पर्यावरण मंत्रालय ने संसद को बताया कि भारत अपनी जलवायु या प्रदूषण नीति को निर्धारित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग का उपयोग नहीं करेगा। मंत्रालय ने उन रिपोर्टों से खुद को अलग कर लिया है जिनमें अक्सर भारत को दुनिया के सबसे जलवायु-संवेदनशील और प्रदूषित देशों में गिना जाता है।
नवीनतम वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक (ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स) के बारे में पूछे जाने पर, जिसमें भारत को चरम मौसम प्रभावों के लिए नौवें स्थान पर रखा गया है और 1995 से अब तक 80,000 से अधिक मौतें और लगभग 170 अरब डॉलर का नुकसान दर्ज किया गया है, मंत्रालय ने कहा कि वह घरेलू नीति निर्माण के लिए किसी भी बाहरी रैंकिंग को मान्यता नहीं देता है। मंत्रालय ने तर्क दिया कि आर्थिक नुकसान के जलवायु घटक को अलग करना अभी भी एक चुनौती है।
मंत्रालय ने IQAir और WHO की वैश्विक वायु गुणवत्ता रैंकिंग पर भी इसी तरह का रुख अपनाया और कहा कि ये आधिकारिक आकलन नहीं हैं और देश स्थानीय भूगोल और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के आधार पर मानक निर्धारित करते हैं। इसके बजाय, भारत स्वच्छ हवा पर शहर-स्तरीय प्रगति का मूल्यांकन और पुरस्कृत करने के लिए अपनी स्वयं की निगरानी और वार्षिक स्वच्छ वायु सर्वेक्षण पर निर्भर रहता है।
जलवायु और हरित शहरी परियोजनाओं के लिए जर्मनी ने भारत को 1.3 अरब यूरो का रियायती ऋण दिया
सरकारी स्तर पर हुई वार्ताओं के नवीनतम दौर के बाद, जर्मनी अपनी हरित और सतत विकास साझेदारी के तहत भारत को लगभग 1.3 अरब यूरो का रियायती ऋण प्रदान करेगा। यह धनराशि जलवायु और ऊर्जा परियोजनाओं, सतत शहरी विकास, ग्रीन मोबिलिटी (इलैक्ट्रिक वाहनों) और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा में कौशल विकास पर गहन सहयोग को बढ़ावा देगी।
दोनों देशों ने संयुक्त परियोजनाओं की एक नई सूची पर सहमति व्यक्त की है, जिसमें जर्मन अधिकारियों ने इस साझेदारी को अपने पैमाने और महत्वाकांक्षा में अद्वितीय बताया है। ग्रीन मोबिलिटी एक प्रमुख फोकस बनी हुई है: जर्मनी 340 मिलियन यूरो के केएफडब्ल्यू ऋण के माध्यम से बेंगलुरु में मेट्रो विस्तार का समर्थन कर रहा है और शहर के लिविंग लैब जैसी इनोवेटिव परियोजनाओं का समर्थन कर रहा है, जिसमें भारत का पहला रूफटॉप सौर ऊर्जा संचालित इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन शामिल है जो सेकंड-लाइफ बैटरी का उपयोग करता है।
श्रीलंका में चक्रवात दित्वाह के कारण भीषण तबाही के बीच संयुक्त राष्ट्र ने की 35 मिलियन डॉलर जुटाने की पहल
संयुक्त राष्ट्र ने चक्रवात दित्वाह के बाद श्रीलंका की सहायता के लिए अगले चार वर्षों में 35 मिलियन डॉलर जुटाने की योजना बनाई है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि संकट के बाद कर्ज के बोझ तले दबे श्रीलंका के लिए पुनर्निर्माण लागत वहन करना असंभव है। इस सप्ताह शुरू की गई मानवीय प्राथमिकता योजना में भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, आश्रय और शीघ्र पुनर्निर्माण सहित तत्काल जरूरतों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
इस आपदा में कम से कम 638 लोग मारे गए हैं और 193 लापता हैं, जबकि लगभग पांच लाख बच्चे प्रभावित हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि आश्रय स्थलों में भीड़ बढ़ने से गरीबी और सुरक्षा संबंधी जोखिम और भी बदतर हो रहे हैं। इस पहल को अब तक ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे साझेदारों से 9.5 मिलियन डॉलर प्राप्त हुए हैं और 26 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त सहायता की मांग की जा रही है।
अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (ईपीए) ने हटाए अपनी वेबसाइट से मानव जनित जलवायु परिवर्तन के संदर्भ
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका पर्यावरण संरक्षण अथॉरिटी (ईपीए) ने अपनी वेबसाइट के उन अनुभागों को हटा या संपादित कर दिया है जिनमें बताया गया था कि कोयला, तेल और गैस जलाने से जलवायु परिवर्तन कैसे होता है। यह बदलाव ट्रंप प्रशासन द्वारा जीवाश्म ईंधन उत्पादन बढ़ाने और संघीय जलवायु नीति को समाप्त करने के प्रयासों के अनुरूप है।
एजेंसी के “जलवायु परिवर्तन के कारण” पृष्ठ पर अब मानव गतिविधियों का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, बल्कि ज्वालामुखी गतिविधि और सौर परिवर्तनों जैसे प्राकृतिक कारकों की ओर इशारा किया गया है, साथ ही अस्पष्ट रूप से यह भी कहा गया है कि हालिया वैश्विक तापमान वृद्धि को “केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं समझाया जा सकता”।
आईपीसीसी के इस निष्कर्ष का हवाला देने वाला पिछला अनुभाग हटा दिया गया है कि मानव प्रभाव “स्पष्ट” है। शिक्षकों और शोधकर्ताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्रमुख “जलवायु संकेतक” पृष्ठ भी गायब हो गए हैं।
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