चीन से बिगड़े रिश्तों का असर पड़ेगा सोलर मिशन पर

Newsletter - July 10, 2020

महत्वपूर्ण कड़ी: चीन से आयात पर रोक के बाद बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत के घरेलू निर्माता इस चुनौती को किस तरह लेते हैं | Photo: Saur Energy

चीन से बिगड़े रिश्तों का असर पड़ेगा सोलर मिशन पर

पड़ोसी चीन के साथ भारत की खटपट पिछले 15 जून को अचानक बहुत नाज़ुक मोड़ पर पहुंच गई जब सरहद पर हुई झड़प में 20 भारतीय जवानों के मारे जाने की ख़बर आई। इसका सीधा असर दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों पर पड़ा है। पहले 29 जून को भारत ने 59  चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाया फिर केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने ऐलान कर दिया कि भारत चीन से बिजली उपकरणों का आयात बन्द करेगा। यह आयात भारत के कुल आयात का बड़ा हिस्सा है। हफ्ता भर पहले ही मंत्रालय ने प्रस्ताव रखा था कि अगस्त से चीनी सौर उपकरणों के आयात पर बेसिक कस्टम ड्यूटी बढ़ाकर 20% कर दी जाये।  संसदीय समिति की मंजूरी मिलने पर 2022 से यह बेसिक कस्टम ड्यूटी 40% तक बढ़ाई जा सकती है।

चीन को सही दिशा में लाने की कोशिश के साथ यह कदम “आत्मनिर्भरता” मिशन का हिस्सा भी माना जा रहा है। डायरेक्टर जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस यानी डीजीसीआई के आंकड़े बताते हैं कि 2014 से 2020 के बीच भारत के सारे आयात की करीब तिहाई कीमत  बिजली के उपकरण और मशीनें ही थी। अगर इसमें परमाणु भट्टियों से जुड़े उपकरण शामिल कर लिये जायें तो यह कीमत कुल आयात का 50% हो जाती है।

सवाल यह है कि चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों का कितना असर हमारे सोलर मिशन पर पड़ेगा। आयातित सोलर मॉड्यूल और सेल महंगे होने से बिजली दरों पर उसका असर दिखना तय है। दिल्ली स्थित काउंसिल फॉर एनर्जी, इन्वायरेंमेंट एंड वॉटर की कनिका चावला कहती हैं, “नीलामी तो इसके बाद भी होती रहेंगी लेकिन सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन के लिये इन दरों पर वितरण कंपनियों से सौदा करना आसान नहीं होगा। इसका असर भारत के क्लीन एनर्जी टार्गेट पर हो सकता है। जो प्रोजक्ट अभी निर्माणाधीन हैं उन पर भी असर हो सकता है।”

देश के भीतर सोलर सेल और मॉड्यूल बनाना पिछले कुछ वक्त से सरकार की प्राथमिकता रही है। सरकार ने दो साल पहले एक सेफगार्ड ड्यूटी लगाई थी ताकि घरेलू निर्माता चीन और मलेशिया के बाज़ार से टक्कर ले सकें। इस महीने सेफगार्ड ड्यूटी की अवधि खत्म हो रही है लेकिन अब तक भारतीय निर्माता सेफगार्ड के ज़रिये दिये गये प्रोत्साहन का फायदा नहीं उठा पाये हैं। साफ है कि सेफगार्ड ड्यूटी भी भारत की मेन्युफैक्चरिंग को नहीं बढ़ा पाई। 

भारत अभी केवल 3 गीगावॉट के सोलर सेल और 11 गीगावॉट के ही मॉड्यूल बनाता है और बाज़ार की 85%  मांग आयातित माल से पूरी होती है जिनमें से अधिकतर चीन से आता है।  महत्वपूर्ण है कि मौजूदा हाल में क्लीन एनर्जी की ओर भारत का झुकाव इस बात पर निर्भर करेगा कि घरेलू निर्माता चुनौती का सामना कैसे करते हैं। सरकार द्वारा आयात पर रोक और आयात ड्यूटी को बढ़ाना आत्मनिर्भरता की दिशा में एक छोटा सा कदम हो सकता है। लेकिन इसके बाद उन कदमों का इंतज़ार रहेगा जो असल मायने में इस सपने को हक़ीक़त में बदलते हैं। लेकिन अगर हम घरेलू निर्माण के ज़रिये एक सुदृढ़ सप्लाई चेन तैयार नहीं कर पाते तो यह भारत के क्लीन एनर्जी मिशन के लिये रास्ता भटकने जैसा होगा।


क्लाइमेट साइंस

हर तरफ पानी: कोरोना मरीज़ों की बाढ़ झलने के बाद अब मायानगरी मुंबई का सामना असली बाढ़ से हो रहा है | Photo: Weather.com

बरसात से मुंबई फिर अस्त-व्यस्त

पिछले एक पखवाड़े लगातार बरसात ने मुंबई को पानी में डुबोये रखा। अब यही स्थिति गुजरात के साथ हो सकती है क्योंकि मौसम विभाग ने सौराष्ट्र में ‘अत्यधिक तेज़ बरसात’ की चेतावनी जारी की है। इस चेतावनी के बाद राज्य में आपदा प्रबंधन के लिये एनडीआरएफ की टीमें लगाई गई हैं। उधर उत्तर भारत में दिल्ली और आसपास के इलाकों में हल्की बरसात की संभावना है और आने वाले दिनों में यह तेज़ होगी।

हरियाणा और राजस्थान और पंजाब के कुछ हिस्सों को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में मॉनसून एक हफ्ते पहले ही पहुंच गया था। लम्बी अवधि के औसत (LPA) के हिसाब से पिछले बुधवार तक 22% अधिक पानी बरसा है। भरपूर मॉनसून भले ही एक अच्छी ख़बर है लेकिन देश में मॉनसून का पैटर्न बदल रहा है। इस साल दक्षिण में बरसात कम हुई है जबकि मध्य भारत में कम। महत्वपूर्ण है कि इस साल जून में प्रकाशित हुई भारत की पहली जलवायु परिवर्तन आंकलन रिपोर्ट में कहा गया है कि  बारिश का यह बदलता पैटर्न ग्लोबल वॉर्मिंग का संकेत हो सकता है। मॉनसून के समय बदलने के साथ देर तक टिकने से टिड्डियों के हमले एक विकट समस्या बन सकते हैं जिससे खाद्य सुरक्षा के लिये संकट पैदा होगा। 

जलवायु परिवर्तन: हिमाचल-लद्दाख के दो ग्लेशियर प्रभावित

ताज़ा अध्ययन बताते हैं कि पश्चिमी हिमालयी इलाके में ग्लेशियरों में जलवायु परिवर्तन का अच्छा खासा प्रभाव पड़ रहा है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)  के ग्लेशियर विज्ञान विभाग के शोध के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमाचल प्रदेश के शिगरी ग्लेशियर और लद्दाख के स्टोक ग्लेशियर का मास लॉस(जमी बर्फ के क्षेत्रफल में कमी) हो रहा है। किसी भी ग्लेशियर के मास लॉस  का मतलब उसकी कुल बर्फ से है। इन दो ग्लेशियरों के मास लॉस को बढ़ते तापमान और कम बर्फबारी से जोड़कर देखा जा रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस सदी के पहले दशक में इन हिमनदों का मास लॉस पिछली सदी के अंत में हुए मास लॉस के मुकाबले काफी अधिक है।

ग्लोबल वॉर्मिंग: मछलियों के प्रजनन को ख़तरा

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का बढ़ता तापमान समुद्री जीवों और मछलियों को परेशान कर रहा है। ‘साइंस’ पत्रिका में छपा शोध बताता है कि गर्म होता समुद्र सदी के अंत तक मछलियों की प्रजनन क्षमता को 40% कम कर देगा क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिग से नवजात मछलियों के अलावा भ्रूण पर भी असर पड़ेगा। यह शोध इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि जीव विज्ञानियों ने जलवायु परिवर्तन प्रभाव का आंकलन अब तक वयस्क मछलियों पर ही किया था। अब नया अध्ययन बता रहा है कि मछलियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो जायेंगी या फिर वह प्रजनन व्यवहार में बदलाव करेंगी।


क्लाइमेट नीति

अदालत का दखल: पर्यावरण कार्यकर्ताओं के भारी दबाव के बाद दिल्ली हाइकोर्ट ने पर्यावरण आकलन प्रभाव (EIA) से जुड़े नये नियमों पर सुझाव देने की तारीख 11 अगस्त तक बढ़ा दी है | Photo: DNA

दिल्ली हाइकोर्ट ने EIA पर सुझाव की समय सीमा बढ़ाई

पर्यावरण कार्यकर्ताओं की कड़ी आलोचना के बाद दिल्ली हाइकोर्ट ने आदेश दिया है। इस आदेश से पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (EIA) को लेकर सरकार द्वारा जारी नये आदेश पर जनता के सुझावों की समय सीमा 30 जून से बढ़ाकर 11 अगस्त कर दी गई है। महत्वपूर्ण है कि ईआईए पर नया आदेश पर्यावरण नियमों को कमज़ोर करता है जिसकी जानकार और कार्यकर्ता आलोचना कर रहे हैं। विवाद तब और गहरा गया था जब सूचना अधिकार क़ानून के ज़रिये यह बात सामने आई कि खुद पर्यावरण मंत्री ने नये आदेश पर सुझाव देने की समय सीमा घटाई है।

हुबली-अंकोला रेल लाइन पर हाइकोर्ट की रोक

कर्नाटक हाइकोर्ट ने 168 किलोमीटर लम्बी हुबली-अंकोला रेल लाइन पर रोक लगा दी है। पश्चिमी घाट पर इस रेल लाइन के लिये 1,57,000 पेड़ काटे जाने हैं लेकिन वाइल्ड लाइफ बोर्ड ने इसे मंजूरी दे दी थी। महत्वपूर्ण है कि वाइल्डलाइफ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्यों की ओर से आपत्ति किये जाने के बावजूद प्रोजेक्ट को इस साल मार्च में यह अनुमति दी गई। प्रस्तावित रेल प्रोजेक्ट का ज्यादातर हिस्सा वन भूमि पर ही है। काली टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन से गुजरने के अलावा यह रेल लाइन बेडथी संरक्षित वन और हॉर्नबिल  संरक्षित क्षेत्र से जाती है। केरल में विवादित थेल्लासिरी-मैसुरू लाइन एक बार फिर चर्चा में है क्योंकि अब सरकार ने बंदीपुर और नागरकोयल के बीच एक सुरंग प्रस्तावित की है। 

कोल-ब्लॉक नीलामी पर अनिश्चितता बरकरार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 41 कोयला ब्लाकों की नीलामी की घोषणा के दो हफ्ते बाद यह स्पष्ट है कि इस विषय में केंद्र सरकार और राज्यों में सहमति नहीं है। झारखंड ने इस मामले में पहले ही सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया है। उसके मुताबिक मोदी सरकार ने बिना राज्यों विश्वास में लिये बिना इस नीलामी का ऐलान कर दिया। इसी तरह महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों आदित्य ठाकरे और संजय राठौर ने संवेदनशील तड़ोबा-अंधेरी टाइगर रिज़र्व से लगे  बांदेर कोल ब्लॉक को नीलामी लिस्ट से हटाने की मांग की है।

उधर छत्तीसगढ़ के हसदेव-अरण्य इलाके के 4 कोल ब्लॉक भी ऑक्शन( नीलामी) लिस्ट से हटाये जायेंगे। केंद्रीय कोयला और खान मंत्री  प्रह्लाद जोशी ने राज्यों की ओर से किये जा रहे विरोध को तूल न देते हुये कहा है राज्यों के कहने पर केंद्र सरकार नीलामी में बदलाव करने को तैयार है।

एयरलाइंस ने इमीशन नियमों से किनारा किया

तमाम एयरलाइन कंपनियां कम से कम 2023 तक कार्बन इमीशन कम करने की उस बंदिश से मुक्त रहेंगी जिसका पालन उन्हें पेरिस क्लाइमेट डील के तहत करना था। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र की काउंसिल ऑफ इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइजेशन ने मंगलवार को इंडस्ट्री के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।


वायु प्रदूषण

क़ानूनी कार्रवाई: आंध्र प्रदेश के गैस कांड में कुल 12 लोगों की गिरफ्तारी हुई है जिसमें दक्षिण कोरियाई फर्म का सीईओ भी शामिल है | Photo: The Rahnuma Daily

स्टाइरीन गैस कांड: जांच में कंपनी की लापरवाही के सुबूत

आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में पिछली 7 मई को हुये गैस लीक कांड के दो महीने बाद मंगलवार को पुलिस ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया जिसमें  दक्षिण कोरियाई फर्म एलजी पॉलीमर के सीईओ और दो निदेशक शामिल हैं। गैस कांड की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि घटना कंपनी की लापरवाही से हुई। जांच बताती है कि फैक्ट्री का सुरक्षा अलार्म काम नहीं कर रहा था और अब इसे रिहायशी इलाके से दूर हटाया जाये। जांच में इस दुर्घटना के लिये 21 कारण गिनाये गये हैं जिनमें त्रुटिपूर्ण स्टोरेज डिज़ाइन और चेतावनियों की अनदेखी शामिल है। मैंनेजमेंट को 21 में से 20 वजहों के लिये ज़िम्मेदार पाया गया है। इस गैस लीक में 12 लोगों की जान गई थी और सैकड़ों लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। जांच में कहा गया है कि कंपनी ने सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया।

नया शोध: कहां से आ रहा दिल्ली में वायु प्रदूषण?

एक नये शोध में पता चला है कि कम से कम 3 ऐसे गलियारे हैं जहां से आने वाला प्रदूषण दिल्ली की एयर क्वॉलिटी में बढ़ोतरी करता है। आईआईटी कानपुर और दिल्ली समेत देश-दुनिया के जाने माने संस्थानों ने अपने शोध में प्रदूषण करने वाले 35 कारक बताये हैं जिनमें से 26 दिल्ली की हवा में काफी अधिक मात्रा में हैं। इस शोध के लिये 2018 और 2019 के जाड़ों के दौरान एयर क्वॉलिटी का अध्ययन किया गया और पाया गया कि उत्तर-पश्चिम, उत्तर और उत्तर पूर्व की दिशा से आना वाला प्रदूषण दिल्ली की घुटन को बढ़ाता है।

उत्तर-पश्चिम गलियारे से आना वाला प्रदूषण हरियाणा, पंजाब और पाकिस्तान के इलाकों से है जो अधिकांश क्लोरीन और ब्रोमाइड के कण दिल्ली में आ रहे हैं। उत्तरी गलियारे में प्रमुख रूप से नेपाल   और यूपी है जहां से कॉपर, कैडमियम, लेड और सल्फर जैसे प्रदूषकों के कण भारत में आते हैं। तीसरे गलियारे उत्तर-पूर्व का प्रदूषण भी यूपी से ही है जो क्रोमियम, निकिल और मैग्नीज़ के कण दिल्ली में भेज रहा है।

लॉकडाउन से पता चला क्या कदम उठाने हैं ज़रूरी

कोरोना महामारी से लड़ने के लिये लगाये गये लॉकडाइन देश के महानगरों की एयर क्वॉलिटी में काफी सुधार हुआ। निजी कंपनी रेस्पाइरर लिविंग साइंसेज और कार्बन कॉपी ने लॉकडाउन के चार चरणों में औसत एयर क्वॉलिटी का विश्लेषण किया। इसके साथ ही दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलुरू द्वारा लागू लोकल लॉकडाउन का भी अध्ययन किया गया।

इसमें PM 2.5 और PM 10 जैसे कणों साथ कार्बन मोनो ऑक्साइड, ओज़ोन और बेंज़ीन की प्रदूषण मात्रा को देखा गया। विश्लेषण से पता चलता है कि मात्र 74 दिन के अंतराल में चार महानगरों ने नेशनल क्लीन एय़र प्रोग्राम (NCAP) के तहत तय किये गये लक्ष्यों का 95% हासिल किया। गौरतलब है कि NCAP के तहत तय लक्ष्य 2024 तक पूरे करने हैं।


साफ ऊर्जा 

नीलामी से उठे सवाल: सोलर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की ताज़ा नीलामी में बिजली दरों के मामले में रिकॉर्ड बना है लेकिन क्या यह डील व्यवहारिक रूप से कामयाब हो पायेगी | Photo: Energy Infra Post

फिर रिकॉर्ड दरों पर सोलर नीलामी लेकिन क्या बिजनेस कर पायेंगी कंपनियां?

सोलर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया यानी एसईसीआई की ताज़ा सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट बिडिंग में  ₹ 2.36 / किलोवॉट-घंटा को ठेके मिले और भारत की सिर्फ एक कंपनी रिन्यू पावर को ठेका मिला।  जानकारों के मुताबिक इतनी कम दरों की वजह है कि यह नीलामी केवल सोलर के लिये हुई है जिसे व्यापार की भाषा में “वेनिला” सेलर टेंडर कहा जाता है। अन्यथा राउंड द क्लॉक यानी 24 घंटे सप्लाई के लिये होने वाले ऑक्शन में बिजली दरें कहीं अधिक होती है जैसा कि पिछली मई में ₹ 3.60 प्रति किलोवॉट घंटा की दर से नीलामी हुई। जानकारों को आशंका यह भी है कि क्या कंपनियां इतने सस्ते रेट पर बिजली पायेंगी या प्रक्रिया टांय टांय फिस्स हो जायेगी। 2017 और 2018 में जिस ACME कंपनी को ठेका मिला था उसने बाद में कह दिया कि वह प्रोजेक्ट नहीं लगा सकती। ये मामला अभी अदालत में है।

साफ ऊर्जा: केंद्र ने प्रोजेक्ट्स की समय सीमा 98 दिन बढ़ाई

कोरोना के कारण अटके सौर ऊर्जा के प्रोजेक्ट्स के लिये राहत भरी ख़बर है कि केंद्र सरकार ने समय सीमा को कुल 98 दिन बढ़ा दिया है। सरकार ने लॉकडाउन के 68 दिनों के अलावा प्रोजेक्ट चला रही कंपनियों को 30 दिन का अतिरिक्त समय दिया है।    

हालांकि अलग-अलग राज्यों में लॉकडाउन का समय और स्वरूप अलग अलग है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु और झारखंड ने 31 जुलाई तक लॉकडाउन बढ़ा दिया है। शहरों से लोगों के पलायन के कारण कंपनियों को मज़दूरों की दिक्कत का सामना भी करना पड़ रहा है। कंपनियों ने इसी वजह से कहा था कि सरकार उन्हें प्रोजेक्ट पूरा करने के लिये 6 महीने और वक़्त दे।

साल 2020-21: सौर ऊर्जा में बढ़त 15% कम होगी

रेटिंग एजेंसी आईसीआरए के मुताबिक चालू वित्त वर्ष (2020-21) में केवल 5.5 गीगावॉट की सौर ऊर्जा बढ़ोतरी हो पायेगी। पहले अंदाजा था कि इस वित्त वर्ष में करीब 7.5 गीगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा  पैनल लगेंगे लेकिन कोरोना की चोट के कारण अब 15% कम एनर्जी एडिशन का अनुमान है। एजेंसी के मुताबिक लॉकडाउन के बिजली की मांग घटी जिससे वितरण कंपनियों की कमाई में गिरावट दर्ज हुई है। इस वजह से इस सेक्टर के कर्ज़ डूबने का संकट खड़ा हो गया है। तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में भुगतान में 10-12 महीनों की देरी हो रही है।

उधर एक दूसरे अध्ययन के मुताबिक भारत अगले 5 साल में  कुल 60 गीगावॉट के ही साफ ऊर्जा संयंत्र लगा पायेगा। इस रिपोर्ट में 2025 तक सालाना 12 गीगावॉट के क्लीन एनर्जी एडिशन का अनुमान है। सरकार का लक्ष्य 2022 तक कुल 175 गीगावॉट और 2030 तक 450 गीगावॉट साफ ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करना है। इस साल 31 मार्च तक भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 32.2 गीगावॉट और पवन ऊर्जा क्षमता 37.6 गीगावॉट है।

एनटीपीसी माली में लगायेगा 500 मेगावॉट का सोलर प्लांट

सरकारी कंपनी एनटीपीसी पश्चिम अफ्रीका के माली में 500 मेगावॉट का सोलर पार्क लगाने में मदद करेगी। यह प्रोजेक्ट इंटरनेशनल सोलर अलायंस के तहत चलाया जा रहा है। एनटीपीसी ने तय किया है कि वह सोलर अलायंस के अन्य सदस्य देशों  में कुल 10,000 मेगावॉट के  ऐसे प्रोजेक्ट लगाने में मदद करेगा। अलायंस का मुख्यालय भारत में है और कुल 121 देश इसके सदस्य हैं हालांकि चीन इसका सदस्य नहीं है। जहां चीन वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट के तहत कई देशों के साथ रिश्ते मज़बूत कर रहा है वहीं भारत के लिये इंटरनेशनल सोलर अलायंस तमाम देशों के साथ सहयोग और रिश्ते बनाने का का ज़रिया है।


बैटरी वाहन 

नई शुरुआत: नीदरलैंड और बेल्जियम ने स्वचालित पूर्णत: बैटरी से चलने वाली विशाल नावें उतारी हैं जो भविष्य में जल परिवहन में क्रांति कर सकती हैं | Photo: Clean Technica

नीदरलैंड और बेल्जियम ने बनाई स्वचालित बैटरी नाव

नीदरलैंड और बेल्जियम ने दुनिया की पहली बड़ी बैटरी बोट तैयार की हैं जो जल मार्ग से कंटेनर ढो सकेंगी। इसके लिये यूरोपियन यूनियन ने 60 लाख पाउंड की  सब्सिडी दी है।  यह बोट पूरी तरह से साफ ऊर्जा से चलेंगी। ‘टेस्ला ऑफ कैनाल के नाम से’ बनाई गई ये नावें ज़ीरो इमीशन और यह बेहद कम आवाज़ करती हैं। एक बार चार्जिंग के बाद यह नावें 15 घंटे तक चल सकती हैं। यह नीदरलैंड और बेल्जियम के तटों के बीच हर रोज़ 425 टन सामान  लाने ले जाने का काम करेंगी।

अमेरिका में आयेगी देश की पहली हेवी ड्यूटी बस

अमेरिका के उत्तर-पूर्वी राज्य कनेक्टिकट में देश की पहली पूर्णत: स्वचालित और बैटरी से चलने वाली ट्रांजिट बस आयेगी। चालीस फुट की तीन बसें अमेरिका की न्यू फ्लायर कंपनी ने बनाई हैं और हेवी ड्यूटी ट्रांसपोर्ट में यह उत्तरी अमेरिका का पहला स्वचालित प्रोजेक्ट होगा।

जर्मनी: कार बाज़ार में मंदी लेकिन बैटरी वाहनों का उम्दा प्रदर्शन

जर्मनी में साल 2020 की पहली छमाही में नई कारों का पंजीकरण 35% घटा और पिछले साल के मुकाबले निर्यात में 40% गिरावट दर्ज हुई। यह कोरोना महामारी का असर ही है जिसके कारण जर्मनी के कार बाज़ार में पिछले 30 साल का सबसे ख़राब प्रदर्शन दर्ज हुआ है। इसके बावजूद बैटरी वाहनों के रजिस्ट्रेशन में इस साल पहली छमाही में 90% उछाल दर्ज किया गया है। पहली छमाही में इस साल बैटरी कारों की सेल 40% बढ़ी वहीं हाइब्रिड कारों की सेल में 190% की वृद्धि हुई।


जीवाश्म ईंधन

जानलेवा खिलवाड़: निवेली थर्मल प्लांट में दो धमाकों के बाद उसके विस्तारीकरण की योजना पर सवाल खड़े हो गये हैं | Photo: One India

निवेली थर्मल प्लांट में दूसरा धमाका, प्लानिंग पर उठे सवाल

तमिलनाडु के निवेली थर्मल पावर स्टेशन में पिछले हफ्ते दो महीने के भीतर दूसरा धमाका हुआ। इस धमाके में 6 लोगों की जान चली गई और 17 लोग घायल हो गये। माना जा रहा है कि यह धमाका ओवरहीटिंग और बॉयलर में अत्यधिक प्रेशर के कारण हुआ।  इसके अलावा प्लांट के रखरखाव में कमी की भी जांच हो रही है। देश में हर ताप बिजलीघर को 20 साल बाद जांच की प्रक्रिया से गुजरना होता है और उसके बाद ही उसके अगले 5 सालों के लिये एक्सटेंशन मिलता है।

इस थर्मल प्लांट की चारों यूनिट – जिन्हें दूसरे चरण के लिये एक्सटेंशन मिला था – अब मुआयने के लिये बन्द कर दी गई है। अब इन्हें फिट पाये जाने पर ही अगले 15-20 सालों के लिये एक्सटेंशन दिया जा सकता है। 

कोयला खत्म करने के लिये जर्मनी का क़ानून, हम्बक का जंगल बचा

जर्मनी ने 2038 से कोयला खनन और कोल पावर का इस्तेमाल बन्द करने के लिये कानून पास किया है। इसके लिये प्रभावित इलाकों को 4000 करोड़ यूरो का मुआवज़ा दिया जायेगा। कोयले से छुटकारे की दिशा में उठाये जा रहे इन कदमों को 2026, 2029 और 2032 में रिव्यू किया जायेगा और यह देखा जायेगा कि क्या पूरी तरह से 2035 तक कोल पावर का इस्तेमाल बन्द हो सकता है।

जर्मनी के इस कदम से बोन के पास स्थित हम्बक के जंगलों को बचाया जा सकता है जहां दुनिया की सबसे बड़ी थर्मल पावर कंपनियों में से एक RWE खनन की कोशिश में है। RWE को 2029 तक अपने प्लांट बन्द करने के लिये 260 करोड़ यूरो का मुआवजा दिया जा रहा है।

स्पेन ने बन्द किये आधे कोल प्लांट, 2025 तक हो सकता है कोयला मुक्त

यूरोपीय कोल पावर कंपनियों को नये उत्सर्जन नियमों का पालन करना कठिन और कोयले से बिजली बनना महंगा पड़ रहा है। इसीलिये स्पेन में 15 में से 7 कोयला बिजलीघरों को बन्द कर दिया है और कंपनियां सस्ते विकल्पों को अपना रही हैं। इन बिजलीघरों का कुल क्षमता 4,630 मेगावॉट थी और कुल 1,100 लोगों का रोज़गार इससे जुड़ा था। अब ये कंपनियां बिजली बनाने के लिये गैस या साफ ऊर्जा विकल्प अपनायेंगी। जापान भी 2030 तक अपने करीब 100 ऐसे बिजलीघरों को बन्द कर सकता है जो पुराने हैं और अच्छा काम नहीं कर रहे। जापान का यह कदम पेरिस क्लाइमेट डील के तहत होगा जिसमें उसने वादा किया है कि वह 2030 तक – 2013 के स्तर पर-  अपने इमीशन 26% कम करेगा।