भारत ने पार किया 1 बिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य

भारत ने वित्तवर्ष 2024-25 में एक बिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लक्ष्य प्राप्ति को भारत के लिए “एक गर्व का क्षण” बताया है। एक सोशल मीडिया पोस्ट में प्रधानमंत्री ने कहा, “एक अरब टन कोयला उत्पादन का ऐतिहासिक मील का पत्थर पार करना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, जो ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को उजागर करता है।”

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल से दिसंबर 2024 तक भारत के कोयला आयात में 8.4 प्रतिशत की गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में लगभग 5.43 बिलियन अमरीकी डॉलर (42,315.7 करोड़ रुपये) की विदेशी मुद्रा बचत हुई।

कोयला भारत के ऊर्जा क्षेत्र का प्रमुख ईंधन है। देश में स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का करीब 50 प्रतिशत कोयला बिजलीघर हैं और वास्तविक बिजली उत्पादन का तो लगभग तीन-चौथाई कोयला बिजलीघर ही पूरा करते हैं। इसके अलावा स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों के लिए ज़रूरी बिजली उत्पादन  कोयले से ही पूरी की जा रही है।

भारत की तेल आपूर्ति रणनीति को ट्रम्प के नये ऐलान से झटका 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की तेल आपूर्ति के लिए चिंता बढ़ा दी। ट्रम्प ने सोमवार को ऐलान किया कि भारत और चीन जैसे देशों पर 2 अप्रैल से वेनेजुएला से तेल का आयात करने वाले किसी भी मौजूदा टैरिफ के अलावा 25 प्रतिशत “द्वितीयक टैरिफ” लगाया जायेगा। बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच ट्रम्प के इस ऐलान को भारत की तेल आयात डायवर्सिफिकेशन रणनीति के लिए एक नई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। 

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने ट्रम्प के सोशल मीडिया पोस्ट को छापा जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि ट्रंवेनेज़ुएला अमेरिका और उसके द्वारा समर्थित स्वतंत्रता के प्रति बहुत आक्रामक रहा है। इसलिए, कोई भी देश जो वेनेजुएला से तेल या गैस खरीदता है, उसे हमारे देश के साथ किए जाने वाले किसी भी व्यापार पर अमेरिका को 25 प्रतिशत टैरिफ का भुगतान करना होगा। ट्रम्प ने कहा कि टैरिफ 2 अप्रैल से प्रभावी होगा।

भारत ने तीन साल से ज़्यादा समय के अंतराल के बाद दिसंबर 2023 में वेनेजुएला से कच्चे तेल का आयात फिर से शुरू किया, क्योंकि अमेरिका ने वेनेजुएला के तेल क्षेत्र पर प्रतिबंधों में अस्थायी रूप से ढील दी थी। हालांकि, कुछ महीनों के भीतर ही अमेरिकी प्रतिबंध फिर से लागू हो गए, लेकिन कुछ तेल कंपनियों द्वारा प्राप्त विशेष प्रतिबंध छूट के ज़रिए वेनेजुएला के कच्चे तेल की कुछ मात्रा भारत सहित विभिन्न देशों में पहुँचती रही।

ऑइल कंपनियां चाहती हैं जलवायु मुकदमों और रेग्युलेशन केस लड़ने के लिए ट्रम्प की मदद 

प्रमुख तेल कंपनियां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर दबाव डाल रही हैं कि वे उन्हें जलवायु मुकदमों और सुपरफंड क्लीनअप लागतों से बचाने में मदद करें। कंपनियों का तर्क है कि जलवायु क्षति के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराना अनुचित है, जबकि आलोचकों का कहना है कि उन्हें ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण में अपनी भूमिका के लिए तेल कंपनियों को भुगतान करना ही चाहिए।

द वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, एक्सॉन मोबिल और शेवरॉन सहित प्रमुख तेल कंपनियों ने राज्य स्तरीय जलवायु परिवर्तन मुकदमों और विनियमों का मुकाबला करने में सहायता के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प से संपर्क किया है, जो जीवाश्म ईंधन उद्योग पर महत्वपूर्ण वित्तीय दंड लगा सकते हैं।

व्हाइट हाउस की बैठक के दौरान, इंडस्ट्री के अधिकारियों ने वर्मोंट और न्यूयॉर्क में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए तेल कंपनियों को वित्तीय रूप से जिम्मेदार ठहराने के उद्देश्य से बनाए गए कानूनों के बारे में चिंता व्यक्त की। इन राज्यों ने कड़े जलवायु नियम बनाए हैं, जिनमें उत्सर्जन दंड के माध्यम से पर्यावरण परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए जलवायु सुपरफंड शामिल हैं।

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