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कार्बन क्रेडिट: सरकार ने उद्योगों के लिए जारी किए उत्सर्जन लक्ष्य

केंद्र सरकार ने कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम के तहत उद्योगों के लिए उत्सर्जन टारगेट अधिसूचित किए हैं। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह लक्ष्य 2025-26 और 2026-27 के लिए कार्बन ट्रेडिंग मार्केट के तहत जारी किए गए हैं, जो संकेत है कि इस अवधि के दौरान भारत का कार्बन बाजार संचालन में आ सकता है।

केंद्र सरकार ने 2023 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना अधिसूचित की थी। इस योजना के तहत, भारतीय कार्बन बाजार की रूपरेखा तैयार की गई, जिसका मकसद है एक ऐसी व्यवस्था बनाना, जिसमें कंपनियां कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र खरीद और बेच सकें। यह प्रमाणपत्र किसी कंपनी के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने, रोकने या हटाने के लिए जारी किए जाते हैं।

जिन क्षेत्रों के लिए लक्ष्य तय किए गए हैं उनमें एल्यूमिनियम क्षेत्र की 3 कंपनियां, लौह एवं इस्पात क्षेत्र की 253, पेट्रोलियम रिफाइनिंग की 21, पेट्रोरसायन की 11, नेफ्था आधारित इकाइयों की 11 और कताई/टेक्सटाइल क्षेत्र की 173 इकाइयां शामिल हैं। ये सभी इकाइयां इस योजना के तहत पंजीकृत हैं।

ड्राफ्ट अधिसूचना में कहा गया है कि संबंधित इकाइयों को निर्धारित वर्ष में अपने ग्रीनहाउस गैस एमिशन इंटेंसिटी के लक्ष्यों को हासिल करना होगा। यदि कोई इकाई निर्धारित लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाती है तो वह भारतीय कार्बन बाजार से कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र खरीदकर उस लक्ष्य की पूर्ति कर सकती है।

इन लक्ष्यों की गणना ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) द्वारा की जाएगी।

वन संरक्षण अधिनियम संशोधन: ‘प्राकृतिक वनों को दोहरी क्षति का खतरा’

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामों में चेतावनी दी गई है कि यदि वन (संरक्षण) संशोधन नियम 2023 के तहत मुआवजे के तौर पर वन भूमि का उपयोग किया गया तो प्राकृतिक वनों को दोहरी क्षति हो सकती है।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों और पूर्व वन अधिकारियों ने अदालत के निर्देश पर एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट ने 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि जब तक “क्षतिपूरक वनरोपण” के लिए भूमि उपलब्ध न कराई जाए, तब तक वह ऐसे किसी भी कदम से परहेज़ करे जिससे वनों में कमी हो।

हलफनामों में कहा गया है कि वन सलाहकार समिति (एफएसी) की बैठकों के विश्लेषण से साफ है कि अभी भी डीग्रेडेड अधिसूचित वन भूमि या अवर्गीकृत वनभूमि क्षतिपूरक वृक्षारोपण के लिए दी जा रही है।

याचिकाकर्ताओं ने फरवरी के बाद हुई एफएसी बैठकों का हवाला दिया, जिनमें 603.83 हेक्टेयर वन भूमि को डाइवर्ट करने की मंज़ूरी दी गई थी, जिसमें से 140.79 हेक्टेयर अवर्गीकृत वन भूमि और 2.25 हेक्टेयर डीग्रेडेड वन भूमि थी।

सुप्रीम कोर्ट में इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर गर्मी की छुट्टियों के बाद सुनवाई होनी है।

‘संदिग्ध’ कार्बन क्रेडिट से जुड़ी भारत की 9 परियोजनाएं: रिपोर्ट

कॉरपोरेट एकाउंटबिलिटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में वैश्विक स्वैच्छिक कार्बन बाजार (वीसीएम) से रिटायर किए गए लाखों कार्बन क्रेडिट उत्सर्जन में वास्तविक कटौती नहीं कर सकते थे। यह “संदिग्ध” कार्बन क्रेडिट जिन 47 परियोजनाओं से जारी हुए थे, उनमें से नौ भारत में थीं। इनमें पवन, सौर और हाइड्रोपॉवर क्षेत्र की परियोजनाएं शामिल हैं।

स्वैच्छिक कार्बन मार्केट (वीसीएम) एक ऐसा बाजार है जहां कंपनियां एक-दूसरे से कार्बन क्रेडिट खरीदती और बेचती हैं, ताकि वे अपने कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकें। लेकिन विनिमय की शर्त यह है कि उत्सर्जन में कटौती “अतिरिक्त” (एडिशनल) होनी चाहिए — यानी यह केवल तब ही हो सकता है जब उस प्रोजेक्ट को कार्बन क्रेडिट से वित्तीय सहायता मिली हो। यानी अगर कोई परियोजना बिना कार्बन क्रेडिट से सहयता मिले (सरकारी योजनाओं या निजी निवेश से) बन जाए, तो उस प्रोजेक्ट से होने वाली उत्सर्जन कटौती को “अतिरिक्त” नहीं माना जाएगा।

रिपोर्ट बताती है कि इन 47 परियोजनाओं से जारी किए गए 80 प्रतिशत क्रेडिट “अतिरिक्त” नहीं थे। इनमें एसीएमई, रीन्यू, अडानी, ग्रीनको और जेएचपील की परियोजनाएं शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि ऐसे बड़े अक्षय ऊर्जा प्रोजेक्ट पहले से सरकारी प्रोत्साहनों से लाभान्वित हैं, इसलिए इनसे उत्सर्जन में कोई नई कटौती नहीं हुई।

नासा की वेबसाइट पर जलवायु रिपोर्ट प्रकाशित नहीं करेगा ट्रंप प्रशासन

एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने अब यह साफ कर दिया है कि वह नासा की वेबसाइट पर राष्ट्रीय जलवायु आकलन रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं करेगा, जबकि पहले ऐसा करने का वादा किया गया था। यह रिपोर्ट अमेरिका में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर आधारित है और 1990 के कानून के तहत इसका प्रकाशन अनिवार्य है। हालांकि रिपोर्ट के अनुसार नासा ने कहा कि उसकी ऐसी कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं है।

यह रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन कैसे देश की सुरक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। रिपोर्ट राज्य और स्थानीय सरकारों को आपदाओं से निपटने, योजना बनाने और अनुकूलन की रणनीति तय करने में भी मदद करती है। जलवायु वैज्ञानिकों और पूर्व अधिकारियों ने प्रशासन पर जानबूझकर रिपोर्ट को छिपाने और जनता को महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारी से वंचित रखने का आरोप लगाया है।

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