चक्रवात ‘दाना’: 4 की मौत; फसलों को भारी नुकसान, लाखों हुए विस्थापित

चक्रवाती तूफ़ान ‘दाना’ ने पिछले हफ्ते ओडिशा और पश्चिम बंगाल के तटीय जिलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। ओडिशा में लगभग 1.75 लाख एकड़ भूमि में खड़ी फसलें नष्ट हो गईं और अतिरिक्त 2.80 लाख एकड़ भूमि जलमग्न हो गई। ओडिशा में चक्रवात से कोई मौत नहीं हुई जबकि पश्चिम बंगाल में चार मौतों की पुष्टि हुई है। 

चक्रवात के कारण बंगाल में करीब 2.16 लाख और ओडिशा में लगभग 3.5 लाख लोग विस्थापित हुए। चक्रवात 110 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ओडिशा के भितरकनिका और धामरा के बीच टकराया। दोनों राज्यों के तटीय जिलों में भारी बारिश हुई और तेज हवाएं चलीं, जिसके कारण कई पेड़ और बिजली के खंभे उखड़ गए

हालांकि मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अरब सागर के ऊपर एक उच्च दबाव क्षेत्र बनने और अन्य वातावरणीय कारकों के कारण चक्रवात की तीव्रता उतनी नहीं रही जितना मौसम विभाग ने अनुमान लगाया था।

इमीशन गैप रिपोर्ट: दुनिया के देश उत्सर्जन कम करने में रहे नाकाम 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2024 के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए देशों ने जो लक्ष्य (एनडीसी) रखे हैं उन्हें लागू करने में वर्ष 2023 में कोई तरक्की नहीं हुई यानी वास्तविक इमीशन कट और  वांछित लक्ष्य के बीच का अंतर पहले की तरह ही बना हुआ है।  एनडीसी राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाएं हैं, जिन्हें  पेरिस समझौते के तहत सभी देशों ने तैयार किया है। इनका मकसद वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे –  आदर्श रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक – सीमित रखना है और जिन्हें देशों के द्वारा हर पांच साल में अपडेट किया जाता है।  

धरती की तापमान वृद्धि में 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिए 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 42 प्रतिशत और 2035 तक 57 प्रतिशत की कटौती करना ज़रूरी है वरना इस सदी में ही यह वृद्धि 2.6 से 3.1 डिग्री तक हो जायेगा और इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। 

हालाँकि, पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2030 तक तापमान वृद्धि को  2 डिग्री और 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए उत्सर्जन में क्रमशः 28 प्रतिशत और 42 प्रतिशत की कटौती की आवश्यकता है, लेकिन एनडीसी को सख्ती के साथ पूरी तरह से लागू करने पर भी 2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन में क्रमशः केवल 4 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है।

ग्लोबल नेचुरल कंजरवेशन इंडेक्स में भारत आखिरी पांच देशों में 

गुरुवार को जारी 2024 ग्लोबल नेचुरल कंजरवेशन इंडेक्स में भारत को 180 देशों में से 176वां स्थान दिया गया है।

भारत को कुल 100 में से 45.5 अंक दिये गये हैं और उसे किरिबाती (अंतिम स्थान), तुर्की (179वां स्थान), इराक (178) और माइक्रोनेशिया (177) से ठीक ऊपर रखा गया है। कम स्कोर का कारण मुख्य रूप से जैव विविधता के लिए बढ़ते खतरे और भूमि के अकुशल प्रबंधन को बताया गया। सूचकांक को इज़राइल के बेन-गुरियन विश्वविद्यालय के गोल्डमैन सोनेनफेल्ट स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज और गैर-लाभकारी वेबसाइट बायोडीबी में द्वारा विकसित किया गया है।

इस महीने लॉन्च किया गया प्रकृति संरक्षण सूचकांक, चार मापदंडों पर संरक्षण प्रयासों का मूल्यांकन करता है। ये हैं:  भूमि का प्रबंधन, जैव विविधता के सामने आने वाले खतरे, शासन और क्षमता, और भविष्य के रुझान। प्रत्येक देश द्वारा विकास और पर्यावरण के संरक्षण में संतुलन स्थापित करने में हुई प्रगति का आकलन किया जाता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अब सस्टेनेबल भू-उपयोग प्रथाओं की आवश्यकता है क्योंकि शहरी, औद्योगिक और कृषि उद्देश्यों के लिए भूमि का रूपांतरण 53% तक पहुंच गया था।

चीन में डायनासोर के सबसे छोटे अंडे मिलने का दावा 

दक्षिण चीन के जियांग्शी प्रांत का ऊपरी क्रेटेशियस गांझोउ बेसिन दुनिया के सबसे समृद्ध अंडा जीवाश्म स्थलों में से एक है और यहां प्रचुर मात्रा में उत्तम अंडे के क्लच और भ्रूण अंडे मिलते हैं। डायनासोर परिवार के इन अंडों की मॉर्फोलॉजी या आकृति विज्ञान में भिन्नता हो सकती है लेकिन वो अब तक खोजे गये अंडों से काफी बड़े थे। अब वैज्ञानिकों और जीवाश्म अध्ययन के विशेषज्ञों की नई खोज से जुड़ी जानकारी हिस्टोरिकल बायोलॉजी नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है जिसमें यह दावा किया गया है कि 2021 में खोजे गये ये अंडे डायनासोर के अब तक के सबसे छोटे अंडे हैं। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस खोज से पहले डायनासोर के जो सबसे छोटे अंडे पाये गए थे, उनकी माप 45.5 मिलीमीटर X 40.4 मिलीमीटर X 34.4 मिलीमीटर थी। लेकिन नया खोजा गया अंडा महज 29 मिलीमीटर लंबा है, जो अपने समूह का सबसे पूरा अंडा भी है। तीन वर्षों तक लगातार रिसर्च के बाद शोधकर्ताओं ने पुष्टि की है कि यह अंडे करीब 8 करोड़ वर्ष पुराने हैं। 

असम की इस ‘मीठी तुलसी’ में हैं कुछ औषधीय गुण

एक नये अध्ययन में पाया गया है कि कैंडी लीफ – जिसे मीठी तुलसी भी कहा जाता है  – में रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा और हृदय संबंधी बीमारियों के उपचार करने के गुण हैं। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक कैंडी लीफ सेलुलर सिग्नलिंग प्रणाली पर असर डालता है। इसका वैज्ञानिक नाम स्टीविया रेबाउडियाना बर्टोनी है और आम भाषा में मीठा पत्ता, शुगर लीफ या मीठी तुलसी भी कहा जाता है। असम से दुनिया के कई देशों को इसका निर्यात किया जाता है। 

शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि डायबिटीज और लंबे समय तक सूजन से संबंधित ऑटोइम्यून बीमारी – रुमेटॉइड गठिया, क्रोनिक किडनी रोग और ब्लड प्रेशर में भी इसका फायदा हो सकता है। फ़ूड बायोसाइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में स्टेविया की औषधीय क्षमताओं को सामने लाया गया है।

Website | + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.