दिल्ली में जानलेवा हुई हवा, 500 के पार पहुंचा एक्यूआई; जानिए क्या हैं प्रदूषण के प्रमुख कारण

दिल्ली में मंगलवार को लगातार तीसरे दिन घनी धुंध छाई रही और प्रदूषण का स्तर चिंताजनक रूप से ‘गंभीर प्लस’ श्रेणी में बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार मंगलवार को दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 488 दर्ज किया गया। राष्ट्रीय राजधानी के 32 मॉनिटरिंग स्टेशनों में से 31 में एक्यूआई का स्तर 480 से अधिक दर्ज किया गया। दो स्टेशनों — अलीपुर और सोनिया विहार — में एक्यूआई का स्तर 500 था।

दिल्ली में वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से करीब 3,200 फीसदी अधिक है। डॉक्टरों ने इस जानलेवा प्रदूषण के लोगों के स्वास्थ्य पर असर के बारे में चिंता जताई और चेतावनी दी कि जहरीली हवा सांस के मरीजों के साथ-साथ स्वस्थ लोगों को भी नुकसान पहुंचा सकती है

दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में भी वायु गुणवत्ता ‘आपात’ स्थिति में है। सीपीसीबी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, गुरूग्राम में वायु गुणवत्ता सूचकांक 469 तक पहुंच गया है। धीमी हवाओं और गिरते तापमान ने प्रदूषकों के फैलाव को मुश्किल बना दिया है। ठंडी हवा दिल्ली के पड़ोसी इलाकों में पराली जलाने से निकलने वाली धूल और धुएं को रोक लेती है।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए दिल्ली-एनसीआर राज्यों को प्रदूषण विरोधी जीआरएपी 4 प्रतिबंधों को सख्ती से लागू करने के लिए तुरंत टीमें गठित करने का आदेश दिया था। मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए सभी न्यायाधीशों से जहां भी संभव हो ऑनलाइन सुनवाई की अनुमति देने को कहा गया है।

साथ ही दिल्ली, गाज़ियाबाद, गुरुग्राम के स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है और दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय क्रमशः नवंबर 23 और 22 तक कक्षाएं ऑनलाइन ली जाएंगीं

कोयला संयंत्र करते हैं पराली जलाने से 240 गुना अधिक प्रदूषण: शोध

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में थर्मल पावर प्लांट पराली जलाने की तुलना में 240 गुना अधिक सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जित करते हैं। जहां पराली जलाना एक मौसमी प्रक्रिया है वहीं कोयले से चलने वाले थर्मल संयंत्रों से साल भर उत्सर्जन होता रहता है। पराली जलाने से प्रति वर्ष लगभग 17.8 किलोटन SO₂ उत्सर्जन होता है, वहीं कोयले से चलने वाले थर्मल प्लांट 4,300 किलोटन से अधिक SO₂ उत्सर्जन करते हैं।

वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति बढ़ाने में इन संयंत्रों की अहम भूमिका है, जिसके कारण लोगों को स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, इनपर कड़े प्रतिबंध नहीं लगते हैं और फ़्लू गैस डिसल्फराइजेशन (एफजीडी) तकनीक को अपनाने में लगातार देरी कर रहे हैं। इस तकनीक से SO₂ उत्सर्जन 64% तक कम हो सकता है।

सैटेलाइट मैपिंग से बचने के लिए पराली जलाने का समय बदल रहे हैं किसान

इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं में कमी दर्ज की गई है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इस पर सवाल उठा रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर-पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में किसान सैटेलाइट मैपिंग से बचने के लिए ओवरपास टाइम (वह विशिष्ट समय जब कोई उपग्रह किसी विशेष क्षेत्र से होकर गुजरता है) के बाहर पराली जला रहे होंगे।

ऐसा करने के लिए वह रात में, या फिर छोटी-छोटी मात्रा में पराली जला रहे हैं, जिससे मॉनिटरिंग करना कठिन हो जाता है और प्रदूषण कम करने के प्रयासों में बाधा आती है।

नासा के एक वरिष्ठ अनुसंधान वैज्ञानिक हिरेन जेठवा ने कहा कि आग की घटनाएं कम रिपोर्ट होने के बावजूद एयरोसोल के स्तरों में परिवर्तन नहीं हुआ है। यह इस बात का संकेत है की पराली जलाने के तरीकों में बदलाव किया गया है। उन्होंने जियो-स्टेशनरी उपग्रह चित्रों का उपयोग करके दोपहर के समय में स्थानीय रूप से उत्पन्न धुएं के बादलों को देखा। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट करके इन पैटर्नों की पुष्टि के लिए जमीनी जांच की आवश्यकता पर जोर दिया है। जियो-स्टेशनरी उपग्रह पृथ्वी के समान ही घूर्णन गति से पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं, जिसके कारण वह पृथ्वी की सतह पर एक विशिष्ट स्थान पर स्थिर रह पाते हैं।

बाकू सम्मलेन में दिल्ली के प्रदूषण पर चर्चा

दिल्ली की खतरनाक वायु गुणवत्ता कॉप29 में चर्चा का विषय रही। विशेषज्ञों ने वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में चेतावनी दी और तत्काल ग्लोबल एक्शन का आह्वान किया।    

क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, कुछ क्षेत्रों में पार्टिकुलेट प्रदूषण 1,000 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर दर्ज किया गया है।

उन्होंने कहा, “प्रदूषण कई स्रोतों से आता है जैसे ब्लैक कार्बन, ओजोन, जीवाश्म ईंधन और खेतों की आग। हमें ऐसे समाधानों की आवश्यकता है जो इन सभी से निपट सकें।”  

खोसला ने कहा कि ला नीना के दौरान हवा की कम गति से हवा में प्रदूषक ट्रैप हो जाते हैं, जिससे स्थिति और खराब होती है। उन्होंने कहा, “हम प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं, जबकि लाखों लोगों का स्वास्थ्य खतरे में है। हमें तेजी से कार्य करना चाहिए।”

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