गैस का खेल: रूस ने सप्लाई रोकी तो यूरोपीय बाज़ार में गैस की मांग और कीमत बढ़ गई, ऐसे में चीनी कंपनियां फायदा उठा रही हैं। फोटो - Wikimedia Commons_PjotrMahh1

रूस ने यूरोप को गैस सप्लाई पर लगाई रोक, कीमतों में उछाल

पिछली 31 अगस्त को रूस ने यूरोप को जाने वाली नॉर्ड स्ट्रीम वन नाम की गैस पाइप लाइन बन्द कर दी। यह पाइपलाइन बाल्टिक सागर के रास्ते जर्मनी को जाती है और रूस की सबसे बड़ी गैस सप्लाई लाइनों में से है। हालांकि रूस ने कहा था कि वह “तकनीकी” कारणों से ऐसा कर रहा है लेकिन यूरोपीय नेताओं का कहना है कि यूक्रेन पर हमले के बाद  रूस पर लगी पाबंदियों के कारण अब पुतिन प्रशासन ने बदले की कार्रवाई के तहत यह कदम उठाया है। सप्लाई पर इस रोक के कारण गैस की कीमतें उछल गई हैं और यूरो और पाउंड में गिरावट हुई है। अब सर्दियों से पहले यूरोपीय देश अधिक से अधिक गैस का भंडारण कर रहे हैं। 

एनर्जी क्षेत्र में वैश्विक संकट को देखते हुये चीनी कंपनियों ने सप्लाई तेज़ की 

उधर वैश्विक संकट को देखते हुये चीनी एलएनजी कंपनियों ने विश्व बाज़ार (विशेष रूप से यूरोप में) सप्लाई तेज़ कर दी है। ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक चीन की कुछ फर्म ऐसी हैं जिन्हें मिलने वाले विदेशी ऑर्डर 10 गुना से अधिक बढ़ गये हैं। जून के मुकाबले अब तक गैस की कीमतों में 2.6 गुना बढ़ोतरी हो गयी है। 

जानकारों ने हालांकि यह चेतावनी दी है कि चीनी कंपनियों के पास गैस के सीमित भंडार हैं इसलिये यूरोप को उन पर निर्भर नहीं रहना चाहिये। इसके अलावा इन कंपनियों के पास स्टोरेज टैंक और एनएनजी जहाज़ों जैसे इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी कमी है। 

बड़ी कंपनियां लो-कार्बन निवेश की बजाय प्रचार पर कर रही हैं खर्च: अध्ययन 

तेल और गैस क्षेत्र से जुड़ी बड़ी कंपनियां अपने क्लाइमेट-पॉज़िटिव  प्रचार में करोड़ों डॉलर खर्च कर रही हैं जबकि दूसरी ओर यह भी पता चल रहा है कि उनकी साठगांठ और हरकतों से आने वाली पीढ़ी का भविष्य जीवाश्म ईंधन के जाल में फंसता जायेगा। उत्तरी अमेरिका और यूरोप में किये गये जनसंचार पर हुये एक अध्ययन में किये गये विस्तृत विश्लेषण से यह पता चलता है कि कंपनियों ने बीपी, शेल, सेवरॉन, एक्सॉनमोबिल और टोटलएनर्जी जैसी कंपनियों ने इस मद में हुये खर्च का कुल  60% पब्लिक मैसेजिंग ‘हरित’ दावों को लेकर की जबकि 23% तेल और गैस को आगे बढ़ाने में। हालांकि इसी अध्ययन में पाया गया है कि इस साल इन्हीं कंपनियों ने औसतन केवल 12% ‘लो कार्बन’ निवेश पर खर्च किया। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.