वायु प्रदूषण से भारतीयों की औसत उम्र 4 साल 11 महीने कम हो रही है। देश के 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पाया गया कि नागरिकों कि वायु प्रदूषण और उससे संबंधित बीमारियों के कारण औसत उम्र 5 साल या उससे घट जाती है। यह बात दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की ताज़ा स्टेट ऑफ इन्वायरेंमेंट रिपोर्ट 2023 में कही गई है। वायु प्रदूषण की मार से राजधानी दिल्ली में लोगों की उम्र सबसे अधिक 10 साल घट रही है। हरियाणा में 7 साल और पंजाब में 6 साल घट उम्र रही है।
सीएई के मुताबिक यह विश्लेषण ज़िलावार वायु गुणवत्ता सूचकांक पर आधारित है जो कि यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट ने जारी किया है। लद्दाख में रहने वालों के जीवन में वायु प्रदूषण सबसे कम असर डाल रहा है लेकिन यहां भी जीवनावधि औसतन 4 महीने कम हो ही रही है।
वायु प्रदूषण बढ़ा रहा है कोविड का खतरा
नए शोध बताते हैं कि प्रदूषित हवा – विशेष रूप से पीएम 2.5 के खतरनाक स्तर और नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड (NO2) – में लम्बे समय तक रहने (एक्सपोज़र) से कोविड जैसी बीमारी के होने, अस्पताल में भर्ती होने और मौत का ख़तरा बढ़ रहा है। इंग्लैंड में किए गए एक शोध से पता चला है पीएम 2.5 और NO2 में लंबी अवधि में रहने पर कोविड के मामलों में प्रति माइक्रोग्राम बढ़ोतरी से 12% और 5% केस बढ़ रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है प्रदूषण लोगों के फ़ेफ़ड़ों को कमज़ोर कर वायरल बुखार के प्रति उनकी प्रतिरोधक क्षमता घटा देता है जिससे कोविड का ख़तरा बढ़ रहा है।
दिल्ली में रियल टाइम प्रदूषण डाटा संग्रह के लिए 11 ज़िलों में होंगी मोबाइल वैन
बजट पेश करते हुए दिल्ली सरकार ने विधानसभा में दावा किया कि पिछले 8 साल में राजधानी के प्रदूषण में 30% कमी आई है। वित्तमंत्री कैलाश गहलोत ने साल 2023-24 का बजट पेश करते हुए कहा कि पीएम 10 और पीएम 2.5 पार्टिकुलेट मैटर का स्तर 30 प्रतिशत घटा है और अब केजरीवाल सरकार हर ज़िले में रियल टाइम पॉल्यूशन डाटा कलेक्शन प्रयोगशाला स्थापित करेगी। दिल्ली के पंडारा रोड क्षेत्र में इस साल 30 जनवरी को एक प्रयोगशाला स्थापित की गई थी जिसकी जगह सभी 11 ज़िलों में अब मोबाइल वैन डाटा एकत्र करेंगी।
हालांकि दिल्ली सरकार ने वन और पर्यावरण मंत्रालय के लिए 263 करोड़ बजट घोषित किया है जो पिछले साल (266 करोड़) के मुकाबले इस साल 3 करोड़ कम है। दिल्ली सरकार आईआईटी और दि एनर्जी एंड रिसोर्सेज संस्थान (टेरी) के साथ मिलकर यह पता लगाने के लिए अध्ययन करवा रही है कि प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार स्रोतों का दिल्ली की हवा को ख़राब करने में कितना रियल टाइम योगदान है।
महत्वपूर्ण है कि मॉनिटरिंग के मामले में दिल्ली में पिछले 8 साल में सुधार हुआ है और राजधानी में मॉनिटरिंग स्टेशनों की संख्या 4 गुना बढ़ी है। सड़क पर धूल को कम करने के लिए सरकार पूरी राजधानी में 52 लाख पेड़ भी लगाएगी।
इस्तेमाल हो चुके फेस मास्क का प्रयोग कार्बन कैप्चर तकनीक में
भारतीय शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एक नई तकनीक विकसित की है जिसमें इस्तेमाल किए जा चुके फेस मास्क का इस्तेमाल वातावरण से ऑक्सीज़न हटाने के लिए किया जा सकेगा। शोधकर्ताओं ने इन नकाबों को बहुत महीन छिद्रपूर्ण रेशेदार अवशोषकों में बदला जिनकी मदद से गैस, द्रव और घुलनशील ठोस से अणुओं को एक सतह पर खींचा जा सकता है। इस टीम की अगुवाई बैंगलुरू की अलायंस यूनिवर्सिटी के रिसर्चर कर रहे हैं। रवेदार या पाउडरनुमा मटीरियल के मुकाबले इस तरह डेवलप किए गए अवशोषक काफी असरदार हैं जो कई जगहों पर काम करते हैं और इनके सोखना की दर और क्षमता अपेक्षाकृत काफी अधिक है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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