ब्राज़ील के शहर बेलेम में सोमवार से शुरू हुए संयुक्त राष्ट्र के 30वें जलवायु महासम्मेलन (कॉप-30) को जलवायु परिवर्तन पर अब तक की सबसे अहम बैठकों में से एक माना जा रहा है। इस बार चर्चा का केंद्र है जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) से ट्रांज़िशन, जंगलों की रक्षा करना और विकासशील देशों के लिए क्लाइमेट फाइनेंस जुटाना।
कॉप-29 के अधूरे वादे
पिछले साल बाकू में हुई कॉप-29 में यह कहा गया था कि 2035 तक हर साल 1.3 ट्रिलियन डॉलर का क्लाइमेट फाइनेंस उपलब्ध कराया जाए, लेकिन अमीर देशों ने केवल 300 अरब डॉलर देने का वादा किया। बाकी रकम निजी क्षेत्र और टैक्स जैसे वैकल्पिक साधनों से जुटाने की बात कही गई थी। परिणामस्वरूप कई विकासशील देशों ने इसे ‘अधूरा सौदा’ कहा।
इस बार ब्राज़ील ने 1.3 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को पाने के लिए ‘बाकू टू बेलेम रोडमैप’ पेश किया है, जिसमें 2035 तक फंडिंग के ठोस रास्ते सुझाए गए हैं।
अमेज़न और ‘ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी’
कॉप-30 का सबसे चर्चित प्रस्ताव है ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरेवर फैसिलिटी (टीएफएफएफ)। यह एक कोष है जो जंगलों की कटाई रोकने और जैव-विविधता (बायोडाइवर्सिटी) बचाने के लिए बनाया जा रहा है। इसके तहत शुरुआत में 25 अरब डॉलर इकट्ठा कर उसे 100 अरब डॉलर तक बढ़ाना है। अब तक 50 से अधिक देशों ने इसका समर्थन किया है, हालांकि निजी निवेश पर अधिक निर्भरता से इसकी सफलता पर सवाल उठ रहे हैं।
जीवाश्म ईंधन पर असहमति
कॉप-28 (दुबई) में देशों ने पहली बार यह माना था कि दुनिया को जीवाश्म ईंधन से ट्रांज़िशन करना होगा। लेकिन कॉप-29 में इस प्रतिबद्धता को दोहराया नहीं गया। इस बार भी कई तेल उत्पादक देश इसका विरोध कर रहे हैं।
दिलचस्प यह है कि कॉप-30 की मेजबानी कर रहा ब्राज़ील स्वयं शीर्ष तेल-गैस निर्यातकों में है और उसने हाल ही में अमेज़न क्षेत्र में नए तेल अन्वेषण की अनुमति दी है। फिर भी, राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा ने स्पष्ट कहा है कि “धरती अब जीवाश्म ईंधनों पर आधारित विकास मॉडल को नहीं झेल सकती“।
शीर्ष उत्सर्जक नदारद
अमेरिका और चीन जैसे सबसे बड़े उत्सर्जक देशों के शीर्ष नेता इस बार सम्मेलन में नहीं आए हैं। भारत की ओर से पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
हालांकि, जनता की उम्मीदें अभी भी बड़ी हैं: एक हालिया सर्वे के अनुसार, दुनिया के 89% लोग जलवायु संकट पर कार्रवाई, यानि क्लाइमेट एक्शन चाहते हैं।
आगे की राह
ब्राज़ील की कोशिश है कि यह सम्मेलन ‘नई घोषणाओं’ की बजाय ‘पुरानी प्रतिबद्धताओं के क्रियान्वयन’ पर जोर दे। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि देशों ने अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को तुरंत और गहराई से नहीं घटाया, तो वैश्विक तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को स्थाई रूप से पार कर जाएगी, जो जलवायु संकट को अपरिवर्तनीय बना देगा।
कॉप-30 उम्मीद और असहमति, दोनों का संगम है। यह सम्मेलन तय करेगा कि क्या दुनिया वाकई विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बना पाएगी, या फिर यह एक और अधूरी कोशिश बनकर रह जाएगी।
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