ग्लोबल विंड एनर्जी काउन्सिल की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ एशिया पैसिफ़िक देशों के नेतृत्व में जहाँ ऑफ शोर विंड एनेर्जी अगले दस सालों में आज के 29.1 गीगावॉट से 234 गीगावॉट के पार हो जाएगी वहीँ भारत का इस क्षेत्र में निर्धारित लक्ष्यों को पाना मुश्किल दिखाई देता है।
हाल के रुझान बताते हैं कि फॉसिल फ्यूल के मुक़ाबले रेन्युब्ल एनेर्जी पर आधारित नई बिजली क्षमताएँ सस्ती बिजली पैदा करती हैं। बिजली की कीमत एक लिहाज़ से अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा बदल सकती है और ऐसे में सस्ती बिजली बनाने के रस्ते में कोई रूकावट भारत जैसे देश के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है। महामारी के बावजूद जहाँ दुनिया भर में रेन्युब्ल एनर्जी क्षेत्र ने उल्लेखनीय प्रदर्शन हुआ, वहीँ भारत में हालात कुछ अच्छे नहीं रहे।
इस बारे में ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (GWEC) की ताज़ा रिपोर्ट कुछ ख़ास बातें बताती है। रिपोर्ट की मानें तो वैश्विक ऑफ शोर विंड एनेर्जी क्षमता जहाँ 2019 के अंत में 29.1 GW रही, वहीँ एशिया-पैसिफ़िक और यूरोप में तीव्र वृद्धि के कारण 2030 तक 234 GW से अधिक हो जाएगी। लेकिन बात भारत की करें तो रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के लिए 2022 तक अपने के लक्ष्यों को पूरा मुश्किल लगता है।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने भारत की लगभग 7,600 किमी की तटरेखा के भरोसे 2022 तक ऑफ शोर विंड एनर्जी के लिए जहाँ 5 GW का लक्ष्य रखा, वहीँ 2030 तक 30 GW के लक्ष्य को निर्धारित किया है। भारत ने 70 GW ऑफ शोर विंड एनर्जी क्षमता के विकास के लिए संभावित क्षेत्र भी निर्धारित किया है।
लेकिन इन लक्ष्यों को लेकर GWEC का कहना है कि भारत के लिए 2022 तक पहला लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है और दूसरे लक्ष्य के लिए बेहद तेज़ी से विकास की आवश्यकता होगी।
इस मुश्किल को समझाते हुए रिपोर्ट में बताया गया है कि खंबात की खाड़ी, गुजरात, में 1 GW की पहली ऑफ शोर विंड एनर्जी परियोजना के लिए टेंडर में देरी हुई है जिससे लक्ष्यों को पूरा करने में मुश्किल होगी। आगे रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत की ऑफ शोर विंड एनर्जी को भूमि-आधारित सस्ती रेन्युब्ल एनेर्जी से मुक़ाबला करना पड़ा है, जिसकी वजह से बाज़ार पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
रिपोर्ट में भारत की स्थिति बताते हुए तमिलनाडु का ज़िक्र किया गया है, जहाँ विंड एनर्जी के लिए बढ़िया माहौल है और जिसके चलते इस राज्य ने उत्पादकों के बीच अपने लिए रूचि पैदा कर दी है। तमिलनाडु देश की कुल विंड एनेर्जी उत्पादन क्षमता में एक चौथाई की हिस्सेदारी रखता है और 2016 से देश का शीर्ष उत्पादक बना हुआ है।
पिछले आर्थिक वर्ष में भारत में विन एनेर्जी संयंत्रों की क्षमता 2.07 GW पहुंची जो कि 2018-19 के मुक़ाबले 31 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। और इस साल की पहली तिमाही तक विंड एनर्जी देश की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 10.1 प्रतिशत का योगदान देती है।
आगे बात वैश्विक परिदृश्य की करें तो रिपोर्ट के हिसाब से ऑफ शोर विंड एनेर्जी के लिए 2019 सबसे अच्छा वर्ष रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि वैश्विक स्तर पर उस साल 6.1 GW नई क्षमता जोड़ी गई और जिससे कुल वैश्विक क्षमता 29.1 GW हो गई। नए इंस्टॉलेशन के लिए रिकॉर्ड 2.4 GW स्थापित करते हुए चीन लगातार दूसरे साल भी नंबर एक पर बना हुआ है। चीन के बाद यूके में 1.8 GW और जर्मनी में 1.1 GW की क्षमताएं दर्ज की गयीं।
यूरोप भले ही ऑफ शोर विंड एनेर्जी के लिए अग्रणी क्षेत्र बना हुआ है, लेकिन एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों, जैसे ताइवान, वियतनाम, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ-साथ अमेरिकी बाजार भी तेजी से बढ़ रहे रहे हैं और अगले दशक में विंड एनेर्जी के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र साबित होंगे।
रिपोर्ट में चीन की अगुवाई में एशिया-पैसिफ़िक क्षेत्र में 2030 तक नई ऑफशोर पवन क्षमता के 52 GW स्थापित होने की उम्मीद है। चीन के बाद ताइवान 2025 तक 5.5 गीगावॉट और 2035 तक अतिरिक्त 10 गीगावॉट के लक्ष्य के साथ एशिया में दूसरा सबसे बड़ा ऑफ शोर विंड एनर्जी बाज़ार बनने के लिए तैयार है। वियतनाम, जापान और दक्षिण कोरिया ने क्रमश: 5.2 गीगावॉट, 7.2 गीगावॉट और 12 गीगावॉट की अपतटीय/ऑफशोर पवन क्षमता स्थापित करने की उम्मीद के साथ क्षेत्र के अन्य बाजारों को भी अपने ऑफ शोर विंड एनेर्जी बाज़ारों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है।
GWEC मार्केट इंटेलिजेंस का अनुमान है कि 2030 तक वैश्विक अपतटीय/ऑफशोर पवन क्षमता के 205 से अधिक GW को विश्व स्तर पर जोड़ा जाएगा, जिसमें कम से कम 6.2 GW की फ्लोटिंग ऑफ़शोर विंड क्षमता शामिल हैं।
रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए GWEC के CEO, बेन बैकवेल, ने कहा “कोविड रिकवरी के लिए संजीदा सरकारों के रवैय्ये से ऑफ शोर विंड एनर्जी वास्तव में वैश्विक हो रही है। दुनिया भर की सरकारें इसकी भूमिका को स्वीकार रही हैं। आने वाले दशक में जापान, कोरिया, और वियतनाम जैसे ऑफ शोर विंड एनर्जी के नए बाज़ार दिखेंगे जहाँ पूरी क्षमता से उत्पादन होगा। साथ ही तमाम एशियाई, अफ्रीकी, और लैटिन अमेरिकी देशों में नयी विंड टरबाइन भी लगती देखेंगे।” बेन रिपोर्ट के बारे में और बताते हुए कहते हैं, “इस क्षेत्र में लगभग 9 लाख नौकरियां बनेंगी अगले दस सालों में और यह आंकड़ा सही नीतियों से बढ़ाया भी जा सकता है।” बेन बैकवेल की बातों में दम है। विंड एनेर्जी में असीमित संभावनाएं हैं फ़िलहाल। इसको प्रोत्साहन देना देशों के लिए ज़रूरी भी है। आखिर ऑफ शोर विंड एनेर्जी का 1 GW 3.5 MT कार्बन डाईऑक्साइड से बचाता है। मतलब कार्बन उत्सर्जन से बचने का बेहतरीन विकल्प है विंड एनर्जी।
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