कुछ दिन पहले ही वर्चुअली आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के साइड इवेंट, ‘सेफगार्डिग द प्लैनेट-द सर्कुलर कार्बन इकोनॉमिक अप्रोच’ में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरी दुनिया को बताया कि हमारा देश न सिर्फ़ पेरिस समझौते के अपने लक्ष्यों को समय रहते पूरा कर रहा है, बल्कि उन लक्ष्यों के आगे भी बढ़ रहा है। प्रधान मंत्री ने अपने संबोधन में साफ़ किया कि भारत ने अपने स्तर पर स्वच्छ जलवायु के लिए तमाम क्षेत्रों में ठोस कार्रवाई भी की है।
और प्रधान मंत्री के उस सम्बोधन के ठीक बाद अब बैंक ऑफ़ अमेरिका की एक रिपोर्ट जारी हुई है जिसके मुताबिक़ भारत वाक़ई अपने लक्ष्य न सिर्फ़ पूरे करेगा बल्कि उसके आगे निकलने के लिए भी तैयार है।
भारत, जहाँ दुनिया के दस में से नौ सबसे प्रदूषित शहर हैं, फ़िलहाल ऐसी स्थिति में है कि वो अपने एमिशन टारगेट्स को बड़े आराम से न सिर्फ़ हासिल कर लेगा बल्कि उनके आगे भी निकल लेगा।
दरअसल बैंक ऑफ़ अमेरिका सिक्योरिटीज़ की ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो भारत 2015 के पेरिस समझौते के तहत उत्सर्जन लक्ष्यों को पार करने के लिए बिल्कुल तैयार है और 2015 और 2030 के बीच एक बेहतर पर्यावरण और जलवायु के लिए लगभग $ 400 बिलियन का निवेश सम्भव है। अपनी रिपोर्ट में बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज़ ने यह भी कहा कि इस सकारात्मक बदलाव के लिए सात प्रमुख कारक होंगे हैं। और ये कारक होंगे डीजल की खपत कम करना, प्राकृतिक गैस और रेन्युब्ल ऊर्जा का उत्पादन और खपत बढ़ाना, उत्सर्जन मानदंडों नियमों के अनुपालन में सख्ती, गंगा नदी की सफाई, और बेहतर ऊर्जा दक्षता।
रिपोर्ट की कुछ ख़ास बातों पर ध्यान दें तो उसमे कहा गया है कि आने वाले वक़्त में भारत में प्रदूषण का विषय 1.3 ट्रिलियन डॉलर के मार्किट कैपिटलाइज़ेशन वाले 111 शेयरों पर असर डालेगा।
आगे बढ़ें तो रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत 2015 और 2030 के बीच ग्रीन फ्यूचर के लिए कैपेक्स में $ 401 बिलियन खर्च कर सकता है, बल्कि नवीनीकरण अपनाकर 106 GW की ऊर्जा बचत भी हासिल कर सकता है, और C02 को प्रति वर्ष 1.1 बिलियन टन घटाकर, 2015 के पेरिस समझौते से लक्ष्य से अधिक की सफलता हासिल कर सकता है।
ये सुन के अटपटा लगता है क्योंकि भारत दुनिया भर में वायु, जल, और ध्वनि प्रदूषण के मामले में सबसे पिछड़ा है। विश्व बैंक के एक अनुमान के मुताबिक, भारत को 2013 में जीडीपी के 8.5 फीसदी का नुकसान अकेले वायु प्रदूषण से हुआ था।
इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बैंक ऑफ़ अमेरिका की रिपोर्ट के लेखक कहते हैं कि “आम धारणा तो ये है कि भारत ज़रूरत भर का काम नहीं कर रहा है, लेकिन हम 2015 के पेरिस समझौते को एक निर्णायक बिंदु के रूप में देखते हैं, जब भारत ने अपने जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता को 2030 तक, 2005 के स्तर पर लाने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई। इसका मतलब हुआ अपने उत्सर्जन को लगभग 33-35 प्रतिशत से कम करना।”
भारत भले ही CO2 / NOx का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक हो लेकिन रिपोर्ट के अनुसार भारत की अब तक की प्रगति से पता चलता है कि भारत लक्ष्य से अधिक हासिल कर सकता है और समय के साथ इन लक्ष्यों को बढ़ा भी सकता है। इस परिदृश्य में भारत अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, और यूरोपीय संघ जैसी बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के साथ खड़ा दिखाई देता है साल 2050 नेट ज़ीरो होने का लक्ष्य रखे हुए हैं।
पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के तहत भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 33-35 प्रतिशत की कटौती करने, गैर-जीवाश्म ईंधन बिजली क्षमता को 28 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत करना, वन आवरण को बढ़ाकर, प्रति वर्ष २.५-३ बिलियन टन CO2 का कार्बन सिंक जोड़ने की प्रतिबद्धता दिखाई है।
इस क्रम में भारत, यूरोप, चीन, हांगकांग और सिंगापोर जैसे देशों के मुक़ाबले बड़ी तेज़ी भी दिखाई है उत्सर्जन मानकों को सख्त करने में।
बात रेन्युब्ल एनर्जी की करें तो भारत में दुनिया की सबसे ज़्यादा सोलर एनेर्जी क्षमताएं विकसित हो रही हैं। साथ ही भारत में एयर कंडीशनर और जेनसेट के लिए ऊर्जा दक्षता के दुनिया में शायद सबसे कठोर प्रदूषण मानदंड भी हैं। इस सबसे लगता है भारत वाक़ई न सिर्फ़ अपने लक्ष्य हासिल कर लेगा बल्कि उन्हें बेहतर भी करेगा। साथ ही, इस रफ्तार पर चले तो अगले कुछ दशकों में भारत का नेट ज़ीरो हो जाना भी एक सम्भावना है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
‘जंगलों के क्षेत्रफल के साथ उनकी गुणवत्ता देखना बहुत ज़रूरी है’
-
बाकू सम्मेलन के बाद विकासशील देशों ने खटखटाया अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाज़ा
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़