
Newsletter - October 16, 2025
फोटो: रिद्धि टंडन
स्पष्ट रूप से सिकुड़ रहे हैं भारत के जंगल
भारत में वनों की कटाई अब छुपी नहीं बल्कि सार्वजनिक दृष्टि में हो रही है। हिमाचल प्रदेश के चम्बा में अगस्त की बाढ़ के दौरान रावी नदी कटे हुए दर्जनों लॉग्स (पेड़ के कटे तनों) को साथ बहाती आई — यह संकेत था कि वनों की अवैध कटाई स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को खामोशी से खोखला कर रही है। इस घटना ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया। चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई एवं जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने ये वीडियो “प्रारंभिक रूप से अवैध” वृक्षों की कटाई का संकेत बताते हुए पर्यावरण, जल शक्ति और संबंधित मंत्रालयों को जवाब तलब किया कि इस समस्या को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
बड़े पैमाने पर वनों की क्षति: अवैध कटाई और बड़े परियोजनाओं का दबाव
वनों पर दबाव सिर्फ स्थानीय उपयोग और तस्करी तक सीमित नहीं है — बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक परियोजनाएं भी भारी मात्रा में वनक्षति का कारण बन रही हैं:
निकोबार में बड़े बंदरगाह-शहर परियोजना (Great Nicobar port-city project) लगभग 130 वर्ग किलोमीटर प्राइमरी वर्षावन को साफ कर सकती है — 10 लाख से 1 करोड़ तक वृक्षों की कटाई हो सकती है।
- केन-बेतवा लिंक परियोजना में भी लगभग 4 लाख वृक्ष कटने का अनुमान है।
- हसदेव अरण्य में आदानी की कोयला ब्लॉक परियोजना 3.68 लाख वृक्षों की कटाई का कारण बन सकती है।
- अरुणाचल प्रदेश में दिबांग बहुउद्देश्यीय परियोजना 3.2 लाख वृक्षों और एटलिन जलविद्युत परियोजना 2.7 लाख वृक्षों की कटाई करेगी।
- पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2020–22 के बीच स्वीकृत परियोजनाएँ ही लगभग 23 लाख वृक्षों को कटाने का मार्ग प्रशस्त कर चुकी हैं।
इन परियोजनाओं के लिए अक्सर प्रस्तावकों से अपेक्षा की जाती है कि वे जितनी संख्या में वृक्षों को काटें, उससे अधिक संख्या में नये वृक्ष लगाएँ। लेकिन यहाँ समस्या यह है कि प्लांटेशन और मूल वनों में चरित्र का अंतर है — एक जगह पर कर दिया गया सामूहिक वृक्षारोपण कभी भी जटिल पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता से भरपूर जंगल की भरपाई नहीं ले सकता।
‘वन क्षेत्र वृद्धि’ का भ्रम
आधे दशक से, भारत में वन क्षेत्र में वृद्धि का दावामान किया जाता रहा है — आंकड़ों के मुताबिक:
- 1980 में जंगलों का अनुपात लगभग 18.34% था।
- 1991 में यह बढ़कर 19.44% हुआ, 2003 में 20.64%, 2011 में 21.05% और 2023 में 21.76% तक पहुँच गया।
परन्तु यह वृद्धि ‘वन’ की विस्तार की सच्ची वृद्धि नहीं है — ये आंकड़े वन और पौधरोपण (प्लांटेशन) को एक साथ मिला कर तैयार किए जाते हैं। वन सर्वेक्षण (FSI) की इन् व्याख्याओं में:
- ऐसी भूमि को भी वन माना जाता है जिसमें 1 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र हो और वृक्ष आवरण (canopy density) 10 % से अधिक हो।
- निजी भूमि उपयोग, वृक्षों की किस्म या जैव विविधता इन आंकड़ों में नहीं देखे जाते।
इसका मतलब है कि घने मूल जंगलों का क्षरण जारी रहने के बावजूद, हम वृक्षों के व्यापक वितरण के कारण कुल वन क्षेत्र बढ़ा हुआ देख रहे हैं। लेकिन यह वन्य पारिस्थिति (forest ecosystem) की वसूली नहीं है।
वास्तविक परिवर्तन की आवश्यकता
मूल वनों की रक्षा और पुनरुद्धार के लिए दो महत्वपूर्ण उपाय अनिवार्य हैं:
- अवैध लकड़ियों की कटाई को नियंत्रण करना, चाहे वह स्थानीय उपयोग हो या तस्करी — विशेष रूप से कीलो जैसे मांग वाले पेड़।
- उच्च गुणवत्ता वाले वनीकरण को बढ़ावा देना — ऐसे रोपण जो मूल जंगलों की जैव विविधता, स्थानीय रूप से उपयुक्त प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल हों। उदाहरण स्वरूप, राजस्थान का राव जोधा नेशनल पार्क और नरकुला का वनीकरण कार्य इस दिशा में सकारात्मक कदम हैं।
निष्कर्ष
वीडियो में बहती कटे हुए लॉग्स, सुप्रीम कोर्ट की सतर्कता, बड़े योजनाओं द्वारा वनक्षय, और वन पौधारोपण के मिश्रित आंकड़ों के बीच एक स्पष्ट संदेश उभरता है:
भारत में जंगल घट रहे हैं — लेकिन हम वृद्धि दर्ज कर रहे दिखते हैं
मूल जंगल और जैव विविधता केवल वृक्षों की संख्या नहीं, उनकी संरचना, पारिस्थितिकी और स्थानीय संयोजन है। यदि कटाई और दबाव जारी रहे — और पौधरोपण को एक व्यापार की तरह किया जाए — तो यह भ्रम ही हमारा बर्बादी का मार्ग बनेगा।
फोटो: Balaji Srinivasan/Pixabay
कुल 11,000 प्रजातियों के विलुप्ति जोखिम का आकलन करने के लिए ‘नेशनल रेड लिस्ट आकलन’ शुरू
जैव विविधता पर कन्वेंशन (सीबीडी) और कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के तहत किए गए वादों को पूरा करने के लिए भारत ने ‘नेशनल रेड लिस्ट असेसमेंट (एनआरएलए)’ 2025–2030 विज़न डॉक्यूमेंट की शुरुआत की है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस पहल का उद्देश्य देशभर की करीब 11,000 प्रजातियों — जिनमें 7,000 वनस्पति प्रजातियां और 4,000 जीव-जंतु प्रजातियां शामिल हैं — के विलुप्ति जोखिम का दस्तावेज़ीकरण और आकलन करना है।
जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) और वॉटिनिकल सर्वे (बीएसआई) ने आईयूसीएन-इंडिया और सेंटर फॉर स्पीशीज सर्वाइवल के साथ मिलकर एक समन्वित, वैज्ञानिक रूप से आधारित प्रणाली का ढांचा तैयार किया है, जो भारत की प्रजातियों की संरक्षण स्थिति का मूल्यांकन और निगरानी करेगी।
भारत दुनिया के 17 मेगाविविध देशों में से एक है, और यहां 36 वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से चार — हिमालय, पश्चिमी घाट, इंडो-बर्मा और सुंडालैंड — स्थित हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत विश्व के कुल भूभाग का केवल 2.4% हिस्सा घेरता है, लेकिन इसमें विश्व की लगभग 8% वनस्पतियां और 7.5% जीव-जंतु पाए जाते हैं। इनमें से 28% पौधे और 30% से अधिक जानवर देश के लिए स्थानिक (एंडेमिक) हैं।
सात वर्षों में तीसरी बार डूबा पंजाब: 2025 की बाढ़ ने ‘भारत के अन्न भंडार’ को किया तबाह
पंजाब में आई हालिया बाढ़ ने 7 लाख हेक्टेयर जमीन को पानी में डुबो दिया, जहां सड़ती फसलें और गाद के ढेर रह गए। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 10–15 दिनों में 2,520 गांव जलमग्न हो गए और कृषि से जुड़े करीब 4 लाख लोग प्रभावित हुए।
राज्य की ‘लगभग कटाई के लिए तैयार’ फसलें 2,02,000 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि पर पूरी तरह नष्ट हो गईं। अनुमान है कि चावल की फसल में ₹7,500 करोड़ का नुकसान हुआ है, जबकि फॉल्स स्मट रोग ने 3 लाख एकड़ क्षेत्र को प्रभावित किया है।
गुरदासपुर के शिकार गांव के जैविक किसान तेज प्रताप सिंह ने कहा, “जलवायु परिवर्तन और सरकारी कुप्रबंधन के परिणाम का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है?”
हार्दोवाल गांव की 60 वर्षीय दलबीर कौर ने बताया: “25 अगस्त की आधी रात को बाढ़ अचानक आई… कोई चेतावनी नहीं थी। हमने कभी नहीं सोचा था कि पानी यहां तक पहुंच जाएगा। अब भी खेत और घरों में दो फीट तक गाद भरी है।”
रेलवे लाइन और राज्य राजमार्ग के बीच बसे इस क्षेत्र के सभी गांव जलमग्न हैं। गन्ना और धान की फसलें अब भी पानी में डूबी हुई हैं। यह बाढ़ पंजाब के ग्रामीण परिदृश्य को बदल चुकी है।
वैज्ञानिकों की चेतावनी: कोरल रीफ्स के नष्ट होने के साथ पहला ‘जलवायु टिपिंग पॉइंट’ पार
दुनिया अब अपना पहला ‘जलवायु टिपिंग पॉइंट’ पार कर चुकी है — जब वैश्विक तापन ने गर्म-पानी वाले कोरल रीफ्स को अपरिवर्तनीय क्षय की ओर धकेल दिया है। द इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट में बताया गया कि 23 देशों के 160 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस नई शोध में पाया गया है कि ये रीफ्स अब अपने ‘थर्मल टिपिंग पॉइंट’ से गुजर रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने यह सीमा पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.2 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि पर रखी थी, जबकि दुनिया अब 1.4 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच चुकी है। न्यू साइंटिस्ट से बात करते हुए प्रमुख लेखक प्रोफेसर टिम लेनटन ने कहा, “हमने 1.5 डिग्री सेल्सियस की दुनिया का एक नमूना देखा है — और इसके परिणाम भी। अधिकांश कोरल रीफ्स अब बड़े पैमाने पर मरने या सीवीड और एल्गी से ढके रूप में बदलने के जोखिम में हैं।”
द गार्डियन ने रिपोर्ट किया कि दुनिया अब अन्य ‘टिपिंग पॉइंट्स’ — जैसे अमेज़न वर्षावनों के सूखने, महासागरीय धाराओं के ढहने और बर्फ की चादरों के पिघलने — के भी करीब पहुंच चुकी है।
भारत का ‘कोल्ड डेजर्ट’ बना 13वां यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व
यूनेस्को ने 27 सितंबर 2025 को भारत के ‘कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व’ को अपनी वैश्विक सूची में शामिल कर लिया है। डाउन टू अर्थ के अनुसार, भारत में अब कुल 13 यूनेस्को बायोस्फीयर रिजर्व हैं। यह भारत का पहला उच्च-ऊंचाई वाला ठंडा मरुस्थलीय रिजर्व है और यूनेस्को की वैश्विक नेटवर्क में सबसे ठंडे और शुष्क पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है। लगभग 7,770 वर्ग किलोमीटर में फैला यह क्षेत्र 3,300 से 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसमें पिन वैली नेशनल पार्क, चंद्रताल, सर्चू और किब्बर वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी शामिल हैं।
यह क्षेत्र हिम तेंदुए, हिमालयी आइबेक्स, नीली भेड़ और स्वर्ण चील जैसे दुर्लभ जीवों का घर है। यहां करीब 12,000 स्थानीय निवासी पशुपालन, खेती और पारंपरिक औषधि से अपनी जीविका चलाते हैं।
गंगा की गर्मी के मौसम की धारा का स्रोत हिमनद नहीं, भूजल है
एक नई वैज्ञानिक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि गंगा नदी की गर्मी के मौसम की धारा मुख्य रूप से भूजल से संचालित होती है, हिमनद (ग्लेशियर) से नहीं। मोंगाबे इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पत्रिका हाइड्रोलॉजिकल प्रोसेसेज़ में प्रकाशित इस अध्ययन ने समस्थानिक (आइसोटोप) विश्लेषण के ज़रिए यह निष्कर्ष निकाला कि भूजल जलभृत (एक्वीफायर्स) गंगा की धारा के प्रमुख स्रोत हैं।
मुख्य लेखक अभयानंद सिंह मौर्य ने बताया कि हिमनदों से आने वाले जल का योगदान केवल कुल प्रवाह का लगभग 32% है। उन्होंने कहा, “गंगा के मैदानों में प्रवाह ऋषिकेश से कई गुना अधिक है — इससे यह स्पष्ट होता है कि शेष जल का स्रोत भूजल ही है।”
गंगा नदी, जो गंगोत्री हिमनद से निकलकर इंडो-गैंजेटिक मैदान होते हुए भारत और बांग्लादेश से गुजरती है, न केवल करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है बल्कि यह आर्द्रभूमि और मछलियों जैसे पारिस्थितिक तंत्रों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दार्जिलिंग में भूस्खलन: पर्यावरणविदों ने बताया ‘मानवजनित आपदा’
दार्जिलिंग में हालिया भूस्खलनों को पर्यावरणविदों ने ‘मानवजनित पारिस्थितिक आपदा’ बताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह दशकों से चली आ रही वनों की कटाई, अनियोजित शहरीकरण और कमजोर शासन व्यवस्था का नतीजा है, जिसने नाजुक हिमालयी ढलानों को अस्थिर बना दिया है। 12 घंटे की लगातार बारिश ने 20 से अधिक लोगों की जान ले ली और सैकड़ों को बेघर कर दिया।
पर्यावरणविद् सुजीत रहा ने कहा, “बारिश केवल ट्रिगर है, असली कारण पहाड़ों के साथ किया गया अत्याचार है।” विशेषज्ञों ने चेताया कि बेढंगे निर्माण, खराब जल निकासी और पर्यटन केंद्रित विकास ने दार्जिलिंग की पारिस्थितिकी को बदल दिया है।
जेएनयू के प्रोफेसर विमल खवास ने कहा कि यह त्रासदी हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती जलवायु संकट और स्थानीय प्रशासनिक विफलता का हिस्सा है। उन्होंने स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन और जल संसाधन नियोजन की मांग की। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि पूर्वी हिमालय अब ‘जलवायु परिवर्तन से जलवायु संकट’ के चरण में पहुंच चुका है।
सितंबर की बाढ़ ने महाराष्ट्र में 68 लाख हेक्टेयर फसलें तबाह कीं
महाराष्ट्र में सितंबर में आई भारी बारिश और बाढ़ ने 68.69 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर खड़ी फसलें नष्ट कर दीं, जिससे मराठवाड़ा और आसपास के क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए। राहत एवं पुनर्वास विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, राज्य सरकार प्रभावित किसानों के लिए केंद्र से वित्तीय सहायता मांगने का प्रस्ताव तैयार कर रही है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दोनों उपमुख्यमंत्रियों एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ समीक्षा बैठक की है।
बीड़, नांदेड़, छत्रपति संभाजीनगर, यवतमाल, लातूर, सोलापुर, जालना, परभणी, बुलढाणा और नाशिक जैसे जिलों में 3 से 7 लाख हेक्टेयर तक की फसलें बर्बाद हुई हैं। किसानों ने प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपए मुआवज़े और कर्जमाफी के वादे को पूरा करने की मांग की है। बाढ़ में सिंचाई उपकरण और बिजली पंप बह गए, जिससे खेती फिर शुरू करना मुश्किल हो गया है। विभाग ने बताया कि एग्रीस्टैक प्रणाली के तहत किसानों का ई-केवाईसी कार्य तेज़ी से पूरा किया जा रहा है, ताकि राहत वितरण शीघ्र हो सके।
फोटो: @byadavbjp/X
कॉप-30 बने ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ अडॉप्टेशन’: भारत
ब्रासीलिया में आयोजित प्री-कॉप30 मंत्री-स्तरीय बैठक में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि आगामी कॉप-30 सम्मेलन को “कॉप ऑफ अडॉप्टेशन” बनाया जाना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि अब समय है जब जलवायु प्रतिबद्धताओं को वास्तविकता में बदला जाए। यादव ने कहा कि बेलें (ब्राजील) में होने वाला यह सम्मेलन एक मजबूत राजनीतिक संदेश दे कि बहुपक्षवाद (मल्टीलैटरलिज़्म) ही वैश्विक क्लाइमेट एक्शन की आधारशिला है।
उन्होंने यूएई-बेलें वर्क प्रोग्राम के तहत न्यूनतम संकेतकों पर सहमति की अपील की और जलवायु अनुकूलन के लिए वित्तीय प्रवाह बढ़ाने की आवश्यकता बताई। यादव ने भारत की इंटरनेशनल सोलर अलायंस जैसी पहलों को बहुपक्षीय सहयोग के सफल उदाहरण बताया।
पेरिस समझौते के दस साल बाद भी जलवायु पहलों की रफ्तार धीमी: रिपोर्ट
कौंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि पेरिस समझौते के दस वर्ष बाद भी वैश्विक जलवायु सहयोग के नतीजे सीमित रहे हैं। इस विश्लेषण में 203 अंतरराष्ट्रीय जलवायु पहलों का अध्ययन किया गया और पाया गया कि केवल 5% ने अपने लक्ष्य हासिल किए, जबकि 20% से अधिक ठप या निष्क्रिय हो गई हैं। अधिकांश पहलों में स्पष्ट लक्ष्य, वित्तीय सहायता और जवाबदेही की व्यवस्था नहीं है, जिससे दीर्घकालिक प्रगति मुश्किल हो जाती है।
साल 2015 से अब तक सरकारों, निवेशकों और संगठनों के बीच 475 से अधिक स्वैच्छिक साझेदारियां शुरू हुईं, लेकिन इनमें से आधे से ज्यादा के लक्ष्य ऐसे नहीं हैं जिनका आकलन किया जा सके। वहीं जिन परियोजनाओं की शुरुआत ठोस योजनाओं और मॉनिटरिंग प्रणालियों के साथ हुई उन्होंने बेहतर परिणाम दिखाए हैं।
अधिकांश प्रयास ग्रीनहाउस गैसों में कमी (मिटिगेशन) पर केंद्रित रहे हैं, जबकि अनुकूलन (अडॉप्टेशन) से जुड़ी पहलें — जैसे सूखा प्रबंधन, रेसिलिएंट कृषि या वनों की सुरक्षा — कम हैं। हानि और क्षति (लॉस एंड डैमेज) से संबंधित पहलें हाल के वर्षों में ही शुरू हुई हैं, जो दर्शाती हैं कि क्लाइमेट जस्टिस में असमानता अभी भी मौजूद है।
भारत ने ग्लोबल साउथ में एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरते हुए आठ पहलें शुरू की हैं। हालांकि स्थानीय सरकारों और निजी निवेशकों की भागीदारी अब भी सीमित है। रिपोर्ट ने क्लाइमेट एक्शन को पटरी पर बनाए रखने के लिए बेहतर निगरानी, वित्तीय सहयोग और साझेदारी को मज़बूत करने की सिफारिश की है।
पहली डीएनए आधारित गणना में भारत में हाथियों की संख्या 18% घटी
भारत में हाथियों की संख्या का पहली बार डीएनए आधारित आकलन किया गया है, जिसमें देश में 22,446 जंगली हाथी होने का अनुमान लगाया गया है। यह आंकड़ा 2017 की गणना (27,312) से कम है, लेकिन अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि दोनों आंकड़ों की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि इस बार नई वैज्ञानिक पद्धति अपनाई गई है।
ऑल-इंडिया सिंक्रोनस एलिफेंट एस्टीमेशन (SAIEE) 2025 रिपोर्ट के अनुसार देश में हाथियों की संख्या 18,255 से 26,645 के बीच है। सर्वेक्षण 2021 में शुरू हुआ था और जटिल डीएनए विश्लेषण के कारण रिपोर्ट चार साल बाद जारी हुई।
इस बार 21,000 से अधिक गोबर नमूनों का डीएनए परीक्षण कर 4,065 हाथियों की पहचान की गई। पश्चिमी घाट क्षेत्र में सर्वाधिक 11,934 हाथी, उसके बाद पूर्वोत्तर क्षेत्र (6,559) और शिवालिक-गंगा क्षेत्र (2,062) हैं। कर्नाटक में सबसे अधिक (6,013) हाथी हैं, जबकि असम, तमिलनाडु, केरल और उत्तराखंड क्रमशः अगले स्थानों पर हैं। यह नई गणना भविष्य के संरक्षण कार्यों के लिए वैज्ञानिक आधार बनेगी।
दुर्लभ खनिज निर्यात पर चीन ने लगाए नए प्रतिबंध
दुर्लभ (रेयर अर्थ) खनिजों पर लगभग एकाधिकार रखने वाले चीन ने इनके खनन और प्रोसेसिंग से जुड़ी तकनीकों के निर्यात पर नए प्रतिबंध लागू किए हैं। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि कुछ विदेशी कंपनियां चीन की आपूर्ति का सैन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग कर रही हैं। मंत्रालय ने कहा कि दुर्लभ (रेयर अर्थ) खनिजों के खनन, स्मेल्टिंग और सेपरेशन (पृथक्करण) से जुड़ी तकनीक और उनके उपकरणों का निर्यात बिना अनुमति नहीं किया जा सकेगा। यही नियम मेटल स्मेल्टिंग, मैग्नेटिक मैटेरियल विनिर्माण और अन्य स्रोतों से रेयर अर्थ की रीसाइक्लिंग और प्रयोग पर भी लागू होगा।
चीन वैश्विक दुर्लभ खनिज खनन का करीब 70% और प्रोसेसिंग का 90% नियंत्रित करता है। अमेरिका, यूरोपीय संघ और भारत इसके प्रमुख आयातक हैं। नए प्रतिबंध एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) सम्मेलन से पहले लगाए गए हैं, जहां राष्ट्रपति शी जिनपिंग और डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात प्रस्तावित है।
फोटो: Ministry of Culture/Wikimedia Commons
दिल्ली-एनसीआर में दिवाली पर ग्रीन पटाखों को मंजूरी
सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली के अवसर पर दिल्ली-एनसीआर में ग्रीन पटाखों की बिक्री और आतिशबाज़ी की अनुमति दे दी है। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने केंद्र और दिल्ली सरकार के संयुक्त अनुरोध को स्वीकार करते हुए अंतरिम राहत दी है। अदालत ने कहा कि 18 से 21 अक्टूबर तक सीमित अवधि के लिए पटाखे फोड़े जा सकेंगे।
कोर्ट ने कहा कि ग्रीन पटाखों पर प्रतिबंध से तस्करी बढ़ती है और ऐसे अवैध पटाखे पर्यावरण को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। अदालत ने प्रदूषण स्तर की निगरानी के लिए केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया।
आदेश में कहा गया कि केवल दिल्ली-एनसीआर में निर्मित ग्रीन पटाखे ही बेचे जाएंगे और उनके क्यूआर कोड वेबसाइट पर अपलोड किए जाएंगे। बाहरी पटाखे मिलने पर विक्रेताओं के लाइसेंस निलंबित कर दिए जाएंगे। विस्तृत आदेश शीघ्र जारी किया जाएगा।
दिल्ली में बिगड़ी हवा, ग्रैप-1 प्रतिबंध लागू
इसी बीच सर्दियों की आहट और तापमान गिरने के साथ ही दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब होने लगी है। दिवाली से एक हफ्ता पहले दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 200 के पार जाने के बाद ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रैप) का पहला चरण लागू कर दिया गया है। मंगलवार सुबह 10:30 बजे दिल्ली का औसत एक्यूआई 201 दर्ज किया गया, जो ‘खराब’ श्रेणी में आता है। सबसे अधिक एक्यूआई (365) आनंद विहार में रहा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, शाम 4 बजे 24 घंटे का औसत एक्यूआई 211 रहा — जो जून 11 के बाद पहली बार इस स्तर पर पहुंचा। विशेषज्ञों ने हवा की गति और रात के तापमान में गिरावट को इसका प्रमुख कारण बताया। एक रिपोर्ट के अनुसार, दिवाली के आसपास स्थिति और बिगड़ सकती है, जब पटाखों, यातायात और पराली धुएं से प्रदूषण बढ़ने की आशंका है।
दिल्ली में प्रदूषण का पूर्वानुमान 30-35% तक कम: शोध
शोधकर्ताओं ने कहा है कि दिल्ली का वायु प्रदूषण पूर्वानुमान तंत्र (एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम – एक्यूईडब्ल्यूएस) राजधानी में पीएम 2.5 के स्तर को वास्तविक आंकड़ों से 30 से 35 प्रतिशत कम बताता है। इसका प्रमुख कारण पुराना उत्सर्जन डाटा (एमिशन इन्वेंटरी) बताया गया है।
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के प्रोग्राम चीफ मोहम्मद रफीउद्दीन ने कहा, “यदि वास्तविक पीएम2.5 स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, तो प्रणाली इसे लगभग 65 माइक्रोग्राम दर्शाती है।” उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन डेटा 2016 से अपडेट नहीं हुआ है, जबकि दिल्ली का 2021 में अंतिम बार संशोधित हुआ था।
सीईईडब्ल्यू के शोधकर्ताओं ने दो से तीन वर्ष में डेटा अद्यतन करने का ढांचा बनाने की सिफारिश की है, ताकि पूर्वानुमान की सटीकता बढ़ाई जा सके। रफीउद्दीन ने कहा कि ऐसा करने से जवाबदेही भी बढ़ेगी और यह समझने में मदद मिलेगी कि प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास कितने प्रभावी रहे हैं।
सॉलिड वेस्ट इकाईयों को पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दे सकती है सरकार
केंद्र सरकार ने कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (सीईटीपी) और कॉमन म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट फैसिलिटीज (सीएमएसडब्ल्यूएमएफ) को पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी लेने से छूट देने का प्रस्ताव रखा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार इनमें वे इकाइयां भी शामिल हैं जिनके पास लैंडफिल साइट्स हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स ने पर्यावरण मंत्रालय के हवाले से बताया कि इन क्षेत्रों में प्रदूषण की संभावना कम है इसलिए यह छूट दी जा सकती है। 1 और 3 अक्टूबर को जारी दो मसौदा अधिसूचनाओं में कहा गया है कि यह छूट सिर्फ तभी लागू होगी जब पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों का पालन किया जाए। इन उपायों की निगरानी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और समितियों द्वारा मौजूदा स्वीकृति प्रणाली के तहत की जाएगी।
सरकार ने कहा कि सीईटीपी और सीएमएसडब्ल्यूएमएफ पहले से ही जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत संचालित हैं, जिनमें नियमित जांच, निरीक्षण और रिपोर्टिंग की व्यवस्था है।
फोटो: Andreas Troll/Pixabay
पहली बार कोयले से अधिक हुआ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन
दुनिया भर में पवन और सौर ऊर्जा संयंत्रों ने इस साल पहली बार कोयला बिजलीघरों से ज़्यादा बिजली बनाई है। द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, यह वैश्विक ऊर्जा व्यवस्था के लिए एक अहम मोड़ माना जा रहा है।
जलवायु थिंक टैंक ‘एम्बर’ की रिपोर्ट में बताया गया कि 2025 की पहली छमाही में नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि ने दुनिया की बढ़ती बिजली मांग को पूरा किया, जिससे कोयला और गैस की खपत थोड़ी घटी। इस अवधि में सौर ऊर्जा उत्पादन 2024 की तुलना में लगभग एक-तिहाई बढ़ा, जो नई बिजली मांग का 83% पूरा करता है। पवन ऊर्जा में भी 7% से अधिक वृद्धि हुई। विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव जलवायु लक्ष्यों के लिए बेहद अहम है।
ब्रह्मपुत्र बेसिन से 65 गीगावाट हाइड्रोपावर बिजली निकालने की योजना जारी
सरकार ने ब्रह्मपुत्र बेसिन से 65 गीगावॉट हाइड्रोपावर बिजली को देश के दूसरे हिस्सों तक पहुंचाने की योजना जारी की है। इस काम पर करीब 6.4 लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के इस ‘मास्टर प्लान’ में आने वाले वर्षों में हज़ारों किलोमीटर लंबी ट्रांसमिशन लाइनें और नई बिजली ले जाने की क्षमता बनाने की बात कही गई है। फिलहाल ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में कुछ हाइड्रोपावर परियोजनाएं चल रही हैं, जबकि अधिकतर अभी योजना या निर्माण चरण में हैं।
ऊर्जा सचिव पंकज अग्रवाल ने कहा कि हाइड्रोपावर ऊर्जा स्वच्छ, सस्ती और भरोसेमंद है, जो भविष्य में भारत की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी करने और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाएगी।
रूफटॉप सोलर योजना के लक्ष्य का केवल 13% हुआ हासिल: स्टडी
भारत ने प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना (पीएमएसजीवाई) के तहत 4.9 गीगावाट सौर रूफटॉप क्षमता जोड़ी है, लेकिन अब तक एक करोड़ घरों के लक्ष्य का केवल 13 प्रतिशत ही पूरा हुआ है। आईईईएफए की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2024 से जुलाई 2025 के बीच आवेदन चार गुना बढ़े फिर भी प्रगति धीमी रही।
रिपोर्ट में कहा गया कि 65,700 करोड़ रुपए की सब्सिडी में से सिर्फ 14 प्रतिशत ही जुलाई 2025 तक जारी की गई है। मौजूदा गति से 2027 तक 30 गीगावाट क्षमता हासिल करना कठिन होगा। वित्तीय सहायता की कमी और उपभोक्ता जागरूकता की कमी योजना की बड़ी बाधाएं हैं।
‘भारत 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने की राह पर’
भारत को भरोसा है कि वह 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 500 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य पूरा कर लेगा। नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने यह बात इंटरनेशनल सोलर अलायंस की आठवीं सभा से पहले कही।
उन्होंने बताया कि भारत 2030 तक 50% बिजली क्षमता गैर-जीवाश्म स्रोतों से हासिल करने का लक्ष्य पहले ही पूरा कर चुका है। वर्तमान में 162 गीगावाट परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जून 2025 तक भारत की कुल बिजली क्षमता 484.8 गीगावाट है, जिसमें से लगभग 48% नवीकरणीय स्रोतों से है।
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भारत ने लॉन्च किया पहला ई-ट्रक स्वैपेबल बैटरी के साथ
केंद्रीय मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी और नितिन गडकरी ने भारत का पहला हेवी-ड्यूटी ई-ट्रक लॉन्च किया है, जिसमें स्वैपेबल बैटरी और स्वैप-कम-चार्जिंग स्टेशन की सुविधा है। ईटी ऑटो की रिपोर्ट के मुताबिक इस तकनीक के जरिए ई-ट्रक की बैटरी को मात्र 7 मिनट में बदला जा सकता है, जबकि पारंपरिक चार्जिंग में लगभग दो घंटे लगते हैं।
यह पहल लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने और 2047 तक ऊर्जा स्वतंत्रता तथा 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
दिल्ली में दोपहिया ईवी पर सब्सिडी दोगुनी होगी, आईसीई वाहनों को स्क्रैप करने पर टैक्स लाभ
दिल्ली सरकार की नई ईवी नीति के तहत दोपहिया वाहनों पर मिलने वाली सब्सिडी को दोगुना किया जाएगा। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार इसके साथ ही, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार और आईसीई (Internal Combustion Engine) वाहनों को स्क्रैप करने पर टैक्स छूट दी जाएगी।
यह नीति विशेष रूप से वाणिज्यिक ईवी उपयोगकर्ताओं के लिए बनाई गई है, जिसके तहत बाजारों और उच्च-डिलीवरी जोनों में दोपहिया चार्जिंग पॉइंट लगाने के निर्देश दिए गए हैं।
चीन नवंबर से लिथियम-आयन बैटरी पार्ट्स के निर्यात पर लगाएगा नियंत्रण
ऑटोकारप्रो के अनुसार, चीन ने लिथियम-आयन बैटरी और उससे जुड़ी निर्माण सामग्रियों के निर्यात पर कड़े नियम लागू किए हैं। नवंबर से इन उत्पादों का निर्यात करने के लिए कंपनियों को वाणिज्य मंत्रालय से अनुमति लेनी होगी।
चीन ने रेयर अर्थ तत्वों और संबंधित तकनीकों के निर्यात नियंत्रण का दायरा भी बढ़ाया है। अब नियंत्रण में पाँच मध्यम से भारी दुर्लभ खनिज तत्व — होल्मियम, एर्बियम, थुलियम, यूरोपियम और इटरबियम — शामिल होंगे।
टोयोटा और सुमितोमो मेटल मिलकर बनाएंगे ईवी के लिए सॉलिड-स्टेट बैटरियां
टोयोटा और सुमितोमो मेटल माइनिंग ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सॉलिड-स्टेट बैटरी के कैथोड मटेरियल के विकास में प्रगति की है और अब वे इस सामग्री के व्यावसायिक उत्पादन की दिशा में काम करेंगे।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार टोयोटा की योजना है कि वह 2027 या 2028 तक सॉलिड-स्टेट बैटरियों से लैस वाहन लॉन्च करे। हालांकि, बड़े पैमाने पर उत्पादन में कच्चे माल की सीमित उपलब्धता, जटिल निर्माण प्रक्रिया, और उच्च लागत जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
स्वच्छ ऊर्जा तकनीक के निर्यात में चीन ने बनाया रिकॉर्ड, अमेरिका को पीछे छोड़ा
चीन ने अगस्त में इलेक्ट्रिक वाहनों, सोलर पैनलों, बैटरियों और अन्य स्वच्छ तकनीकों के निर्यात में 120 अरब डॉलर का नया रिकॉर्ड बनाया है। इसके मुकाबले, अमेरिका के तेल और गैस निर्यात 80 अरब डॉलर पर रहे।ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक उभरते बाजारों में चीन के निर्यात तेज़ी से बढ़ रहे हैं, खासकर क्योंकि सोलर पैनलों की कीमतों में गिरावट जारी है। इस वर्ष, चीन के आधे से अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्यात ओईसीडी देशों के बाहर के बाज़ारों में हुआ है।
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कच्चे तेल भंडार बढ़ाने के लिए चीन ने तेल रिज़र्व निर्माण तेज़ किया
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में अस्थिरता के बीच चीन अपने तेल भंडार स्थलों के निर्माण में तेजी ला रहा है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी तेल कंपनियां सिनोपेक और सीएनओओसी दो वर्षों में 11 स्थलों पर 16.9 करोड़ बैरल तक भंडारण क्षमता जोड़ेंगी।
इस कदम से चीन विदेशी तेल पर निर्भरता घटाकर आयात स्रोतों का विविधीकरण और घरेलू उत्पादन को स्थिर करना चाहता है। देश तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों पर भी निवेश बढ़ा रहा है, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार चीन की तेल खपत 2027 तक चरम पर पहुंच सकती है।
बीपी का अनुमान: भारत की तेल मांग 2050 तक 9 मिलियन बैरल प्रति दिन, कोयला रहेगा प्रमुख ऊर्जा स्रोत
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल एनर्जी कंपनी बीपी के मुख्य अर्थशास्त्री स्पेंसर डोल ने कहा है कि 2050 तक भारत की तेल मांग 9 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) तक पहुंच जाएगी। वर्तमान रुझान में कोयला देश का सबसे बड़ा ऊर्जा स्रोत बना रहेगा।
2050 तक नवीकरणीय ऊर्जा भारत की दूसरी सबसे बड़ी प्राथमिक ऊर्जा बन जाएगी और 2°C परिदृश्य में यह प्रमुख स्रोत होगी। विद्युत रूप में ऊर्जा खपत में 30% वृद्धि का भी अनुमान लगाया गया है।
बढ़ती बिजली मांग के बीच राज्यों ने कोयला आधारित बिजली के दीर्घकालिक सौदे बढ़ाए
रॉयटर्स के अनुसार, भारत के कई राज्य बढ़ती शाम की बिजली मांग को पूरा करने के लिए कोयला आधारित बिजली के दीर्घकालिक अनुबंध कर रहे हैं, जबकि स्वच्छ ऊर्जा विस्तार की गति धीमी है।
उत्तर प्रदेश और असम, जिन्होंने हाल ही में स्वच्छ ऊर्जा प्रोत्साहन वापस लिया, अब 7 गीगावॉट कोयला बिजली संयंत्रों के लिए 2030 तक आपूर्ति अनुबंध पर विचार कर रहे हैं। यह रुझान मुख्यतः गैर-सौर घंटों में एयर कंडीशनिंग की बढ़ती मांग और बैटरी भंडारण निर्माण में सुस्ती के कारण देखा जा रहा है।
भारत के शीर्ष पावर प्रोड्यूसर करेंगे ₹5.5 लाख करोड़ का निवेश, 2032 तक 50GW नई कोयला क्षमता
ईटी एनर्जीवर्ल्ड के अनुसार, अदाणी पावर, टॉरेंट पावर, जेएसडब्ल्यू एनर्जी और एनटीपीसी सहित प्रमुख ऊर्जा कंपनियां 2032 तक 50 गीगावॉट से अधिक कोयला आधारित उत्पादन बढ़ाने के लिए ₹5.5 लाख करोड़ का निवेश करेंगी। इन कंपनियों का कहना है कि यह विस्तार औद्योगिक, वाणिज्यिक और शहरी क्षेत्रों में बढ़ती बिजली मांग को देखते हुए किया जा रहा है। साथ ही वे नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में भी निवेश जारी रखेंगी।
रूसी तेल पर बढ़ी छूट से भारतीय रिफाइनर बढ़ा सकते हैं खरीदारी
रूसी यूराल्स तेल पर छूट बढ़ने से भारतीय रिफाइनर नवंबर में अधिक रूसी तेल खरीदने पर विचार कर रहे हैं। ब्लूमबर्ग के मुताबिक वर्तमान में यूराल्स पर $2–2.5 प्रति बैरल की छूट है, जो जुलाई–अगस्त के $1 प्रति बैरल से कहीं अधिक है।
अमेरिका की टैरिफ वृद्धि के बीच भारत ने मध्य पूर्व और अफ्रीका की राष्ट्रीय तेल कंपनियों से 2026 के लिए दीर्घकालिक आपूर्ति समझौते पर बातचीत भी शुरू की है।







