क्लाइमेट साइंस
Newsletter - May 20, 2021
अरब सागर में उठते तूफानों का रिश्ता क्लाइमेट चेंज से
एक नये शोधपत्र के मुताबिक भारत के पश्चिमी तट पर पिछले कुछ सालों से लगातार उठ रहे चक्रवाती तूफानों का संबंध क्लाइमेट चेंज से है। अभी अरब सागर से उठे चक्रवात ताउते ने भीषण तबाही मचाई जिसमें कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और हज़ारों करोड़ का नुकसान हुआ। शोधपत्र कहता है कि जिस तीव्रता के साथ ये चक्रवात पश्चिमी तट से टकरा रहे हैं वह संकेत है कि ग्लोबल वॉर्मिंग इसके पीछे एक कारण है।
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का पानी गरम हो रहा है और साइक्लोन 28 डिग्री और उससे अधिक तापमान पर बहुत उग्र होने लगते हैं। पिछले सौ सालों में अरब सागर का तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ा है। ताउते के अलावा ओखी, गोनू, क्यार और निसर्ग जैसे तूफान पश्चिमी तट पर पिछले 15 सालों में आ चुके हैं। क्यार और गोनू तो सुपर साइक्लोन थे लेकिन वह समुद्र में रहे और तट पर नहीं टकराये। ओखी भी समुद्र में रहा लेकिन उसके कारण 130 मछुआरों की मौत हुई। अब तक तट से दूर रहने वाले साइक्लोन अब लगातार पश्चिमी तटरेखा से टकरा रहे हैं।
महत्वपूर्ण है कि भारत के पूर्वी तट पर – जहां समंदर के पास अधिक लोग नहीं रहते – ही अब तक शक्तिशाली और विनाशक तूफान आते रहे हैं। हुदहुद, फानी, तितली, गज और फाइलिन इसका उदाहरण हैं लेकिन अब पश्चिमी तट पर हर साल मॉनसून से पहले चक्रवातों का आना और उनकी तीव्रता बढ़ना चिन्ता का विषय है क्योंकि यहां तटरेखा पर आबादी घनी है। भारत के करीब 70 ज़िले तटरेखा से लगे हैं और बढ़ते चक्रवातों से नुकसान करीब 25 करोड़ लोगों की जीविका को भी क्षति पहुंचा रहा है।
पर्यावरणीय संकट झेल रहे 100 में 43 शहर भारत में
विश्व में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से पैदा खतरों से घिरे देशों में भारत और चीन सबसे ऊपर हैं। जिन 100 देशों पर पर्यावरणीय आपदाओं का संकट सबसे अधिक है उनमें से 43 भारत में और 37 चीन में हैं। यह बात इन्वारेंन्मेंटल रिस्क आउटलुक 2021 नाम की रिपोर्ट में है जिसमें दुनिया के 576 देशों को इस ख़तरे के हिसाब से सूचीबद्ध किया गया है। यह महत्वपूर्ण है कि सबसे संकटग्रस्त 100 में से 99 शहर एशिया में हैं जिन पर प्रदूषण, जल संकट, सूखा और चक्रवात जैसी मौसमी आपदाओं का साया है।
मिट रही हैं मुक्त प्रभाव से बह रही नदियां
दुनिया में बेरोकटोक बह रही नदियों कम होती जा रही है जिनका पानी साफ और ताज़ा है। । यह बात एक नये शोध में पता चली है जो कहता है कि दुनिया में केवल 17 प्रतिशत मुक्त रूप से बह रही अभी संरक्षित इलाकों में हैं। स्पष्ट रूप से इसका असर जलीय जीवन पर पड़ रहा है क्योंकि नदियों और उनके तट मछलियों, कछुओं और घड़ियालों समेत कई छोटे-बड़े जन्तुओं और वनस्पतियों का बसेरा हैं। अध्ययन बताता है कि 1970 के बाद से – यानी पिछले 50 सालों में – इस जलीय जीवन में 84 प्रतिशत गिरावट हुई है। नदियों पर बांध बनाने, उनका मार्ग बदलने और मानव जनित प्रदूषण नदियों के प्रवाद खत्म होने और जलीय जीवन नष्ट होने के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ताज़ा पानी जीवन के लिये तो ज़रूरी है लेकिन जैव विविधता, खाद्य श्रंखला, आपूर्ति और करोड़ों लोगों की अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिये भी नदियों का निरंतर प्रवाह आवश्यक है। जो नदियां बची रही हैं उनमें से ज़्यादातर संरक्षित क्षेत्र में बह रही हैं।
क्लाइमेट नीति
सरकारी पैनल ने उठाये अंडमान में बन रहे हवाई अड्डे पर सवाल
पर्यावरण मंत्रालय के एक एक्सपर्ट जांच कमेटी (ईएसी) ने अंडमान के स्वराज द्वीप में बन रहे एक एरोड्रोम (छोटा हवाई अड्डा) पर चिन्ता ज़ाहिर की है। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस एरोड्रोम के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन रिपोर्ट काफी अधूरी है और पर्यावरणीय मानकों को पूरा नहीं करती। पैनल का कहना है कि रिपोर्ट में इस बात की जानकारी नहीं है कि एरोड्रोम के लिये मैंग्रोव के नष्ट होने पर उसका क्या प्रभाव द्वीप पर होगा।
एक्सपर्ट जांच कमेटी का कहना है कि रिपोर्ट में “ज़्यादातर द्वितीयक (सेकेंडरी) डाटा” दिये गये हैं और “टूरिज्म की वजह से जलीय और प्राकृतिक पर्यावरण के सापेक्ष उस क्षेत्र विशेष की जैव विविधता का अध्ययन” नहीं किया गया। कमेटी ने प्रोजेक्ट के लिये दोबारा पर्यावरण आंकलन रिपोर्ट जमा करने को कहा है जिसमें कई तथ्य स्पष्ट करने को कहा है। इनमें सी-प्लेन के क्रेश होने का खतरा, केंद्र और राज्य से तटीय क्लीयरेंस की स्थिति के अलावा यहां के जंतुओं और पक्षियों में एरोड्रोम से उठे शोर का पुन: आंकलन करने को कहा गया है।
ग्रेटर निकोबार द्वीप में टाउनशिप से कछुओं के प्रजनन क्षेत्र को खतरा
ग्रेटर निकोबार द्वीप में एक प्रस्तावित टाउनशिप प्रोजेक्ट से कछुओं और मेगापोड के प्रजनन क्षेत्रों को खतरा हो सकता है। यह पूरा इलाका विलुप्त होती प्रजातियों का घर है जिनमें लेदरबैक टर्टल शामिल हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक्सपर्ट अप्रेज़ल कमेटी ने हालांकि इस प्रोजेक्ट के लिये शर्तों (टर्म ऑफ रिफरेंस) की सिफारिश की है, जो कि प्रोजेक्ट को हरी झंडी देने की दिशा में पहला कदम है, लेकिन कुछ चिंतायें भी ज़ाहिर की हैं।
कमेटी का कहना है कि प्रोजेक्ट को बनाते हुए तकनीकी और वित्तीय व्यवहारिकता को ध्यान में रखा गया लेकिन पर्यावरणीय सरोकारों का खयाल नहीं रखा गया। पैनल ने सलाह दी है कि जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया या वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया जैसे किसी स्वतंत्र संस्थान से इस प्रोजेक्ट का आंकलन कराया जाये।
गोवा: सुप्रीम कोर्ट के बनाये पैनल ने 3 प्रोजेक्ट्स पर जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किये पैनल ने गोवा के संरक्षित इलाकों में तीन प्रोजेक्ट्स पर चिंतायें जतायी हैं। गोवा में नागरिक कार्यकर्ता एक साल से इन प्रोजेक्ट्स का विरोध कर रहे हैं। सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये तीन प्रोजेक्ट राज्य के मोलम नेशनल पार्क और भगवान महावीर वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी के लिये ख़तरा हैं। इसने यहां से गुजरने वाली रेलवे लाइन की प्रस्तावित डबल-ट्रैकिंग और नई गोवा-तम्नार ट्रांसमिशन लाइन प्रोजेक्ट को रद्द करने की सिफारिश की है। कमेटी ने यह भी कहा है कि कर्नाटक-गोवा सीमा पर सड़क राजमार्ग के चौड़ीकरण के लिये पहले ग्रीन क्लीयरेंस हासिल किया जाये।
वायु प्रदूषण
वायु प्रदूषण: डीज़ल बच्चों में अस्थमा बढ़ने के लिये ज़िम्मेदार
यूनाइटेड किंगडम में किया गया एक शोध बताता है कि डीज़ल के प्रयोग में बढ़ोतरी होने पर हफ्ते भर में ही अस्थमा के शिकार बहुत सारे बच्चों को तकलीफ होने लगी और उन्हें डॉक्टर के पास जाना पड़ा। शोधकर्ता कहते हैं कि इस बीच चिकित्सकों द्वारा इन्हेलर की सिफारिशों का ग्राफ भी बढ़ा। हालांकि बच्चों पर इसकी सबसे बुरी मार पड़ी पर हर आयु वर्ग के लोगों पर इसका असर दिखा। इस शोध के लिये दक्षिण लंदन में डॉक्टरों के कोई 7.5 लाख नुस्खों का अध्ययन किया गया जो सांस की तकलीफ झेल रहे पांच साल से अधिक उम्र के मरीज़ों के लिये लिखे गये।
पशु बाड़ों से प्रदूषण: अमेरिका में हर साल 18 हज़ार मौतें
अपनी तरह का यह पहला शोध बताता है कि कृषि और पशुपालन से जुड़ी गतिविधियों से हो रहा प्रदूषण अमरीका में हर साल करीब 18,000 लोगों की जान ले रहा है। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में कहा गया है कि खाद्य उत्पादन से जुड़े प्रदूषण के कारण 80% मौतें हो रही हैं। शोधकर्ता बताते हैं कि खाद और पशु आहार से जुड़ी गैसों में फेफड़ों को परेशान करने वाले कण होते हैं।
साफ हवा में बढ़ती है बच्चों के सीखने की क्षमता
यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर की रिसर्च के मुताबिक स्कूलों के आसपास वायु प्रदूषण के स्तर में 20% की गिरावट बच्चों की लरनिंग एबिलिटी (सीखने की क्षमता) 6.1% तक बढ़ा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हर साल 4 हफ्ते अधिक पढ़ाई करने और सीखने जैसा है। यह शोध उन 5 लाख बच्चों पर किया गया जो हानिकारक प्रदूषण स्तर का सामना कर रहे हैं।
साफ ऊर्जा
बैटरी स्टोरेज बढ़ाने के लिये 18 हज़ार करोड़ की योजना
भारत ने इलैक्ट्रिक वाहनों को बढ़ाने और बैटरी स्टोरेज उपकरणों का आयात घटाने के लिये 18,100 करोड़ का इंसेंटिव प्लान मंज़ूर किया है जो बेहतर उत्पादन को उत्साहित करेगा। हर साल भारत बैटरी स्टोरेज सुविधा के लिये 20,000 करोड़ के उपकरण आयात करता है।
इस योजना के तहत आधुनिक कैमिस्ट्री सेल पर आधारित 50 गीगावॉट-घंटा की स्टोरेज और 50 गीगावॉट-घंटा की ‘नीश’ एसीसी प्रोडक्शन घंटा को प्रोत्साहित किया जायेगा। सरकार ने कहा है कि कैमिकल सेल बैटरी स्टोरेज के नेशनल प्रोग्राम के तहत 45,000 करोड़ का और निवेश किया जायेगा। यह इंसेंटिव उन उत्पादकों को दिया जायेगा जो 5 से 20 गीगावॉट-घंटा की स्टोरेज लगायेंगे और 5 साल के भीतर 60% घरेलू वैल्यू एडिशन को सुनिश्चित करेंगे।
एंटी डम्पिंग: चीन, विएतनाम और थाइलैंड से आयात की जांच
इंडियन सोलर मैन्युफेक्चरर्स (आईएसएमए) की याचिका पर सरकार ने तय किया है कि चीन, थाइलैंड और विएतनाम से आयातित सोलर सेलों की एंटी डम्पिंग नियमों के तहत जांच शुरू होगी। सोलर मॉड्यूल बनाने के लिये सोलर सेल पहली ज़रूरत होते हैं और चीनी उत्पाद 15 से 20% सस्ते हैं। डायरेक्टर जनरल ऑफ ट्रेड रेमिडीज़ (डीजीटीआर) ने पहली नज़र में इन देशों के खिलाफ जांच का आधार पाया है। वैसे आईएसएमए की याचिका पर जुलाई, 2017 में शुरू की गई एक ऐसी ही जांच मार्च, 2018 में रोक दी गई थी।
फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक चीन और मलेशिया से आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी (आयात को हानि पहुंचने से रोकने के लिये टैक्स) लगा दिये जाने के बाद 2018 और 2020 के बीच वियेतनाम और थाइलैंड से आयात का ग्राफ तेज़ी से बढ़ा। इनमें 800% और 5,750% का उछाल दर्ज किया गया। वियेतनाम से 136 करोड़ डॉलर और थाइलैंड से 11.7 करोड़ डॉलर का आयात हुआ। इसी दौर में चीन से आयात 60% घटकर 130 करोड़ हो गया।
बाइडेन ने समुद्र में पहले बड़े पवन ऊर्जा फार्म को मंज़ूरी दी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने व्यवसायिक स्तर पर पहले पवन ऊर्जा संयंत्र को मंज़ूरी दी है जो समुद्र में लगेगा। विनयार्ड विन्ड प्रोजेक्ट नाम के इस संयंत्र में अटलांटिक महासागर में 84 टर्बाइन लगाई जायेंगी जो तट से 12 नॉर्टिकल मील की दूरी पर होंगी। न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिर इससे 800 मेगावॉट बिजली बनेगी जो 4,00,000 घरों के लिये पर्याप्त होगी। अमेरिका अपने पूर्वी तट पर करीब 2,000 टर्बाइन लगाने की योजना बना रहा है।
महत्वपूर्ण है कि ट्रम्प प्रशासन ने इस प्रोजेक्ट को अनुमति रद्द कर दी थी। अब बाइडेन ने 2030 तक 30,000 मेगावॉट ऑफ-शोर पवन ऊर्जा के लक्ष्य के तहत इसे हरी झंडी दी है। व्हाइट हाउस का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से सालाना 1,200 करोड़ डॉलर का निवेश होगा और दस साल में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 77,000 नौकरियां मिलेंगी।
बैटरी वाहन
लम्बी दूरी तक चलने वाली लीथियम बैटरी में हावर्ड को मिली कामयाबी
हावर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को सॉलिड स्टेट लीथियम आयन बैटरी में कामयाबी मिली है जिसमें एक बार में 10,000 साइकिल की रिचार्ज क्षमता है। माना जा रहा है कि शोधकर्ताओं ने दो इलेक्ट्रोड्स के बीच में अलग अलग क्षमता की सॉलिड स्टेट परतें लगाकर डेन्ड्राइट फॉर्मेशन की दिक्कत को काबू करने की कोशिश की गई है। डेन्ड्राइट फॉर्मेशन के कारण आग लगने का खतरा बढ़ता है और बैटरी की रेंज कम होती है लेकिन दो इलेक्ट्रोड्स के बीच में ये परतें डेन्ड्राइट्स को रोक देती हैं।
अगर बड़े स्तर पर कार उत्पादन में यह प्रयोग सफल होता है बैटरियां अधिकतम 20 मिनट में रिचार्ज हो पायेंगी और कारें 10 से 15 साल तक चलेंगी जो कि अभी चल रही आई-सी इंजन कारों जैसा ही होगा।
नासा के पूर्व वैज्ञानिक बना रहे हैं वायरलैस बैटरी चार्जिंग
अमेरिका की कोर्नेल यूनिवर्सिटी में काम कर रहे नासा के एक पूर्व वैज्ञानिक और उनकी टीम इलैक्ट्रिक कारों के लिये एक ऐसा वायरलैस चार्जिंग सिस्टम तैयार कर रहे हैं जो सड़क पर बिछा होगा। इस प्रयोग के सफल होने का मतलब है कि कार को रोक कर किसी चार्जिंग स्टेशन पर चार्ज नहीं करना होगा बल्कि वह सड़क पर चलते हुये चार्ज हो जायेगी।
अमेरिका की कॉरनेल यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग विभाग में प्रो खुर्रम अफरीदी की टीम एक्टिव वेरिएबल रिएक्टेंस रेक्टिफायर (एवीआर) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है। इसमें धातु का एक टुकड़ा कार के नीचे लगा होगा और दूसरा टुकड़ा सड़क की उस लेन में फिट किया जायेगा जिस पर कार चार्जिंग के लिये दौड़ेगी। सड़क पर लगा सिस्टम बिजली के मूल स्रोत से जड़ा होगा। इस तरह से चलती हुई कार को अनलिमिटेड रेन्ज मिल सकती है जो अभी कर इलैक्ट्रिक कारों या वाहनों की दुनिया में एक सपना है। प्रो खुर्रम कहते हैं कि इस तरह से कार चालक को न तो चार्जिंग के लिये रुकना पड़ेगा और न चार्जिंग स्टेशन तक जाने के लिये अपना रास्ता बदलना पड़ेगा।
अभी हालांकि ये टेक्नोलॉजी का प्रयोग सड़क के उन्हीं हिस्सों के लिये हो रहा है जहां बहुत सारी कारें चल रही हों – जैसे कि कार पूल लेन – और एक कार के सड़क पर चलने से पर्याप्त करंट पैदा नहीं होगा और कार चार्जिंग नहीं हो पायेगी जब तक की वही कार पूरे दिन उस हिस्से पर चलती रहे।
जीवाश्म ईंधन
एचएसबीसी बैंक का कोल पावर में निवेश लेगा कई लोगों की जान: शोध
सेंचर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) का नया शोध बताता है कि कि एचएसबीसी बैंक की संपत्ति प्रबंधन शाखा एशिया और अफ्रीका में 73 कोयला बिजलीघरों में निवेश करेगी। बैंक पेरिस समझौते के तहत पूरी दुनिया में 2040 तक कोयले में निवेश खत्म करने के वादे के बावजूद ऐसा कर रहा है। अमेरिकी एचएसबीसी अपने बचाव में तकनीकी बहाने कर रही है लेकिन जो निवेश कोयले में किया जा रहा है वह लोगों के जीवन के लिये घातक होगा।
रिसर्च बताती हैं कि एचएसबीसी की वित्तीय मदद से बन रहे नये कोल प्लांट्स जब शुरू होंगे तो उनके धुंए से हर साल दुनिया में कम से कम 18,700 लोग मरेंगे। सीआरईए के शोध में पाया गया है कि मरने वालों में सबसे अधिक, सालाना 8,300 मौतें, भारत में होंगी। इससे चीन में 4,200, बांग्लादेश में 1,200 और इंडोनेशिया में सालाना 1,100 लोगों के मरने का अंदेशा जताया गया है।
इंडोनेशिया के सबसे बड़ी कंपनी कोयले से पल्ला झाड़ेगी लेकिन 35 गीगावॉट के बिजवलीघर बनाने के बाद
इंडोनेशिया की सबसे बड़ी कंपनी, पेरुसहान लिस्ट्रिक नगेरा (पीएलएन), ने कहा है कि वह कोई नया कोयला बिजलीघर नहीं बनायेगा लेकिन उससे पहले कंपनी 35 गीगावॉट के प्रस्तावित कोयला बिजलीघर लगायेगी। कंपनी का कहना है कि वह साफ ऊर्जा में निवेश करेगी और 2050 तक कार्बन न्यूट्रल हो जायेगी। इंडोनेशिया दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है और कोयला बिजलीघरों के मामले में पीएलएन दुनिया की 15वीं सबसे बड़ी कंपनी है।
साल 2015 में कंपनी ने 35 गीगावॉट के पावर प्लांट मंज़ूर किये थे जिनमें 15 गीगावॉट कोयले के हैं। जानकारों का कहना है कि मौजूदा घोषणा साफ क्लाइमेट की दिशा में अच्छा संकेत है लेकिन सवाल किया है कि प्रस्तावित कोयला बिजलीघरों को बनाने पर कंपनी क्यों ज़ोर दे रही है जबकि उसे कोयला खदानों और उससे जुड़े लोगों को अन्य क्षेत्रों में रोज़गार के लिये कुछ करने पर ज़ोर देना चाहिये।
सस्ते विकल्प होने पर कोयले, तेल के लिये कर्ज़ नहीं देगा एशियाई विकास बैंक
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने अपनी ड्राफ्ट पॉलिसी अपडेट में कहा है वह एशिया में तेल, कोयले या गैस के एनर्जी प्रोजेक्ट्स को कर्ज़ देना बन्द कर देगा। बैंक ने 2009-19 के बीच दक्षिण एशिया में ही 4250 करोड़ अमेरिकी डॉलर के जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट में निवेश किया। बैंक की नई टाइम लाइन यह नहीं बताती कि वह अपनी घोषणा को कब तक लागू करेगा। बैंक ने कहा है कि वह साफ, सस्ते विकल्प को तरजीह देगा जब कि तक कि वहां कोई और ज़रिया उपलब्ध न हो।