फोटो: Nattanan Kanchanaprat/Pixabay

बेज़ोस की संस्था ने जलवायु समूह की फंडिंग समाप्त की, विशेषज्ञ चिंतित

अमेज़ॉन के सीईओ जेफ बेजोस की चैरिटी संस्था ‘बेजोस अर्थ फंड’ ने साइंस बेस्ड टारगेट्स इनिशिएटिव (एसबीटीआई) की फंडिंग रोक दी है। एसबीटीआई एक संगठन है जो यह आकलन करता है कि कंपनियां पेरिस समझौते के अनुरूप कार्बन उत्सर्जन को कम कर रही हैं या नहीं। बेजोस के 10 बिलियन डॉलर के ‘अर्थ फंड’ ने एसबीटीआई को तीन साल के लिए 18 मिलियन डॉलर का अनुदान दिया था, जो 2024 में समाप्त हो गया।

जबकि दोनों संगठनों के प्रवक्ताओं ने कहा कि अनुदान की अवधि पहले से तय थी, कुछ पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि बेज़ोस की संस्था का यह कदम दर्शाता है कि अमीर व्यक्ति और संगठन जलवायु प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने वाले हैं, संभवतः वर्तमान अमेरिकी प्रशासन से राजनीतिक दबाव के कारण।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कई बार जलवायु परिवर्तन को हौव्वा बता चुके हैं। वह पहले ही ऐसे निर्णय ले चुके हैं जिनसे अमेरिका द्वारा क्लाइमेट फाइनेंस में योगदान पूरी तरह बंद हो चुका है। साथ ही जीवाश्म ईंधन उत्पादन और प्लास्टिक प्रयोग में कटौती, नवीकरणीय ऊर्जा और बैटरी वाहन की प्रगति पर किए गए कई फैसले उन्होंने पलट दिए हैं। विशेषज्ञों को डर है कि इस तरह के फैसलों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार कंपनियों की जवाबदेही तय करना कठिन हो सकता है।

क्लाइमेट लक्ष्य बताने के लिए सितंबर तक का समय 

क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए निर्धारित अपडेटेड लक्ष्यों के लिए संयुक्त राष्ट्र की इकाई ने अब समय सीमा सितंबर तक बढ़ा दी है। लगभग एक दशक पहले हुई पेरिस संधि के तहत, सभी सदस्य देशों को 10 फ़रवरी की प्रतीकात्मक समय सीमा तक अपने लक्ष्य घोषित करने थे। यह लक्ष्य बतायेंगे कि कोई देश 2035 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कितनी कटौती करेगा और इसके लिए उसका रोड मैप क्या है। 

लेकिन कुछ देशों को छोड़कर बाकी देशों ने संयुक्त राष्ट्र को इस बारे में जानकारी नहीं दी है। जिन देशों ने अपने लक्ष्य और योजना घोषित की है उनमें यूएई, ब्राज़ील, स्विटरज़रलैंड, यूनाइटेड किंगडम, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका शामिल हैं। हालांति डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने पेरिस डील से बाहर निकलने का फैसला किया है। बड़े उत्सर्जकों में चीन, यूरोपीय संघ और भारत ने अपने लक्ष्य नहीं बताये हैं। अब सभी देशों से अपील की गई है कि वह सितंबर तक अपने लक्ष्य जमा करें। 

भारत ने विकसित देशों कहा, फाइनेंस पर किया गया वादा पूरा करें

भारत ने क्लाइमेट फाइनेंस प्रदान करने में विकसित देशों की विफलता पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि पर्याप्त फंडिंग के बिना कई संवेदनशील देश सस्टेनेबल डेवलपमेंट करने में असमर्थ होंगे। दुबई में वर्ल्ड गवर्मेंट समिट 2025 में बोलते हुए पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि कई विकाशसील देश पर्याप्त फाइनेंस के बिना जलवायु परिवर्तन से नहीं निपट सकते हैं।

उन्होंने विकसित देशों से अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने का आग्रह किया। यादव ने नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहनों और सस्टेनेबल परिवहन में भारत की प्रगति पर प्रकाश डाला। और जोर देकर कहा कि जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता को होने वाली हानि पर तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।

अमेरिका: 20 बिलियन डॉलर की क्लाइमेट फंडिंग  रोकना चाहता है ईपीए

अमेरिकी पर्यावरण एजेंसी के प्रमुख ली ज़ेल्डिन गरीब क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा और परिवहन परियोजनाओं के लिए दिया गया 20 बिलियन डॉलर का सरकारी अनुदान रद्द करना चाहते हैं। इस फंडिंग को राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान मंजूरी दी गई थी। ज़ेल्डिन का दावा है कि यह पैसा बहुत जल्दी और उचित जांच-पड़ताल के बिना जारी कर दिया गया था।

ज़ेल्डिन अमेरिकी सांसदों और अधिकारियों के साथ मिलकर फंडिंग रोक देना चाहते हैं। हालांकि, कुछ राजनेताओं का कहना है कि अनुदान को रद्द करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस से अनुमोदन की आवश्यकता हो सकती है और कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। यह कदम पूरे अमेरिका में, विशेष रूप से अविकसित समुदायों के बीच, जलवायु संबंधी परियोजनाओं को प्रभावित कर सकता है।

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