चक्रवातों और प्रदूषण की मार से घिरे हम

क्लाइमेट साइंस

एक और चक्रवात: बुधवार रात को चक्रवात निवार पुद्दुचेरी के पास समुद्र तट से टकराया। ऐसे चक्रवातों की संख्या पिछले एक दशक में बढ़ी है | Photo: The Weather Channel

चक्रवाती तूफान निवार के कारण पूर्वी तट पर भारी बारिश

बंगाल की खाड़ी से उठे चक्रवाती तूफान निवार में कम से कम 3 लोगों की मौत हो गई और कुछ लोगों को घायल होने की ख़बर है। यह  चक्रवाती तूफान निवार बुधवार देर रात पुडुचेरी के पास समुद्र तट से टकराया था और रात करीब 11.30 बजे हुये लैंडफॉल के बाद यह प्रक्रिया  3 घंटे चली। गुरुवार सुबह इस तूफान की रफ्तार कम होनी शुरू हुई और रफ्तार भी घटकर 65 से 75 किलोमीटर प्रतिघंटा रह गई। इस तूफान की वजह से भारत के दक्षिण पूर्वी तट पर भारी बारिश हुई। मारे  गये तीनों लोग तमिलनाडु के हैं।  

पुदुचेरी में 20 घंटों में 20 सेंटीमीटर पानी बरसा। तूफान के कारण कम से कम 20 लाख लोगों को अपने घरों से हटाया गया और 250 अस्थॉयी बसेरे बनाये गये।  पुदुचेरी और तमिलनाडु में गुरुवार को एयरपोर्ट और मेट्रो सेवायें बन्द रहीं और सरकार को छुट्टी घोषित करनी पड़ी। ज़्यादातर चक्रवाती तूफान बंगाल की खाड़ी से उठते हैं और भारत के पूर्वी तट पर ही टकराते हैं।

इससे पहले चक्रवात निसर्ग पूर्वी तट पर आया था। पिछले एक दशक में इन तूफानों की आवृत्ति (frequency) और ताकत लगातार बढ़ी है। इनसे न केवल लोगों को बार-बार विस्थापित होना पड़ता है बल्कि यह उनकी रोज़ी रोटी पर भी आफत लेकर आते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि चक्रवातों के स्वभाव में बदलाव के पीछे धरती का बढ़ता तापमान भी ज़िम्मेदार है।

तापमान 2 डिग्री बढ़ने मौसमी आपदायें होंगी 5 गुना

एक अध्ययन से पता चला है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव वाला क्षेत्रफल और आबादी दोनों दोगुने से अधिक हो गई हैं। यह प्रभाव 6 किस्म की मौसमी आपदाओं के रूप में दिखेगा जिसमें चक्रवाती तूफान, सूखा, नदियों में बाढ़, जंगल में आग और हीटवेव (लू के थपेड़े) शामिल हैं।   जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा ये आपदायें अधिक विनाशकारी होती जायेंगी।  स्टडी से पता चला है कि तापमान में 2 डिग्री की बढ़त विनाशलीला के वर्तमान प्रभाव को पांच गुना बढ़ा सकती है। 

बढ़ सकती हैं केपटाउन ‘डे-ज़ीरो’ जैसी घटनायें

दक्षिण अफ्रीका में 2018 में सूखे के जो हालात पैदा हुये वैसी घटनायें आने वाले दिनों में दुनिया में बार-बार देखने को मिल सकती हैं। अमेरिका की स्टेंफर्ड यूनिवर्सिटी के पृथ्वी विज्ञान विभाग और नेशनल ओसिनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन की जियोफिजिकल फ्लूइड डायनामिक्स लेबोरेट्री  के शोध में यह बातें कही गई हैं। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस (PNAS) में प्रकाशित हुआ है।

दो साल पहले दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन और आसपास के इलाकों में निरंतर सूखे की वजह से हालात बहुत खराब हो गये थे और सभी जलाशयों का पानी 20% कम हो गया था। ऐसे में लग रहा था कि एक वक्त नगरपालिकाओं पानी की सप्लाई बन्द करनी पड़ेगी। इसे ही ‘डे-ज़ीरो’ कहा जाता है। हालांकि तब जाड़ों में हुई बारिश ने हालात काबू से बाहर होने से बचा लिये लेकिन रिसर्च बताती है कि अब ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते असर के कारण ऐसी घटनायें दुनिया के कई हिस्सों में बार-बार होंगी। महत्वपूर्ण है कि भारत के कई हिस्सों में भी लम्बे सूखे की घटनायें बढ़ रही हैं और क्लाइमेट चेंज को इसके लिये ज़िम्मेदार माना जा रहा है।

ग्लोबल वॉर्मिंग: सर्दियों में जमी झील और नदियों पर ख़तरा

ग्लोबल हीटिंग का असर ऐसा है कि अब दुनिया में बहुत ठंडी जगहों पर झील और नदियों पर जाना खतरनाक होगा। शोधकर्ताओं ने पाया है कि अक्सर ठंड में जमी हुई झीलों और नदियों में दुर्घटनायें हो रही हैं क्योंकि बढ़े तापमान के कारण आइस की परत बहुत पतली और कमज़ोर हो जाती है। कनाडा में शोधकर्ताओं ने 1990 के बाद से 10 देशों में करीब 4000 डूबने की घटनाओं का अध्ययन किया और यह पाया कि अधिक तापमान डूबकर मरने की घटनाओं से जुड़ा हुआ है। कनाडा की यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता कहते हैं कि डूबकर मरने की आधे से अधिक घटनाओं का जाड़ों में बढ़ते तापमान और गर्म हवा से रिश्ता है। कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में विंटर स्पोर्ट्स एक्टिविटी काफी लोकप्रिय हैं जिन पर अब ख़तरा मंडरा रहा है। यह भी देखने में आया है कि मरने वालों में ज़्यादातर कम उम्र के लोग या आदिवासी समुदाय के हैं। महत्वपूर्ण है कि  आदिवासी अपने जीवन यापन के लिये नदियों और झीलों के पास जाते रहते हैं और दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं।


क्लाइमेट नीति

फास्ट क्लीयरेंस: सरकार ने तय किया है कि प्रोजेक्ट क्लीयर करने वाली कमेटी की बैठक अब हर महीने कम स कम दो बार हुआ करेगी | Photo: Twitter.com

फास्ट ट्रैक क्लायरेंस: कमेटी की बैठक महीने में दो बार

विकास परियोजनाओं को तेज़ी से पास करने के लिये अब एक्सपर्ट अप्रेज़ल कमेटी (EAC) की बैठक महीने में दो बार हुआ करेगी। यह कमेटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट को देखती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 18 नवंबर को फैसला लिया जिसमें कहा गया है कि महीने में कम से कम दो बार इस कमेटी की बैठक हो यानी किसी भी दो बैठकों के बीच में 15 दिन से अधिक का फासला न हो।  इस शासनादेश में कहा गया है कि सरकार के संज्ञान में आया है कि पर्यावरणीय क्लीयरेंस (EC) देने में कई कारणों से देरी हो रही है जिससे बचा जा सकता है। अब नये आदेश के मुताबिक EAC उन प्रोजक्ट्स को क्लीयर कर सकती है जिन्हें कमेटी की बैठक के 10 दिन पहले जमा किया गया हो। पहले यह मियाद न्यूनतम 15 दिनों की थी यानी कमेटी उसी प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करती थी जो बैठक से कम से कम 15 दिन पहले जमा किया गया हो।

मेगा प्रोजेक्ट कर रहे हैं जंगलों को तबाह

खनन, बिजलीघर, रेल लाइन और सड़क निर्माण से जुड़े बड़े-बड़े प्रोजेक्ट दुनिया भर में जंगलों को तबाह कर रहे हैं और इससे जलवायु परिवर्तन को काबू करने की दिशा में किये जा रहे प्रयास निष्फल हो रहे हैं। दक्षिण अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य अफ्रीका में खासतौर पर यह देखने में आ रहा है घने जंगलों को इन प्रोजेक्ट्स के लिये तबाह किया जा रहा है। यह बात शोध और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े संगठन न्यूयॉर्क डिक्लयरेशन ऑफ फॉरेस्ट एसेसमेंट पार्टनर्स की एक रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक आज दुनिया के आधे से अधिक बड़े माइनिंग प्रोजेक्ट – जिनकी संख्या 1,500 से अधिक है –   घन जंगलों में हैं।

साल 2014 में 50 देशों और दुनिया की 50 बड़ी कंपनियों ने इस घोषणापत्र में दस्तखत किये कि 2020 तक जंगलों का कटान 50% घटाया जायेगा और 2030 तक बन्द कर दिया जायेगा लेकिन 2020 का लक्ष्य बिल्कुल हासिल नहीं हो सका और जंगलों का कटान बढ़ रहा है।

युवाओं का जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन

कोरोना महामारी के कारण इस साल ग्लासगो में होना वाला जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (CoP-26) नहीं हो रहा है और उसे अगले साल नवंबर तक टाल दिया गया है लेकिन दुनिया के युवा क्लाइमेट एक्टिविस्ट्स ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज़ उठाने का तरीका ढूंढ लिया है। दुनिया भर के 150 देशों के 350 से अधिक क्लाइमेट एक्टिविस्ट अलग अलग टाइम ज़ोन में कई वर्कशॉप और संवाद कर रहे हैं। आयोजकों का कहना है कि इससे वह पिछले सम्मेलनों के मुकाबले करीब 1500 गुना कार्बन इमीशन रोक पायेंगे। गुरुवार, 19 नवंबर से शुरूहुए इस सम्मेलन में क्लाइमेट एक्सपर्ट्स से विमर्श और संवाद के बाद दुनिया की सरकारों के आगे क्लाइमेट एक्शन के लिये एक मांग पत्र रखा जायेगा। इसका मकसद है कि सरकारें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने के लिये प्रभावी कानून बनायें और उचित कदम उठायें।

जापान में क्लाइमेट इमरजेंसी

जापान द्वारा ज़ीरो इमीशन का लक्ष्य घोषित किये जाने के कुछ ही दिनों के बाद वहां के सांसदों ने क्लाइमेट आपातकाल घोषित करने के पक्ष में वोट दिया। इसका मकसद सरकार पर ज़ीरो इमीशन हासिल करने के लिये कड़े कदम हेतु दबाव बनाना है। जापान से पहले ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस और यूरोपीय यूनियम ने इस लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प किया है। यह लक्ष्य हासिल करना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है पर चक्रवातों, जंगल में लग रही भीषण आग और भयानक बाढ़ के प्रभावों को देखते हुये इन देशों ने ज़ीरो इमीशन लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया है।


वायु प्रदूषण

बच्चों पर आफत: नये शोध बताते हैं कि गांव और शहरों की हवा में कोई बड़ा अंतर नहीं रह गया। अधिक प्रदूषित दिनों में इमरजेंसी वॉर्ड में भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ रही है | Photo: Newsmobile

वायु प्रदूषण: इमरजेंसी में भर्ती बच्चों की संख्या 30% बढ़ी

राजधानी दिल्ली में दो साल तक की गई एक स्टडी बताती है कि प्रदूषण के बढ़ने के साथ-साथ इमरजेंसी रुम में उन बच्चों के संख्या भी बढ़ रही है जिन्हें सांस की तकलीफ है। इस अध्ययन के तहत जून 2017 से फरवरी 2019 के बीच अस्पताल में भर्ती 19,120 बच्चों के डाटा का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि अधिक और मध्यम प्रदूषण स्तर वाले दिनों में सांस की तकलीफ के साथ अस्पताल पहुंचने वाले बच्चों की संख्या कम प्रदूषण वाले दिनों के मुकाबले 21%-28% अधिक थी। बड़े प्रदूषकों के रूप में सल्फर डाइ ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड की पहचान की गई है। हालांकि अस्पताल में इन भर्तियों का पीएम 2.5 और पीएम 10 में बढ़ोतरी के साथ कोई बड़ा संबंध नहीं दिखा। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्वास्थ्य पर पार्टिकुलेट मैटर का हानिकारक प्रभाव तुरंत न दिखना इसकी वजह हो सकती है।

घने प्रदूषण के बीच कोरोना का ग्राफ भी बढ़ा  

तेज़ हवा बहने के बावजूद देश को बड़े शहरों में प्रदूषण का ऊंचा स्तर बना हुआ है और कोरोना से हो रही मौतों में भी बढ़ोतरी हो रही है। खतरनाक पीएम 2.5 कणों के ऊंचे स्तर के वजह से सांस के मरीज़ों को खासी तकलीफ हो रही है और फेफड़ों और दिल की बीमारियां बढ़ रही हैं। पिछले हफ्ते पूरे देश में कोरोना के कारण हो रही मौतों में सबसे अधिक 21% राजधानी दिल्ली में हुईं। आंकड़े के मुताबिक 2019 के मुकाबले इस साल अक्टूबर में अधिक प्रदूषण रहा और नवंबर में भी हालात अच्छे नहीं हैं।  रिसर्च बताती है कि अधिक प्रदूषण के दिनों में न केवल फ्लू के कारण अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है बल्कि मरने वालों की संख्या भी अधिक है।

गांवों की हवा भी शहरों जैसी ही प्रदूषित

भारत और अमेरिका का साझा अध्ययन बताता है कि ग्रामीण भारत की हवा बड़े महानगरों से बहुत अधिक साफ नहीं है। आईआईटी – मुंबई और अमेरिका की कोलोरेडो स्टेट यूनिवर्सिटी ने भारत के 6 क्षेत्रों में पीएम 2.5 कणों की गणना की है। गंगा का मैदानी क्षेत्र सबसे अधिक प्रदूषित इलाका है। यहां पाया गया कि पीएम 2.5 का स्तर साल भर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहता है। इसी ज़ोन में नॉन-मेट्रो इलाके में प्रदूषण 90 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज किया गया।

वैज्ञानिकों का कहना है कि वायु प्रदूषण के मामले में दक्षिण और पूर्वी क्षेत्र भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में हाल एक सा ही है। दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों में पीएम 2.5 की मात्रा 30-50 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज की गई जबकि शहरी इलाकों में यह औसतन 50 माइक्रोग्राम थी। रिसर्चरों का कहमा है कि हर साल दिल और फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे 10.5 लाख लोगों की मौत पीछे वायु प्रदूषण का हाथ रहता है। इसमें 69% मौतें शहरी इलाकों के बाहर होती हैं। ग्रामीण इलाकों में करीब 7 लाख लोग हर साल वायु प्रदूषण से मरते हैं।

ब्रिटेन में 2030 से नहीं बिकेंगी पेट्रोल कारें

ब्रिटेन ने फैसला किया है कि साल 2030 से देश के भीतर पेट्रोल कारों और वैन की बिक्री पर पाबंदी होगी।  पहले ब्रिटेन में यह पाबंदी 2035 से लागू होनी थी लेकिन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इन दिनों “ग्रीन रिवोल्यूशन” का नारा बुलंद किये हुये हैं और 2050 तक उनके देश द्वारा तय नेट ज़ीरो इमीशन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में इसे एक पहल के तौर पर दिखाना चाहते हैं। ब्रिटेन पिछले साल जी-7 ग्रुप का पहला देश था जिसने नेट ज़ीरो इमीशन हासिल करने के लिये कानून बनाया। ज़ाहिर है कि ब्रिटेन को इसके लिये अपने बिजली उत्पादन के साथ साथ ट्रांसपोर्ट और लाइफ स्टाइल में बड़े बदलाव लाने होंगे और आवाजाही के लिये बैटरी कारों का इस्तेमाल बढ़ेगा। जॉनसन के मुताबिक सरकार ने इसके लिये 1,200 करोड़ पाउंड देने की घोषणा की है और इसका तीन गुना पैसा प्राइवेट सेक्टर कंपनियां लगायेंगी। इस बदलाव से करीब 2.5 लाख कुशल कर्मचारियों को ग्रीन सेक्टर में नौकरियां मिलेंगी।


साफ ऊर्जा 

नया पायदान: सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन की ताज़ा नीलामी में कंपनियों ने रिकॉर्ड निचले दामों में बिजली देने का करार किया है। माना जा रहा है कि यह वितरण कंपनियों के भरोसे से संभव हुआ है | Photo: Recharge News

सोलर की दरों में रिकॉर्ड गिरावट

भारत ने सोलर पावर की दरों में नया पायदान हासिल किया है।  सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) की 1,070 मेगावॉट प्रोजेक्ट की बिडिंग में देसी और विदेशी कंपनियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और पहले के 2.36 रु प्रति यूनिट का रिकॉर्ड टूट गया। इस नीलामी में 2 रुपये प्रति यूनिट का दाम तय हुआ है। IEEFA के टिम बकले  ने इस डील के बाद ट्वीटर पर कोयले के लिये “गेम ओवर” लिखा। नीलामी में 2 रु की दर पर सिंगापुर की कंपनी ने 400 मेगावॉट और सऊदी अरब की कंपनी ने  200 मेगावॉट का ठेका हासिल किया। बचा हुआ 470 मेगावॉट का ठेका एनटीपीसी  को 2.01 रु की दर पर मिला।

विशेषज्ञ बताते हैं कि इन कंपनियों ने इतनी सस्ती दरों पर बिजली देने का फैसला इसलिये किया क्योंकि राजस्थान वितरण कंपनियां  ने सारी बिजली खरीदने पर सहमति कर दी है और बिजली खरीद को लेकर कोई अनिश्चितता नहीं है।

कोल इंडिया का मेगा सोलर प्लान  

भारत की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी अब सोलर पावर के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है। कोल इंडिया 3,000 मेगावॉट के सोलर प्लांट्स में 5,650 करोड़ रुपये निवेश कर रही है। कोल इंडिया अभी देश की सबसे बड़ी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक कही जाती है लेकिन उसका इरादा साल 2023-24 तक नेट ज़ीरो इमीशन कंपनी बनना है। अभी देश की 55% से अधिक बिजली कोयला बिजलीघरों से आती है और कुल बिजली स्थापित (installed capacity) क्षमता (373 GW) का केवल 10% (36 GW) ही सोलर पावर है। हालांकि स्थापित क्षमता में कुल साफ ऊर्जा – जिसमें सोलर के साथ पवन, हाइड्रो, न्यूक्लियर आदि भी शामिल है – का हिस्सा 25% है।

सरकार ने सोलर टेंडर्स के साथ ज़मानत की दरें घटाई

कोरोना महामारी के असर को देखते हुये सरकार ने सोलर टेंडर्स के साथ जमा होने वाला परफोर्मेंस सिक्योरिटी डिपोज़िट (PSD) यानी ज़मानत घटा दी है। अब यह ज़मानत ठेके की कुल राशि की 3% होगी जबकि पहले टेंडर राशि की 5 से 10 प्रतिशत PSD जमा करनी पड़ती थी। अधिकारियों का कहना है कि वित्त मंत्रालय के इस आदेश से कंपनियों को मंदी के दौर में प्रोजेक्ट चलाने में सहूलियत होगी। यह सुविधा उन ठेकों पर लागू नहीं होगी जिन पर विवाद है और अदालत में सुनवाई चल रही है।


बैटरी वाहन 

असली या फर्ज़ी: ट्रांसपोर्ट एंड इन्वायरेंमेंट नाम के एक क्लाइमेट कैंपेन ग्रुप ने हाइब्रिड वाहनों की उपयोगिता पर सवाल खड़े किये हैं और उन्हें मिलने वाली सब्सिडी खत्म करने की मांग की है | Photo: Dealerk.com

यूरोप: ‘फर्ज़ी’ हाइब्रिड वाहनों को सब्सिडी खत्म करने की मांग

यूरोपियन के क्लाइमेट कैंपेन ग्रुप ट्रांसपोर्ट एंड इन्वारेंन्मेंट (T&E) ने सरकारों से मांग की है कि हाइब्रिड वाहनों से सब्सिडी खत्म की जाये क्योंकि ये वाहन विज्ञापनों में CO2 इमीशन का जो स्तर बताते हैं वास्तव में उससे कहीं ज़्यादा कार्बन छोड़ते हैं। इस संगठन ने इन वाहनों को “फर्ज़ी कार” कहा है जो टैक्स में फायदे के लिये बनाई जा रही हैं। अपने दावे के लिये संगठन ने तीन लोकप्रिय हाइब्रिड कारों, मित्सुबिशी आउटलैंडर, द वोल्वो XC60 और बीएमडब्लू X5 पर टेस्टिंग को आधार बनाया है।  बीएमडब्लू ने अभी इन आरोपों पर कुछ नहीं कहा है जबकि वोल्वो का कहना है कि उसके वाहनों के उत्सर्जन तय मानदंडों के भीतर हैं। मित्सुबिशी ने संगठन के स्वतंत्र टेस्ट की प्रामाणिकता पर सवाल उठाये हैं।

टेस्ला स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (S&P) – 500 का हिस्सा बनी

बैटरी वाहनों की अग्रणी कंपनी टेस्ला अब स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस & पी) – 500 का हिस्सा बन गई है। एस & पी – 500 अमेरिकी शेयर बाज़ार में लिस्टेड 500 सबसे बड़ी कंपनियों की स्टॉक्स की सेहत बताने वाला सूचकांक है। टेस्ला 820 करोड़ डॉलर के मार्केट कैप के साथ दुनिया की जानी मानी कंपनियों में गिनी जाती है और एस & पी – 500 में शामिल होने की ख़बर आने के बाद कंपनी के शेयर में 13% का उछाल दर्ज किया गया। महत्वपूर्ण है कि टेस्ला ने पिछली 5 तिमाहियों में लगातार मुनाफा कमाया है। इस साल की तीसरी तिमाही में कंपनी को  877 करोड़ डॉलर का मुनाफा हुआ है।


जीवाश्म ईंधन

Photo - The Wire

भारत में कोयला निवेश में भारी गिरावट

कोयला और साफ ऊर्जा में निवेश का एक तुलनात्मक विश्लेषण बताता है कि 2018 के मुकाबले 2019 में देश के भीतर कोयले में निवेश 126% कम हुआ। यह रिपोर्ट सेंटर फॉर फाइनेंसियल एकांउटिबिलिटी ने एक जनवरी और 31 दिसंबर 2019 के बीच कोयले और साफ ऊर्जा के 43 प्रोजेक्ट्स का अध्ययन कर तैयार की है। जहां 2018 में कोल प्रोजेक्ट्स में 6,081 करोड़ रुपये निवेश हुये वहीं 2019 में यह आंकड़ा गिरकर 1,100 करोड़ रह गया। इसके उलट साफ ऊर्जा के 41 प्रोजेक्ट्स (कुल 5150 मेगावॉट क्षमता) में साल 2019 में कुल 22,971 करोड़ का निवेश हुआ। हालांकि पवन ऊर्जा निवेश में 30% गिरावट हुई लेकिन सोलर में 10% का उछाल हुआ।

जीवाश्म ईंधन: 47 धर्म संस्थानों ने दूर रहने की घोषणा की

पिछले हफ्ते दुनिया के 47 धर्म संस्थानों ने एक साथ घोषणा की है वो जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को बन्द करेंगे। घोषणा करने वाले संस्थानों में 21 देशों के कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और यहूदी समुदाय शामिल हैं और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बन्द करने या घटाने के लिये यह धर्म संस्थानों द्वारा अब तक का सबसे बड़ा ऐलान है। यह घोषणा क्लाइमेट चेंज को लेकर हुई पेरिस संधि की पांचवीं वर्षगांठ के मौके पर हुई है। उम्मीद है कि जी-20 देशों की बैठक से पहले हुई इस घोषणा से उन देशों पर दबाव पड़ेगा जहां जीवाश्म ईंधन का बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है।

दक्षिण अफ्रीका: सबसे बड़ी पावर कंपनी बना रही है नेट ज़ीरो इमीशन की योजना 

दक्षिण अफ्रीका की बड़ी पावर कंपनी एस्कॉम होल्डिंग लिमिटेड ने कहा है कि वह 2050 तक नेट ज़ीरो इमीशन हासिल करने के लिये योजना बना रही है। यह कंपनी कोयले से बिजली बनाती है और देश में ग्रीन हाउस गैसों की सबसे बड़ी उत्सर्जक है। कंपनी ने कहा कि इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिये उसका “एक आकांक्षी दृष्टिकोण” है जिसमें लोगों को नौकरियां देना शामिल है। एस्कॉम सौ साल से पुरानी कंपनी है जो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर कर रही है और अगर वह अपनी बातों पर अमल करती है तो यह उसके ट्रैक रिकॉर्ड में एक नाटकीय बदलाव होगा।