पैनी नज़र: जलवायु परिवर्तन की बढ़ती मार के बीच इसके प्रभावों का अधिक सटीक पता लगाने के लिये नासा की नई पहल कारगर हो सकती है। फोटो - NASA

क्लाइमेट चेंज पर नज़र रखने के लिये नासा का मिशन

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने योजना बनाई है कि वह बेहतर उपग्रह टेक्नोलॉजी के ज़रिये आने वाले दिनों में धरती पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की अधिक सटीक जानकारी दे सके। नासा के अर्थ सिस्टम विभाग के प्रमुख कैरन सेंट जर्मेन ने क्लाइमेट होम न्यूज़ वेबसाइट को बताया कि जो भी जानकारी एजेंसी इकट्ठा करेगी वह जनता के लिये मुफ्त उपलब्ध होगी। इसके  प्रसार के लिये नासा दुनिया की कई कंपनियों और संस्थाओं के साथ तालमेल करेगी। 

नासा का कहना है कि उसका मिशन एक नई वेधशाला (अर्थ सिस्टम ऑब्ज़रवेट्री) विकसित करने के लिये है जो क्लाइमेट चेंज के अलावा आपदा प्रबंधन, जंगलों की आग और कृषि क्षेत्र में समस्याओं से निपटने में मदद करेगा। इस कार्यक्रम के 2027-29 में शुरू होने की संभावना है। 

भारत में पॉयजनिंग के मामलों के लिये कीटनाशक का बेधड़क  इस्तेमाल ज़िम्मेदार 

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में छपा एक नया शोध बताता है कि भारत में कीटनाशक का बे रोक-टोक इस्तेमाल, पॉयजनिंग (ज़हर से मरने या बीमार पड़ने) का प्रमुख कारण है। बीएमजे की स्टडी कहती है कि देश में हर तीन में से दो मामलों में पॉयजनिंग के पीछे कीटनाशक ही ज़िम्मेदार होता है जो जानबूझकर या अनजाने में इस्तेमाल किया गया होता है। 

इस अध्ययन में जनवरी 2010 और मई 2020 के बीच 134 रिसर्च को विश्लेषण का आधार बनाया गया जिनमें 50,000 लोगों पर अध्ययन किया गया था। कृषि और घरेलू कामकाज में कीटनाशकों का बढ़ता इस्तेमाल 63 प्रतिशत पॉयजनिंग मामलों की वजह है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में यह जानकारी 24 मई को प्रकाशित हुई जो बताती है कि वयस्क आबादी में पॉयजनिंग के मामलों का फैलाव 65 प्रतिशत और बच्चों में 22 प्रतिशत था।

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इस पॉयजनिंग के बढ़ने का कारण गरीबी, खेती और कीटनाशकों का बाज़ार में आसानी से उपलब्ध होना है। इस रिसर्च के बारे में यहां विस्तार से पढ़ा जा सकता है। 

चक्रवात ताउते ने पश्चिमी तट को दी चेतावनी 

भारत ने पिछले दिनों दो हफ्ते में दो चक्रवातों का सामना किया। पश्चिमी तट पर ताउते  और पूर्वी तट पर यास। यास पिछले हफ्ते पूर्वी समुद्र तट से टकराया और 14 लोगों की जान ली। यास और ताउते दोनों ही तूफानों ने काफी तबाही की और वैज्ञानिकों का कहना है कि इनके पीछे समुद्र का बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है। 

जानकारों का कहना है कि ताउते पश्चिमी तट के विशेष रूप से अलार्म बेल की तरह है। पूर्वी तट के मुकाबले पश्चिमी तट पर आबादी बहुत घनी है लिहाज़ा वहां राहत कार्यों के लिये अधिक संसाधन और तत्परता चाहिये होगी। अब तक अरब सागर से कम ही चक्रवात उठते हैं और वह तट तक नहीं आते या कमज़ोर पड़ जाते लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। ताउते न केवल तेज़ी से तट की ओर बढ़ा बल्कि वह बड़ी जल्दी शक्तिशाली भी होता गया। मौसम विभाग ने भी इसकी भविष्यवाणी नहीं की थी। हिन्दुस्तान टाइम्स का विश्लेषण कहता है कि लोगों की ज़िन्दगी और रोज़गार पर इस चक्रवाती प्रभाव का बड़ा असर पड़ेगा। 

1890-1900 के दशक से अब तक अरब सागर के मुकाबले हमेशा बंगाल की खाड़ी से ही अधिक तूफान उठे लेकिन अब अरब सागर अशान्त होता जा रहा है। 2011-2020 के बीच अरब सागर से 17 चक्रवात उठे जिनमें से 11 बहुत शक्तिशाली (वैरी सीवियर) श्रेणी के थे। 

दक्षिण भारत में 2016-18 का सूखा 150 साल में सबसे ख़राब 

भारत और अमेरिका के शोधकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण भारत में 2016-2018 के बीच पड़ा सूखा पिछले 150 साल का सबसे खराब सूखा था। जाड़ों के मौसम में सक्रिय होने वाले उत्तर-पूर्व मॉनसून की कम बारिश के कारण यह सूखा पड़ा। इसके कारण उत्तर भारत के कई शहरों में जल संकट छा गया और भारत के छठे सबसे बड़े शहर चेन्नई को 2019 में “डे-ज़ीरो” घोषित करना पड़ा।  

जानकार बताते हैं कि ऐसे सूखों क्षेत्र के कृषि उत्पादन पर काफी प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण आबादी का 60% रोज़गार के लिये खेती पर निर्भर है औऱ मॉनसून में गड़बड़ी उनके लिये बड़ा संकट पैदा करती है।

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