हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक प्रवेश कर रहे पौधों की पत्तियों में,  फिर आते हैं जानवरों और मनुष्यों के भीतर: अध्ययन

नेचर में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया है कि पौधों की पत्तियाँ, जिनमें फसलें भी शामिल हैं, माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक को सीधे हवा से अवशोषित करती हैं, जिसे शाकाहारी और मनुष्य खाते हैं।

डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक (5 मिलीमीटर से कम व्यास के प्लास्टिक कण) और नैनोप्लास्टिक (1,000 नैनोमीटर से कम) कई रास्तों से पत्तियों में प्रवेश करते हैं, जिसमें स्टोमेटा और क्यूटिकल जैसी सतही संरचनाएँ शामिल हैं। 

शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्रीनहाउस में उगाई गई सब्जियों की तुलना में बाहर उगाई गई सब्जियों में माइक्रोप्लास्टिक्स – विशेष रूप से पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट और पॉलीस्टाइनिन – का स्तर 10 से 100 गुना अधिक था। लंबे समय तक जीवित रहने वाले पौधों और पुरानी बाहरी पत्तियों में युवा या आंतरिक पत्तियों की तुलना में माइक्रोप्लास्टिक की अधिक सघन मात्रा पाई गई।

देश के 77 शहरों में वायु गुणवत्ता के स्तर में सुधार, 23 में गिरावट  

​​एक नए विश्लेषण से पता चला है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी)  के तहत देश के 77 शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर में सुधार हुआ, लेकिन अन्य 23 शहरों में इसमें वृद्धि हुई। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषण में पाया गया है कि 2017-18 (जो कि एनसीएपी कार्यक्रम के तहत गणना के लिए एक आधार वर्ष है) की तुलना में पीएम10 (जो 10 माइक्रोन व्यास वाले मोटे प्रदूषक कण होते हैं) के स्तर में 23 शहरों में वृद्धि हुई, दो में कोई बदलाव नहीं हुआ और 77 शहरों में सुधार हुआ।

यह भी पाया गया कि एनसीएपी के तहत 130 शहरों में से 28 में अभी भी कंट्यूनियस एंबिएंट एयर क्वॉलिटी मॉनिटरिंग स्टेशन  (सीएएक्यूएमएस) नहीं हैं, जो दिखाता है कि रियल टाइम एयर क्वॉलिटी निगरानी के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाना बाकी है। सीआरईए टीम द्वारा 1 अप्रैल, 2024 से 31 मार्च, 2025 (वित्त वर्ष 24-25) की अवधि के लिए सीएएक्यूएमएस वाले शेष 102 शहरों के पीएम10 डेटा का विश्लेषण किया गया।

विश्लेषण में कहा गया है कि दिल्ली में (वित्त वर्ष 24-25) पीएम10 का सालाना स्तर सबसे अधिक 206 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया, जिसके बाद मेघालय में बर्नीहाट में 200 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पटना में 180 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया – ये सभी राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से तीन गुना अधिक है। पिछले वर्ष (वित्त वर्ष 23-24) की तुलना में, 69 एनसीएपी शहरों में पीएम10 के स्तर में कमी आई, जबकि 33 में वृद्धि देखी गई।

ड्रोन के ज़रिये समुद्र के प्रदूषण पर नज़र  

शोधकर्ताओं ने समुद्र जल में प्रदूषण का डाटा इकट्ठा करने के लिए एक विशेष ड्रोन तैयार किया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत काम करने वाले राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) ने एक इंडस्ट्री पार्टनर के साथ मिलकर यह ड्रोन बनाया है जिसका वज़न 85 किलोग्राम है और यह अपने साथ 25 किलो भार ले जा सकता है।

अपने विशेष सेंसरों की मदद से प्रदूषण के अलावा यह ड्रोन समुद्री टोपोग्राफी की जानकारी भी इकट्ठा करेगा। इस ड्रोन का आधा वज़न इसकी बैटरी के कारण है जो इसे करीब 45 मिनट तक उड़ा सकती है। इसे बनाने के लिए  सरकार के मिशन मौसम कार्यक्रम के तहत  2024 में प्रोजेक्ट शुरु किया गया। वैज्ञानिकों ने कहा है कि तेज़ हवाओं के साथ अन्य समुद्री परिस्थितियों का खयाल रखकर यह ड्रोन बनाया गया है।

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