भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र पर लॉकडाउन का भारी असर है। टर्बाइन बनाने वाली बड़ी कंपनियों – सीमेंस गमेशा, जीई और इनोक्स विन्ड आदि – ने अभी प्रोडक्शन रोका हुआ है। इस बीच ब्लूमबर्ग एनईएफ ने साल 2020 के लिये भारत की पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 24% की कटौती की है। पहले 2.56 गीगावॉट की जगह अब इस साल का पूर्वानुमान 1.95 गीगावॉट रखा गया है। अब लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ा दिये जाने के बाद इस पूर्वानुमान में और बदलाव आ सकता है। रायटर की रिपोर्ट के मुताबिक सीमेंस और वेस्तास ने अपने मुख्यालय स्पेन और डेनमार्क में भी उत्पादन रोक दिया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के हालात का असर भी विश्व बाज़ार पर पड़ा है क्योंकि यहां से होने वाली उपकरणों की सप्लाई कई देशों को जाती है। पवन ऊर्जा से जुड़े उपकरणों के मामले में चीन के बाद भारत एशिया में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
कोविड-19: आयात पर प्रभाव से लड़ने के लिये कसी कमर
सोलर इम्पोर्ट सप्लाई के प्रभाव को कम करने के लिये भारत ने सोलर मेन्युफेक्चरिंग यूनिट और एक्सपोर्ट सर्विस हब बनाने का फैसला किया है। सरकार चाहती है कि सभी राज्य और बंदरगाह 50 से 500 एकड़ तक की जगह चुनें जहां पर फैक्ट्री या एक्सपोर्ट सर्विस हब बनाये जा सकें। इस काम में लगी कंपनियों को नवीनीकरण ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) से मदद मिलेगी।
साफ ऊर्जा सेक्टर पर असर, छोटे रूफटॉप उद्यमियों पर असर
लॉकडाउन, खासतौर से राज्यों की तालाबन्दी का असर साफ ऊर्जा के प्रोजक्ट्स पर पड़ना तय है। विश्लेषकों के मुताबिक उत्पादकों को वितरण कंपनियों यानी डिस्कॉम से मिलने वाले भुगतान प्रभावित होंगे क्योंकि हर 25% उत्पादन गिरावट का मतलब डिस्कॉम के लिये 12 डालर (850 रुपये) का नुकसान है। क्रिसिल के मुताबिक सप्लाई चेन में विघटन के कारण अगले तीन महीनों में 3 से 4 गीगावॉट के प्रोजेक्ट्स में देरी होगी। रूफटॉप क्षेत्र में छोटे कारोबारियों के लिये बड़ा संकट है। इस क्षेत्र का एक चौथाई कारोबार 10-12 बड़े कारोबारियों के पास है। इकॉनोमिक टाइम्स के मुताबिक सरकार और बैंकों से मदद नहीं मिली तो छोटी फर्म इस लॉकडाउन में दिवालिया हो सकती हैं और उन्हें साफ ऊर्जा के कारोबार को ही छोड़ना पड़ सकता है।
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