तबाही के बाद विदाई: इस साल मानसून देर से आया, देर से गया और तबाही मचा कर गया।

भारत: एक महीने की देरी से विदा हुआ मॉनसून

पिछले 58 साल में पहली बार भारत में मॉनसून एक महीने की देरी से अक्टूबर में आकर थमा है। इस साल 10 अक्टूबर को मॉनसून की बारिश थमी। इससे पहले 1961 में 1 अक्टूबर को मॉनसून विदा होना शुरू हुआ था। भारत जैसे देश में यह काफी अजब बात है जहां लोग 1 सितंबर से नया सीज़न शुरू मानते हैं और उसी हिसाब से फसल की तैयारी करते हैं। महत्वपूर्ण है कि इस साल औसत बरसात (Long Period Average – LPA) सामान्य से 110% अधिक हुई जबकि जून के अंत तक बरसात में 33% की कमी थी।

भारी बरसात से इस साल सैकड़ों लोगों की जानें भी गईं और देश के कई हिस्सों में तबाही हुई। गृह  मंत्रालय के मुताबिक अब तक 2100 लोग मारे गये हैं और 46 लापता हैं। बरसात से मची तबाही में 22 राज्यों के कुल 25 लाख लोग प्रभावित हुये।

क्लाइमेट चेंज: अब लू के थपेड़े होंगे और विकराल  

आपको याद होगा कि बाढ़ के प्रकोप से पहले बिहार में इस साल हीटवेव यानी लू की वजह से करीब 200 लोगों की जान ले ली थी और सैकड़ों लोगों को अस्पताल में भरती होना पड़ा। दुनिया के कई हिस्सों में प्रचंड लू का असर दिखा। अब एक नये शोध में पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के साथ लू की घटनायें ही नहीं बढ़ेंगी बल्कि इनका प्रभाव क्षेत्र भी फैलता जायेगा। इस प्रभाव क्षेत्र में औसतन 50% की बढ़ोतरी हो सकती है। अब इन्वायरमेंटल रिसर्च लैटर में छपे इस शोध के प्रमुख लेखक ब्रेड लियॉन का कहना है, “बड़ी हीटवेव का मतलब है कि अब अधिक बिजली की मांग और ग्रिड में पीक डिमांड बढ़ने का दबाव रहेगा क्योंकि लोग एसी जैसी सुविधाओं का अधिक इस्तेमाल करेंगे।”

 UK में गायब हो सकते हैं एक-चौथाई स्तनधारी: रिपोर्ट   

स्टेट ऑफ नेचुरल वर्ल्ड की रिपोर्ट के यूनाइटेड किंगडम में एक-चौथाई स्तनधारी विलुप्त होने के कगार पर हैं। जिन 7000 प्रजातियों का इस शोध में अध्ययन किया गया उनमें से 41% प्रजातियों की संख्या 1970 से लगातार कम हो रही है। शोध कहता है कि हर 7 में एक प्रजाति पर संकट मंडरा रहा है।

इसी शोध से यह भी पता चला है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से देश के वन्य जीवन और इकोलॉजी पर  “व्यापक बदलाव” हुये हैं। चिड़ियों, तितलियों, कीट-पतंगों और ड्रेगन फ्लाई की कई प्रजातियां अब हर दस साल  में 20 किमी उत्तर की ओर जाती दिख रही हैं।

CO2 इमीशन से घट रही उत्पादकता, जीडीपी में 2% की कमी    

क्लाइमेट चेंज के कारण कई आर्थिक क्षेत्रों में लाखों करोड़ का नुकसान हो रहा है क्योंकि अत्यधिक गर्मी से मज़दूरों की उत्पादकता घट रही है। तापमान बढ़ने और हीटवेव के पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है जो कि कार्बन इमीशन (उत्सर्जन)से लगातार बढ़ रही है। एक नये शोध के मुताबिक हर एक लाख करोड़ टन CO2 इमीशन से दुनिया में जीडीपी के 0.5% के बराबर श्रमिक उत्पादकता का नुकसान होता है। पिछले साल पूरी दुनिया में 4000 करोड़ टन CO2 उत्सर्जन हुआ। शोध कहता है कि अब तक खनन, कृषि और निर्माण क्षेत्र में कुल मिलाकर 2% जीडीपी का नुकसान हो चुका है।

Website |  + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.