाशित करने का कोई पोर्टल तक नहीं है। पंजाब एनसीआर में शामिल अपने चार ताप बिजलीघरों में से केवल दो का डाटा सार्वजनिक करता है जबकि हरियाणा पांच में से केवल दो बिजलीघरों का।
रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली-एनसीआर के 11 में से 4 बिजलीघरों का डाटा सवालों में है। राजीव गांधी और गुरु हर गोविन्द नाम से बने बिजलीघरों को बन्द कर दिया गया लेकिन ठप्प होने के बाद भी वहां से सल्फर और नाइट्रस ऑक्साइड का इमीशन दिख रहा है। सीईएमएस के जो आंकड़े जनता के आगे रखे जाते हैं वह तात्कालिक डाटा हैं और पिछले लम्बे समय के आंकड़े इसमें नहीं मिलते।
पराली जलाने के मामलों की चरम सीमा 30 दिन बाद आने से इस वर्ष नवंबर रहा 6 सालों में सर्वाधिक प्रदूषित
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2021 में औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 376 रहा जो छह वर्षों में सबसे खराब स्तर था। नवंबर 2020 का आंकड़ा 327 था, जबकि नवंबर 2019 में 312 के औसत एक्यूआई के साथ हवा भी साफ थी। 2018 में नवंबर का औसत 334, 2017 में 360, 2016 में 374 और 2015 में 358 था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2021 में 11 दिन ऐसे थे जब वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में थी। जबकि 2020 में 9, 2019 में 7 और 2018 में 5 दिन ऐसे थे। सफर (SAFAR) के संस्थापक परियोजना निदेशक गुफरान बेग ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस साल मानसून की वापसी में देरी के कारण पराली जलाने के मामलों की चरम सीमा आने में भी लगभग एक हफ्ते का अंतर हो गया जिसके कारण नवंबर 2021 में हवा की गुणवत्ता ख़राब रही। उन्होंने कहा कि आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर में हवा की गुणवत्ता खराब हो जाती है, लेकिन इस साल सबसे खराब स्थिति नवंबर में स्थानांतरित हो गई।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की सैटेलाइट तस्वीरों में धुंध और कोहरा दिल्ली की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दिया। तस्वीरों में पंजाब और हरियाणा में पराली की आग से निकलने वाले विशाल धुंध के गुबार को दर्शाया गया है जो दिल्ली की ओर बढ़ रहा है। दिल्ली की ओर आने वाले इस धुंध के गुबार में कुछ हिस्सा उत्तरी पाकिस्तान में फसल जलाने की गतिविधियों से भी जुड़ा है, द वेदर चैनल ने बताया। नवंबर 11 के बाद से फसल जलाने की गतिविधियों ने रफ्तार पकड़ ली है। वीआइआइआरएस (VIIRS) ने नवंबर 16 तक पंजाब में 74,000 से अधिक फायर हॉटस्पॉट दर्ज किए हैं।
बिगड़ते वायु प्रदूषण से पटना में सांस की गंभीर बीमारी के मामले बढ़े
बिहार की राजधानी पटना के अस्पतालों में बिगड़ते वायु प्रदूषण के कारण नवंबर में गंभीर सांस की बीमारी वाले मरीजों की संख्या बढ़ गई। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (बीएसपीसीबी) के अनुसार, 17 नवंबर, 2021 को शहर में समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 231 दर्ज किया गया था।
इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना के चेस्ट विभाग के एक डॉक्टर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि प्रतिदिन, 20-25 रोगी बहिरंग विभाग में आते हैं, उनमें से कम से कम पांच ऐसे थे जिनका ऑक्सीजन स्तर कोविड-19 के सामान गिर रहा था और उन्हें भर्ती करना पड़ा।
बीएसपीसीबी के अध्यक्ष अशोक घोष ने कहा कि प्रतिबंध के बावजूद दिवाली के अवसर पर पटाखे छोड़ना पटना में वायु प्रदूषण में वृद्धि के प्रमुख कारणों में से एक था। निर्माण गतिविधियों और वाहनों की आवाजाही ने भी वायु प्रदूषण में योगदान दिया। डीटीई की रिपोर्ट के अनुसार, दो साल पहले बीएसपीसीबी के एक अध्ययन में गंगा नदी के स्थानांतरण और बायोमास जलाने को पटना की बिगड़ती वायु गुणवत्ता के प्रमुख कारण बताया गया था।
दिल्ली, अहमदाबाद और मुम्बई में वर्ष 2020 के मुकाबले इस बार दीपावली के दौरान ज्यादा प्रदूषण रिकॉर्ड किया गया
केन्द्रीय एजेंसी सफर (सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एण्ड वेदर फोरकास्ट एण्ड रिसर्च) के मुताबिक वर्ष 2021 में दीपावली के दौरान दिल्ली, अहमदाबाद और मुम्बई नगरों में दीपावली के दौरान फैला वायु प्रदूषण साल 2020 के मुकाबले ज्यादा था। दिल्ली की हालत सबसे बुरी थी। वहां पीएम10 और पीएम2.5 की मौजूदगी का स्तर वर्ष 2020 और 2019 के मुकाबले ज्यादा था और वहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 400 µg / m3 के साथ ‘अत्यधिक’ के स्तर पर सरपट जा पहुंचा।
अहमदाबाद में 5 नवंबर को वायु की गुणवत्ता का स्तर खराब था। इस दौरान पीएम 2.5 का स्तर 97 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया था जो कि वर्ष 2020 में मापे गए 93 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के मुकाबले कहीं ज्यादा था। 5 नवंबर की अलसुबह (पूर्वाहन 1:00 बजे से 5:00 बजे तक) का वक्त हवा में पीएम 2.5 की मौजूदगी के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण था। इस दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक ‘बहुत खराब’ से लेकर ‘अत्यधिक’ के स्तर तक पहुंच गया था। अहमदाबाद में वर्ष 2021 में मापे गए स्तर भी वर्ष 2018 के मुकाबले ज्यादा रहे। इस दौरान वायु की गुणवत्ता बहुत खराब की श्रेणी में आंकी गई।
मुंबई में इस साल दीवाली के दौरान वायु प्रदूषण का स्तर वर्ष 2019 और 2020 के मुकाबले बढ़ा हुआ पाया गया। इस दौरान हवा की गुणवत्ता ‘कम खराब’ की श्रेणी में रही। शहर में हल्की बारिश होने के कारण ऐसा हुआ।
107 गीगावॉट से ज्यादा सौर ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित हो चुकी है या प्रक्रियाधीन हैं : ऊर्जा मंत्री
सरकार ने संसद को सूचना दी कि देश में कुल 107.46 गीगावॉट विद्युत उत्पादन क्षमता वाली सौर ऊर्जा परियोजनाएं या तो स्थापित कर दी गई हैं अथवा क्रियान्वयन या निविदा के विभिन्न चरणों से गुजर रही हैं। भारत वर्ष 2022 तक 100 गीगा वाट सौर ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने संसद में कहा कि अक्टूबर 2021 तक ग्रिड से जुड़ी 46.25 गीगा वाट सौर ऊर्जा क्षमता को स्थापित कर लिया गया है। वहीं 36.65 गीगावॉट क्षमता की परियोजनाएं प्रक्रियाधीन है और 24.56 गीगावॉट समस्या की परियोजनाओं की निविदा की प्रक्रिया चल रही है। वर्ष 2021-22 में भारत में कुल ऊर्जा मांग में अक्षय ऊर्जा संसाधनों की हिस्सेदारी करीब 20% रहने का अनुमान है और वर्ष 2026-27 तक इसके 24% होने की संभावना है।
आईईए : दुनिया 290 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा स्थापना के साथ रिकॉर्ड बनाने की दहलीज पर
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के मुताबिक वर्ष 2021 में दुनिया करीब 290 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता जोड़ने जा रही है। इसके साथ ही वह नई ऊर्जा क्षमता जोड़ने का सर्वकालिक रिकॉर्ड बनाने की दहलीज पर खड़ी है। आईईए वर्ष 2026 तक वैश्विक अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 4800 गीगा वाट के स्तर को पार कर जाएगी। यह वर्ष 2020 के स्तरों के मुकाबले 60% से ज्यादा की वृद्धि होगी। वर्ष 2026 तक अक्षय ऊर्जा की मात्रा इस वक्त वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन तथा नाभिकीय ऊर्जा को मिलाकर पैदा की जा रही कुल बिजली के बराबर हो जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक अक्षय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के मामले में चीन सबसे आगे होगा। उसके बाद यूरोप, अमेरिका और भारत होंगे। आईईए के फेथ बिरोल ने कहा कि भारत में अक्षय ऊर्जा का विकास असाधारण है और यह वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा उत्पन्न करने के सरकार के लक्ष्य को हासिल करने में मददगार साबित होगा।
रिपोर्ट में आगाह भी किया गया है कि अक्षय ऊर्जा अनेक नीतिगत अनिश्चितता और क्रियान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना कर रही है। इनमें अनुमति की जटिल प्रक्रियाएं, ग्रिड से जोड़ने के लिए वित्त पोषण और सामाजिक स्वीकार्यता संबंधी बाधाएं भी शामिल हैं। आईईए का कहना है कि कमोडिटी के दामों में वृद्धि होने से निवेश संबंधी लागतों पर दबाव पड़ा है। अगर कमोडिटी के दामों में अगले साल के अंत तक तेजी जारी रही तो वायु आधारित ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश की लागत वर्ष 2015 के स्तरों की तरह फिर से बढ़ जाएगी। इससे पिछले 3 वर्षों के दौरान सोलर पैनल की लागत में हुई कमी से मिला फायदा खत्म हो जाएगा।
वर्ष 2030 तक 450 गीगा वाट का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को 38 गीगावॉट क्षमता को 4 घंटे वाली बैटरी स्टोरेज से जोड़ना होगा
हाल के एक अध्ययन में कहा गया है कि 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा के किफायती और भरोसेमंद एकीकरण के लिए भारत को वर्ष 2030 तक 38 गीगावॉट की 4 घंटे की बैटरी स्टोरेज और 9 गीगावॉट की थर्मल बैलेंसिंग बिजली परियोजनाओं की जरूरत पड़ेगी। अब से वर्ष 2030 तक हर साल 35 गीगावॉट से अधिक वायु तथा सौर ऊर्जा क्षमता को निरंतर जोड़ने की आवश्यकता होगी।
अध्ययन में कहा गया है कि भारत का बिजली तंत्र बहुत जटिल है और इसमें मौसम पर ज्यादा आधारित ऊर्जा मिश्रण तथा विकेंद्रित ऊर्जा स्रोतों की मौजूदगी है। ऐसी जटिलता को संभालने के लिए ऊर्जा तथा सहायक सेवाओं का बाजार, ऊर्जा तथा सहायक सेवाओं के अलग-अलग बाजारों के मुकाबले ज्यादा दक्षतापूर्ण है।
सरकार के ताजा तरीन दिशानिर्देशों में सहायक सेवाओं को ऐसी सेवाओं के तौर पर परिभाषित किया गया है जो ऊर्जा गुणवत्ता, ग्रिड की विश्वसनीयता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए ग्रिड के संचालन में आवश्यक हैं। इन नए पैमानों का मकसद सहायक सेवाओं के लिए भुगतान करने और 50 हर्टज के करीब ग्रिड आवृत्ति बनाए रखने के लिए बिजली एक्सचेंजों के माध्यम से स्पॉट मार्केट से बिजली की खरीद सुलभ कराना है।
सीईआरसी ने पूरे भारत में कारोबार करने के लिए रिन्यू एनर्जी मार्केट्स को लाइसेंस प्रदान किया
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (सीईआरसी) ने रिन्यू एनर्जी मार्केट्स को पूरे भारत में कारोबार करने के लिए लाइसेंस दिया है। इसके तहत निर्धारित मानदंडों के मुताबिक कंपनी को 10 करोड़ रुपए (1.33 मिलियन डॉलर) की नेटवर्थ और 1:1 का लिक्विडिटी अनुपात बनाने के लिए कैटेगरी IV के ट्रेडिंग लाइसेंस के लिए आवेदन करना होगा। एक वित्तीय वर्ष में बेचने के लिए प्रस्तावित बिजली की मात्रा 2000 मिलियन यूनिट से ज्यादा नहीं होगी।सीईआरसी के नियमों के मुताबिक कंपनी लाइसेंस के निर्वाह की अवधि के दौरान बिजली ट्रांसमिशन के काम नहीं कर सकेगी। कारोबारी मुनाफा ट्रेडिंग लाइसेंस रेगुलेशंस के अनुरूप ही होना चाहिए, जिसमें समय-समय पर बदलाव होता रहता है। लाइसेंस प्राप्तकर्ता को सीईआरसी रेगुलेशन-2012 के प्रावधानों के अनुरूप लाइसेंस शुल्क का सालाना भुगतान नियमित रूप से करना होगा।
वैश्विक वाहन बिक्री में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की हिस्सेदारी 10% हुई, वर्ष 2020 में बैटरी के दाम 6% और गिरे
बीएनईएफ के नए आंकड़ों से जाहिर होता है कि यात्री इलेक्ट्रिक वाहनों ने वर्ष 2021 की पहली तिमाही में पूरी दुनिया में वाहनों की नई बिक्री में हिस्सेदारी 10% के स्तर को पहली बार पार कर लिया। वर्ष 2020 की पहली तिमाही में कुल वैश्विक बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी मात्र ढाई प्रतिशत थी। उस लिहाज से इस साल के आंकड़े मील का पत्थर सरीखे हैं। इस साल बिकी कारों में से ज्यादातर हाइब्रिड नहीं, बल्कि पूरी तरह से इलेक्ट्रिक थीं। अगर संख्या की बात करें तो पूरी दुनिया में बेचे गए इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 20 लाख से ज्यादा हो चुकी है।
इसके अलावा वर्ष 2020 के मुकाबले ली-आयन बैटरियों की औसत लागत में भी 6 प्रतिशत की और गिरावट दर्ज की गई है, और यह गिरकर $132 प्रति किलोवाट तक पहुंच गई है। बीएनईएफ की गणना के मुताबिक वर्ष 2010 से अब तक इन बैटरियों की लागत में 89% की गिरावट हो चुकी है। वह भी तब, जब पिछले 2 वर्षों के दौरान ली-आयन बैटरियों की बढ़ती मांग से उनकी कीमतों में अनिश्चित प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
फेम II नीति से 165000 इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री और 2877 चार्जिंग स्टेशनों में मदद मिली। हिमाचल प्रदेश में अपनी इलेक्ट्रिक वाहन नीति का मसविदा जारी किया।
भारत की संसद को दी गई सूचना के मुताबिक देश में परिवहन संसाधनों के विद्युतीकरण के लिए लागू की गई फेम II नीति से अप्रैल 2019 से 25 नवंबर 2021 के बीच 165000 इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में मदद मिली। इसके अलावा देश के 25 राज्यों और 68 शहरों में 2877 चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए इस योजना के तहत 528 करोड रुपए की सब्सिडी उपलब्ध कराई गई। इस नीति के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सब्सिडी की मद में 10000 करोड रुपए का इंतजाम किया गया है और इस नीति के जरिए देश के अनेक राज्यों और शहरों के बेड़ों में 6315 इलेक्ट्रिक बसें जोड़ी गई हैं।
इसके अलावा हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपनी इलेक्ट्रिक वाहन नीति संबंधी मसविदे को हरी झंडी दे दी है। सामान्य प्रोत्साहन के अलावा राज्य सरकार ने वर्ष 2025 तक अपने परिवहन बेड़े के कम से कम 15% हिस्से को पूरी तरह इलेक्ट्रिक बनाने का लक्ष्य तय किया है।
जर्मन गठबंधन ने वर्ष 2035 से पहले आईसीई कारों को चरणबद्ध ढंग से चलन से बाहर करने का फैसला किया, मगर उच्च श्रेणी की स्पोर्ट्स कारों और ई-फ्यूल को रखा जाएगा दायरे से बाहर
जर्मनी की अगली सरकार के लिए बनाए गए गठबंधन में शामिल दलों ने यूरोपीय यूनियन द्वारा वर्ष 2035 तक के लिए निर्धारित लक्ष्य से काफी पहले नई आईसीई कारों की बिक्री को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने का फैसला किया है। मगर उच्च श्रेणी की स्पोर्ट्स कारों को इसके दायरे से बाहर रखा जाएगा। इसके अलावा उत्सर्जन के मानकों से इतर सिंथेटिक ईंधन से चलने वाले वाहनों के रजिस्ट्रेशन को अनुमति देने का फैसला किया गया है क्योंकि जर्मनी के ऑटोमोटिव मार्केट के विशाल उप क्षेत्र यानी इंजन के निर्माताओं ने आग्रह करते हुए कहा है कि ऐसा करने से इंजन से संबंधित काम करने वाले हजारों लोगों की रोजी-रोटी बरकरार रहेगी। ईंधन के आपूर्तिकर्ताओं के आग्रह के मुताबिक सिंथेटिक ईंधन को भी सामान्य पेट्रोल और डीजल वितरण केंद्रों से हासिल किया जा सकेगा और इसे मौजूदा ईंधन के साथ मिलाकर बेचा जा सकेगा।
फिर भी सिंथेटिक ईंधन, जिसे कि ई-फ्यूल भी कहा जाता है, को सामान्य गैसोलीन के मुकाबले ज्यादा दामों पर बेचे जाने की संभावना है ताकि इलेक्ट्रिक वाहनों को अधिक आकर्षक विकल्प बनाया जा सके, बशर्ते उनके उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि ना हो।
अपने इलेक्ट्रिक वाहनों के बजट को दोगुना करेगी निसान, नये मॉडल विकसित करने पर खर्च करेगी 13 बिलियन डॉलर
जापान की कार निर्माता कम्पनी निसान ने ऐलान किया है कि वह इलेक्ट्रिक वाहनों पर पिछले एक दशक के दौरान खर्च की गयी धनराशि को दोगुने तक बढ़ाएगी। साथ ही सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के जरिये खुद के रूपांतरण को तेजी देने के लिये अपने बजट को 13 बिलियन डॉलर तक बढ़ाएगी। कम्पनी वर्ष 2030 तक 15 नये पूर्णत: इलेक्ट्रिक मॉडल तैयार करने की योजना बना रही है। कम्पनी के सीईओ के मुताबिक यह निर्णय सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के प्रति जिम्मेदार बनने की निसान की इच्छा से कुछ हद तक प्रभावित है। इसके अलावा निसान वर्ष 2050 तक खुद को कार्बन न्यूट्रल बनाने के मकसद से अगले आठ वर्षों में ली-आयन बैटरी पैक के लक्ष्य को 65 प्रतिशत तक कम करने की दिशा में काम कर रही है।इसके विपरीत टोयोटा मोटर्स के सीईओ के हवाले से पिछले सितम्बर में कहा गया कि आईसी इंजन से दूरी बना लेने से करोड़ों लोगों का रोजगार छिन जाएगा और ‘‘कार्बन डाई ऑक्साइड हमारी दुश्मन है, न कि इंटरनल कम्बसशन इंजन।’’ फिर भी इसके साथ ही दुनिया की सबसे बड़ी कार निर्माता कम्पनी 250-300 मील प्रति चार्ज की रेंज देने वाली किफायती इलेक्ट्रिक गाडि़यों और व्यापक बाजार उत्पन्न करने का लक्ष्य लेकर चल रही है।
ऑस्ट्रेलिया : शोधकर्ताओं ने पाया कि कुछ मुट्ठी भर कोयला खदानों से अत्यधिक भारी मीथेन का उत्सर्जन हो रहा है
पुर्तगाली शोधकर्ताओं के एक समूह ने पाया कि ऑस्ट्रेलिया के बोवेन बेसिन में सिर्फ छह कोयला खदानें मिलकर हर साल करीब 570000 टन मीथेन का उत्सर्जन कर रही हैं, जो ऑस्ट्रेलिया के सालाना मीथेन उत्सर्जन के 55 प्रतिशत हिस्से के बराबर है। जबकि ये खदानें देश के कुल कोयला उत्पादन में केवल 7 प्रतिशत का ही योगदान करती हैं। हेल क्री खदान तो सबसे बुरी उत्सर्जनकारी खदान है। यह अमेरिका में एक साल के दौरान 40 लाख कारों द्वारा किये जाने वाले उत्सर्जन के बराबर प्रदूषण छोड़ती है। इस वक्त यह खदान ग्लेनकोर नामक कम्पनी की है, जिसने वर्ष 2018 में इसे रियो टिंटो से खरीदा था। मीथेन अपने शुरुआती 20 सालों में कार्बन डाई ऑक्साइड के मुकाबले 80 गुना ज्यादा वातावरणीय ऊष्मा को अपने अंदर लेती है, मगर ऑस्ट्रेलिया अपनी कोयला खदानों का बहुत मजबूती से समर्थन करती है और वह ऐसी कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से है जिसने वर्ष 2030 तक मीथेन को 30 प्रतिशत तक कम करने के लिये वैश्विक गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया।
वर्ष 2045 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य तय करेगी जर्मनी की तेल लॉबी
जर्मनी की तेल लॉबी एन2एक्स ने ऐलान किया है कि वह जीवाश्म स्रोतों से निकलने तेल से किनारा करेगी और वर्ष 2045 तक उद्योग क्षेत्र को नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कराने का इरादा करेगी। देश में इस वक्त ऊर्जा सम्बन्धी आवश्यकताओं में जीवाश्म तेल का 32 प्रतिशत इस्तेमाल हो रहा है। इसमें से 60 प्रतिशत का प्रयोग परिवहन क्षेत्र में होता है। हालांकि यह समूह उद्योग क्षेत्र से अपनी तेल शोधन इकाइयों की आंतरिक प्रक्रियाओं के लिये ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल करायेगा, पेट्रोल स्टेशनों को इलेक्ट्रिक वाहनों के चार्जर्स से लैस करायेगा और भारी परिवहन वाहनों के संचालन के लिये हाइड्रोजन को अपनाने के लिये प्रेरित करेगा। जर्मनी का तेल उद्योग विमानन और शिपिंग के लिये सिंथेटिक ईंधन बनाने की दिशा में काम कर रहा है और यह बदलाव एक ऐसे वक्त पर आ रहा है जब जर्मनी की अगली सरकार वर्ष 2035 से काफी पहले नये आईसीई वाहनों की बिक्री पर रोक लगाने की तैयारी कर रही है।
अमेरिकी राज्यों ने दी जीवाश्म ईंधन को सहयोग देने से मना करने पर बैंकों से 600 बिलियन डॉलर निकाल लेने की धमकी
अमेरिका के 15 राज्यों ने मिलकर अमेरिकी बैंकों को एक पत्र लिखा है। इसमें धमकी दी गयी है कि अगर बैंकों ने जीवाश्म ईंधन से सम्बन्धित परियोजनाओं के वित्तपोषण से इनकार किया तो वे इन बैंकों के अपने खातों में जमा 600 बिलियन डॉलर निकाल लेंगे। टेक्सस राज्य इन सूबों के गठबंधन का सबसे बड़ा प्रदेश है और तेल के लिहाज समृद्ध परमियन बेसिन का ज्यादातर हिस्सा इसी राज्य में आता है। पत्र में जोर देकर कहा गया है कि इन राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं को बचाने के लिये यह धमकी दी गयी है। इन प्रदेशों का मानना है कि बैंक बाइडेन सरकार के दबाव में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये धन दे रहे हैं। उनका कहना है कि टेक्सस ने यह साबित किया है कि ‘‘अक्षय ऊर्जा स्रोत और जीवाश्म ईंधन आधारित उत्पादन एक बढ़ती हुई गतिमान अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिये साथ-साथ चल सकते हैं, और चलने भी चाहिये।’’ टेक्सस ने बैंकों के लिये जरूरी कर दिया है कि वे यह लिखित में देंगे कि वे जीवाश्म ईंधन आधारित परियोजनाओं का बहिष्कार नहीं करेंगे।
दूसरी ओर, बोस्टन के मेयर ने एक अध्यादेश पर दस्तखत किए हैं जिसके जरिए आगामी 6 दिसंबर 2021 से शहर को जीवाश्म ईंधन से मिलने वाले धन को ले लिया जाएगा। ऐसा करके बोस्टन (मैसाचुसेट्स), न्यूयॉर्क, पिट्सबर्ग और न्यू ऑरलियंस जैसे प्रमुख शहरों में शामिल हो गया है जो C40 ‘डाइवेस्टिंग फ्रॉम फॉसिल फ्यूल्स, इन्वेस्टिंग इन सस्टेनेबल फ्यूचर डिक्लेरेशन’ गठबंधन का हिस्सा हैं।
भारत : खदान मालिकों को कोयले के गैसीफिकेशन के लिए 50% राजस्व छूट मिलेगी
भारत सरकार ने ऐलान किया है कि वह ऐसे कोयला खदान मालिकों को मिलने वाली राजस्व छूट को 20% से बढ़ाकर 50% करेगी जो अपने नए नीलामीशुदा कोल ब्लॉक से निकलने वाले कोयले के कम से कम 10% हिस्से को कोल गैसीफिकेशन और लिक्विफिकेशन के लिए देंगे। इस भारी छूट को मेथेनॉल और सिंगैस के उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के एक जरिए के तौर पर देखा जा रहा है। सिंगैस आर्थिक रूप से एथेनॉल के मुकाबले ज्यादा किफायती है। खासकर तब जब इसे गैसोलीन के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। सिंगैस कार्बन मोनोऑक्साइड और हाइड्रोजन का मिश्रण है। इसे रसायन उद्योग का बिल्डिंग ब्लॉक माना जाता है और इसे मेथेनॉल के साथ-साथ ओलिफिंस (प्लास्टिक के निर्माण के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला तत्व) में भी तब्दील किया जा सकता है।