देश में वायु-प्रदूषण को लेकर ताज़ा आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं।
30 अक्टूबर 2025 को जारी दुनिया के 40 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सभी भारत के रहे। हैरानी की बात यह रही कि दिल्ली इस सूची में 13वें स्थान पर थी, जबकि श्रीगंगानगर, सिवानी और अबोहर जैसे छोटे शहर उससे आगे निकल गए। यह स्थिति दिखाती है कि प्रदूषण अब बड़े शहरों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में फैल गया है।
सोमवार को जारी आकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश-हरियाणा सीमा पर स्थित धारूहेड़ा में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 434 तक पहुंच गया, जबकि हरियाणा के भिवानी में एक्यूआई 406 और रोहतक में 389 तक पहुंच गया। यह आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानदंडों से कई गुना अधिक हैं।
वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उत्तर प्रदेश के 17 शहरों को ऐसे नॉन-अटेनमेंट शहरों के रूप में चिन्हित किया है जहां वायु प्रदूषण की समस्या बनी हुई है। इनमें सात बड़े (मिलियन प्लस) और 10 छोटे शहर शामिल हैं। गौरतलब है कि नॉन-अटेनमेंट शहर वो होते हैं जहां की हवा की स्थिति राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों पर पूरी तरह खरी नहीं है।
राजधानी दिल्ली की हवा सोमवार को अचानक बहुत खराब हो गई। प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा और सुबह 9 बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक 316 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। हालांकि निजी संस्था AQI.in के अनुसार यह स्तर थोड़ा कम, 242 रहा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 02 नवंबर, 2025 को 254 शहरों के लिए जारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि इनमें से केवल 30 फीसदी शहरों में हवा साफ है। विशेषज्ञों का कहना है कि 400 से अधिक एक्यूआई में वायु गुणवत्ता इतनी खराब हो जाती है कि वो स्वस्थ इंसान को भी नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए तो यह जानलेवा हो सकती है।
जानकारों के मुताबिक शीतमंडल में ठहरी हवा, पराली का धुआं, औद्योगिक व वाहन उत्सर्जन और निर्माण कार्य से उठने वाली धूल बढ़ते प्रदूषण के मुख्य कारक हैं। इनसे वायु में माइक्रो पार्टिकुलेट्स (PM2.5, PM10) की सांद्रता खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह स्थिति घातक है — वृद्ध, बच्चों, और सांस की बीमारी वाले लोगों को घर के अंदर रहने, मास्क पहनने, और बाहरी गतिविधियां सीमित करने की सलाह दी गई है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
कॉप-30: जलवायु संकट से निपटने की नई कोशिशें, लेकिन पुरानी चुनौतियां बरकरार
-
कॉप30: 1.3 ट्रिलियन डॉलर क्लाइमेट फाइनेंस का रोडमैप जारी
-
$300 बिलियन का प्रश्न: कॉप30 से पहले खड़ा सवाल
-
पान मसाला उद्योग के लिए खैर के जंगलों का अंधाधुंध विनाश
-
भारत में वायु प्रदूषण से 2022 में 17 लाख मौतें, जीडीपी का 9.5% आर्थिक नुकसान: द लैंसेट
