भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 2023 में बढ़कर 37% तक पहुंच गई, लेकिन इससे केवल 18% वास्तविक बिजली आपूर्ति हुई। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ने एक रिपोर्ट में कहा कि 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता (73 गीगावाट सोलर, 45 गीगावाट पवज ऊर्जा, 47 गीगावाट हाइड्रो और 10 गीगावाट बायोएनेर्जी) स्थापित होने के बावजूद, उत्पादन कम है।
पवन और सोलर ऊर्जा से औसत वार्षिक उत्पादन पांच वर्षों में सिर्फ 11 गीगावाट था। अत्यधिक गर्मी के कारण बढ़ती बिजली की मांग इसकी प्रमुख वजह है। मई 2024 में बिजली का उपयोग पिछले वर्ष की तुलना में 14% बढ़ गया। सीमित स्टोरेज और ज्यादा मांग के कारण भारत ने कोयले और गैस से उत्पन्न होने वाली बिजली को वरीयता दी, जिससे ऊर्जा मिश्रण में अक्षय ऊर्जा की तुलना में जीवाश्म ईंधन का हिस्सेदारी बढ़ गई।
सौर ऊर्जा क्षमता वृद्धि में 25% की गिरावट
भारत ने 2025 की पहली तिमाही में सौर ऊर्जा क्षमता में 6.7 गीगावाट की वृद्धि की। मेरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, यह पिछले वर्ष की इसी अवधि में स्थापित 9 गीगावाट क्षमता से 25% कम है। यह 2024 की अंतिम तिमाही में जोड़ी गई 7.8 गीगावाट क्षमता से भी 14% कम है।
नई क्षमता में 5.5 गीगावाट लार्ज-स्केल सोलर परियोजनाओं से आया है। लगभग 19.8% हिस्सा ओपन एक्सेस इंस्टॉलेशन से आया है। लार्ज-स्केल सोलर से प्राप्त क्षमता पिछली तिमाही के मुकाबले 15% और पिछले साल के मुकाबले 36% कम हुई है।
रिपोर्ट में इस कमी की वजह मॉड्यूल की अधिक लागत, सीमित घरेलू आपूर्ति और कमजोर ट्रांसमिशन सिस्टम को बताया गया है।
पिछले एक दशक में 3 गुना बढ़ी भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता
भारत ने पिछले एक दशक में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में तीन गुना वृद्धि दर्ज की है। कुल स्थापित क्षमता अब 232 गीगावाट हो गई है, जबकि मार्च 2014 में यह 75.52 गीगावाट थी। सौर ऊर्जा की दरों में 80% गिरावट आई है और स्थापित सौर क्षमता 2.82 गीगावाट से बढ़कर 108 गीगावाट हो गई है।
पवन ऊर्जा क्षमता भी 21 से 51 गीगावाट तक पहुंच गई है। सौर मॉड्यूल उत्पादन 2 गीगावाट से बढ़कर 90 गीगावाट हो गया है, और बायोपावर 8.1 गीगावाट से 11.5 गीगावाट तक पहुंच गई है।
भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय क्षमता स्थापित करना है।
स्वच्छ ऊर्जा कंपनियों के टैक्स क्रेडिट रद्द कर सकती है अमेरिकी कांग्रेस
अमेरिकी ग्रीन फ्यूल कंपनी एचआईएफ ग्लोबल ने टेक्सास के माटागोर्डा काउंटी में 7 अरब डॉलर की ई-मीथनॉल फैक्ट्री स्थापित करने की योजना बनाई है। यह दुनिया की सबसे बड़ी ई-मीथनॉल फैक्ट्री होगी। यह संयंत्र हरित हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड से ई-मीथनॉल बनाएगा, जिससे जहाजों और विमानों को स्वच्छ ईंधन मिल सकेगा।
इससे से हजारों नौकरियां भी पैदा होंगी। हालांकि, कंपनी अभीतक निवेश पर अंतिम निर्णय नहीं ले पाई है क्योंकि रिपब्लिकन नेतृत्व वाली कांग्रेस क्लीन एनर्जी टैक्स क्रेडिट में कटौती कर सकती है। टैक्स क्रेडिट कम होने से तकनीकी लागत बढ़ सकती है और परियोजना मुश्किल में पड़ सकती है।
पिछले साल डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने बाद से ही स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं पर संकट मंडरा रहा है।
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