भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा था। इसमें 100 गीगावाट के साथ सबसे बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा का था।
इस 100 गीगावाट सौर ऊर्जा स्थापन में 40 गीगावाट ऐसे सौर पार्कों से प्राप्त की जानी थी जिनकी स्थापना ‘सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विकास हेतु योजना’ के तहत होनी थी। हालांकि भारत सरकार ने अब तक कुल 57 ऐसे सौर ऊर्जा पार्कों को मंज़ूरी दी है, जिनकी कुल क्षमता 39.2 गीगावाट है, लेकिन उनमें से अभी तक सिर्फ नौ सोलर पार्क चालू हो पाए हैं, जिनकी कुल क्षमता 8.08 गीगावाट है।
उसी प्रकार, सौर ऊर्जा से जुड़ी योजना पीएम-कुसुम, यानी ‘प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान’, के तहत सिंचाई के लिए किसानों को सौर पंप लगाने हेतु वित्तीय सहायता दी जानी थी, ताकि उन्हें डीज़ल पंप से सौर ऊर्जा की तरफ लाया जा सके।
साल 2022 तक इस योजना का लक्ष्य 25,750 मेगावाट की सौर क्षमता जोड़ने का था, जिसके लिए 34,422 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता की घोषणा की गई थी।
लेकिन 15 दिसंबर 2022 को लोकसभा में दिए गए एक जवाब के अनुसार, अभी तक इस योजना पर सिर्फ 1,184 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए हैं। इस योजना के तहत जहां 20 लाख स्टैण्ड-अलोन पंप लगाए जाने थे, वहीं अभी तक सिर्फ 78,940 पंप ही लगे हैं।
संसदीय समितियों ने इन दोनों योजनाओं के ख़राब प्रदर्शन पर सरकार की आलोचना की है।
भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी
केंद्र ने नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दे दी है। इस मिशन के तहत 2030 तक कम से कम पांच मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) की हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता और उससे संबद्ध लगभग 125 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है।
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट है कि मिशन के अंतर्गत हरित हाइड्रोजन का निर्यात करने और साथ ही साथ जीवाश्म ईंधन के आयात को कम करने की योजना बनाई गई है।
इस कार्यक्रम के तहत हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के साथ-साथ इलेक्ट्रोलाइज़र के घरेलू निर्माण को प्रोत्साहित किया जाएगा। नवीकरणीय बिजली द्वारा संचालित इलेक्ट्रोलिसिस का उपयोग हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए किया जाता है।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत की योजना है कि अगले पांच सालों में इस उद्योग की व्यापकता को बढ़ाकर, हरित हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को पांच गुना तक कम किया जाए। भारत में इसकी मौजूदा लागत 300 से 400 रुपए प्रति किलो है।
विशेषज्ञों का मानना है कि मिशन के यह बड़े लक्ष्य भारत को ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यात केंद्र बनाने और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने में सहायक होंगे।
नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के लिए कैसा रहेगा साल 2023
साल 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य की दिशा में तेजी से बढ़ने के लिए भारत ने बीते साल साफ़ ऊर्जा उत्पादन में तेजी लाने, आवश्यक उपकरणों के निर्माण और ऊर्जा भंडारण सुविधाओं के निर्माण पर जोर दिया।
लेकिन 2070 तक नेट-जीरो प्राप्ति सहित अन्य महत्वाकांक्षी विकासात्मक और पर्यावरणीय लक्ष्यों को पाने के लिए भारत को 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
इस साल देश को अपनी मौजूदा क्षमता में लगभग 25-30 गीगावाट जोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के लिए साल 2023 आशाजनक प्रतीत हो रहा है, और इसकी प्रगति के लिए वातावरण अनुकूल है।
अनुमान है कि इस क्षेत्र में इस वर्ष लगभग 25 बिलियन अमरीकी डालर का भारी निवेश होगा, जो ऊर्जा उत्पादन योजनाओं को और बढ़ावा देगा।
अन्य क्षेत्रों की तुलना में सौर ऊर्जा में अधिक तेजी से विस्तार हो रहा है, और ऐसा माना जा रहा है कि न केवल इसकी यह गति बरक़रार रहेगी, बल्कि इसमें और वृद्धि होगी।
हालांकि देश को पवन, हरित हाइड्रोजन और अन्य क्षेत्रों की प्रगति पर भी समान रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है।
इसके अलावा, ऊर्जा भंडारण क्षमता में वृद्धि होने की भी संभावना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी में कंपनियों का निवेश बढ़ने की उम्मीद है।
हालांकि, कुछ समस्याएं भी हैं जो इस क्षेत्र के विकास में बाधक हो सकती हैं। लेकिन यदि सरकार सही कदम उठाए और उचित उपाय करे तो उनसे भी निपटा जा सकता है।
हरित हाइड्रोजन उत्पादन पर भी हावी होने की फ़िराक में चीन
कीमतें गिराकर सौर विनिर्माण पर अपना एकाधिकार स्थापित करने के एक दशक बाद चीन अब हरित हाइड्रोजन उत्पादन के क्षेत्र में भी ऐसा ही करने की फ़िराक में है। हालांकि सौर पैनल निर्माण की दौड़ में पिछड़ने के बाद अमेरिका और यूरोप अब एक और लड़ाई हारने को तैयार नहीं हैं।
जैसे-जैसे विश्व विकार्बनीकरण के लिए प्रतिबद्ध हो रहा है, वैसे-वैसे हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए इलेक्ट्रोलाइजर नामक उपकरण की मांग बढ़ रही है। यह उपकरण बिना किसी उत्सर्जन के पानी से हाइड्रोजन निकालने में मदद करता है।
ब्लूमबर्ग एनईएफ की रिपोर्ट के अनुसार आज वैश्विक उपयोग के 40% से अधिक इलेक्ट्रोलाइज़र चीन से आते हैं।
हालांकि चीनी इलेक्ट्रोलाइज़र अमेरिका और यूरोप में बने इलेक्ट्रोलाइज़र जितने सक्षम नहीं होते, लेकिन उनकी कीमत बहुत कम है जिसके कारण उनकी मांग अधिक है।
वहीं अमेरिका चीन को इस नई ऊर्जा मांग पर हावी नहीं होने देने के लिए कटिबद्ध है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ‘मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम’ द्वारा हाइड्रोजन के घरेलू उत्पादन के लिए कुबेर का खजाना खोल दिया है।
इस बीच, कई विश्लेषकों को उम्मीद है कि चीनी इलेक्ट्रोलाइज़र की तकनीक में भी सुधार होगा, जिससे अमेरिका और यूरोपीय कंपनियों का यह बढ़त भी जाती रहेगी।
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