पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र या दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए SO2 अनुपालन की समय सीमा दिसंबर 2024 से बढ़ाकर दिसंबर 2027 कर दी है।
बहुत अधिक प्रदूषित या नॉन-अटेनमेंट क्षेत्रों में स्थित संयंत्रों का अब एक – एक कर (केस बाइ केस) मूल्यांकन किया जाएगा, जबकि अन्यत्र स्थित संयंत्रों को पूरी तरह से छूट दी गई है, बशर्ते वे स्टैक की ऊँचाई के मानदंडों को पूरा करते हों। भारत में लगभग 600 ताप विद्युत इकाइयों में से 462 श्रेणी C इकाइयाँ और 72 श्रेणी B इकाइयाँ हैं।
दूसरी ओर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि देश भर के बिजली संयंत्रों द्वारा “सुस्ती को सही ठहराने के लिए” नीरी, एनआईएएस और आईआईटी दिल्ली जैसे संस्थानों द्वारा किए गए अध्ययनों का “चुनिंदा रूप से इस्तेमाल” किया जा रहा है। इससे ये बिजलीघर SO2 उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन (FGD) तकनीक लगाने में लगातार देरी कर रहे हैं।
भारत ने दिसंबर 2015 में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए कड़े सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानक स्थापित किए थे, जिनका दो वर्षों के भीतर अनुपालन अनिवार्य था। कई बार समय सीमा बढ़ाये जाने के बाद भी, 92% कोयला आधारित बिजली संयंत्रों ने अभी तक SO2 उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए फ़्लू गैस डिसल्फ़राइज़ेशन इकाइयाँ स्थापित नहीं की हैं। SO2 एक प्रमुख वायु प्रदूषक है जो सूक्ष्म कण पदार्थ (PM2.5) में परिवर्तित हो जाता है और कई तरह की बीमारियों का कारण बनता है।
लुप्त होती झीलों के मुद्दे पर केंद्र और गुजरात प्रदूषण बोर्ड को एनजीटी का नोटिस
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) द्वारा चिन्हित झीलों के लुप्त होने के मुद्दे पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) और अहमदाबाद के जिला मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी किए हैं।
अदालत ने द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया, जिसमें अहमदाबाद नगर निगम का हवाला दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि शहर के 172 में से 37 वॉटर बॉडीज़ लुप्त हो गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ये वाटर बाडीज़ मुख्य रूप से इसलिए लुप्त हुईं क्योंकि उन्हें वैधानिक विकास योजना में पहचान और मान्यता नहीं दी गई थी, जिस कारण उन पर अतिक्रमण किया जाता रहा।
सीपीसीबी की रिपोर्ट ने देहरादून में गंगा नदी के आसपास अवैध खनन की पुष्टि की
उत्तराखंड उच्च न्यायालय को सौंपी गई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट ने गंगा नदी (देहरादून में रायवाला से भोगपुर तक) के आसपास व्यापक रूप से अवैध खनन की पुष्टि की है। गैर-सरकारी संगठन मातृ सदन ने अंधाधुंध मशीनीकृत खनन के फोटोग्राफिक साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के साथ अदालत को सचेत किया। निरीक्षण रिपोर्ट में पाया गया कि खनन गतिविधियाँ गंगा से केवल 501 मीटर और 802 मीटर की दूरी पर हैं। संचालन की सहमति प्रमाणपत्र मार्च 2022 में समाप्त हो गया था, और खदानों में उचित हरित पट्टी और धूल नियंत्रण उपायों का अभाव था।
कुछ क्षेत्रों में जहाँ गंगा अपनी सहायक नदी रवासन से मिलती है, रिपोर्ट में 2.2 मीटर तक की गहराई वाली खदानें पाई गईं, जो 1.5 मीटर की अनुमेय सीमा से अधिक है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सीपीसीबी की रिपोर्ट में अवैध खनन से पर्यावरणीय क्षति की सीमा या स्थानीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव, जिसमें कृषि भूमि की तबाही भी शामिल है, जो उपग्रह चित्रों में दिखाई दे रही है, को दर्शाने वाले तुलनात्मक आँकड़े या विश्लेषण शामिल नहीं हैं। मातृ सदन ने अब अदालत की प्रत्यक्ष निगरानी में पुनः निरीक्षण का अनुरोध किया है।
औद्योगिक प्रदूषण: हरित न्यायालय ने हरियाणा और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण निकायों को नोटिस जारी किया
क्षेत्र में चल रही 21 औद्योगिक इकाइयों पर चिंता जताने वाली एक याचिका के दो साल बाद, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पानीपत के मडलौडा औद्योगिक क्षेत्र में कथित नियामक खामियों और वर्गीकरण संबंधी चिंताओं पर नोटिस जारी किए हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक ये नोटिस पानीपत के सुताना गाँव के एक निवासी की याचिका के बाद जारी किए गए हैं। प्रदूषण बोर्डों को संबंधित दस्तावेज़ जमा करने और उचित कदम उठाने के लिए कहा गया है। मामले की सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी। एनजीटी ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को कपड़ा, रसायन, कीटनाशक और सीमेंट के निर्माण से जुड़ी औद्योगिक इकाइयों द्वारा पर्याप्त नियामक निगरानी या प्रदूषण नियंत्रण अनुपालन के बिना खतरनाक गतिविधियों में लिप्त होने के मुद्दे पर नोटिस जारी किए हैं।
एलन मस्क की xAI को मिली अश्वेत बस्तियों के पास प्रदूषणकारी मीथेन गैस जनरेटर लगाने की हरी झंडी
एलन मस्क की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी xAI को टेनेसी के मेम्फिस स्थित अपने विशाल डेटासेंटर में मीथेन गैस जनरेटर चलाने की अनुमति काउंटी स्वास्थ्य विभाग से मिल गई है। द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, इस पर स्थानीय समुदाय और पर्यावरण नेताओं ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि ये जनरेटर उनके आस-पड़ोस को प्रदूषित करते हैं।
मस्क की xAI ने लगभग एक साल पहले मेम्फिस में अपना विशाल डेटासेंटर स्थापित किया था। इस सुविधा की भारी बिजली खपत को पूरा करने के लिए, कंपनी ने दर्जनों पोर्टेबल मीथेन गैस जनरेटर लगाए। अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, xAI के पास जनरेटर के लिए परमिट नहीं था, लेकिन ऐसा लगता है कि उसने सरकार के नियमों में एक खामी ढूंढ ली थी जिससे उसे टर्बाइनों का उपयोग करने की अनुमति मिल गई, बशर्ते वे 364 दिनों से ज़्यादा एक ही जगह पर न रहें।
अश्वेत बस्तियों के पास होने वाले से प्रदूषण का NAACP नागरिक अधिकार समूह ने विरोध किया है और इसने xAI के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि कंपनी अवैध रूप से मीथेन गैस जनरेटर स्थापित और संचालित करके स्वच्छ वायु अधिनियम का उल्लंघन कर रही है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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