इस साल सामान्य से अधिक बारिश होगी, मौसम विभाग का अनुमान

मौसम विज्ञान विभाग ने मंगलवार को कहा कि भारत में इस साल  ‘सामान्य से अधिक’ मॉनसून बरसेगा। मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि इस साल बरसात औसत 87 सेमी से 5% अधिक रहेगी। अगर यह सच साबित होता है, तो यह ‘सामान्य से अधिक’ बारिश का लगतार दूसरा साल होगा। पिछले साल, भारत में जून-सितंबर के दौरान औसत से 8% अधिक बारिश हुई थी लेकिन 2023 में सामान्य से 6% कम बारिश हुई। वर्ष 2019 और 2024 के बीच 6 में से 4 वर्षों में सामान्य बरसात हुई है। 

मौसम विभाग के सभी पूर्वानुमानों में 4% की त्रुटि की गुंजाइश रहती है लेकिन इस साल के पूर्वानुमान से इतना स्पष्ट है कि खरीफ की फसल के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध रहेगा। जलाशयों में जल स्तर बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि अगर बारिश का वितरण एक समान न रहा तो  अतिवृष्टि के दिनों में कुछ इलाकों में बाढ़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।    

भारी बारिश और वज्रपात से उत्तर भारत में 100 से अधिक लोग मरे 

उत्तर भारत के कई हिस्सों जहां बारिश और तेज़ हवा से तापमान गिरा और लोगों को राहत मिली, वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बारिश से संबंधित घटनाओं में 100 से अधिक लोग मारे गए और कई घायल हो गए।

बिहार सबसे बुरी तरह प्रभावित रहा जहां आंधी-तूफान और बरसात से दीवार और पेड़ गिरने की अलग-अलग घटनाओं में 80 लोगों की मौत हो गई। इससे फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचा है और नुकसान का प्राथमिक अनुमान 20 करोड़ से अधिक का है। 

दिल्ली में भी लगातार दो दिनों तक बारिश, आंधी-तूफ़ान और डस्ट स्टॉर्म की घटनाओं में दो लोगों की मौत हो गई। डस्ट स्टॉर्म की वजह से दिल्ली एयरपोर्ट पर 450 से अधिक उड़ानें बाधित हुईं और हवाई अड्डे पर अफरा-तफरी की स्थिति बनी रही।

उड़ीसा में नॉरवेस्टर (काल-बैसाखी) शॉवर के कारण भुवनेश्वर में लोगों को गर्मी से राहत मिली, जबकि मयूरभंज में तेज हवाओं के कारण काफी नुकसान हुआ और एक व्यक्ति की मौत हो गई। उड़ीसा के कई जिलों के लिए भी आईएमडी ने येलो अलर्ट जारी किया है।

मौसम विभाग ने आनेवाले दिनों में बिहार और झारखंड में भारी बारिश होने की भविष्यवाणी की है, जिससे कुछ स्थानों पर बाढ़ और जलजमाव हो सकता है। कर्नाटक में, रायचुर, कोपल, गदग, धारवाड़ और हावेरी जैसे जिलों में में भी तूफ़ान और बारिश के लिए येलो अलर्ट जारी किया गया है।

दिल्ली में अप्रैल की गर्मी ने तोड़ा 3 सालों का रिकॉर्ड

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार देश में अप्रैल से जून के बीच सामान्य से ज्यादा गर्मी पड़ेगी, और हीटवेव वाले दिनों की संख्या भी अधिक रहेगी। विशेष रूप से मध्य और पूर्वी भारत और उत्तर-पश्चिमी मैदानों में अधिक  लू चलेगी।

पिछले बुधवार को राजस्थान में गंभीर लू की स्थिति देखी गई, वहीं दिल्ली ने अप्रैल में पिछले तीन सालों में सबसे अधिक न्यूनतम तापमान दर्ज किया। राजस्थान के बाड़मेर जिले में 46.4 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया किया गया, जो राज्य में सबसे अधिक था। 

दिल्ली में न्यूनतम तापमान 25.6 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य से 5.6 डिग्री से अधिक था। आईएमडी के अनुसार, पिछले रिकॉर्ड को तोड़ते हुए अप्रैल में दिल्ली का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंचने की उम्मीद है।

पिछला साल 2024 मानव इतिहास का सबसे गर्म साल था, और हो सकता है साल 2025 उसका भी रिकॉर्ड तोड़ दे। पिछले साल मई के महीने में दिल्ली के एक वेदर स्टेशन ने 52 डिग्री से अधिक का तापमान दर्ज किया था। हालांकि बाद में आईएमडी ने इसे सेंसर की खराबी बताकर खारिज कर दिया था। लेकिन इस साल अप्रैल के दूसरे हफ्ते में ही तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच चुका है

अप्रैल-जून के बीच हीटवेव के दिन रहेंगे ज्यादा

मौसम विभाग ने दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों, और उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के लिए हीटवेव अलर्ट जारी किया है। 

मौसम विभाग के अनुसार, अप्रैल से जून के बीच देश के अधिकांश क्षेत्रों में अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। केवल पश्चिमी और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में तापमान सामान्य रहने का अनुमान है।

वर्ष 2025 का मार्च धरती पर दूसरा सबसे गर्म मार्च रहा। पिछले साल 2024 में धरती पर सबसे गर्म मार्च रिकॉर्ड किया गया था। पिछले 21 महीनों में बीसवां महीना है जब सतह पर हवा का वैश्विक औसत तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 1.5 डिग्री अधिक नापा गया। यह बात कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस की रिपोर्ट में कही गई है।

आमतौर पर इन तीन महीनों के दौरान भारत में 4 से 7 हीटवेव के दिन होते हैं। लेकिन इस साल 6 से 10 दिन लू के हो सकते हैं, कुछ राज्यों में 10 से 11 दिनों के दौरान अत्यधिक गर्मी रहने की उम्मीद है। इनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ हिस्से शामिल हैं।

इसके अलावा राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के उत्तरी भागों में हीटवेव के दिन सामान्य से अधिक हो सकते हैं।

डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि अत्यधिक गर्मी से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों पर खतरा अधिक है। गर्मी से संबंधित बीमारियों में मांसपेशियों में ऐंठन, थकावट और हीटस्ट्रोक शामिल हैं। इन स्थितियों में चक्कर आना, मतली, भ्रम, दिल की धड़कन तेज हो जाना और यहां तक ​​कि दौरे पड़ने जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं।

सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबरेटिव की एक हालिया रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय शहर अत्यधिक गर्मी के लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि कुछ अल्पकालिक उपाय किए जा सकते हैं, लेकिन हीटवेव से निपटने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों का अभाव है, जिसके कारण मौतों का खतरा बढ़ जाता है।

जलवायु विशेषज्ञों ने यह भी चेतावनी दी है कि भारत, अबतक जिसका तापमान अन्य देशों के मुकाबले धीमी गति से बढ़ा है, अब अगले दो से चार दशकों में तेजी से गर्म होगा

मुंबई से लगे इलाकों में बन रहे माइक्रोक्लाइमेट ज़ोन,  तापमान में असामान्य अंतर 

एक अध्ययन से पता चला है कि मार्च में मुंबई और उसके उपनगरों के कुछ हिस्सों में तापमान में 13 डिग्री सेल्सियस तक का खतरनाक अंतर देखा गया। इससे यह संकेत मिलता है कि यहां अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव तीव्र हो रहा है। जलवायु-तकनीक स्टार्ट-अप रेस्पाइरर लिविंग साइसेंस द्वारा किये गए अध्ययन में पाया गया कि शहर में माइक्रोक्लाइमेट ज़ोन अधिक बन रहे हैं और हीट स्ट्रैस से निपटने के लिए स्थानीय स्तर पर काम करना होगा। 

1 मार्च से 22 मार्च के बीच, वसई पश्चिम और घाटकोपर के उपनगरों में क्रमशः 33.5 डिग्री सेल्सियस और 33.3 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान दर्ज किया गया, जबकि शहर के सबसे हरे-भरे और कम घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक पवई में 20.4 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान दर्ज किया गया। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एक ही शहर के भीतर 13.1 डिग्री सेल्सियस का आश्चर्यजनक अंतर दर्शाता है। घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों और उसी शहर के कम विकसित या हरियाली वाले हिस्सों के बीच तापमान में होने वाले महत्वपूर्ण अंतर को अर्बन हीट आइलैंड यानी यूएचआई कहा जाता है। कंक्रीट की इमारतें और सड़कें, वनस्पति की कमी और स्थानीय प्रदूषण के स्तर जैसे गर्मी बनाए रखने वाले बुनियादी ढांचे मुख्य रूप से इस अंतर को बढ़ावा देते हैं। रेस्पिरर लिविंग साइंसेज के संस्थापक और सीईओ रौनक सुतारिया ने कहा, “हम मुंबई जैसे शहरों में माइक्रोक्लाइमेट ज़ोन के निर्माण को तेजी से देख रहे हैं।”

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के 22 स्टेशनों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, वसई पश्चिम 33.5 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान के साथ सूची में शीर्ष पर रहा, इसके बाद घाटकोपर 33.3 डिग्री सेल्सियस और कोलाबा (दक्षिण मुंबई) 32.4 डिग्री सेल्सियस के साथ दूसरे स्थान पर रहा।

इसके विपरीत, पवई में औसत तापमान 20.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि चकला (अंधेरी पूर्व) में 23.4 डिग्री सेल्सियस और चेंबूर में 25.5 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया।

अध्ययन में कहा गया है कि शहर भर में तापमान के अंतर से पता चलता है कि वसई पश्चिम और पवई के बीच 13.1 डिग्री सेल्सियस का अंतर देखा गया, कोलाबा में 32.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि चकला में 23.4 डिग्री सेल्सियस था, जो 9.0 डिग्री सेल्सियस का शहरी ताप अंतर है। 

घाटकोपर, 33.3 डिग्री सेल्सियस पर, चेंबूर की तुलना में 7.8 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था, जिसका औसत 25.5 डिग्री सेल्सियस था।

सुतारिया ने कहा कि तापमान में ये अंतर सिर्फ़ कागज़ी बात नहीं है। इससे लोगों में गर्मी के कारण तनाव और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ जाती हैं, खास तौर पर जो इलाके हवादार न हों या ज़्यादा आबादी वाले क्षेत्रों में।

उन्होंने कहा, “मुंबई के भीतर माइक्रोक्लाइमेट का निर्माण हो रहा है, और आंकड़ों के देखकर इसे नकारा नहीं जा सकता। यह केवल गर्मियों के बढ़ने की बात नहीं है। यह कुछ इलाकों में असंगत गर्मी के कारण हीट स्ट्रैस का सामना करने की बात है। ऐसी स्थिति में जन स्वास्थ्य और ऊर्जा मांग से लेकर शहरी नियोजन और समानता तक सब कुछ प्रभावित होता है।”

शोधकर्ताओं ने घातक सांपों के ‘विष मानचित्र’ विकसित किए, सर्पदंश की प्रकृति जानने में होंगे सहायक 

शोधकर्ताओं ने स्थानीय जलवायु परिस्थितियों का उपयोग करते हुए “विष मानचित्र” विकसित किए हैं, जो भारत में व्यापक रूप से पाए जाने वाले घातक सांप रसेल्स वाइपर के विष की विशेषताओं का पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकते हैं।

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी), बेंगलुरु के शोधकर्ताओं की एक टीम ने कहा कि विष मानचित्र चिकित्सकों को साँप के काटने वाले रोगियों के लिए सबसे सही उपचार चुनने में मदद कर सकते हैं। शोध के निष्कर्ष “पीएलओएस नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज” पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

आईआईएससी के पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र के लेखक कार्तिक सुनगर ने कहा, “रसेल्स वाइपर यकीनन दुनिया में चिकित्सकीय रूप से सबसे महत्वपूर्ण सांप प्रजाति है। यह किसी भी अन्य सांप प्रजाति की तुलना में अधिक लोगों को मारता है और अपंग बनाता है।”

उन्होंने कहा कि रसेल वाइपर के जहर की संरचना, उसके असर करने के तरीके और शक्ति को ठीक से समझना और उसे प्रभावी बनाने वाले जैविक और अजैविक कारकों की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है। शोधकर्ताओं ने बताया कि सांप के विष का जहरीला प्रभाव एंजाइमों की सांद्रता के कारण होता है, जो जलवायु और शिकार की उपलब्धता जैसे कारकों से प्रभावित होते हैं।

इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने पूरे देश में 34 स्थानों से 115 साँपों के विष के नमूनों को इकट्ठा कर उसका विश्लेषण किया। विष के विषैले तत्वों जैसे प्रोटीन, फॉस्फोलिपिड और अमीनो एसिड को तोड़ने वाले एंजाइम के असर का परीक्षण किया गया।

एआई मॉडल से वज्रपात से लगने वाली जंगलों की आग की भविष्यवाणी संभव 

इज़राइली शोधकर्ताओं ने एक नया एआई मॉडल विकसित किया है जो भविष्यवाणी कर सकता है कि बिजली गिरने से जंगल में आग लगने की सबसे अधिक संभावना कहाँ और कब है। यह 90% से अधिक सटीकता के साथ काम करता है – जंगल की आग के पूर्वानुमान में ऐसी पहली बार .ह दावा किया गया है। मॉडल बनाने के लिए, उन्होंने सात साल के वैश्विक उपग्रह डेटा के साथ-साथ वनस्पति, मौसम के पैटर्न और स्थलाकृति को दर्शाने वाले डेटा का उपयोग किया।

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