बाघजन की आग के सबक

Newsletter - August 7, 2020

आग की तपिश: एक विशेषज्ञ पैनल ने पाया है कि बागजन में लगी आग के लिये OIL की कोताही कई स्तर पर ज़िम्मेदार है | Photo: Sachin Bharali

बाघजन की आग के सबक

पिछले 70 दिन से असम के तिनसुकिया में सरकारी कंपनी OIL के ऑयल फील्ड में लगी आग धधक रही है। इस विनाशकारी आग को बुझाने के लिये की जा रही कोशिशें नाकाम हो रही हैं। पिछली एक अगस्त को आग पर काबू पाने की एक और कोशिश नाकाम हो गई।  आयल फील्ड में एक और धमाके में सिंगापुर से बुलाये गये 3 एक्सपर्ट घायल हो गये। इससे पहले 9 मई हुई दुर्घटना में दो कर्मचारियों दुर्लव गोगोई और टिकेश्वर गोहेन की मौत हो गई थी।

इस बीच एक एक्सपर्ट पैनल ने जांच में पाया है कि बाघजन अग्निकांड में सरकारी पेट्रोलियम कंपनी OIL ने कई स्तर पर कोताही बरती। प्लानिंग से लेकर, नियमों को लागू करने और आपरेशन के सुपरविज़न तक में कमियां पाई गईं। पैनल ने कहा है कि कंपनी के पास ड्रिलिंग और आपरेशन के लिये ज़रूरी अनुमति भी नहीं थी।  कुल 406 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिना किसी टेस्टेड सेफ्टी ( सुरक्षा परीक्षण) बैरियर के कंपनी ने काफी संवेदनशील ड्रिलिंग आपरेशन (BOP) को अंजाम दिया। योजना और उसके क्रियान्वयन में कोई तालमेल नहीं था।

इसके अलावा कंपनी ने जल और वायु प्रदूषण निरोधी कानूनों का भी उल्लंघन किया। यह ऑयल फील्ड 17 साल पहले 2003 में लगाया गया था। कंपनी ने दो साल के भीतर ही इसे माइनिंग लीज़ पर देना शुरू किया और यहां आज 23 ऑयल और गैस ड्रिल चल रहे हैं। जांच पैनल की रिपोर्ट बताती है कि बहुत सी ड्रिल बिना अनुमति के नियम कानूनों के पालन के चल रही  थीं। साल 2012 में नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने भी इस संवेदनशील क्षेत्र में इसी तरह कानून की अवहेलना पर चिन्ता जताई थी।

इस घटना का जहां पेट्रोलियम उत्पादन पर असर पड़ा है वहीं दूसरी ओर विस्फोट के तुरंत बाद ही कम से कम 9000 लोगों को यहां से हटा कर राहत कैंपों में भेजना पड़ा था। उधर डब्लू आई आई ने अपने रिपोर्ट में साफ कहा है कि 65 से 70 हेक्टेयर में आग लगने और तेल बिखर जाने से काफी बर्बादी हुई है। यहां खेतों में खड़ी फसल के साथ घास के मैदानों और दल-दलीय क्षेत्र नष्ट हो गये हैं जो पर्यावरण के हिसाब से काफी घातक है। महत्वपूर्ण है कि इसी इलाके में ड्रिबू-सैखोवा नेशनल पार्क भी है जो जैव विविधता और वन्य जीवों के लिये जाना जाता है। ऑयल इंडिया इस क्षेत्र में कई नये ड्रिल शुरु करना चाहती है लेकिन स्थानीय लोगों में अविश्वास गहरा गया है और गुस्सा भड़क रहा है। माना जा रहा है कि अगर न्यायपूर्ण जन सुनवाई नहीं हुई तो विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला तेज़ हो सकता है। तमिलनाडु का उदाहरण हमारे सामने है जहां कावेरी डेल्टा पर पेट्रोलियम के दोहन के खिलाफ छात्रों से लेकर किसानों ने जनकर विरोध किया लेकिन केंद्र सरकार दूसरी ही दिशा में चलती दिखी।


क्लाइमेट साइंस

बाढ़ में का कहर जारी: जुलाई का महीना पिछले 5 साल में सबसे खुश्क बताया जा रहा है लेकिन तब भी देश के कई हिस्सों में पानी भरा है | Photo: Scroll

जुलाई सबसे खुश्क लेकिन देश में बाढ़ का प्रकोप जारी

जून में अच्छे मॉनसून के बाद जुलाई में देश भर में मॉनसून की बारिश कम हुई। यह पिछले 5 साल का सबसे खुश्क जुलाई रहा। उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में जुलाई में बहुत कम बरसात हुई। वैसे मुंबई और पश्चिमी तट पर अगस्त की शुरुआत में रिकॉर्ड तोड़ बारिश से आम जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया।  कोलाबा ऑब्ज़रवेट्री ने अगस्त में 24 घंटे के भीतर 293.8 मिलि मीटर बारिश दर्ज की जो पिछले 46 साल का रिकॉर्ड बताया जा रहा है।

देश में औसतन सूखे जुलाई के बावजूद कई राज्यों में बाढ़ का प्रकोप लगातार बना हुआ है। असम और बिहार में इसकी मार सबसे अधिक है। असम के 30 ज़िलों में अब तक कुल 55 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुये हैं। असम में अब तक कम से कम 100 लोगों की जान बाढ़ ने ले ली है। उधर बिहार में अब तक  45 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुये हैं। राज्य में कम से कम 11 लोगों की मौत बाढ़ से हुई है। बिहार में कोरोना के कहर के बीच बाढ़ ने प्रशासन की दिक्कत और बढ़ा दी है।

IMD ने लॉन्च किया मौसम

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने पिछले सोमवार को आम जनता के लिये “मौसम” नाम का मोबाइल एप लॉन्च किया। इस एप के ज़रिये पूरे हफ्ते के मौसम से जुड़े पूर्वानुमान और जानकारियां मिलेंगी।  हालांकि किसानों और कृषि से जुड़े लोगों के मौसम विभाग का मेघदूत एप पहले से ही है। नये एप “मौसम” से लोगों को देश के 200 शहरों में तापमान, नमी, हवा की रफ्तार और दिशा की जानकारी मिलेगी जिसे रोज़ाना 8 बार अपडेट किया जायेगा। इसके अलावा 450 शहरों की मौसम की जानकारी भी मिल सकेगी।

तटीय इलाकों में बाढ़ से 2100 तक 20% जीडीपी को ख़तरा

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव और समुद्र तटों के प्रबंधन की नाकामी से विश्व अर्थव्यवस्था पर आने वाले दिनों बड़ा संकट आने वाला है। सदी के अंत तक पूरे विश्व की जीडीपी का पांचवा हिस्सा इससे नष्ट हो सकता है। साइंस पत्रिका ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में छपे एक शोध में यह बात कही गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम, मेलबॉर्न के रिसर्चर इस शोध का हिस्सा हैं। तटीय इलाकों में पानी भरने से बांग्लादेश, भारत, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका जैसे देशों में काफी आर्थिक चोट पहुंच सकती है। ग्लोबल वॉर्मिंग से ध्रुवों पर पिघलती बर्फ के कारण समुद्र जल स्तर में बढ़ोतरी हो रही है। हर सौ साल में एक आने वाले विनाशकारी बाढ़ अब हर दशक में हो सकती है।  

कर्नाटक ने बनायी बाढ़ प्रबंधन योजना

पिछले साल आयी विनाशकारी बाढ़ के बाद कर्नाटक ने अब एक बाढ़ प्रबंधन योजना बनाई है। इस बहुआयामी योजना के तहत बाढ़ के तमाम वजहों पर (जैसे – वर्षा का पूर्वानुमान, बांधों का जलस्तर आदि) एक इंटीग्रेटड नेटवर्क के ज़रिये नज़र रखी जायेगी ताकि अलग अलग स्तर पर बाढ़ से निपटने के लिये तालमेल बनाया जा सके। राजस्व अधिकारियों का कहना है कि बांधों से बिना प्लानिंग के अनायास छोड़े जाने वाले पानी भी बाढ़ की वजह बनता है। राज्य के आपदा प्रबंधन के मुताबिक  पिछले हफ्ते कर्नाटक और महाराष्ट्र के 6 बांध पूरे तरह लबालब थे। बाढ़ प्रबंधन के लिये इनसे छोड़े जाने वाले पानी की प्लानिंग अहम होगी।

भारत में लू वाले दिनों में 80% बढ़ोतरी

एक नई रिपोर्ट बताती है कि भारत में हीटवेव (लू के थपेड़े) वाले दिनों में  पिछले साल (2019) 80% बढ़ोतरी हुई। हालांकि इससे पहले दो साल इन आंकड़े में गिरावट दर्ज हुई थी लेकिन एन्वीस्टेट इंडिया 2020 के राज्यवार गणना के बाद दिये गये ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल भारत में  कुल 157 दिन हीटवेव (लू के थपेड़े) वाले थे जो साल -दर-साल तुलना के हिसाब से 82.6% की बढ़त है।

राजस्थान में सबसे अधिक 20 दिन हीटवेव रही। इसके बाद उत्तराखंड और यूपी का नंबर है जहां 13 दिन हीटवेव की मार रही।  हालांकि इससे पहले साल 2010 में 254 दिन और 2012 में 189 दिन हीटवेव का रिकॉर्ड है।


क्लाइमेट नीति

संवेदनशील मामले में कोताही: जानकार भागीरथी के संवेदनशील इको क्षेत्र में बदलाव पर सरकार से सहमत नहीं हैं | Photo: Scoopnest

भागीरथी ज़ोनल प्लान: विशेषज्ञ अंतिम ड्राफ्ट से सहमत नहीं

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन के लिये जो विशेषज्ञ कमेटी बनाई थी वह राज्य सरकार द्वारा बनाये गये ज़ोनल मास्टर प्लान (ZMP) के अंतिम ड्राफ्ट से सहमत नहीं है। विशेषज्ञ पैनल का मतभेद सड़क के पहाड़ को काटने और भूमि इस्तेमाल संबंधी कानूनों में बदलाव को लेकर है। यह चिंतायें केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट पर  प्रकाशित ZMP के परिशिष्ट (एनेक्सचर)  में रेखांकित हैं। भागीरथी इको सेंसटिव ज़ोन गोमुख से उत्तरकाशी तक है जो करीब 4100 वर्ग किलोमीटर में फैला है जिसमें 88 गांव आते हैं। ज़ोनल मास्टर प्लान में सरकार ने “व्यापक जनहित और राष्ट्रीय सुरक्षा” के नाम पर  भू – प्रयोग (लैंड यूज़) में बदलाव का अधिकार दिया है।

चंबल के बीहड़ों को बनाया जायेगा उपजाऊ

मध्य प्रदेश में कभी डकैतों के लिये बदनाम रहे चंबल के बीहड़ों को अब खेती के लिये उपजाऊ बनाने की तैयारी हो रही है। केंद्र सरकार अब विश्व बैंक के साथ मिलकर एक योजना बना रही है जिसके तहत ग्वालियर-चंबल पट्टी की 3 लाख हेक्टेयर ऊबड़खाबड़ ज़मीन को खेती लायक बनाया जायेगा। सरकार का कहना है कि इससे कृषि को बढ़ाने के साथ रोज़गार भी पैदा होगा। चंबल के नाले कभी डकैतों का घर रहे हैं और ये इलाका आर्थिक-सामाजिक रूप से काफी पिछड़ा रहा है।

रेलवे प्रोजेक्ट्स के लिये वन्यजीव अनुमति की ज़रूरत नहीं

नये नियमों के मुताबिक अब रेलवे प्रोजेक्ट, 20,000 वर्ग मीटर से कम के निर्माण कार्य और 25 MW तक के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के लिये नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ की अनुमति नहीं होगी चाहे ये प्रोजेक्ट संवेदनशील इलाकों (ESZ) में ही क्यों न बन रहे हों। पर्यावरण मंत्रालय ने इसे लेकर राज्यों को चिट्ठी लिखी है।  साल 2011 की गाइडलाइनों के मुताबिक 10 किलोमीटर रेडियस के इको सेंसटिव ज़ोन बनाने के पीछे वन्य जीवों और जैव विविधता को बचाने की भावना और रणनीति रही है। साल 2002 में वन्य जीव संरक्षण रणनीति के तहत भी अभ्यारण्यों के बाहर 10 किलोमीटर का “बफर” बनाने की सिफारिश थी। साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इको सेंसटिव ज़ोन (ESZ) घोषित करने में ढिलाई पर एक सुनावयी के दौरान सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा था कि इस रणनीति का पालन हो।

एक तिहाई बाघ हैं अभ्यारण्यों के बाहर

भारत में हर तीन में से एक बाघ टाइगर रिज़र्व के बाहर है। यह बात स्टेटस ऑफ टाइगर रिपोर्ट में कही गई है। साल 2014 में किये गये एक अध्ययन में हर चार में से एक बाघ रिज़र्व के बाहर था। यानी अब रिज़र्व के बाहर बाघों की संख्या बढ़ रही है जो एक चिन्ता का विषय है।  ताज़ा गणना के हिसाब से देश में अभी कुल 2,967 बाघ है जिनमें से 1,923 ही अभ्यारण्यों के भीतर हैं यानी 35% बाघ रिज़र्व के बाहर हैं।


वायु प्रदूषण

कड़वी सच्चाई: साफ हवा के मामले में दक्षिण एशिया सबसे फिसड्डी जगह है। भारत में वायु प्रदूषण से लोगों की औसत उम्र 5 साल से भी अधिक घट रही है | Photo: Financial Express

वायु प्रदूषण से घटती है ज़िंदगी 5 साल: रिपोर्ट

देश में वायु प्रदूषण के कारण औसत उम्र में 5 साल से अधिक कटौती हो रही है। देश की एक चौथाई आबादी अभी इतना प्रदूषण झेल रही है जितना किसी और देश में नहीं है। यह तथ्य शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी संस्थान (EPIC) द्वारा बनाये गये एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) रिपोर्ट में सामने आये हैं।  AQLI एक वायु प्रदूषण इंडेक्स है जो मानव जीवन पर प्रदूषण के प्रभाव को बताता है।  रिपोर्ट कहती है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के उलट अभी हवा की जो क्वॉलिटी है वह उम्र को 5 साल से अधिक कम करने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण  कोरोना महामारी से अधिक घातक है और बना रहेगा। पिछले 2 दशकों में देश में पार्टिकुलेट मैटर 42% बढ़े हैं और भारत की 84% आबादी देश के तय मानकों से खराब हवा में सांस ले रही है।

स्मॉग टावर मामले में SC ने दी अवमानना की चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट से अवमानना की चेतावनी के बाद आईआईटी मुंबई ने आनंद विहार बस अड्डे पर स्मॉग टावर लगाने के लिये सरकार के साथ नये MOU(एमओयू) पर दस्तख़त किये हैं।  आनंद विहार दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के सबसे प्रदूषित इलाकों में है।  मिनिसोटा विश्वविद्यालय और आईआईटी मुंबई मिलकर इसे अगले 10 महीने में तैयार करेंगे। हालांकि विशेषज्ञों ने स्मॉग टावर को “बेहद अवैज्ञानिक” और “जनता के पैसे की बर्बादी” बताया है।

 दिल्ली स्थित काउंसिल ऑफ एनर्जी, इन्वायरेंमेंट और वॉटर ने कहा है कि दिल्ली की हवा को साफ करने के लिये ऐसे 25 लाख टावर लगाने पड़ेंगे।  जो पैसा इस काम में बर्बाद किया जा रहा है उसका इस्तेमाल कोयला बिजलीघरों में प्रदूषण नियंत्रक टेक्नोलॉजी के लिये किया जा सकता है।

मुंबई के शहरी इलाके में हरियाली 42.5% घटी, तापमान में 3 गुना बढ़ोतरी

पिछले 30 साल में मायानगरी मुंबई का ग्रीन कवर 42.5% कम हुआ है। यह बात एक स्प्रिंगर नेचर नाम के जर्नल में छपे शोध से पता चलती है। इस शोध के लिये कर्नाटक स्थित मनिपाल एकेडमी, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स, आसनसोल के काज़ी नुरूल विश्वविद्यालय और शंघाई की ईस्ट चायना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अमेरिका के जियोलॉजिकल सर्वे द्वारा उपलब्ध कराई गई उपग्रह की तस्वीरों का इस्तेमाल किया और पिछले 30 साल के डाटा का अध्ययन किया। यह भी पता चला है कि पेड़ कटने और निर्माण कार्य की वजह से भूमि सतह तापमान (LST) में तीन गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जानकार कहते हैं  कि इन हालातों ने शहरी क्षेत्र के माइक्रो इकोसिस्टम को प्रभावित किया होगा। 

अमेरिका में प्रदूषण की मार आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों पर  

अमेरिका में समृद्ध गोरे अमेरिकियों पर प्रदूषण की मार आर्थिक रूप से कमज़ोर अश्वेतों के मुकाबले कम है। साल 1980 से अब तक देश भर में वायु प्रदूषण स्तर में कमी के बावजूद गोरे अमीर अमेरिकियों को अपेक्षाकृत साफ हवा मिल रही है। यह बात साइंस पत्रिका में छपे शोध में सामने आयी है। शोध कहता है कि PM 2.5 जैसे कणों की हवा में मौजूदगी 1981 के स्तर के मुकाबले 70% कम हुई है लेकिन वायु प्रदूषण की मार सब जगह एक सी नहीं है। खराब और साफ हवा में सांस ले रहे लोगों के बीच अंतर घटा है लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर अब भी अधिक प्रदूषित हवा झेल रहे हैं।


साफ ऊर्जा 

सोलर आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी की मियाद बढ़ी

भारत ने चीन, थाइलैंड और विएतनाम से सोलर उपकरण आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी अगले साल 30 जुलाई तक बढ़ा दी है। पहले 6 महीने ये ड्यूटी 14.9% तक होगी और फिर आखिरी 6 महीने 14.5% के हिसाब से चुकानी होगी। मरकॉम के मुताबिक सरकार की योजना चीनी उत्पादों पर कुल ड्यूटी 25% रखने की है। इसके लिये सरकार अगले साल 10% अतिरिक्त  बेसिक कस्टम ड्यूटी का ऐलान करेगी। इससे कुल ड्यूटी 40% तक हो जायेगी। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के मुताबिक सेफगार्ड ड्यूटी  4 साल से अधिक समय के लिये नहीं हो सकती।

विशेषज्ञों का कहना है कि सेफगार्ड ड्यूटी में बढ़ोतरी से घरेलू उत्पादन को बढ़ाने में बहुत मदद नहीं मिलेगी। घरेलू उपकरण चीन से आने वाले उपकरणों से 20% अधिक महंगे हैं। भारत में आयात होने वाले 80% चीन से आते हैं। बाकी आयात थाइलैंड और मलेशिया से होता है जहां ये माल चीनी कंपनियां ही बना रही हैं। आसियान मुक्त व्यपार समझौते का हिस्सा होने के कारण भारत इन देशों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी नहीं लगा सकता।

कोरोना: साफ एनर्जी सेक्टर पर वित्तीय चोट

कोरोना की बंदिशों ने देश के डिस्ट्रिब्यूटेड रिन्यूएबिल एनर्जी सेक्टर (ऑफ ग्रिड और रूफ टॉप सोलर आदि) पर भारी चोट की है और पिछले कुछ महीनों में इस क्षेत्र में राजस्व में भारी गिरावट आयी है। यह सेक्टर ग्रामीण क्षेत्र में किसानों की ऊर्जा ज़रूरतों के लिये काफी अहम है। महामारी से पहले सोलर लालटेन, पंप सेट और मिनीग्रिड का बाज़ार साल 2023 तक 10,117 करोड़ तक बढ़ने का अनुमान था लेकिन  सरकारी योजनाओं का असर अभी तक दिखा नहीं है। जानकारों का कहना है कि बैंकों द्वारा कर्ज़ भुगतान अवधि में छूट के कारण अभी एनपीए का पता नहीं चल रहा है।

रूफटॉप सोलर की दरें 22% तक गिरी, 40 GW का लक्ष्य फिर भी मुश्किल

 रूफटॉप सोलर की सरकारी दरों में 1 किलोवॉट से 10 किलोवॉट के बीच 22% की कमी हुई है। 10 किलोवॉट से इससे अधिक पर 20% की कमी हुई है।  हिमालय के पहाड़ी राज्यों को छोड़कर सोलर की दरों में यह लगातार चौथी सालाना गिरावट है। इसके बावजूद विशेषज्ञों को लगता है कि भारत 2022 तक 40 गीगावॉट क्षमता के रूफटॉप सोलर पैनल का लक्ष्य हासिल नहीं कर पायेगा। अभी कुल रूफटॉप क्षमता 4 गीगावॉट है।  

कर्नाटक: SECI ने नीलामी की तारीख फिर बढ़ाई

कर्नाटक में 2.5 गीगावॉट के इंटरस्टेट-कनेक्टेड सोलर प्रोजेक्ट की नीलामी की तारीख एक बार फिर बढ़ा दी गई है। सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने 14 अगस्त तक नीलामी की तारीख बढ़ाई है। कॉर्पोरेशन ने अप्रैल में इस प्रोजेक्ट के लिये टेंडर निकाला था। कर्नाटक के कोप्पल ज़िले में अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबिल एनर्जी पावर पार्क में यह प्रोजेक्ट लगाया जाना है।


बैटरी वाहन 

आत्मनिर्भरता की कोशिश: बैटरी क्षेत्र में नीति आयोग की कोशिश को सकारात्मक कदम कहा जा रहा है लेकिन इससे घरेलू उत्पादकों को कब से फायदा मिलेगा? | Photo: Indiatimes

बजाज सुस्त पर नीति आयोग ने बैटरी नीति पर भरोसा दिलाया

बैटरियों की ऊंची कीमत और चीन पर निर्भरता के कारण बजाज ऑटो ने अभी बैटरी वाहनों की दिशा में धीमी रफ्तार के साथ बढ़ने का फैसला किया है। हालांकि जनवरी 2020 में  इलैक्ट्रिक चेतक के साथ बजाज ऑटो  ने बैटरी दुपहिया वाहनों के बाज़ार में धमाकेदार शुरुआत की और वह एक बड़ा इलैक्ट्रिक टू-व्हीलर निर्माता है।  बैटरियों की कीमतें प्रति किलोवॉट-घंटा करीब 150 डॉलर गिर चुकी हैं लेकिन कंपनी पैर पसारने से पहले एहतियात बरत रही है। वैसे इसके प्रतिस्पर्धी काइनेटिक, महिन्द्रा और टीवीएस समेत कुछ कंपनियों ने अपने अलग अलग मॉडल उतारने शुरू कर दिये हैं। 

उधर नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है कि देश के भीतर बैटरी निर्माण संभव करने की नीति पर काम हो रहा है। यह देशव्यापी ईवी बैटरी पॉलिसी देसी ऑटो निर्माताओं के लिये बहुत अच्छी ख़बर होगी क्योंकि बैटरी वाहनों में 45-50 प्रतिशत कीमत बैटरी की ही होती है। इनमें से अधिकतर चीन से आयात हो रही हैं। क्या यह नीति देसी उत्पादन को बढ़ा पायेगी।

फ्रांस में एक शहर पूरी तरह बैटरी कारों पर

ऑटोमोबाइल कंपनी रेनो ने फ्रांस के एक शहर को पूरी तरह बैटरी कारों वाला बना दिया है। दक्षिण फ्रांस के एपी शहर को कंपनी ने अपने बैटरी कार प्रोजेक्ट के लिये चुना। रेनो ने यहां के  हर निवासी को एक नयी ZOE बैटरी कार 3 साल के लिये मुफ्त दी है ताकि लोगों को पता चले कि इलैक्ट्रिक वाहन क्या बदलाव ला सकते हैं। जिस शहर एपी के लोगों को यह बैटरी कार दी गई है वह फ्रांस का बहुत दूर दराज का शहर है लेकिन कहा जा रहा है कि ZOE कार की करीब 394 किलोमीटर की ड्राइविंग रेंज यहां के लोगों के लिये उपयोगी होगी। कंपनी ने 3 साल के लिये कार देने के साथ इन लोगों के घरों में कार चार्जिंग पॉइंट भी मुफ्त में लगाये हैं।

चीनी ऑटोमेकर ने अमेरिका में लॉन्च करेगी सबसे सस्ती बैटरी कार

चीनी बैटरी कार कंपनी कंडी (जिसे अपने देश में झीजियांग कांगडी के नाम से जाना जाता है) जल्द ही अमेरिका में सबसे सस्ती इलैक्ट्रिक कार लॉन्च करेगी। इसकी कीमत 20,490 अमेरिकी डॉलर बताई जा रही है यानी करीब 15.5 लाख रूपये। पूरी तरह से इलैक्ट्रिक K 27 नाम की कार इस साल के अंत तक यह कार बाज़ार में आ जायेगी।  सरकारी छूट के बाद ग्राहक को यह कार करीब 12,999 डॉलर यानी करीब 9.75 लाख रुपये की पड़ेगी। ऐसे में यह शैवर्ले स्पार्क से करीब 2,000 डालर सस्ती होगी। यह कार एक चार्जिंग में 100 मील तक जा सकती है।


जीवाश्म ईंधन

बजट में कटौती: कनाडा सरकार ने स्थानीय प्रांत के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट की मॉनिटरिंग के लिये तय बजट में भारी कटौती की है | Photo: Climatestate.com

कनाडा: पर्यावरणीय नियमों की निगरानी का बजट कम किया

कनाडा सरकार और अलबर्टा प्रान्त ने पर्यावरण नियमों की निगरानी के लिये तय बजट में कटौती की है। अलबर्टा के ऑयल सेंड्स डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में इस कटौती के लिये दोनों पक्षों में सहमति बनी है। जहां पिछले साल कुल 5.8 करोड़ डॉलर मॉनिटरिंग के लिये रखे गये थे वहीं इस साल का अधिकतम बजट 4.4 करोड़ डॉलर का है। इस कटौती के पीछे कोरोना महामारी वजह बताई गई है। इस फैसले के बाद प्रोजक्ट से निकलने वाले डिस्चार्ज को स्थानीय नदी में डालने से पहले उसकी क्वॉलिटी की जांच नहीं होगी और यहां मौजूद जीव-जंतुओं और मछलियों के साथ वैटलेंड  पर पड़ने वाले असर का आंकलन भी नहीं हो पायेगा।

क्लाइमेट रिस्क की जानकारी नहीं दी तो सरकार पर किया मुकदमा

ऑस्ट्रेलिया में एक 23 वर्षीय छात्रा ने सरकार पर इस बात के लिये मुकदमा कर दिया कि निवेशकों को सरकारी बॉन्ड खरीद में क्लाइमेट चेंज से जुड़े ख़तरों के  बारे में नहीं बताया गया। जानकार कहते हैं कि यह अपनी तरह का अनूठा मुकदमा है। इसमें याचिकाकर्ता छात्रा काट्टा ओ’ डोनेल ने कहा कि निवेशकों को ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरे न बताकर सरकार क्लाइमेट रिस्क का सच नहीं बता रही। उसका कहना है कि “देश की आर्थिक तरक्की के लिये कोई भी ख़तरा करेंसी को प्रभावित करेगा जिससे उसके निवेश पर असर पड़ सकता है।”

पोलैंड 2060 तक कहेगा कोयले को अलविदा

यूरोप में कोयले के सबसे बड़े उपभोक्ता पोलैंड  का कहना है कि वह 2050 या अधिकतम 2060 तक कोयला का प्रयोग बन्द कर देगा। यह बात पोलैंड के उप प्रधानमंत्री ने कहा। उन्होंने ये भी कहा कि गैर कोयला बिजलीघरों में इस बीच बड़े निवेश करने होंगे। यह ऐलान काफी अहम है क्योंकि पोलैंड की ज़्यादातर बिजली कोयले से ही बनती है।

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