नेपाल में बाढ़, लगभग 200 लोगों के मरने की आशंका
नेपाल में भारी बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन से मरने वालों की संख्या 150 से अधिक हो गई है जबकि रविवार तक 56 लोग लापता थे। स्थानीय लोगों ने कार्बनकॉपी को बताया कि उन्होंने पिछले पांच दशकों में ऐसी बाढ़ कम से कम राजधानी काठमांडू के इलाके में नहीं देखी और नेपाल में मरने वालों की संख्या 200 तक पहुंच सकती है। सरकार ने आपदा के बाद स्कूलों को तीन दिन के लिए बंद करने की घोषणा की है।
काठमांडू घाटी में कम से कम 37 लोगों की मौत हो गई है और यहां बाढ़ ने यातायात और दैनिक जीवन को रोक दिया है। नेपाल में इस आपदा से करीब साढ़े तीन सौ घर तबाह हो गये हैं और 16 पुल बह गये हैं। करीब 20,000 पुलिस और राहतकर्मियों को लगाया गया है जिन्होंने करीब 4000 लोगों रविवार शाम तक सुरक्षित जगहों में पहुंचाया।
उत्तर पूर्व में लू के थपेड़ों के बाद बारिश ने दी राहत
उत्तर-पूर्व के सातों राज्यों में इस साल सितंबर में हीटवेव के हालात दिखाई दिये, हालांकि बाद में बारिश से कुछ राहत मिली है। उधर पश्चिम में मुंबई समते कई जगह बाढ़ के हालात हैं। मौसम विज्ञानियों और विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे कई कारक काम कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन हालात को और खराब कर रहा है। हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक सितंबर के मध्य में (17 सितंबर को) गुवाहाटी का तापमान 38 डिग्री रिकॉर्ड किया गया जो सामान्य से 5.6 डिग्री अधिक है। इसी तरह मेघालय में 4.9 डिग्री और अरुणाचल के पासी घाट में सामान्य से 7 डिग्री ऊपर रहा। हालांकि महीने के आखिरी हफ्ते में बारिश ने लोगों को राहत दी है।
विशेषज्ञों के अनुसार कमजोर मानसून परिसंचरण, मिट्टी में नमी की कमी, सूरज की रोशनी का भारी संपर्क, वनों की भारी कटाई और बढ़ती औद्योगिक गतिविधि जैसे स्थानीय कारकों ने असम में एक हीट डोम इम्पेक्ट में योगदान दिया है जिस कारण हीटवेव के हालात बने।
हीट डोम इम्पेक्ट एक मौसमी कारक है जिसमें एक विशाल क्षेत्रफल के ऊपर उच्च दबाव की स्थिति पैदा हो जाती है जिस कारण गर्म हवा उठकर ठंडी नहीं हो पाती और तापमान असामान्य हो जाता है। इससे सूखे की स्थिति और जंगलों में आग हो सकती है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस तरह के हालात और बिगड़ सकते हैं।
बंगाल से मुंबई तक बारिश ने किया बेहाल
पश्चिम बंगाल में गुरुवार को भारी वर्षा के बाद मौसम विभाग ने रेड अलर्ट जारी किया। कोलकाता में 24 घंटों के दौरान 66 मिमी बारिश हुई। लगातार बारिश के कारण बंगाल के दक्षिणी जिले जलमग्न हो चुके हैं और किसानों को अपनी फसल की चिंता है। मौसम विभाग ने पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की चेतावनी भी दी है।
उधर सिक्किम में तीन दिनों से अधिक हुई लगातार भारी बारिश के कारण कई इलाकों में भूस्खलन हुआ है और पुराने रांग-रांग ब्रिज को काफी नुकसान पहुंचा है।
उधर मुंबई में भी पिछले हफ्ते भारी बारिश हुई जिससे निचले इलाकों में पानी भर गया, कई रूटों पर लोकल ट्रेनें ठप हो गईं और कम से कम 14 उड़ानों के रूट में बदलाव करना पड़ा। अँधेरी पूर्व इलाके में एक 45 वर्षीय महिला की नाले में गिरकर मौत हो गई, जिसके बाद बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने उच्च-स्तरीय जांच की घोषणा की है।
मुंबई में 25 सितंबर की शाम को कई इलाकों में पांच घंटों के दौरान 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई। कई रूटों पर लोकल ट्रेन सेवा बंद हो जाने से यात्री फंसे रहे और सडकों पर भारी जलजमाव के कारण ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रही। बुधवार को मौसम विभाग ने मुंबई के लिए रेड अलर्ट जारी किया था जिसके बाद अगले दिन सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया और लोगों से अपील की गई कि जरूरी न हो तो घर से बाहर न निकलें।
आईएमडी की वैज्ञानिक सुषमा नायर ने कहा कि कोंकण से बांग्लादेश तक निम्न दाब प्रणाली दक्षिणी छत्तीसगढ़ के ऊपर मौजूद साइक्लोनिक सर्कुलेशन के साथ मिलकर ऐसी स्थितियां बना रही है जिसके परिणामस्वरूप कोंकण और गोवा क्षेत्र में वर्षा हो रही है। यह निम्न दाब प्रणाली अब धीरे-धीरे मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र होते हुए दक्षिण की ओर बढ़ रही है।
यूरोप में भयानक बाढ़ की संभावना क्लाइमेट चेंज के कारण दो गुनी
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने उस भारी बारिश की संभावना को दोगुना कर दिया जिसके कारण इस महीने की शुरुआत में मध्य यूरोप में विनाशकारी बाढ़ आई। यह बात एक नये अध्ययन में सामने आई है।
सितंबर के मध्य में तूफान बोरिस से हुई मूसलाधार बारिश ने रोमानिया, पोलैंड, चेकिया, ऑस्ट्रिया, हंगरी, स्लोवाकिया और जर्मनी सहित मध्य यूरोप के एक बड़े हिस्से को तबाह कर दिया और व्यापक क्षति हुई। बाढ़ से 24 लोगों की मौत हो गई, पुल क्षतिग्रस्त हो गए, कारें जलमग्न हो गईं, शहरों में बिजली गुल हो गई और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की मरम्मत करनी पड़ी।
जलवायु से प्रेरित प्रभावों का अध्ययन चलाने वाले वैज्ञानिकों के एक समूह, वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन, ने बुधवार को यूरोप से कहा कि चार दिनों की गंभीर बारिश मध्य यूरोप में अब तक की सबसे भारी बारिश दर्ज की गई थी और कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के जलने से हुई गर्मी के कारण इसकी संभावना दोगुनी थी। अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने भी बारिश को 7 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक अधिक तीव्र बना दिया है।
वनों पर क्लाइमेट चेंज के प्रभावों पर नज़र रखने के लिए में 42 इको प्रयोगशालाएं
उत्तराखंड वन विभाग ने 42 ‘इकोलॉजिकल प्रयोगशालाएं’ स्थापित की हैं जो कि पूरे राज्य में जंगलों में हो रहे बदलावों का अध्ययन करेंगी। जलवायु परिवर्तन के कारण वनों की प्रकृति बदल रही है। ये प्रयोगशालाएं अनियमित जलवायु पैटर्न के प्रभाव पर महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करेंगी, जिसमें रोडोडेंड्रोन (बुरांश) और ब्रह्मकमल जैसी प्रजातियों में जल्दी फूल आना भी शामिल है। इसी तरह पहाड़ी और तराई के इलाकों में फलों और पर बढ़ते तापमान के प्रभाव को समझा जा सकेगा।
अंग्रेज़ी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक बीती गर्मियों में 42 डिग्री तापमान देहरादून और रामनगर की लीची की गुणवत्ता पर प्रभाव डाला था। इसी तरह अन्य फसलों और वनस्पतियों पर भी बढ़ते तापमान का असर हो रहा है।
उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान विंग) संजीव चतुर्वेदी ने कहा, “इन प्रयोगशालाओं का 13 मापदंडों के आधार पर मैदानी इलाकों में हर चार साल में और पहाड़ी इलाकों में हर पांच साल में विश्लेषण किया जाएगा। इनमें फेनोलॉजिकल प्रजातियों के जीवन चक्र में परिवर्तन, जैव विविधता सूचकांक, प्रजातियों का प्रवास, पारिस्थितिक उत्तराधिकार, प्रयोगशालाओं के भीतर जलवायु विविधताएं, कार्बन पृथक्करण और कार्बन स्टॉक आदि शामिल हैं।
राज्य के फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (एफ़आरआई) उत्तराखंड में पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक एन बाला ने इन पारिस्थितिक प्रयोगशालाओं के महत्व पर कहा, “जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमें इन प्रयोगशालाओं – या संरक्षण भूखंडों की आवश्यकता है – जिन्हें वन परिवर्तनों का निरंतर रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए हर पांच साल में दोबारा देखा जा सकता है। इस डेटा के बिना, चल रहे परिवर्तनों को समझना या प्रभावी शमन रणनीतियों को लागू करना असंभव है।”
धान के स्थान पर अन्य फसलें उगाने से भूजल स्तर सुधारने में मिल सकती है मदद: अध्ययन
एक अध्ययन में पाया गया है कि धान की बुआई वाले लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र में अन्य फसल उगाने से उत्तर भारत में वर्ष 2000 के बाद से खोए गए 60-100 क्यूबिक किलोमीटर भूजल को रिचार्ज किया जा सकता है। विशेषज्ञ शोधकर्ताओं की एक टीम – जिसमें आईआईटी गांधीनगर, गुजरात के शोधकर्ता भी हैं – ने पाया है कि धरती की वॉर्मिंग जारी रहती है तो धान की अधिकता वाले वर्तमान कृषि पैटर्न, जिसमें कि अधिक जल की ज़रूरत होती है, के कारण 13 से 43 घन किलोमीटर पानी का नुकसान हो रहा है। विशेषज्ञों ने धान की गिरते भू-जल स्तर को रोकने के लिए धान की खेती में भारी कटौती की सिफारिश की है।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की 2018 में प्रकाशित हुई विशेष रिपोर्ट (SR 1.5) के अनुसार: यदि मौजूदा रुझान जारी रहता है, तो संभावना है कि 2030 और 2050 के बीच ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जायेगी, और सदी के अंत तक तापमान वृद्धि 3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकती है।
रिपोर्ट के लेखकों ने कहा कि भूजल स्थिरता और किसानों की लाभप्रदता सुनिश्चित करने के लिए फसल पैटर्न बदलना काफी फायदेमंद हो सकता है – विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए। हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड जैसे राज्यों में जहां रिकवरी दर कम थी वहां फसलों को बदलने से भूजल स्तर पर कोई खास असर नहीं पड़ा।
अगले साल वितरित की जाएगी लॉस एंड डैमेज फंड की पहली किस्त
लॉस एंड डैमेज फंड बोर्ड ने जलवायु परिवर्तन से प्रभावित विकासशील देशों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए जरूरी व्यवस्था तैयार कर ली है और अब इस फंड की पहली किस्त अगले साल यानि 2025 में वितरित की जा सकती है। अज़रबैजान की राजधानी बाकू में 21 सितंबर को हुई बैठक में बोर्ड ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।
वर्षों की बातचीत के बाद, तीन-दिवसीय बैठक के दौरान इन निर्णयों को अंतिम रूप दिया गया। अज़रबैजान इस साल के संयुक्त राष्ट्र जलवायु महासम्मेलन कॉप29 की मेजबानी करेगा।
“बाकू में मिली यह सफलता जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सचमुच ऐतिहासिक दिन है,” कॉप29 के मनोनीत अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने कहा।
बाकू में लिए गए फैसलों में फंड के कार्यकारी निदेशक का चुनाव और बोर्ड द्वारा कई महत्वपूर्ण समझौतों का समर्थन शामिल है। इन समझौतों के तहत व्यवस्था बनाई गई है कि विश्व बैंक कैसे फंड के सचिवालय की मेजबानी करेगा और इसके ट्रस्टी के रूप में कार्य करेगा। साथ ही योगदान के लिए एक टेम्पलेट भी बनाया गया है।
कॉप29: बाकू ने की एक्शन एजेंडा में 14 बिंदुओं पर सहमत होने अपील
इस वर्ष जलवायु महासम्मेलन के मेजबान अज़रबैजान ने वैश्विक कार्रवाई के लिए 14 पहलों की घोषणा की है, जिनमें क्लाइमेट फाइनेंस, हरित ऊर्जा, हाइड्रोजन विकास, मीथेन उत्सर्जन में कटौती आदि बिंदुओं को शामिल किया गया है।
एक प्रमुख प्रतिज्ञा का लक्ष्य है 2030 तक वैश्विक ऊर्जा भंडारण क्षमता को 1,500 गीगावाट तक बढ़ाना, जो 2022 के स्तर से छह गुना अधिक है। इसमें 2040 तक 80 मिलियन किलोमीटर बिजली ग्रिड को जोड़ना या नवीनीकृत करना भी शमिल है, जो सौर और पवन आदि नवीकरणीय ऊर्जा के भंडारण के लिए जरूरी है।
इन 14 में एक क्लाइमेट फाइनेंस एक्शन फंड (सीएफएएफ) भी शामिल है, जिसे जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों और कंपनियों के स्वैच्छिक योगदान से वित्तपोषित किया जाएगा। सीएफएएफ का लक्ष्य शमन, अनुकूलन और अनुसंधान एवं विकास प्रयासों में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के निवेश को उत्प्रेरित करना है। इसके अतिरिक्त, बाकू इनिशिएटिव फॉर क्लाइमेट फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेड (बीआईसीएफआईटी) की घोषणा की गई है जो हरित आर्थिक विविधीकरण पर केंद्रित है।
इन स्वैच्छिक पहलों का उद्देश्य औपचारिक कॉप समझौतों का समर्थन करते हुए जलवायु कार्रवाई में तेजी लाना है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि मजबूत निगरानी और नीति समर्थन के बिना केवल स्वैच्छिक प्रतिज्ञाओं पर भरोसा करना सही नहीं है।
भारत के 50% जिलों में प्राकृतिक आपदाओं को झेल सकने वाले बुनियादी ढांचे की कमी
रियल एस्टेट कंसल्टेंट सीबीआरई के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में लगभग 50 प्रतिशत सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर आपदा प्रबंधन के लिए उपयुक्त नहीं है।
अध्ययन में कहा गया कि “भारत प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं में उल्लेखनीय वृद्धि से जूझ रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था, जनसंख्या और दीर्घकालिक सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए खतरा पैदा हो रहा है।” डेमोग्राफी और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में बदलाव, अनियोजित शहरीकरण, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विकास, पर्यावरण को नुकसान, जलवायु परिवर्तन और भूवैज्ञानिक खतरों के कारण आपदाओं का जोखिम और बढ़ रहा है।
आपदाओं से निपटने के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर न होने से आर्थिक क्षति होती और जीडीपी को नुकसान होता है, रिपोर्ट में कहा गया।
अमीरों पर तेजी से बढ़ रहा है जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का खतरा: शोध
जर्मनी के पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के शोधकर्ताओं ने एक नया शोध प्रकाशित किया है जिसके अनुसार अमीरों के लिए जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होने का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। शोध के मुताबिक़ अभी भी जलवायु परिवर्तन सबसे अधिक गरीबों को ही प्रभावित करता है क्योंकि उनके पास अडॉप्टेशन के पर्याप्त साधन नहीं होते।
लेकिन जिस तरह वैश्विक स्तर पर वस्तु और सेवाओं की सप्लाई चेन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का असर पड़ रहा है, उससे उच्च-आय वर्गों पर भी इसका प्रभाव बढ़ सकता है।
हालांकि अध्ययन में यह भी कहा गया है कि किसी भी देश में विभिन्न आय वर्गों पर जलवायु परिवर्तन का कितना प्रभाव पड़ता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि अडॉप्टेशन यानि अनुकूलन के लिए जरूरी विकल्प किसके पास अधिक हैं।
दिल्ली सरकार ने जारी किया विंटर एक्शन प्लान, ड्रोन से होगी प्रदूषण की मॉनिटरिंग
सर्दियों के दौरान होनेवाले प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने बुधवार को एक 21-सूत्रीय ‘विंटर एक्शन प्लान’ जारी किया। इस योजना में राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर से निपटने के लिए ड्रोन का उपयोग करके प्रदूषण की रियलटाइम मॉनिटरिंग करना, विशेष टास्क फोर्स तैनात करना और कृत्रिम बारिश जैसे आपातकालीन उपायों को लागू करना शामिल है
इस विंटर एक्शन प्लान के तहत कंस्ट्रक्शन गतिविधियों के लिए 14-सूत्रीय दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं ताकि धूल प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सके।
अब 500 वर्ग मीटर से अधिक के निर्माण स्थलों को कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन पोर्टल पर पंजीकृत होना होगा, जहां पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन की सख्ती से निगरानी की जाएगी। दिशानिर्देशों का पालन करने में विफल रहने वालों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा, जबकि प्रदूषण पर अंकुश लगाने के प्रयास करने वाली परियोजनाओं को ‘हरित रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
पहली बार दिल्ली में ऐसी 13 जगहों की निगरानी के लिए ड्रोन का उपयोग किया जाएगा जहां लगातार पीएम2.5 का स्तर औसत से अधिक दर्ज किया गया है।
वायु प्रदूषण से स्ट्रोक का खतरा धूम्रपान के समान: शोध
द लैंसेट न्यूरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, दुनिया भर में स्ट्रोक और इससे संबंधित मौतों की घटनाएं काफी बढ़ रही हैं। यह वृद्धि मुख्यतः वायु प्रदूषण, बढ़ते तापमान और मेटाबोलिक कारणों से हो रही है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरीज़ एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी (जीबीडी) समूह के शोधकर्ताओं के अनुसार, पहली बार यह पाया गया कि पार्टिकुलेट मैटर या पीएम वायु प्रदूषण जानलेवा स्ट्रोक का उतना ही बड़ा कारण है जितना धूम्रपान।
शोधकर्ताओं ने कहा कि स्ट्रोक से प्रभावित तीन-चौथाई से अधिक लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में प्रदूषण घटा, लेकिन अभी भी जहरीली हवा में सांस ले रहे लोग
शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) ने अपनी वार्षिक एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स 2024 रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग सबसे कम प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वालों की तुलना में छह गुना अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिससे इन क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा लगभग 2.7 वर्ष कम हो गई है।
हालांकि दक्षिण एशिया में एक वर्ष में प्रदूषण में 18% की गिरावट आई है। भारत का पार्टिकुलेट प्रदूषण भी 2021 में 51.3 μg/m³ से घटकर 2022 में 41.4 μg/m³ हो गया है, जिससे देश की औसत जीवन प्रत्याशा में एक वर्ष की वृद्धि हुई है।
प्रदूषण में गिरावट के बावजूद, भारत की पूरी आबादी अभी भी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां वार्षिक औसत पार्टिकुलेट प्रदूषण स्तर डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों से अधिक है। जबकि 42.6% आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहां प्रदूषण का स्तर भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक 40 μg/m³ से भी अधिक है।
वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण: कैलिफोर्निया ने किया एक्सॉन पर मुकदमा
अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया स्टेट और कई पर्यावरण समूहों ने एक्सॉन मोबिल पर मुकदमा दायर किया है और कंपनी पर आरोप लगाया है की वह दशकों तक ऐसे अभियान में शामिल रही है जिससे वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण को बढ़ावा मिला है।
न्यूयॉर्क शहर में जलवायु सप्ताह के दौरान एक कार्यक्रम में बोलते हुए कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा ने कहा कि राज्य ने लगभग दो साल की जांच के बाद एक्सॉन पर मुकदमा दायर किया। उन्होंने कहा कि जांच में सामने आया है कि एक्सॉन जानबूझकर रीसाइक्लिंग की सीमाओं के बारे में जनता को गुमराह कर रही थी।
बोंटा के अनुसार, एक्सॉन की “एडवांस्ड रीसाइक्लिंग” तकनीक में पायरोलिसिस नामक प्रक्रिया का उपयोग करके प्लास्टिक को ईंधन में बदला जाता है जिसे रीसाइकिल करना कठिन है। उन्होंने कहा कि इस तकनीक की प्रगति बहुत धीमी है जो दर्शाता है कि एक्सॉन लोगों को गुमराह कर रही है।
जवाब में एक्सॉन ने आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि उसकी तकनीक वास्तव में कारगर है।
रूफटॉप सोलर न लगाने पर चंडीगढ़ के हजारों घरों को नोटिस
चंडीगढ़ एस्टेट ऑफिस ने हजारों घरों के मालिकों को नोटिस जारी कर दो महीने के भीतर अपने घरों में रूफटॉप सोलर स्थापित करने के लिए कहा है। ऐसा नहीं करने पर उनकी संपत्ति जब्त की जा सकती है।
एस्टेट ऑफिस का कहना है कि बिल्डिंग नियमों के अनुसार, पहले 500 स्क्वायर यार्ड से ऊपर के मकानों में ‘सोलर फोटो वोल्टेक रूफटॉप पावर प्लांट’ लगाना आवश्यक था, अब इसे संशोधित कर 250 स्क्वायर यार्ड कर दिया गया है, यानी 250 स्क्वायर यार्ड और उससे अधिक के घरों के मालिकों को अनिवार्य रूप से ये संयंत्र स्थापित करने होंगे।
चंडीगढ़ प्रशासन के अधिकारियों के अनुसार, कम से कम 1,867 घरों में सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए गए हैं, जबकि 4,500 से अधिक ने अभी भी ऐसा नहीं किया है।
1.5 डिग्री का लक्ष्य पाने हेतु भारत को 5 गुना बढ़ानी होगी पवन, सौर ऊर्जा
एक नए विश्लेषण में पाया गया कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, भारत की पवन और सौर ऊर्जा को 2030 तक पांच गुना बढ़ने की जरूरत है। विश्लेषण में पाया गया कि कोयले पर निर्भरता कम करते हुए बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत को और अधिक क्लाइमेट फाइनेंस की आवश्यकता होगी।
क्लाइमेट एनालिटिक्स और न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट के विश्लेषण में पाया गया कि 2030 तक 600 गीगावॉट से अधिक पवन और सौर (460 गीगावॉट सौर और 150 गीगावॉट पवन) ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता होगी। वर्तमान गति के हिसाब से भारत 2030 तक लगभग 400 गीगावॉट पवन और सौर ऊर्जा स्थापित करने में सफल रहेगा, जो विश्लेषण में बताई गई आवश्यकता से क्रमशः 140 गीगावॉट और 70 गीगावॉट कम है।
भारत अभी भी अपनी 75% बिजली का उत्पादन करने के लिए कोयले पर निर्भर है।
घरेलू सोलर मॉड्यूल की गुणवत्ता पर डेवलपर्स ने उठाए सवाल
सोलर परियोजनाओं में स्थानीय रूप से निर्मित मॉड्यूल का प्रयोग करने के सरकार के आदेश ने डेवलपर्स को चिंता में डाल दिया है और इससे आपूर्ति भी बाधक हुई है। 2024 की पहली छमाही में भारत में कुल 14.9 गीगावॉट की सौर परियोजनाएं स्थापित की गईं, जो पिछली सभी अर्ध-वार्षिक और वार्षिक स्थापनाओं से अधिक है। पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में यह 282% की वृद्धि है।
इंस्टॉलेशन में वृद्धि इसलिए हुई क्योंकि कंपनियों ने जल्दी में मॉड्यूल आयात किए। वे अप्रैल 2024 में मॉडल और निर्माताओं की स्वीकृत सूची (एएलएमएम) फिर से लागू होने के पहले परियोजनाओं को पूरा करना चाहती थीं। सरकार ने डेवलपर्स को एएलएमएम के तहत सूचीबद्ध कंपनियों से मॉड्यूल खरीदना अनिवार्य कर दिया है। फिलहाल सूची में केवल घरेलू निर्माता ही हैं।
मेरकॉम की एक रिपोर्ट में डेवलपर्स ने आपूर्ति पक्ष की चुनौतियों के बारे में बात की, जिसमें उन्होंने मुख्य रूप से मॉड्यूल की गुणवत्ता, अधिक कीमतें और बड़े ऑर्डर को संभालने की अक्षमता के बारे में बताया।
अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने के लिए बैटरी भंडारण, ग्रिड आवश्यक: आईईए
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि पिछले साल कॉप28 शिखर सम्मेलन में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा को तीन गुना करने के निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना संभव है। लेकिन इसके लिए सभी देशों को शीघ्रता से कार्य करना होगा। उन्हें अधिक इलेक्ट्रिक ग्रिड कनेक्शन और बैटरी स्टोरेज स्थापित करने की आवश्यकता है।
आईईए की रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छी अर्थव्यवस्था, मजबूत विनिर्माण और सहायक नीतियों के कारण यह लक्ष्य प्राप्त करने योग्य है। लेकिन इसके लिए विभिन्न देशों को 2.5 करोड़ किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें बनानी होंगी। उन्हें 2030 तक 1,500 गीगावाट ऊर्जा भंडारण जोड़ने की भी आवश्यकता है। यह मौजूदा क्षमता से 15 गुना अधिक है।
सरकार ने ईवी चार्जिंग स्टेशनों के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए
भारत सरकार ने निजी कंपनियों द्वारा ईवी चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना और संचालन के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए हैं। नए नियमों के अनुसार एक रेवेन्यू-शेयरिंग मॉडल के तहत कंपनियों को निजी और सार्वजनिक स्थानों पर ईवी चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिए कुछ सुविधाएं दी जाएंगी।
मसलन, इनमें कहा गया है कि सरकारी और पब्लिक निकाय निजी कंपनियों को सस्ते दरों पर भूमि उपलब्ध कराएं, जिसके एवज में कंपनियां चार्जिंग से मिलने वाले राजस्व का एक भाग उस सरकारी या सार्वजनिक निकाय के साथ साझा करेंगी।
ऊर्जा मंत्रालय द्वारा 18 सितंबर को जारी यह दिशानिर्देश निजी पार्किंग, कार्यालय भवनों, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पताल और ग्रुप हाउसिंग सोसायटी जैसे निजी स्थलों के साथ-साथ, रेलवे स्टेशन, पेट्रोल पंप, हवाई अड्डे, मेट्रो स्टेशन, शॉपिंग मॉल, नगर निगम पार्किंग स्थल, राजमार्ग और एक्सप्रेसवे जैसे सरकारी स्थलों पर भी लागू होंगे।
2030 तक बढ़ेगी ईवी की स्वीकार्यता, लेकिन भारत के सामने चीन की चुनौती: सर्वे
एक सर्वे में पाया गया है कि 2030 तक नई कार खरीदने वाले अधिकांश खरीदार केवल न्यू एनर्जी व्हीकल (एनईवी) चुनने के इच्छुक हैं। अर्बन साइंस और हैरिस पोल का यह सर्वेक्षण दर्शाता है कि आने वाले समय में पर्यावरण के अनुकूल कारों के लिए समर्थन बढ़ेगा। इस वैश्विक सर्वेक्षण में शामिल 1,000 संभावित भारतीय खरीदारों में से लगभग 83 प्रतिशत ने कहा कि वे इस दशक के अंत तक एनईवी खरीदने पर विचार करेंगे।
हालांकि सर्वे में यह भी कहा गया कि भारत के ईवी उद्योग के सामने चीन की बड़ी चुनौती है। इसमें कहा गया है कि चीन ने बड़े पैमाने पर ईवी प्रोडक्शन और आधुनिक तकनीक में महारत हासिल की है और भारत को भी इस ओर ध्यान देना होगा।
सर्वे में कहा गया है कि चीनी कंपनियों के साथ मिलकर काम करने से भारत के ईवी इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास तेजी तेजी से हो सकता है, जो इलेक्ट्रिक कारों को अधिक किफायती और सभी के लिए सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण हो सकता है। भारत का ईवी उद्योग चीन की गलतियों से भी सीख सकता है।
भारत की ना के बाद चीनी ईवी निर्माता ने किया पाकिस्तान का रुख
भारत द्वारा चीनी निवेश को अवरुद्ध करने और चीन की ईवी निर्माता बीवाईडी को देश में प्लांट स्थापित करने से रोकने के बाद, कंपनी ने पाकिस्तान का रुख किया है। फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीवाईडी ने 2026 तक असेंबली प्लांट स्थापित करने के लिए पाकिस्तान के सबसे बड़ी निजी बिजली निर्माता कंपनी के साथ साझेदारी की है।
इसका मतलब यह हो सकता है कि पाकिस्तान इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए निर्यात केंद्र बन सकता है। बीवाईडी चीन के बाहर मैनुफैक्चरिंग यूनिट बना रही है क्योंकि कई देशों ने चीन में निर्मित ईवी, सौर पैनल और पवन टर्बाइन पर बड़े टैरिफ लगा दिए हैं। कंपनी ने तुर्की, हंगरी, थाईलैंड और ब्राजील में भी फैक्ट्रियां लगाई हैं और मेक्सिको में जगह की तलाश कर रही है।
नॉर्वे में पेट्रोल-चलित कारों से अधिक हुई ईवी की संख्या
दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातकों में से एक नॉर्वे की सड़कों पर अब पेट्रोल से चलने वाली कारों की तुलना में इलेक्ट्रिक कारें अधिक हैं।
नॉर्वेजियन रोड फेडरेशन के नए आंकड़ों के मुताबिक, सभी पंजीकृत 28 लाख निजी कारों में से 7,54,303 पूरी तरह से इलेक्ट्रिक हैं, जबकि 7,53,905 कारें पेट्रोल से चलने वाली हैं। 55 लाख की आबादी वाले नॉर्वे का लक्ष्य 2025 तक नई पेट्रोल और डीजल कारों की बिक्री समाप्त करने वाला पहला देश बनने का है।
दिलचस्प बात यह है कि मुख्य रूप से तेल और गैस की बिक्री से अर्जित धन के द्वारा ही नॉर्वे ने ईवी खरीदारों को टैक्स में छूट और दूसरे इंसेंटिव दिए हैं जिससे बिक्री को बढ़ावा मिला है।
समाचार एजेंसी रॉयटर ने एक नीलामी दस्तावेज़ के हवाले से बताया है कि ओडिशा राज्य सरकार के स्वामित्व वाली ओडिशा कोल एंड पावर लिमिटेड (ओसीपीएल) पूर्वी भारत में अपनी खदान से अतिरिक्त कोयले को छूट पर बेचने की मांग कर रही है, जो देश में ईंधन की मांग में गिरावट का संकेत देता है। एक समाचार पत्र में प्रकाशित नीलामी विज्ञापन के अनुसार, ओसीपीएल 4 अक्टूबर को राष्ट्रीय कोयला सूचकांक पर आधार मूल्य से 15% छूट पर बिजली संयंत्रों के लिए ऑनलाइन नीलामी के माध्यम से अपने 3 मिलियन टन अतिरिक्त कोयले की नीलामी करेगा।
कोयला मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल से 25 अगस्त के बीच भारत का कुल घरेलू कोयला उत्पादन पिछले वर्ष से 7.12% बढ़कर 370 मिलियन मीट्रिक टन हो गया। कोविड-19 के बाद पहली बार, भारत के थर्मल कोयले के आयात में गिरावट का अनुमान है। इस वर्ष घरेलू उत्पादन में वृद्धि और उच्च इन्वेंट्री के कारण।
सिंडिकेटेड बैंक लगा रहे हैं जीवाश्म ईंधन कारोबार में पैसा
सिस्टम लेंस के माध्यम से जीवाश्म ईंधन से संबंधित सिंडिकेटेड ऋण में $ 7 ट्रिलियन से अधिक के निवेश की जांच करने वाले एक अध्ययन से पता चला है कि असंगठित फेज़ आउट की तुलना में सिंडिकेटेड ऋण के लिए बाजार बहुत मजबूत हैं यानी जीवाश्म ईंधन का फेज़ आउट होने के बजाय उसके प्रोजेक्ट में पैसा लाने वाले बैंको का नेटवर्क मज़बूत है।
वर्ष 2010 और 2021 के बीच 709 बैंकों ने 7.1 ट्रिलियन डॉलर के बांड और ऋण जारी किए, जिनमें से अधिकांश सिंडिकेटेड थे। इसमें पता चला कि पिछले दस वर्षों में जीवाश्म ईंधन के लिए उधार देने में लगातार गिरावट नहीं हुई है। विश्लेषण से पता चलता है कि बैंकों ने 2021 में कोयला, तेल और गैस उद्योगों को कुल 592 बिलियन डॉलर के बांड और ऋण दिए, जो 2010 और 2016 के बीच प्रति वर्ष औसतन 584 बिलियन डॉलर से कम है। फिर भी, शीर्ष 30 बैंक अधिकांश बाजार को नियंत्रित करते हैं जिसने 2010 और 2021 के बीच सभी ऋणों का 78% दिया। हालाँकि, यदि रेग्युलेशन को बरकरार रखा जाता है, तो चीजें जल्दी से बदल सकती हैं। एक निर्णायक बिंदु पर पहुंचा जा सकता है, और यदि बैंक उद्योग छोड़ना जारी रखते हैं या जीवाश्म ईंधन निगमों को वित्त पोषण देना बंद कर देते हैं, तो अंततः चरणबद्ध समाप्ति हो जाएगी। अध्ययन के अनुसार, टिपिंग पॉइंट तक पहुंचने की गति अब इस बात पर निर्भर करती है कि कानूनों को कितनी सख्ती से लागू किया जाता है।
भारत का कोयला आयात जुलाई में 41% बढ़कर 25.23 मीट्रिक टन हो गया: एमजंक्शन
जुलाई में भारत का कोयला आयात 40.56 प्रतिशत बढ़कर 25.23 मिलियन टन (एमटी) हो गया। बी2बी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म एमजंक्शन सर्विसेज द्वारा संकलित आंकड़ों के आधार पर समाचार एजेंसी पीटीआई ने यह ख़बर दी है।
पिछले वित्त वर्ष के इसी महीने में देश का कोयला आयात 17.95 मीट्रिक टन था। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जुलाई अवधि में कोयला आयात भी बढ़कर 100.48 मीट्रिक टन हो गया, जो एक साल पहले 89.11 मीट्रिक टन था।
चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जुलाई अवधि में भी कोयला आयात बढ़कर 100.48 मीट्रिक टन हो गया, जो एक साल पहले 89.11 मीट्रिक टन था। एमजंक्शन के एमडी और सीईओ विनय वर्मा ने कहा कि अगले महीने त्योहारी सीजन से पहले, आने वाले हफ्तों में आयात मांग बढ़ने की संभावना है।
एमजंक्शन सर्विसेज ने कहा, “समुद्री बाजार में कीमतों में नरमी के बीच गैर-कोकिंग कोयले के आयात में तेजी देखी गई। हालांकि, स्टील मिलों की कमजोर मांग के कारण कोकिंग कोयले की मात्रा में गिरावट आई।”
वित्त वर्ष 2024 में भारत का कोयला आयात 7.7 प्रतिशत बढ़कर 268.24 मीट्रिक टन हो गया। जुलाई में कोयला उत्पादन सालाना आधार पर 6.36 प्रतिशत बढ़कर 74 मीट्रिक टन हो गया।
अप्रैल-जुलाई में भारत का कुल कोयला उत्पादन 321.39 मीट्रिक टन था, जो एक साल पहले की समान अवधि से 9.6 प्रतिशत अधिक था।
ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए भारत ने किया थर्मल पावर ग्रिड का विस्तार
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए 12.8 गीगावॉट थर्मल पावर क्षमता का विस्तार किया है। वर्तमान में निर्माणाधीन अतिरिक्त 28.4 गीगावॉट के साथ, यह विस्तार भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश के बिजली बुनियादी ढांचे को उन्नत करने के एक बड़े अभियान का हिस्सा है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के सचिव, पंकज अग्रवाल ने घोषणा की कि मंत्रालय ने 12,800 मेगावाट अतिरिक्त थर्मल पावर क्षमता के लिए अनुबंध शुरू कर दिया है, और निर्माण चरण जल्द ही शुरू होगा।
यह 28,400 मेगावाट के अतिरिक्त है जो वर्तमान में निर्माणाधीन है। कोयला आधारित बिजली की क्षमता बढ़ाने का निर्णय भारत में बिजली की खपत में तीन साल की असाधारण वृद्धि के साथ मेल खाता है। थर्मल पावर अभी भी देश के ऊर्जा मिश्रण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि इसे सिस्टम स्थिरता के लिए आवश्यक बेस लोड पावर की आपूर्ति के लिए मान्यता प्राप्त है।