हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आरोपों से अडानी समूह को झटका लगने के दो सप्ताह के भीतर ही फ्रांसीसी कंपनी टोटल एनर्जीस ने समूह के साथ हुए हरित हाइड्रोजन परियोजना समझौते को निलंबित कर दिया था। टोटल एनर्जीस ने जून 2022 में भारत में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और बिक्री के लिए अडानी न्यू इंडस्ट्रीज लिमिटेड में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी प्राप्त करने के समझौते की घोषणा की थी।
यह सौदा अडानी समूह द्वारा अगले दशक में ग्रीन हाइड्रोजन में $50 बिलियन का निवेश करने की योजना का हिस्सा था। यह डील अब खटाई में पड़ गई है।
लेकिन इस तरह की चुनैतियां अब अडानी समूह तक ही सीमित नहीं रहेंगी। देश के सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा निवेशकों में से एक पर इस तरह के आरोप लगने का मतलब है कि अब विदेशी निवेशकों द्वारा लगभग हर भारतीय कंपनी के कॉर्पोरेट गवर्नेंस को बारीकी से परखा जाएगा।
ऐसे में एनर्जी ट्रांजिशन में पहले से ही कम हो रहे निवेशों के और घटने की संभावना है, जो भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों के लिए अच्छी खबर नहीं है।
वहीं वैश्विक ब्याज दरों के बढ़ने के साथ जहां एक ओर पूंजी की लागत बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट की मदद से अमेरिका साफ ऊर्जा में निवेश के अधिक अवसर पैदा कर रहा है।
भारत 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाना चाहता है। लेकिन अगर यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ तो देश को कुछ और समय तक कोयले पर निर्भर रहना पड़ सकता है।
एक अनुमान के अनुसार भारत को अगले 30 वर्षों में केवल कोयला खदानों और थर्मल पावर संयंत्रों के जस्ट ट्रांजिशन के लिए कम से कम 900 बिलियन डॉलर की जरूरत होगी।
इनमें से 600 बिलियन डॉलर निवेश के माध्यम से चाहिए होंगे और 300 बिलियन डॉलर के अनुदान/सब्सिडी की जरूरत कोयला उद्योग, श्रमिकों और समुदायों के ट्रांजिशन के लिए पड़ेगी।
रूफटॉप सोलर और पवन ऊर्जा की धीमी प्रगति के कारण भारत अक्षय ऊर्जा लक्ष्य से पिछड़ा: रिपोर्ट
ऊर्जा पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रूफटॉप सोलर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं की धीमी गति के कारण भारत 2022 तक 175 गीगावाट स्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका।
भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया था, जिसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन से 60 गीगावाट, बायो-पावर से 10 गीगावाट, और छोटे जल विद्युत से 5 गीगावाट क्षमता प्राप्त होनी थी।
लेकिन 31 दिसंबर, 2022 तक, देश में इसका 69 प्रतिशत, यानि 120.9 गीगावाट क्षमता ही स्थापित की जा सकी।
मेरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2022 में रूफटॉप सौर क्षमता में साल-दर-साल लगभग 4% की गिरावट के साथ सिर्फ 1.6 गीगावाट की वृद्धि की।
दिल्ली सरकार की नई नीति में ‘सामूहिक सौर पैनल’ पर ज़ोर
दिल्ली सरकार एक नई ड्राफ्ट सोलर पॉलिसी लेकर आई है, जिसके तहत छतों पर लगाए जाने वाले सौर पैनलों में बढ़ोत्तरी की जानी है।
इस नीति का लक्ष्य छतों पर लगे सोलर की क्षमता को बढ़ाकर 750 मेगावाट तक पहुंचाना है, और दिल्ली के बाहर के यूटिलिटी स्केल सोलर प्रोजेक्ट के तहत 5,250 मेगावाट क्षमता जोड़ी जानी है।
इस तरह अगले तीन सालों में, यानि 2025-26 तक सौर ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 6,000 मेगावाट तक पहुंचाना है।
गौरतलब है कि साल 2016 में आई सोलर नीति में ऐलान किया था कि 2020 के अंत तक रूफटॉप सेटअप, यानि लोगों के घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाकर 1,000 मेगावाट बिजली पैदा की जाएगी।
हालांकि, दिल्ली सरकार के मुताबिक, छतों पर सौर ऊर्जा से अभी तक 230 मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है।
यह उस लक्ष्य के 25 प्रतिशत से भी कम है जिसे तीन साल पहले प्राप्त कर लिया जाना चाहिए था।
लेकिन ग्राहकों और कंपनियों को इंसेंटिव देने और 500 वर्ग मीटर की छत वाली सरकारी इमारतों पर सोलर पैनल लगाना अनिवार्य किए जाने के बावजूद इतना ही हासिल हो सका है।
मौजूदा नीति में सरकार सामुदायिक सोलर रूफटॉप की अवधारणा भी लाई है जिसमें वह लोग, जो फ्लैट या अपार्टमेंट में रहते हैं या जिनकी छत छोटी है, साथ आकर किसी एक जगह पर सोलर पैनल लगवा सकते हैं और अपने-अपने निवेश के हिसाब से सौर ऊर्जा का फायदा ले सकते हैं।
यह सबकुछ ग्रुप नेट-मीटरिंग या वर्चुअल मीटरिंग की मदद से संभव किया जा सकता है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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