एक नई रिसर्च बताती है कि कोरोना महामारी के बाद ज़्यादातर देशों ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिये जो पैकेज बनाये हैं वह ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ाने वाले हैं। ग्रीननेस ऑफ स्टिमुलस इंडेक्स नाम के इस शोध में कहा गया है अमेरिका ही रिकवरी पैकेज के नाम पर करीब 3 लाख डॉलर खर्च कर रहा है लेकिन इसमें से केवल 3900 करोड़ डॉलर ही ग्रीन प्रोजेक्ट्स पर खर्च होगा। अमेरिका उन नियमों को भी निरस्त कर रहा है जो पर्यावरण संरक्षण के लिये बनाये गये हैं। शोध के मुताबिक केवल यूरोपियन यूनियन ही ऐसा समूह है जो 75,000 करोड़ यूरो के रिकवरी पैकेज में से 37% हरित प्रोजक्ट में खर्च कर रहा है।
नल से पानी सप्लाई पर होंगे 3.6 करोड़ खर्च
सरकार ने घोषणा की है कि वह घरों पर नल से पानी सप्लाई पहुंचाने के लिये कुल 3.6 लाख करोड़ खर्च करेगी। सरकार का कहना है कि वह अगले 4-5 साल में 15 करोड़ घरों में नल से पानी सप्लाई की व्यवस्था कर देगी। जल शक्ति मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह के मुताबिक लोगों के घरों तक साफ पानी पहुंचाने के लिये चलाये जा रहे जल जीवन मिशन के तहत यह काम किया जा रहा है।
क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिये भारत की तैयार कमज़ोर: शोध
वर्ल्ड रिस्क इंडेक्स (WRI) – 2020 रिपोर्ट के मुताबिक “क्लाइमेट रियलिटी” से निपटने के लिये भारत की तैयारी काफी कमज़ोर है। कुल 181 देशों की लिस्ट में भारत 89वें स्थान पर है यानी जलवायु परिवर्तन के ख़तरों से निपटने के लिये उसकी तैयारी बहुत कम है। दक्षिण एशिया में क्लाइमेट रिस्क की वरीयता में भारत बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बाद चौथे नंबर पर है। हाल यह है कि श्रीलंका, मालदीव और भूटान जैसे देशों की तैयारी हमसे बेहतर है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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