जलवायु परिवर्तन के कारण लगभग 20 प्रतिशत प्रवासी प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। यह प्रजातियां मानव जीवन को बनाए रखने वाले इकोसिस्टम की एक आवश्यक कड़ी हैं। ‘कन्वेंशन ऑन द कंजर्वेशन ऑफ माइग्रेटरी स्पीशीज़ ऑफ वाइल्ड एनिमल्स (सीएमएस) ने एक नई रिपोर्ट में यह चेतावनी दी है। यह रिपोर्ट दुनियाभर में प्रवासी प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर आधारित एक कार्यशाला के निष्कर्षों की मदद से तैयार की गई है।
जलवायु परिवर्तन से प्रवास मार्ग और हैबिटैट प्रभावित
रिपोर्ट में बताया गया है कि बढ़ते तापमान, चरम मौसमी घटनाओं और बदलते वाटर सिस्टम्स के कारण विश्वभर में प्रवासी प्रजातियां प्रभावित हो रही हैं। इनके कारण प्रजातियों के हैबिटैट सिकुड़ रहे हैं, प्रवास मार्ग बदल रहे हैं और इकोसिस्टम उन्हें मिलने वाला लाभ खतरे में पड़ गया है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जलवायु परिवर्तन से ‘टाइमिंग मिसमैच’ (समय में असंगति) की समस्या बढ़ रही है। उदाहरण के तौर पर, अलास्का और आर्कटिक में घोंसला बनाने वाले पक्षियों का अंडे देने का समय कीटों के उभरने के समय से मेल नहीं खा रहा है। तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण यह असंगति बढ़ने से चूजों का जीवित रहना और प्रजनन की सफलता दर दोनों घट रहे हैं।
पश्चिमी अलास्का में प्रत्येक डिग्री तापमान परिवर्तन के साथ पक्षियों के घोंसला बनाने का समय 1–2 दिन बदल जाता है। क्लाइमेट कूलिंग के कारण पिछले एक दशक में अंडे देने का समय औसतन 4-5 दिन देरी से हुआ, जिससे अंडों की संख्या और आकार दोनों घटे और इन्क्यूबेशन अवधि कम हुई।
हिमालयी वन्यजीव और एशियाई हाथियों पर संकट
दक्षिण एशिया में एशियाई हाथी जलवायु और भूमि उपयोग में बदलाव के चलते अपने पारंपरिक हैबिटैट खो रहे हैं। इनके हैबिटैट पूर्व की ओर खिसक रहे हैं, लेकिन संपर्क मार्गों की कमी के कारण भारत और श्रीलंका के अधिकांश हाथी इस दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रहे। परिणामस्वरूप मानव-हाथी संघर्ष बढ़ रहा है।
हिमालयी क्षेत्र की प्रजातियां — जैसे कस्तूरी मृग, तीतर, और स्नो ट्राउट मछलियां — ऊंचाई की ओर छोटे और बिखरे हुए क्षेत्रों में सिमट रही हैं। अनुमान है कि कुछ छोटे स्तनधारियों का 50% से अधिक आवास क्षेत्र समाप्त हो सकता है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि समुद्री ऊष्मा वृद्धि से व्हेलों के प्रवास मार्ग प्रभावित हो रहे हैं, इनके भोजन स्रोत घट रहे हैं और प्रजनन दर कम हो रही है।
नॉर्थ अटलांटिक राइट व्हेल विशेष रूप से संवेदनशील हैं, क्योंकि बढ़ता समुद्री तापमान इन्हें खतरनाक वैकल्पिक मार्ग अपनाने पर मजबूर कर रहा है।
2023 में अमेजन नदी क्षेत्र में 41°C तापमान के साथ गंभीर हीटवेव आई, जिससे कई रिवर डॉल्फ़िनों की मृत्यु हो गई और भोजन की उपलब्धता और घट गई। वहीं भूमध्य सागर क्षेत्र में गर्म समुद्री लहरों के कारण 2050 तक फिन व्हेल के हैबिटैट में 70% की कमी और डॉल्फ़िनों के प्रवास क्षेत्र में कमी की संभावना जताई गई है।
इकोलॉजिकल कॉरिडोर हैं समाधान
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि स्थलीय प्रजातियों के लिए इकोलॉजिकल कॉरिडोर का निर्माण और गतिशील प्रबंधन पद्धतियां अपनाने से इन संवेदनशील प्रजातियों का रेसिलिएंस बढ़ाया जा सकता है।
सीएमएस के जलवायु परिवर्तन मामलों के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ डेस थॉम्पसन ने कहा, “हमें प्रकृति की रक्षा के सफल उदाहरणों और तरीकों को एक-दूसरे के साथ साझा करना चाहिए। यह और भी ज़रूरी है जब हम स्थानीय और आदिवासी समुदायों तथा पारंपरिक ज्ञान रखने वाले लोगों के साथ मिलकर ऐसे समाधान तैयार करें जो समुदाय के नेतृत्व में हों।”
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