प्लास्टिक में एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल (ईडीसी) यानी अंतःस्रावी विघटनकारी रसायन होते हैं जो जीवों के हार्मोनल और होमोस्टैटिक सिस्टम में बदलाव कर सकते हैं। Photo: Maruf Rahman from Pixabay

प्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स अगली दो पीढ़ियों को कर सकते हैं प्रभावित: रिसर्च

रिसर्च से पता चला है कि प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक केमिकल्स न केवल मौजूदा बल्कि अगली दो पीढ़ियों में भी मेटाबॉलिक डिजीज का कारण बन सकते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक केमिकल्स अगली दो पीढ़ियों में मेटाबॉलिक बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

गौरतलब है कि अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि प्लास्टिक में एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल (ईडीसी) यानी अंतःस्रावी विघटनकारी रसायन होते हैं जो जीवों के हार्मोनल और होमोस्टैटिक सिस्टम में बदलाव कर सकते हैं।

इनके कारण शारीरिक विकास, मेटाबॉलिज्म, प्रजनन, तनाव प्रतिक्रिया और भ्रूण का विकास प्रभावित हो सकता है।

शोध से पता चला है कि माता-पिता के ईडीसी के संपर्क में आने से बच्चों में मेटाबॉलिज्म संबंधी विकार जैसे मोटापा और मधुमेह हो सकते हैं।

गौरतलब है पहले किए ज्यादातर शोधों में माओं के ईडीसी के संपर्क में आने से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर पर ध्यान केंद्रित किया गया है, लेकिन इस नए अध्ययन में पिता के ईडीसी के संपर्क में आने से पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट किया गया है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पिता के डाइसाइक्लोहेक्सिल फेथलेट या डीसीएचपी के संपर्क में आने से बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच की है। यह केमिकल प्लास्टिक को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि इस केमिकल के संपर्क में आने से न केवल पहली पीढ़ी बल्कि उसकी अगली पीढ़ी पर भी प्रभाव पड़ा था।

चूहों पर किए इस अध्ययन से पता चला है कि डीसीएचपी एक्सपोजर से शुक्राणु में छोटे आरएनए बदलाव हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक पिता के केवल चार सप्ताह तक डीसीएचपी के संपर्क में आने से पहली पीढ़ी में उच्च इंसुलिन प्रतिरोध और इंसुलिन सिग्नलिंग पर असर दर्ज किया गया था। यह प्रभाव दूसरी पीढ़ी में भी दर्ज किए गए थे, लेकिन वह पहली पीढ़ी के मुकाबले कम थे।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के स्कूल ऑफ मेडिसिन में बायोमेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर चांगचेंग झोउ का कहना है कि पिता के एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल्स के संपर्क में आने से उनकी आने वाली संतानों के मेटाबॉलिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

गौरतलब है कि झोउ और उनके साथी शोधकर्ताओं द्वारा किए पिछले अध्ययन ने भी इस बात का खुलासा किया था कि प्लास्टिक में मौजूद यह हानिकारक केमिकल हाई कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग का कारण बन सकते हैं।

अगले 37 वर्षों में तीन गुना बढ़ जाएगा प्लास्टिक वेस्ट

देखा जाए तो कभी वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक आज एक बड़ी समस्या बन चुका है, जो न केवल पर्यावरण बल्कि इंसानी स्वास्थ्य को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।

इस बढ़ते कचरे के बारे में हाल ही में ओईसीडी की रिपोर्ट ‘ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक: पालिसी सिनेरियोज टू 2060’ से पता चला है कि अगले 37 वर्षों में प्लास्टिक वेस्ट तीन गुना बढ़ जाएगा।

अनुमान है कि 2060 तक हर साल 100 करोड़ टन से ज्यादा कचरा पैदा होगा, जिसका एक बड़ा हिस्सा ऐसे ही पर्यावरण में डंप किया जाएगा।

रिपोर्ट से पता चला है कि 2019 में जहां 7.9 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा ऐसे ही वातावरण में डंप किया जा रहा था, 2060 में यह आंकड़ा बढ़कर 15.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा।

ऐसे में इसका ठीक तरह से प्रबंधन न हो पाना जहां इंसानी स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है, वहीं यह वन्यजीवन और इकोसिस्टम को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

ऐसे में समस्या की गंभीरता को देखते हुए यह जरुरी है कि दुनिया के सभी देश इससे निपटने के लिए ठोस रणनीति बनाएं।

साथ ही हमें व्यक्तिगत स्तर पर भी इससे निपटने के प्रयास करने होंगे, क्योंकि बढ़ते प्लास्टिक उपयोग को कम करना हमारी भी जिम्मेवारी है।

(यह स्टोरी डाउन टू अर्थ से सभार ली गई है।)

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