स्टील को उत्सर्जन के आधार पर लेबल करने की जर्मनी की योजना से भारतीय उद्योग को क्षति होगी

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के ताजा विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा रहा है कि जर्मनी ने स्टील के निर्माण में कम इमीशन के जो मानक तय किए हैं उससे भारतीय स्टील उद्योग को घाटा हो सकता है जो पहले ही अधिक आयात और कम निर्यात वाली स्थिति से जूझ रहा है। इन मानकों को लो इमीशन स्टील स्टैंडर्ड (LESS) कहा जाता है और इसमें स्टील के निर्माण पूर्व और निर्माण के दौरान हुए कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन के आधार पर उसका वर्गीकरण और लेबलिंग होती है। 

भारतीय व्यापार जगत के लिए, ऐसी लेबलिंग छवि का मुद्दा है जो पश्चिमी देशों को उनके निर्यात को बाधिक कर सकता है। अमेरिका को होने वाले निर्यात में 2021-22 और 2023-24 के बीच 31.2% की गिरावट के कारण अब वह नेट आयातक देश है।  हालांकि भारतीय स्टील उद्योग पर जर्मनी द्वारा निर्धारित मानकों के पालन की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है लेकिन चुनौतीपूर्ण वैश्विक बाजार में घरेलू इस्पात उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मक ताकत बनाए रखने के लिए, शोध अनुसंधान भारतीय इस्पात कंपनियों और सरकार को सलाह देता है कि वह वो इन नए मानदंडों का पालन करने के लिए कम कार्बन प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में निवेश जैसे गणनात्मक कदम उठाये। 

चीन ने विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में बड़े गैस भंडार की खोज की 

चीन ने दक्षिण चीन सागर में हैनान प्रांत के दक्षिण-पूर्व में एक बड़े गैस फील्ड की खोज की पुष्टि की है। अत्यधिक गहरे पानी में स्थित दुनिया का पहला बड़ा, यह अत्यंत उथला भंडार –  लिंगशुई 36-1 गैस क्षेत्र – है। चीन की सरकारी राष्ट्रीय अपतटीय तेल निगम (CNOOC) के मुताबिक इसमें 100 बिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक मूल गैस होने का अनुमान है। । दुनिया में प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े आयातक चीन को गैस क्षेत्र की खोज से ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी सुरक्षा मिलेगी। 

चीन ने वर्ष 2023 में 180 मिलियन टन तरलीकृत और पाइप गैस के आयात में 64.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये थे। दक्षिण चीन सागर में इस भंडार की खोज के बाद चीन और उसके पड़ोसी देशों में तनाव बढ़ सकता है जो साउथ चायना सी पर अपना दावा करते हैं जो कि प्राकृतिक गैस, तेल संसाधनों  और प्रचुर मछली भंडार  के अलावा सामरिक दृष्टि से काफी अहम और विवादास्पद रहा है क्योंकि यह दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापार जलमार्गों में है जहां से पूरे विश्व का 20% मूल्य का व्यापार होता है। 

इंडियन ऑयल अपनी रिफाइनिंग क्षमता 25% बढ़ाएगी 

इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, राज्य के स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तेल शोधन की अपनी क्षमता को 25% तक बढ़ाने का इरादा रखती है। कंपनी को उम्मीद है कि 2050 तक वह भारत की ऊर्जा जरूरतों का आठवां हिस्सा पूरा कर लेगी। वर्तमान में, इसमें नौ रिफाइनरियां, तेल और ईंधन परिवहन के लिए 20,000 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन, 99 एलपीजी बॉटलिंग संयंत्र, 129 विमानन ईंधन स्टेशन और पेट्रोल पंप और एलपीजी एजेंसियों जैसे 61,000 से अधिक ग्राहक संपर्क बिंदु हैं। 2050 तक, भारत की तेल खपत 2023 में 5.4 मिलियन बैरल प्रति दिन से बढ़कर 8.3 मिलियन बैरल प्रति दिन होने का अनुमान है। कंपनी अपनी वार्षिक रिफाइनिंग क्षमता को 70.25 मिलियन टन से बढ़ाकर 88 मिलियन टन करना चाहती है।

कोल इंडिया और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया मिलकर कोयले से सिंथेटिक गैस प्रोजेक्ट लगाएंगे

सरकारी कंपनियां कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) ने पश्चिम बंगाल में कोयला-से-सिंथेटिक प्राकृतिक गैस परियोजना स्थापित करने के लिए एक संयुक्त उद्यम खड़ा करने का फैसला किया है। इस ज्वाइंट वैंचर  में देश की सबसे बड़ी गैस परिवहन और वितरण कंपनी गेल के पास 49% शेयर होंगे, जबकि सीआईएल के पास 51% शेयर होंगे। 

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने इस साल की शुरुआत में दो परियोजनाओं की स्थापना को मंजूरी दी थी: एक सीआईएल और बीएचईएल के बीच सहयोग के माध्यम से कोयले से अमोनियम नाइट्रेट बनाने के लिए, और दूसरी सीआईएल और गेल के बीच एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से कोयले से सिंथेटिक प्राकृतिक गैस के लिए। वर्ष 2030 तक 100 मीट्रिक टन कोयला गैसीकरण के लक्ष्य तक पहुंचने के प्रयास में, सीआईएल ने दो कोयला गैसीकरण संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है।

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