दिल्ली में पटाखों पर बैन, लागू हुआ जीआरएपी

सर्दी का मौसम नजदीक आने के साथ प्रदूषण के स्तर में वृद्धि को देखते हुए दिल्ली सरकार ने पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और उपयोग पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है, जो 1 जनवरी तक प्रभावी रहेगा। गुरुवार को लगातार चौथे दिन दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब श्रेणी में रही और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 277 पहुंच गया।

इस बीच, सैटेलाइट चित्रों के अनुसार, 10 से 13 अक्टूबर के बीच पराली जलाने की 100 से अधिक घटनाएं देखी गईं। दिल्ली-एनसीआर के लिए केंद्र के वायु प्रदूषण नियंत्रण पैनल ने सोमवार को क्षेत्र की राज्य सरकारों को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के पहले चरण को लागू करने का निर्देश दिया

पराली जलाने की घटनाओं के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों पर मुकदमा न चलाने पर हरियाणा और पंजाब की सरकारों को फटकार लगाई है और राज्य के मुख्य सचिवों को 23 अक्टूबर तक स्पष्टीकरण मांगा है।

उधर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वाहन, औद्योगिक उत्सर्जन, सड़कों और निर्माण से उड़ने वाली धूल और बायोमास जलने से निकलने वाला धुआं पिछले दशक में सर्दियों के महीनों के दौरान दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारण हैं।

मानव-जनित पारा उत्सर्जन में गिरावट, लेकिन वायुमंडलीय स्तर बढ़ा

मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को एक नए अध्ययन में पारा प्रदूषण के ‘बेमेल’ आंकड़े मिले हैं, यानि मानव-जनित पारा उत्सर्जन में कमी आई, लेकिन पर्यावरण में पारे का स्तर बढ़ गया। पारा एक न्यूरोटॉक्सिन है जो कोयला संयंत्रों और छोटे पैमाने पर सोने के खनन से उत्सर्जित होता है। इसके उत्सर्जन की मॉडलिंग करना मुश्किल होता है क्योंकि यह है तो धातु लेकिन सामान्य तापमान पर तरल अवस्था में रहता है, इसलिए इसमें अनोखे गुण हैं। 

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि समुद्र और भूमि जैसे सिंक के द्वारा वातावरण से जो पारा हटाया जाता है वह फिर से पर्यावरण में उत्सर्जित हो सकता है, इसलिए इसके प्राथमिक स्रोत का पता लगाना कठिन होता है।

शोधकर्ताओं ने उत्तरी गोलार्ध के डेटा का विश्लेषण किया, जिसमें 2005 से 2020 तक वायुमंडलीय पारे में 10% की गिरावट देखी गई, लेकिन इसके विपरीत वैश्विक स्तर पर पारे की मात्रा में वृद्धि पाई गई। इन निष्कर्षों के द्वारा प्रदूषण मॉडलों और पारे के व्यवहार की समझ बेहतर की जा सकती है। 

अमेरिका में डॉल्फिन मछलियों की सांसों में मिला माइक्रोप्लास्टिक

एक अध्ययन में सारासोटा बे, फ्लोरिडा और बारातारिया बे, लुइसियाना में बॉटलनोज़ डॉल्फ़िन की सांसों में माइक्रोप्लास्टिक फाइबर पाए गए हैं, जो मानव फेफड़ों में पाए जाने वाले फाइबर के ही समान हैं। माइक्रोप्लास्टिक्स उन सूक्ष्म प्लास्टिक कणों को कहते हैं जो हवा, भूमि और महासागरों में मौजूद हैं। 

सांस के जरिए अंदर जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक मनुष्यों में फेफड़ों में संक्रमण पैदा कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। डॉल्फ़िन पर भी यही खतरा मंडरा रहा है। डॉल्फ़िन वैज्ञानिकों को समुद्री इकोसिस्टम और मानव स्वास्थ्य पर प्रदूषकों के प्रभाव को समझने में मदद करती हैं। मौजूदा अध्ययन प्लास्टिक प्रदूषण की व्यापक समस्या पर प्रकाश डालता है।

आईआईटी के शोधकर्ताओं के खोजा पीएम2.5 में कटौती करने का तरीका

आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेयरिक साइंसेज के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि कम लागत वाले सेंसर का उपयोग करके प्रदूषण की मॉनिटरिंग और कचरा प्रबंधन में सुधार करने से दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में पीएम2.5 प्रदूषक का स्तर कम हो गया। रिपोर्ट में पाया गया कि जहांगीरपुरी में पीएम2.5 का स्तर 26.6% तक कम हुआ, वहीं रोहिणी में 15.7% और करोल बाग में 15.3% कम हुआ।

इस अध्ययन से पता चलता है कि यदि आंकड़ों के आधार पर रणनीति बनाई जाए तो प्रदूषण कम करने में बड़ी सफलता मिल सकती है। साथ ही जोर दिया गया है कि कचरा जलाया न जाए और क्षतिग्रस्त सड़कों और फुटपाथों की मरम्मत करके धूल प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए। 

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया  हाइब्रिड तकनीकों का उपयोग करके राष्ट्रीय स्तर पर मॉनिटरिंग की जानी चाहिए और स्थानीय स्तर पर किए जाने वाले उपायों के प्रभाव का अध्ययन किया जाना चाहिए।

Website |  + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.