Newsletter - December 25, 2019
हिमालय में बढ़ता कचरे का पहाड़
ठोस कचरा प्रबंधन यूं तो पूरे देश में एक समस्या है लेकिन हिमालयी राज्यों में सॉलिड वेस्ट का निस्तारण ठीक से न हो पाना एक विकराल समस्या बन गया है। खासतौर से हिमालय की संवेदनशील इकोलॉजी और यहां पर मौजूद अनमोल वनस्पतियों और जीव जंतुओं को कारण यह मसला और भी अहम है। नेटवर्क – 18 में छपी रिपोर्ट कहती है कि उत्तराखंड में जगह-जगह बढ़ते कूड़े के पहाड़ यहां के जल स्रोतों और नदियों के साथ-साथ जंगली जानवरों के लिये भी समस्या बन गये हैं। उत्तराखंड के 13 में से 9 ज़िले पहाड़ी क्षेत्र में हैं और यहां तकरीबन सारा कूड़ा जंगलों में फेंका जा रहा है। इससे बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है। नीति आयोग पहले ही कह चुका है कि उत्तराखंड में 60% अधिक जलापूर्ति भू जल स्रोतों से हो रही है। जानकारों का मानना है कि यह सारा कचरा जलस्रोतों को खत्म कर रहा है।
महत्वपूर्ण है कि संसद में सरकार खुद कह चुकी है कि उत्तराखंड ठोस कचरा प्रबंधन के मामले में देश के सबसे फिसड्डी राज्यों में है। पिछले साल एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि राज्य में हर रोज़ 1,400 टन से अधिक कचरा निकलता है लेकिन ज़ीरो प्रतिशत ट्रीट किया जाता है। साल 2016 में ठोस कचरा प्रबंधन के लिये जो नियम बने उनमें साफ कहा गया है कि पहाड़ी इलाकों में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट उस तरह नहीं किया जा सकता जैसे मैदानी इलाकों में किया जाता है। हालांकि सरकार खराब हालात के लिय लोगों में जागरूकता की कमी को ज़िम्मेदार ठहराती है लेकिन कई बार प्रशासन अपनी नाकामी को छुपाने के लिये भी ऐसे बहाने बनाता है। पहाड़ की इकोलॉजी को बचाने के लिये कड़े नियम बनाने और लागू करने की ज़रूरत है। सिक्किम और काफी हद तक हिमालय जैसे राज्यों ने इस ओर रास्ता दिखाया है।
क्लाइमेट साइंस
ऑस्ट्रेलिया: भयानक गर्मी और जंगल में फैली आग, आपातकाल घोषित
ऑस्ट्रेलिया के राज्य विक्टोरिया ने इस महीने गर्मी का अपना रिकॉर्ड तोड़ दिया। यहां 20 दिसंबर को पारा 47.9 डिग्री पहुंच गया। विक्टोरिया में इससे पहले 1976 में तापमान 46.6 डिग्री तक पहुंचा था। आसमान से बरसती इस आग ने देश में फैली जंगलों की आग को और भड़काया। न्यू साउथ वेल्स में तो सरकार को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी।
करीब 100 जगह फैली बुशफायर ने फायर फायटर्स के लिये बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी। दो अग्नि शमन कर्मचारियों की तो आग बुझाते मौत भी हो गई। विदेश में छुट्टी मना रहे प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीशन को इन हालात में माफी मांगनी पड़ी और देश वापस लौटना पड़ा।
2020 होगा सबसे गर्म देशों में से एक
नये साल में भी बढ़ते तापमान से कोई राहत नहीं मिलने वाली। UK के मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि 2020 दुनिया के सबसे गर्म वर्षों में से एक होगा और धरती की तापमान वृद्धि 1 डिग्री तक पहुंच जायेगी। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि यह पूर्वानुमान पिछले कुछ सालों के तापमान ग्राफ पर आधारित है और बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग का साफ संकेत है। अब किसी विशाल ज्वालामुखी के फटने जैसी घटना से ही इस तापमान वृद्धि में नियंत्रण की कोई उम्मीद है।
अमेज़न वर्षावन की सेहत लौटने में लगेगा अनुमान से अधिक समय
ब्राज़ील और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं की नई रिसर्च बताती है कि अमेज़न रेनफॉरेस्ट यानी वर्षावन के पुनर्जीवन में अनुमान से अधिक वक़्त लगेगा। करीब 2 दशकों के अध्ययन के आधार पर साइंस पत्रिका इकोलॉजी में छपी यह रिसर्च बताती है कि जंगल काटे जाने के 60 साल बाद पनपे सेकेंडरी फॉरेस्ट में कार्बन सोखने की ताकत मूल जंगल के मुकाबले 40% ही होती है। इस नवनिर्मित जंगल में जैव विविधता भी मूल वर्षावन के मुकाबले 56% ही रह पाती है। अमेज़न पर छाये संकट और वहां चल रही विनाशलीला को देखते हुये यह रिसर्च काफी अहम मानी जा रही है।
सर्वे: मौसमी आपदाओं के लिये जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार
हर दूसरा भारतीय यानी 50 प्रतिशत देशवासी यह मानते हैं कि इंसानी करतूतों के कारण हो रहा जलवायु परिवर्तन ही ‘एक्स्ट्रीम वेदर’ के पीछे मुख्य वजह है। IBM सर्वे के मुताबिक 23% अमेरिकियों का भी यही मानना है। इस सर्वे के लिये 4816 लोगों से ऑनलाइन इंटरव्यू किया गया जिसके तहत भारत और अमेरिका के दो-दो हज़ार लोगों से सवाल पूछे गये। इसके अलावा भारत में व्यापार जगत की 400 हस्तियों और 195 अमेरिकी बिजनेसमैन से राय मांगी गई।
क्लाइमेट नीति
COP 25: जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में निराशा लगी हाथ
स्पेन की राजधानी मेड्रिड में 2 हफ्ते चले जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में दुनिया की तमाम सरकारें कोई भी सकारात्मक नतीजा हासिल करने में नाकामयाब रहीं। पिछले दो साल में आईपीसीसी समेत तमाम विशेषज्ञ पैनलों की कई रिपोर्ट और शोध यह साफ कह चुके हैं कि धरती का तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के कई हिस्सों में क्लाइमेट एक्शन को तेज़ करने के लिये बड़े प्रदर्शन हुये। उसके बावजूद इस सम्मेलन में विकसित, विकासशील और तमाम अन्य देशों द्वारा अपने मतभेद न मिटा पाना और किसी सार्थक नतीजे पर न पहुंच पाना एक बड़ा झटका है।
सम्मेलन में 197 देशों मे हिस्सा लिया लेकिन केवल 73 देशों ने ही क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिये घोषित स्वैच्छिक प्रयासों को अगले साल ग्लासगो में होने वाले सम्मेलन से पहले (NDCs) मज़बूत करने का संकल्प किया। सम्मेलन में तमाम सरकारों के वार्ताकार कार्बन मार्केट को लेकर कोई नतीजे पर नहीं पहुंच पाये। मसौदे के ड्राफ्ट में कई अनसुलझे विषय बने रहे। अब इनका फैसला अगले साल होगा।
ग्रीन डील: 2050 तक यूरोपियन यूनियन (EU) होगा कार्बन न्यूट्रल
एक एतिहासिक फैसले में यूरोपियन यूनियन ने एक ग्रीन डील पर सहमति बना ली है जिसके तहत 2050 तक 28 देशों का यह ब्लॉक कार्बन न्यूट्रल बनेगा यानी यूनियन के देशों का कुल नेट कार्बन उत्सर्जन ज़ीरो होगा। ब्रसेल्स में 10 घंटे की बैठक के बाद पिछली 13 दिसंबर को यह सहमति बनी और इस मामले में EU कुछ देश अनमने थे। हालांकि यह समझौता EU देशों के लिये किसी तरह बाइडिंग (अनिवार्य) नहीं है। पोलैंड (जिसका 75% अधिक बिजली उत्पादन कोयले पर टिका है) को फिलहाल इससे छूट दी गई है। चेक गणराज्य और हंगरी भी इस ग्रीन डील के लिये अनमने दिखे।
पर्यावरण नियमों का पालन करे रेलवे: NGT
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि पूरे देश में हर रेलवे स्टेशन प्रदूषण का बड़ा केंद्र है और इसलिये रेलवे विभाग को इससे जुड़ी हर पर्यावरण मंज़ूरी लेनी चाहिये। अदालत ने कहा कि सारे रेलवे स्टेशन 1986 में बने पर्यावरण संरक्षण क़ानून के अंतर्गत आते हैं और इसे लेकर अधिकारियों को कोई ग़लतफहमी नहीं होनी चाहिये। कोर्ट के इस क़ानून के तहत ठोस कचरा, प्लास्टिक, बायो मेडिकल वेस्ट, बिल्डिंग मटीरियल और इलैक्ट्रोनिक कचरे के अलावा अति हानिकारक कूड़े के लिये नियम हैं और सभी रेलवे स्टेशनों में ऐसी गतिविधियां होती हैं जहां इससे जुड़े नियम लागू होते हैं।
उज्ज्वला स्कीम के तहत सिलेंडर भरवाने का ग्राफ गिरा: CAG
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मोदी सरकार ने मार्च 2020 तक 8 करोड़ लोगों को रसोई गैस देने का लक्ष्य रखा है। ऑडिटिंग बॉडी कैग (CAG) की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि भले ही सरकार ने 90% लक्ष्य हासिल कर लिया हो लेकिन जिन लोगों को यह सुविधा दी गई वह लगातार अपना सिलेंडर खाली होने पर नहीं भरवा पा रहे। कैग रिपोर्ट में अत्यधिक इस्तेमाल का शक भी जताया गया है। जिन 1.93 करोड़ उपभोक्ताओं को यह सुविधा मिले 1 साल से अधिक वक़्त हो गया है उनके बीच औसत सालाना री-फिल 3.66 था। सिलेंडर कम भरवाने का एक संभावित कारण सिलेंडर और उपभोक्ता के बीच की दूरी है। रिपोर्ट के मुताबिक करीब 50% डीलरों को सिलेंडर पहुंचाने के लिये 92 किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है और 17% लाभार्थियों को सिलेंडर बदलने के लिये गैस गोदाम तक जाना पड़ता है। रिपोर्ट में करीब 12.5 लाख लाभार्थियों को मिली सुविधा को लेकर सवाल भी खड़े होते हैं क्योंकि उनका आर्थिक स्तर इस योजना के तहत तय मानदंडों से मेल नहीं खाता।
वायु प्रदूषण
NTPC ने विदेशी कंपनियों की उत्सर्जन प्रतिरोधन तकनीक को ठुकराया
भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी NTPC ने अपने कोयला बिजलीघरों के लिये विदेशी इमीशन-कट टेक्नोलॉजी को ठुकराते हुये करीब 200 करोड़ डॉलर (14,000 करोड़ रुपये) के ऑर्डर रदद् करने का फैसला लिया है। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक NTPC ने जनरल इलैक्ट्रिक समेत कई दूसरी विदेशी फर्म के ऑर्डर रद्द किये हैं।
कोयला बिजलीघरों में इमीशन कट टेक्नोलॉजी लगाने की डेडलाइन पहले ही बढ़ाकर 2022 की जा चुकी है। एनटीपीसी ने यह फैसला उस वक्त किया है जब यह निश्चित है कि देश के आधे से अधिक बिजलीघर SO2 गैस उत्सर्जन रोकने के लिये तकनीक फिट नहीं कर पायेंगे।
NTPC ने जनरल इलैक्ट्रिक के अलावा जापान की मित्सुबिशी-हिटाची और नॉर्वे की यारा इंटरनेशनल से भी बात की। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के सामने दिये गये एक प्रजेंटेशन में NTPC ने कहा कि इनमें से किसी भी कंपनी के पायलट प्रोजेक्ट में इमीशन के मानकों को पूरा नहीं किया।
पराली प्रदूषण से निपटने के लिये बायो-गैस प्लांट
इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन जल्दी ही देश में 140 बायो गैस प्लांट लगाने के लिये निजी कंपनियों को आमंत्रित कर सकती है। समाचार एजेंसी रायटर ने ये ख़बर सूत्रों के हवाले से छापी है। एजेंसी के मुताबिक धान की पराली को इन प्लांट्स में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जायेगा। इसका उद्देश्य पराली से होने वाले प्रदूषण को रोकना है।
हर साल जाड़ों में किसानों द्वारा पराली जलाये जाने से प्रदूषण में बढ़ोतरी की शिकायत होती है लेकिन अब किसानों को पराली जलाने के बजाये इन कंपनियों को बेचने के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा। इन प्लांट्स को लगाने में करीब 3,500 करोड़ रूपये का खर्च आयेगा लेकिन पर्यावरण के जानकारों का कहना है कि इस प्रोजेक्ट की कामयाबी के लिये किसानों से लगातार तालमेल बनाना होगा क्योंकि हर प्लांट को सुचारू रूप से चलने के लिये प्रति घंटे 2 टन पराली की ज़रूरत होगी।
मुंबई: क्लीन एयर प्लान को जानकारों ने बताया बेतुका
महाराष्ट्र प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड द्वारा बनाये गये मुंबई क्लीन एयर प्लान को जाने माने विशेषज्ञों ने बेतुका और कट एंड पेस्ट वाला काम बताया है। परिवहन क्षेत्र से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह योजना मुंबई में वाहनों और यातायात के मूलभूत ढांचे को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिये था ताकि निजी वाहनों की संख्या बढ़ने से रोकी जा सके।
जानकारों का कहना है कि बोर्ड की योजना में पैदल चलने वालों और साइकिल सवारों के लिये कुछ नहीं है। राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के इस प्लान की आलोचना इस बात के लिये भी हो रही है कि इनमें कोयला बिजलीघरों और बिल्डर लॉबी के प्रदूषण को रोकने की प्रभावी योजना नहीं है।
संसदीय पैनल: दूसरे राज्यों के मालवाहक कर रहे हैं दिल्ली में प्रदूषण
दिल्ली में दिसंबर के पहले पखवाड़े में हवा खासी प्रदूषित रही। राजधानी के 35 में से 9 मॉनिटरिंग स्टेशनों प्रदूषण सीवियर कैटेगरी में मापा गया। PM 2.5 का स्तर 212.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा जो कि सुरक्षित स्तर से 3 गुना अधिक खराब है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हिसाब से सुरक्षित स्तर 25 माइक्रोग्राम है।
उधर संसदीय पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरे राज्यों के मालवाहक दिल्ली की हवा में पहले से अधिक प्रदूषण कर रहे हैं। हर पांचवां मालवाहक किसी दूसरे राज्य में जाने के लिये दिल्ली में प्रवेश करता है। सेंट्रल रोड एंड रिसर्च संस्थान (CRRI) का कहना है कि 2018 में दिल्ली की सड़कों में मौजूद 12 लाख वाहनों में से आधे दूसरे राज्यों के थे।
डीज़ल कारों पर मारुति का यू-टर्न
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति ने डीज़ल कार निर्माण बन्द करने की योजना से पलट गई है। मारुति को लगता है कि कि जब उसकी प्रतिस्पर्धी कंपनियां हुंडई, एन एंड एम औऱ टाटा मोटर्स यह कारें बाज़ार में उतारती रहेंगी तो उसके लिये डीज़ल कार निर्माण बन्द करना ठीक नहीं है। हालांकि मारुति 1 अप्रैल 2020 से डीज़ल कार बेचना बन्द कर रही है लेकिन अगले साल फिर से डीज़ल कार बाज़ार में उतारने की योजना है। अभी कंपनी यूरो-6 मानकों वाली 1.5 लीटर डीज़ल इंजन कार पर काम कर रही है।
साफ ऊर्जा
साफ ऊर्जा लक्ष्य: सरकार सुस्त, संसदीय पैनल ने जताई चिन्ता
संसदीय समिति ने इस बात पर चिन्ता जताई है कि भारत साल 2022 तक 175 GW साफ ऊर्जा के संयंत्र लगाने के लक्ष्य से पीछे छूट रहा है। साल 2016 के बाद से भारत सालाना लक्ष्य को हासिल नहीं कर पा रहा है। इस मामले में पिछले तीन साल से निर्धारित बजट से औसतन 10% कम खर्च किया जा रहा है। पैनल इस बात से आश्वस्त नहीं है कि साल 2022 तक 100 GW सौर ऊर्जा का लक्ष्य हासिल कर लेगा।
भारत साफ ऊर्जा लक्ष्य के लिये 4 लाख करोड़ खर्च करेगा: आर के सिंह
संसदीय समिति की फिक्र के बावजूद केंद्र सरकार को उम्मीद है कि वह साफ ऊर्जा का लक्ष्य हासिल कर लेगा। केंद्रीय नवीनीकरण ऊर्जा मंत्री आर के सिंह का कहना है कि लक्ष्य को हासिल करने के लिये भारत अगले 3 साल में करीब 4 लाख करोड़ रूपये का निवेश करेगा। सिंह के मुताबिक 83.38 GW का लक्ष्य अक्टूबर 2019 तक हासिल हो चुका है। आर के सिंह ने कहा कि इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी घरेलू और विदेशी बाज़ार में द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय एजेंसियों समेत कई स्रोतों की मदद से धन इकट्ठा करेगी। सरकार ने इस क्षेत्र में 10 प्रतिशत विदेशी निवेश की इजाजत दी है।
छत्तीसगढ़: साफ ऊर्जा के लिये नियमों और गाइडलाइंस की घोषणा
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नये कोयला बिजलीघर न बनाने के ऐलान के बाद राज्य बिजली नियमन बोर्ड ने अब साफ ऊर्जा के नियमों की घोषणा की है जिसके तहत छत्तीसगढ़ राज्य बिजली नियमन कमीशन (State Electricity Authority Commission) सौर ऊर्जा के 0.5 मेगावॉट और 2 मेगावॉट से 5 मेगावॉट तक के संयंत्रों के जनरल टैरिफ तय करेगा। कमीशन ने इन प्लांट्स की नॉरमेटिव कैपिटल कॉस्ट या
कार्यशील पूंजी 4.5 करोड़/ मेगावॉट (0.2 – 2 मेगावॉट) और 4.0 करोड़/ मेगावॉट (2-5 मेगावॉट) रखी है। पहले साल के लिये रखरखाव की दर 7 लाख रुपये प्रति मेगावॉट रखी है। कमीशन की तय की गई दरें और नियम 1 अप्रैल 2019 से लागू माने जायेंगे और अगले 3 साल तक प्रभावी रहेंगे। इन्हीं दरों पर साफ ऊर्जा कंपनियां वितरण कंपनियों को बिजली बेचेंगी।
भारत में BIS द्वारा स्वीकृत सौर उपकरण ही बिकेंगे
देश में बिकने वाले सभी सौर उपकरणों को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) से सर्टिफिकेट लेना होगा। जो भी उपकरण बेचा जायेगा उसका ब्यौरा अप्रूव्ड लिस्ट ऑफ मॉड्यूल्स एंड मैन्युफैक्चरर्स (ALMM) में होना ज़रूरी है। लेकिन इस लिस्ट में शामिल होने से पहले 2 साल तक सरकार उत्पाद की क्वालिटी को देखेगी और कंपनी ऑडिट का मुआयना करेगी। तभी उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा मिलेगा और बिजली वितरण कंपनियां इन उपकरणों को खरीद पायेंगी। अंग्रेज़ी अख़बार मिंट में छपी ख़बर के मुताबिक गाइडलाइंस को 1 अप्रैल से लागू किया जायेगा। इससे दोयम दर्जे के चायनीज़ प्रोडक्ट के बाज़ार में आने पर रोक लगेगी।
बैटरी वाहन
दिल्ली ने EV पॉलिसी को मंज़ूरी दी: ऑटो और डिलीवरी वाहनों पर नज़र
काफी इंतज़ार के बाद दिल्ली सरकार ने बैटरी वाहन नीति को मंज़ूरी दे दी है। अब 5000 नये ई-रिक्शा सड़कों पर उतारे जायेंगे। इसके अलावा 2024 तक डिलीवरी सर्विस वालों को बैटरी दुपहिया वाहन पर छूट और फायदे मिलेंगे। हर ऑटो रिक्शा पर 30,000 तक की छूट या आकर्षक लाभ मिल सकते हैं। सभी नये रिहायशी और व्यवसायिक भवनों में 20% चार्जिंग सुविधा बैटरी वाहनों के लिये करना अनिवार्य होगा।
महत्वपूर्ण है कि दिल्ली सरकार ने ऑटो रिक्शा की संख्या को लेकर EPCA का समर्थन किया है। EPCA ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी कि राजधानी में ऑटो रिक्शा की 1 लाख की सीमा को खत्म किया जाये। इससे दिल्ली की सड़कों में ई-रिक्शा के कई नये दस्ते उतारे जा सकेंगे।
भोपाल: बाइक शेयरिंग का हिस्सा बनेंगी E-Bike
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में चल रहा पब्लिक बाइक शेयरिंग प्रोजेक्ट अपडेट किया जायेगा। अगले साल (2020) में इस प्रोजेक्ट के तहत ई-बाइक शामिल की जायेंगी। शहर में करीब 500 साइकिलों में बैटरी पैक और इलैक्ट्रिक मोटर लगाई जा सकती है। भोपाल का पब्लिक बाइक शेयरिंग प्रोग्राम अपनी तरह की पहला प्रोजेक्ट है जिसमें जीपीएस इंटीग्रेशन प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है।
कैलिफॉर्निया: EV चार्जिंग को मापने की तैयारी
अमेरिका का कैलिफॉर्निया राज्य अब चार्जिंग स्टेशनों के लिये यह नियम बना सकता है कि वह EV बैटरी चार्जिंग के वक्त उपभोक्ता को बतायें कि बैटरी में कितनी बिजली “पम्प” की गई है। कैलिफॉर्निया स्टेट का मानना है कि माप की शुद्धता और मानकों के लिये नियम ज़रूरी हैं ताकि पारदर्शिता लाई जा सके। हालांकि इस विचार का EV2GO और टेस्ला जैसी कंपनियों ने विरोध किया है क्योंकि इन मानकों की पालना और मीटर लगाने में उन्हें लाखों डालर खर्च करने पड़ सकते हैं।
UK यूनिवर्सिटी बनायेगी भारतीय हालात के लिये EV बैटरियां
भारत की सड़कों पर इलैक्ट्रिक वाहन चलाना हो तो उस वाहन की बैटरियां भी जांबाज़ होनी चाहिये क्योंकि गर्मी इतनी पड़ती है कि लोहा भी पिघल जाये। हमारे देश के ऐसे चुनौतीपूर्ण हालात के लिये UK की लॉगबरो यूनिवर्सिटी भारत के दो संस्थानों के साथ मिलकर बैटरियां बनायेगी। अभी इस्तेमाल की जा रही लीथियम आयन बैटरियों में 25 डिग्री से अधिक तापमान पर ओवरहीटिंग का ख़तरा है इसलिये इस भागेदारी के तहत बैटरियों में कूलिंग प्रणाली और तापमान बढ़ने से रोकने के विज्ञान पर शोध किया जायेगा।
जीवाश्म ईंधन
IEEFA: ताप बिजलीघर संसद को दी गई जानकारी से अधिक बदहाल
ऊर्जा क्षेत्र में सर्वे करने वाली संस्था IEEFA – जिसने NPA की श्रेणी में रखे गये 12 थर्मल पावर प्लांट्स (ताप बिजलीघरों) की समीक्षा की – ने बताया है कि देश के कई अन्य कोयला बिजलीघर भी आर्थिक बदहाली में हो सकते हैं। अभी 2018 तक संसदीय समिति को ऐसी सिर्फ 34 यूनिटों के बारे में सूचना दी गई है। कुल 12 ताप बिजलीघरों की ऊंची लागत को देखते हुये IEEFA का निष्कर्ष है कि साफ ऊर्जा के संयंत्र लगते तो इतनी ही बिजली उत्पादन क्षमता 30% कम खर्च पर हासिल की जा सकती थी। जिन 12 NPA की समीक्षा की गई उनमें चेन्नई में प्रस्तावित 4000 मेगावॉट का प्लांट भी है जो 5-6 रुपये प्रति यूनिट में बिजली देगा। अगर यह प्लांट बना तो इससे कहीं कम कीमत पर सौर और पवन ऊर्जा की उपलब्धता होने की वजह से इस प्लांट का घाटे में जाना तय है।
भारत में 2030 तक जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल सबसे अधिक
पेट्रोलियम और गैस मंत्री ने दावा किया है कि 2030 तक भारत जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल के मामले में दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यस्थाओं को पार कर जायेगा। यह दावा भारत की ऊर्जा ज़रूरतों के संदर्भ में किया गया है जो मूलत: तेल और गैस पर निर्भर हैं। इससे पहले IEEFA ने हिसाब लगाया था कि भारत की कोल पावर अपने 2030 के तय 266.8GW के लक्ष्य को नहीं छू पायेगी और उत्पादन इससे करीब 26 GW कम रहेगा। इसके पीछे कोयला प्लांट की बढ़ती लागत, कड़े उत्सर्जन मानक और पानी की कमी मुख्य कारण बताये गये। उधर मंत्री जी कहना है कि भारत में बिजली की खपत 4.5% की सालाना दर से बढ़ेगी जबकि दुनिया की औसत वृद्धि दर 1.4% है हालांकि भारत की बिजली ज़रूरतों में बायोमास को जोड़ा जायेगा।