दुनिया के प्रमुख अनुसंधान संगठनों और संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से बनी एक ताज़ा रिपोर्ट में पाया गया है कि अगर हमें दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग की जानलेवा मार से बचाना है तो तमाम देशों को अपने जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर लगाम लगानी होगी।
लेकिन फ़िलहाल दुनिया में कोविड की आर्थिक मार से उबरने के लिए तमाम देश जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करने वाले क्षेत्रों में निवेश कर रहे हैं। वहीँ प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट की मानें तो दुनिया को अपने जीवाश्म इंधन के उत्पादन पर 6 फ़ीसद की वार्षिक लगाम लगानी होगी। लेकिन फ़िलहाल तमाम देश जीवाश्म ईंधन उत्पादन में सामूहिक 2% वार्षिक वृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं।
इस रिपोर्ट की मानें तो क्योंकि कोविड-19 से रिकवरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, इसलिए अब देशों को अधिक कोयले, तेल और गैस उत्पादन के स्तरों में स्वयं को बाँध लेने से बचना चाहिए, जिससे वैश्विक तापमान को 1.5 ° C की सीमा तक बढ़ने से रोका जा सके।
दूसरे शब्दों में पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने और 1.5 ° C मार्ग के मुताबिक आगे बढ़ने के लिए, देशों को आने वाले दशक में सामूहिक रूप से जीवाश्म ईंधन के उत्पादन में 6% सालाना की गिरावट की आवश्यकता होगी। और सऊदी अरब, रूस और अमेरिका जैसे प्रमुख निर्यातकों को तो अपना उत्पादन और भी तेज दर से कम करना होगा। लेकिन इसके विपरीत फ़िलहाल तो जीवाश्म ईंधन उत्पादन में 2% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, IISD, प्रवासी विकास संस्थान, जलवायु विश्लेषिकी और CICERO जैसेप्रमुख शोधकर्ताओं द्वारा लिखित इस प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट का पहला संस्करण पिछले साल निकला था और यह रिपोर्ट, पेरिस समझौते के लक्ष्यों और कोयला, तेल और गैस के नियोजित उत्पादन के बीच अंतर को मापती है। मौजूदा संस्करण बताता है की दोनों के बीच का “उत्पादन अंतर” (प्रोडक्शन गैप) अभी भी बहुत बड़ा बना हुआ है।
इस वर्ष का विशेष अंक कोविड-19 महामारी के निहितार्थ और कोयले, तेल और गैस उत्पादन पर सरकारों के प्रोत्साहन और रिकवरी के उपायों को केंद्र में लाता है। और इस बीच चीन, जापान और दक्षिण कोरिया सहित प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं नेट -ज़ीरो उत्सर्जन तक पहुंचने का वादा भी कर किया है।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन कहते हैं, “मौजूदा हालातों में अब सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं और ऊर्जा प्रणालियों को जीवाश्म ईंधन से दूर करने के अवसर तलाशने चाहिए।”
आगे, इस रिपोर्ट के मुख्य लेखक और SEI (एसईआई) के US (यूएस) सेंटर के निदेशक, माइकल लाज़ारस, कहते हैं, “अगर हम मौजूदा स्तर पर जीवाश्म ईंधन का उत्पादन जारी रखते हैं, तो हमें गंभीर जलवायु व्यवधान का सामना करना पड़ेगा।
“पेरिस लक्ष्यों के अनुरूप दर से जीवाश्म ईंधन उत्पादन को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समर्थन दोनों की आवश्यकता है। जैसा कि देश ग्लासगो में 2021 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले संयुक्त राष्ट्र की जलवायु प्रक्रिया के लिए अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु प्रतिबद्धताओं का संचार करते हैं, उनके पास इन योजनाओं या NDCs (एनडीसी) में जीवाश्म ईंधन उत्पादन को कम करने के लिए लक्ष्य और उपायों को शामिल करने का अवसर है,” क्लियो विरकुइज्ल, SEI (एसईआई) रिसर्च फेलो जो रिपोर्ट पर एक प्रमुख लेखक हैं, ने कहा।
आगे की कार्यवाही बताते हुए इस रिपोर्ट में कार्रवाई के छह मुख्य क्षेत्रों का ज़िक्र है। नीति निर्माताओं को कोविड-19 रिकवरी योजनाओं को लागू करते हुए जीवाश्म ईंधन को कम करने के विकल्प के देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि देश जीवाश्म ईंधन के लिए मौजूदा सरकारी समर्थन को कम कर सकते हैं या उत्पादन पर प्रतिबंध भी लगा सकते हैं। रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव-एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, “यह रिपोर्ट बिना किसी संदेह के दिखाती है कि अगर हम जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं तो कोयले, तेल और गैस के उत्पादन और उपयोग को जल्दी से कम करने की आवश्यकता है।”
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