ऑस्ट्रेलिया में संकट

फोटो –ऑस्ट्रेलिया में संकट – सिडनी की ओर बढ़ती इस भयानक आग के कारण ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में क्लाइमेट इमरजेंसी की घोषणा करनी पड़ी। Photo: Weather Underground

ऑस्ट्रेलिया: भयानक गर्मी और जंगल में फैली आग, आपातकाल घोषित

ऑस्ट्रेलिया के राज्य विक्टोरिया ने इस महीने गर्मी का अपना रिकॉर्ड तोड़ दिया। यहां 20 दिसंबर को पारा 47.9 डिग्री पहुंच गया। विक्टोरिया में इससे पहले 1976 में तापमान 46.6 डिग्री तक पहुंचा था। आसमान से बरसती इस आग ने देश में फैली जंगलों की आग को और भड़काया। न्यू साउथ वेल्स में तो सरकार को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी।

करीब 100 जगह फैली बुशफायर ने फायर फायटर्स के लिये बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी। दो अग्नि शमन कर्मचारियों की तो आग बुझाते मौत भी हो गई। विदेश में छुट्टी मना रहे प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीशन को इन हालात में माफी मांगनी पड़ी और देश वापस लौटना पड़ा। 

2020 होगा सबसे गर्म देशों में से एक

नये साल में भी बढ़ते तापमान से कोई राहत नहीं मिलने वाली। UK के मौसम विभाग का पूर्वानुमान है कि 2020 दुनिया के सबसे गर्म वर्षों में से एक होगा और धरती की तापमान वृद्धि 1 डिग्री तक पहुंच जायेगी। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि यह पूर्वानुमान पिछले कुछ सालों के तापमान ग्राफ पर आधारित है और बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग का साफ संकेत है। अब किसी विशाल ज्वालामुखी के फटने जैसी घटना से ही इस तापमान वृद्धि में नियंत्रण की कोई उम्मीद है।

अमेज़न वर्षावन की सेहत लौटने में लगेगा अनुमान से अधिक समय

ब्राज़ील और ब्रिटेन के शोधकर्ताओं की नई रिसर्च बताती है कि अमेज़न रेनफॉरेस्ट यानी वर्षावन के पुनर्जीवन में अनुमान से अधिक वक़्त लगेगा। करीब 2 दशकों के अध्ययन के आधार पर साइंस पत्रिका इकोलॉजी में छपी यह रिसर्च बताती है कि जंगल काटे जाने के 60 साल बाद पनपे सेकेंडरी फॉरेस्ट में कार्बन सोखने की ताकत मूल जंगल के मुकाबले 40% ही होती है। इस नवनिर्मित जंगल में जैव विविधता भी मूल वर्षावन के मुकाबले 56% ही रह पाती है। अमेज़न पर छाये संकट और वहां चल रही विनाशलीला को देखते हुये यह रिसर्च काफी अहम मानी जा रही है।

सर्वे: मौसमी आपदाओं के लिये जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार

हर दूसरा भारतीय यानी 50 प्रतिशत देशवासी यह मानते हैं कि इंसानी करतूतों के कारण हो रहा जलवायु परिवर्तन ही ‘एक्स्ट्रीम वेदर’ के पीछे मुख्य वजह है। IBM सर्वे के मुताबिक 23% अमेरिकियों का भी यही मानना है। इस सर्वे के लिये 4816 लोगों से ऑनलाइन इंटरव्यू किया गया जिसके तहत भारत और अमेरिका के  दो-दो हज़ार लोगों से सवाल पूछे गये। इसके अलावा भारत में व्यापार जगत की 400 हस्तियों और 195 अमेरिकी बिजनेसमैन से राय मांगी गई।

Website |  + posts

दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.