भारत मौसम विज्ञान विभाग के एक अध्ययन के अनुसार पिछले कुछ दशक में भारत में हीटवेव के दिनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भूमि के उपयोग में परिवर्तन, कंक्रीट के बढ़ते जंगल और स्थानीय मौसम की स्थिति जैसे कारकों के अलावा, जलवायु परिवर्तन देश में अत्यधिक गर्मी की घटनाओं के बढ़ने का एक प्राथमिक कारण है।
देश के कई हिस्सों में गर्मी का कहर अब असहनीय हो चला है। गर्मी के इस कहर को दिल्ली के बाहरी इलाके नोएडा में एक रिक्शा चालक सुनील दास की कहानी से समझिए। दास बताते हैं कि सुबह 10 बजे के बाद काम करना अब असंभव हो गया है।
इस इलाके में मार्च में अभूतपूर्व गर्मी रही। एक महीने पहले मौसम ब्यूरो ने आधिकारिक तौर पर इसे सबसे गर्म समय की संज्ञा दी थी।
भीषण गर्मी ने, दास जैसे घर से बाहर निकलकर काम करने वाले लोगों को, अपने काम का समय बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। दास ने कहा, “मैं 10 बजे तक घर वापस आ जाता हूं और शाम को फिर से काम शुरू करता हूं। तबतक गर्मी थोड़ी कम हो जाती है।”
“इससे मेरी कमाई कम हो गई है लेकिन मेरे पास विकल्प भी क्या है?” दास पूछते हैं।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (मौसम विभाग या आईएमडी) के पास उपलब्ध रिकॉर्ड के मुताबिक इस साल मार्च का महीना 122 वर्षों में सबसे गर्म रहा । आईएमडी ने 122 साल पहले ही मौसम का रिकॉर्ड रखना शुरू किया था। यह पिछले साल मार्च में भीषण गर्मी के बाद आया है, जो रिकॉर्ड में तीसरा सबसे गर्म था। वैज्ञानिकों ने कहा कि इसका एक कारण वसंत ऋतु की गर्मी के अलावा वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का संचय होना भी है।
मार्च महीने में 33.10 डिग्री सेल्सियस का औसत अधिकतम देशव्यापी तापमान दर्ज किया गया और इसी के साथ इस साल गर्मी की शुरुआत जल्दी हो गयी। इस तरह की गर्मी अब सामान्य होती जा रही है। मौसम विभाग ने महीने में कम बारिश को इस बढ़ी गर्मी के लिए जिम्मेदार ठहराया। पूरे देश में इस दौरान वर्षा में 72% कमी दर्ज के गयी जो देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में 89% तक रही।
पिछले कुछ दशकों में पूरे भारत में तापमान बढ़ रहा है। इस बात की पुष्टि, अप्रैल से जून के बीच देश में अनुभव किए जाने वाले हीटवेव दिनों की बढ़ती संख्या को देखकर, होती है।
बढ़ रही है भीषण गर्मी
मौसम विभाग द्वारा जारी एक अध्ययन से पता चला है कि हर 10 साल में भारत में हीटवेव दिनों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। अध्ययन से पता चला है कि 1981-90 में 413 से 2001-10 में 575 और 2011-20 में 600 दिनों में, अत्यधिक गर्म दिन की संख्या लगातार बढ़ी है।
यह आंकड़े एक अप्रकाशित रिपोर्ट में सामने आए हैं। यह रिपोर्ट एक पुरानी रिपोर्ट की अगली कड़ी है।
चल रहे अध्ययन से यह भी पता चला है कि 103 मौसम स्टेशनों में से अधिकांश ने 1961-2020 की अवधि के दौरान अप्रैल और जून के बीच हीटवेव की तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है।
कोट्टायम स्थित इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज स्टडीज के निदेशक डी.एस. पाई ने कहा कि जलवायु परिवर्तन इसका मुख्य कारण है। पाई ने कहा, “सामान्य से अधिकतम तापमान के अन्य कारणों में स्थानीय मौसम की स्थिति और कंक्रीटीकरण, वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन जैसे अन्य कारक शामिल हैं,” पाई ने कहा। बतौर जलवायु वैज्ञानिक वे आईएमडी पुणे से जुड़े हुए थे और इस अध्ययन का हिस्सा रहे हैं।
पाई ने कहा कि ज्यादातर क्षेत्रों में अप्रैल से जून तक के तीन महीनों में औसतन आठ से अधिक हीटवेव वाले दिनों को देखा गया है। इन प्रभावित क्षेत्रों में पिछले तीन दशकों की तुलना में 1991 से 2020 के बीच, हीटवेव में वृद्धि हुई है।
अध्ययन से पता चला है कि कोर हीटवेव ज़ोन के कई क्षेत्रों में मई के महीने में सबसे गंभीर हीटवेव दर्ज हुई। कोर हीटवेव जोन में देश का उत्तर, उत्तर-पश्चिम, मध्य, पूर्व और उत्तर-पूर्व प्रायद्वीपीय हिस्सा शामिल हैं।
अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस और सामान्य से कम से कम 4.5 डिग्री अधिक होने पर भारत का मौसम विभाग हीटवेव घोषित करता है। जब यह सामान्य या अधिकतम तापमान से 6.5 डिग्री ऊपर होता है तो इस हीटवेव को गंभीर माना जाता है।
स्काईमेट वेदर सर्विसेज में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में अत्यधिक गर्मी की घटनाएं बढ़ रही हैं।”
“ग्लोबल वार्मिंग की इसमें प्राथमिक भूमिका है, हालांकि इसके अलावा कई अन्य कारक भी हैं,” उन्होंने कहा।
हिमालय में तेज गर्मी
पलावत ने कहा कि मार्च में अधिक गर्मी ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों को भी नहीं बख्शा। इन राज्यों में मार्च के महीने में अक्सर सुहाना मौसम होता है या ठंड रहती है। यह देश भर में तापमान में समग्र वृद्धि का संकेत है।
पाई के अनुसार यह जानकारी आईएमडी के अध्ययन से भी सामने आई है जिसमें पाया गया है कि पिछले तीन दशकों में पर्वतीय क्षेत्र में शीत लहर के दिनों की संख्या में कमी आई है।
“पिछले तीन दशक देश और विश्व स्तर पर सबसे गर्म रहे हैं,” उन्होंने कहा।
वह आगे कहते हैं, “अत्यधिक तापमान की घटनाएं जैसे हीटवेव ग्लोबल वार्मिंग की का एक प्रमुख लक्षण है।”
आईएमडी अनुसंधान मार्च के तापमान पर विचार नहीं करता है। जैसा कि इस वर्ष जनवरी में जारी भारत के जलवायु खतरों और खतरा दर्शाने वाले एटलस में लक्षित हुआ। यह एटलस अप्रैल, मई, जून और जुलाई में हीटवेव की घटनाओं की निगरानी रखता है। यह दर्शाता है कि भारत के कोर हीटवेव ज़ोन के भीतर, पश्चिमी राजस्थान, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के कुछ हिस्से 1961 और 2020 के बीच सबसे अधिक प्रभावित हुए थे। कुल मिलाकर, 13% जिले और 15% आबादी भारत में गर्मी की लहरों की चपेट में है, जैसा कि एटलस ने दिखाया है।
पलावत ने कहा, “जलवायु परिवर्तन और औसत तापमान में वृद्धि के बीच एक निश्चित संबंध है, जो हीटवेव के प्रभाव को बढ़ा रहा है।”
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन पहले से ही दुनिया भर में हर क्षेत्र में कई मौसम और जलवायु संबंधित उच्च या निम्न सीमाओं को प्रभावित कर रहा है। यह जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा अगस्त 2021 में जारी लैंडमार्क कोड रेड रिपोर्ट में कहा गया है। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विशेषज्ञों की रिपोर्ट में पाया गया कि अगले 20 वर्षों में औसतन, वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने या उससे अधिक होने की आशंका है।
वैश्विक औसत में अंटार्कटिका जैसे स्थान शामिल हैं और यह वास्तव में पूरे भारत के लिए सटीक नहीं है। यहां औसत तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है। आईपीसीसी की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत लगातार और तेज गर्मी की लहर या कहें लू का सामना करेगा।
गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित गरीब लोग
अब यह बात भली-भांति स्थापित हो गया है कि अत्यधिक गर्मी का गरीबों और हाशिए पर रहने वालों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या भारत में है। इसके अतिरिक्त, भारत की कामकाजी उम्र की लगभग आधी आबादी खेती में लगी हुई है। इनको गर्मियों में लंबे समय तक बाहर रहना होता है जिससे इनपर अधिक जोखिम है।
इसके साथ ही देश में दूसरा सबसे अधिक काम देने वाला निर्माण क्षेत्र है जहां सक्रिय श्रमिकों की दुर्दशा होगी। साथ ही, बड़ी संख्या में दास जैसे रिक्शा चालक को भी अधिक गर्मी में भी बाहर रहकर काम करना होता है। इस तरह यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में बढ़ती गर्मी का प्रकोप अधिक होने वाला है।
1960 और 2009 के बीच भारत के औसत तापमान में 0.5 डिग्री से अधिक की वृद्धि हुई। आशंका है कि इस बड़े पैमाने पर गर्मी बढ़ने से मृत्यु दर बढ़ सकती है। वर्ष 2017 में आए एक अध्ययन में भारत में हीटवेव की वजह से 146 प्रतिशत तक मृत्यु दर में बढ़ोतरी की आशंका जताई गई है।
“हमारे नतीजे बताते हैं कि औसत तापमान में भी मध्यम और व्यावहारिक रूप से अपरिहार्य वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि। इस वजह से गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में बड़ी वृद्धि हो सकती है। जब तक कि कमजोर आबादी को गर्मी से बचाने का कारगर उपाय नहीं होता, समस्या बनी रहेगी,” इस अध्ययन ने भविष्यवाणी की थी।
2010 में हीटवेव ने अकेले अहमदाबाद शहर में 1,300 से अधिक लोगों की जान ले ली थी। इसके बाद यहां गर्मी को लेकर हीट एक्शन प्लान को विकसित करने के प्रयासों की शुरुआत हुई।
अब देश के कई शहर अत्यधिक गर्मी झेलने की वजह से ऐसी कार्ययोजनाएं लागू करने की कोशिश में हैं। विशेष रूप से बाहर काम करने वाले लोगों को गर्मी से बचाने की योजनाओं पर काम हो रहा है।
“हमारे पास जलवायु संकट से निपटने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है,” पाई ने कहा।
“लेकिन जब तक कोई स्थायी समाधान नहीं मिल जाता, तब तक हीटवेव की चपेट में आने वाले क्षेत्रों में हीट एक्शन प्लान को लागू करना महत्वपूर्ण है। आईएमडी इस संबंध में विभिन्न जिला और शहरी अधिकारियों के साथ काम कर रहा है,” उन्होंने आगे कहा।
पलावत ने कहा कि उच्च गर्मी और उसके बाद हीटवेव चिंता का विषय है। उन्होंने कहा, “एडवायजरी जारी करने जैसे अल्पकालिक उपाय और वनीकरण जैसे दीर्घकालिक उपायों पर एक साथ कार्रवाई की जानी चाहिए।”
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। इस खभर का अनुवाद मनीष चंद्र मिश्रा ने किया है।
यह रिपोर्ट मोंगाबे से साभार ली गई है।
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