क्लाइमेट चेंज: बढ़ रहे हैं विरोध प्रदर्शन

Newsletter - October 30, 2019

हिंसक होते प्रदर्शन: मेट्रो के किरायों में बढ़ोतरी से चिली में पिछले दिनों प्रदर्शन भड़क उठे। सरकार परिवहन के लिये साफ ऊर्जा का इस्तेमाल करना चाहती है। फोटो - Project-Syndicate.org

ख़तरे की आहट ने खींचा सड़कों पर

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस साल जनवरी में जलवायु परिवर्तन के ख़तरे को स्वीकार करते हुये माना कि यह सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता का संकट बढ़ायेगा। इस दशक की शुरुआत से सरकारों के खिलाफ अफ्रीका और मध्य एशिया में विरोध प्रदर्शन बढ़ गये। बात साफ है। जलवायु परिवर्तन की वजह से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।  अमीरी – गरीबी के व्यापक अंतर की वजह से हिंसा की संभावना बढ़ रही है। इस साल यूरोप और अमेरिका में हुये प्रदर्शनों ने अमीर देशों का यह भ्रम तोड़ दिया कि वह इस संकट से बचे रहेंगे।

जब सरकारें क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिये ऐसे कदम उठाती हैं जिनका आर्थिक बोझ लोगों पर पड़ता है  तो वह सड़कों पर उतरते हैं। फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रॉन ने ईंधन पर सरचार्ज लगाया तो पिछले एक साल से वहां लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन को यूरोप के दूसरे हिस्सों, उत्तरी अमेरिका और मध्य एशिया के कामकाज़ी और मज़दूर वर्ग का समर्थन मिला है।

कुछ दिन पहले ही चिली में हिंसक प्रदर्शन हुये जब सरकार ने परंपरागत ईंधन पर टैक्स लगाया और वहां मेट्रो को साफ ऊर्जा से चलाने का फैसला किया। ऐसा विरोध और असंतोष भारत में भी दिख रहा है। सवाल है कि क्या बैटरी वाहनों को बढ़ाने की कोशिश से बाज़ार में मंदी आई और लोगों की नौकरियां गईं। सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल को बन्द करने के ऐलान से भी लाखों लोगों के रोज़गार जाने का ख़तरा पैदा हुआ और अभी यह मिशन ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। 

आंकड़े बताते हैं कि विरोध प्रदर्शनों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन उनकी कामयाबी की दर लगातार कम हो रही है। इस सदी में हुये प्रदर्शनों में से 30% ही अपना लक्ष्य हासिल कर पाये। महत्वपूर्ण है कि जब हम पेरिस डील में तय लक्ष्य हासिल करने के लिये क्लाइमेट एक्शन को बढ़ाने की बात करते हैं तो यह जानना भी जरूरी है कि मौजूदा राजनीतिक और आर्थिक ढ़ांचे में लोगों के विरोध को समझना और उन्हें साथ लेना क्या आसान होगा?


क्लाइमेट साइंस

तापमान से तबाही: इस सदी की घटनाओं का शोध बताता है कि अल-निनो से तबाही में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। फोटो: Washington Post

जलवायु परिवर्तन के साथ बढ़ रहा एल-निनो प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर के साथ एल-निनो प्रभाव भी लगातार बढ़ रहा है। एक नये शोध में 1901 से अब तक के 33 एल-निनो घटनाओं का अध्ययन किया गया। इस रिसर्च में पता चला कि  कि 1971 के बाद से एल-निनो गर्भ समुद्र लहरों पर ही बन रहा है और इसलिये इसका प्रभाव अधिक हो रहा है। एन-निनो मौसम के पैटर्न से जुड़ी घटना है जो दक्षिण अमेरिकी समुद्र क्षेत्र में भू-मध्यरेखा के पास  बनती है। इसके बढ़ते प्रभाव से भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सूखा और अमेरिका के कैलिफोर्निया के इलाके में अति-वृष्टि और बाढ़ की घटनायें होती हैं। शक्तिशाली एल-निनो से पैसेफिक क्षेत्र में चक्रवाती तूफान बढ़ते हैं और अटलांटिक में इनकी संख्या और तीव्रता घटती है।

उत्तरी ध्रुव: जमी बर्फ पिघलने से बढ़ता कार्बन इमीशन

आर्कटिक यानी उत्तरी ध्रुव जमी हुई बर्फ का अनंत भंडार है और कार्बन सोखने का काम करता है लेकिन अब पिछले कुछ दशकों से ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है। इस वजह से उत्तरी ध्रुव की बर्फ गायब होने लगी है और आर्कटिक कार्बन सोखने के बजाय कार्बन छोड़ने लगा है। अक्टूबर और अप्रैल के बीच हर साल पिघलती बर्फ सालाना  1.7 अरब टन कार्बन वातावरण में छोड़ रही है जो पहले लगाये गये अनुमान से दोगुना है।  रूसी नौसेना कहना है कि उत्तरी ध्रुव में बर्फ के गलने से 5 नये द्वीप बन गये हैं। इनका  द्वीपों का नामकरण होना बाकी है।

बढ़ती भुखमरी के पीछे जलवायु परिवर्तन भी एक वजह

इस साल ग्लोबल हंगर इंडैक्स यानी वैश्विक भूख सूचकांक में भारत की स्थिति और खराब हुई है और वह 117 देशों में 102वें नंबर पर है। ग्लोबल हंगर इंडैक्स की गणना में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन 2015 के बाद से दुनिया में लगातार बढ़ रही भुखमरी की एक वजह है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों को होता नुकसान इसकी पीछे है। 1990 से लगातार यह असर देखने को मिल रहा है जिससे उत्पादकता प्रभावित हो रही है।


क्लाइमेट नीति

बढ़ते अपराध: साल 2017 में 2016 के मुकाबले पर्यावरण से जुड़े अपराध 790% बढ़े हैं लेकिन गणना के तरीकों पर जानकारों ने सवाल उठाये हैं। Photo: Mongabay

पर्यावरण से जुड़े अपराध 790% बढ़े: NCRB

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि पर्यावरण से जुड़े अपराधों में – 2016 और 2017 के बीच – 790% की बढ़ोतरी हुई। साल 2016 में जहां 4,732 अपराध दर्ज हुये थे वहीं 2017 में इनकी संख्या 42,143 रही।  तमिलनाडु नंबर-1 राज्य रहा जहां कुल अपराधों के करीब 50% (21,914) दर्ज किये गये। इसके बाद राजस्थान (16%) और केरल (16%) का नंबर रहा।  उत्पादकता प्रभावित हो रही है।

अपराधों में इस रिकॉर्ड वृद्धि के लिये सिगरेट और तंबाकू से जुड़े कानून (2003) के तहत अपराधों को पर्यावरणीय अपराध में शामिल किया जाना है। कुल अपराधों में 30% अपराध इसी कानून के अंतर्गत हैं। NCRB के आंकड़े एक साल की देरी से जारी हुये हैं और जानकारों का कहना है कि पर्यावरणीय अपराधों की गिनती के लिये जो तरीका अपनाया गया है उसमें मौलिक त्रुटियां  हैं। 

बिजली क्षेत्र में कुल 1 लाख करोड़ के NPA 

पावर सेक्टर का हाल बद से बदतर होता जा रहा है। दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (TERI) मुताबिक अब तक पावर सेक्टर को दिये गये 1 लाख करोड़ रुपये के कर्ज़ एनपीए बन चुके हैं।  यह पावर सेक्टर पर कुल कर्ज़ का 18% हैं। TERI ने इस हाल के लिये ज़िम्मेदार कारणों में पावर कंपनियों द्वारा 2010 से 2015 के बीच किया गया “बेवजह विस्तार”  और 2012 के बाद मांग-वृद्धि ग्राफ में गिरावट प्रमुख कारण बताये हैं। ताज़ा RBI रिपोर्ट बताती है कि बैंकों के NPA लगातार बढ़ रहे हैं। बिजली मंत्री आर के सिंह के मुताबिक जल्द ही इस सेक्टर को दुरस्त करने के लिये कदम उठाये जायेंगे।

अमेरिका को पेरिस डील से हटाने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू

ट्रम्प प्रशासन आखिरकार अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकालने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू कर रहा है। पेरिस नियमों के तहत औपचारिक प्रक्रिया के शुरू होने के बाद अमेरिका को इस डील से बाहर आने में 1 साल का वक्त लगेगा। डोनाल्ड ट्रम्प कहते रहे हैं इस समझौते की “अत्यधिक पाबंदियों” से घरेलू उत्पादन बन्द हो जायेगा और “विदेशी उत्पादकों” की बल्ले-बल्ले होगी।


वायु प्रदूषण

धुंयें का त्यौहार: दिल्ली के मुख्यमंत्री की अपील और जागरूकता अभियान के बावजूद दीवाली में इस बार फिर प्रदूषण में कोई कमी नहीं हुई। Photo: Tata Cliq

दिवाली ने दिल्ली के प्रदूषण का ग्राफ फिर बिगाड़ा

राजधानी दिल्ली में दिवाली के दो दिन बाद तक वायु प्रदूषण “हानिकारक” (severe) श्रेणी में रहा। दिवाली की अगली सुबह 28 अक्टूबर को तड़के प्रदूषण 3 बजे सर्वोच्च स्तर पर था। सरकारी नियमों के हिसाब से 48 घंटे तक प्रदूषण लगातार “हानिकारक” श्रेणी बने रहने पर “आपातकाल” की घोषणा की जाती है। दिल्ली स्थित साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (CSE) ने केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह बताया कि इस साल भी प्रदूषण का सर्वोच्च स्तर (peak level) लगभग 2018 जितना ही था।  

NASA: पंजाब, हरियाणा में खुंटी-दहन में 5% की बढ़ोतरी

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने उपग्रह की मदद से जो तस्वीरें जारी की हैं उनसे पता चलता है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल पंजाब और हरियाणा में खुंटी (फसल की ठूंठ जिसे पराली भी कहा जाता है) जलाये जाने की घटनाओं में 5% की बढ़त हुई है। हालांकि अधिकारी बताते हैं कि पंजाब में प्रति यूनिट क्षेत्रफल में खुंटी जलाये की घटनायें घटी हैं। इस साल 22 अक्टूबर तक राज्य में 18% अधिक ज़मीन पर धान की फसल कटने का पता चला।  2018 में जहां यह क्षेत्रफल 8.6 लाख हेक्टेयर था वहीं इस साल 10.2 हेक्टेयर में फसल काटी गई है।

कचरा जलाने के मामले में EPCA पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) ने सुप्रीम कोर्ट को एक स्पेशल रिपोर्ट दी है जिसमें दिल्ली के पड़ोसी राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी है जहां बार-बार और बड़ी मात्रा में कचरा जलाया जाता है। EPCA ने पाया कि हज़ारों टन प्लास्टिक और औद्योगिक कूड़ा खुले में जमा किया जाता है और जलाया जाता है। अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह इन राज्यों के प्रदूषण बोर्डों को निर्देश दे की वह इन स्थानों पर सख़्त निगरानी रखें और कचरा जलाने पर रोक लगाये।

प्रदूषण रोकने में एनसीआर के बिजलीघर फेल: RTI

दिल्ली के आसपास के इलाके में 33 कोयला बिजलीघर एक बार फिर प्रदूषण नियंत्रण कंट्रोल टेक्नोलॉजी उपकरण लगाने की डेडलाइन में फेल होंगे। पहले इन बिजलीघरों को दिसंबर 2017 तक यह टेक्नोलॉजी लगाने थी लेकिन फिर कोर्ट ने यह समय सीमा 2 साल बढ़ाकर दिसंबर 2019 कर दी लेकिन अब सूचना अधिकार कानून से पता चला है कि ज्यादातर कंपनियों ने अपने प्लांट में प्रदूषण नियंत्रक उपकरण लगाने के लिये कोई टेंडर ही जारी नहीं किया है।

सिंगरौली: खनन और बिजली कंपनियों पर NGT का जुर्माना कितना असरदार

पर्यावरण मामलों की अदालत NGT ने  सिंगरौली इलाके में काम कर रही खनन और बिजली कंपनियों पर कुल 79 करोड़ का जुर्माना लगाया है। एक याचिका की सुनवाई पर कोर्ट ने इन कंपनियों पर यह जुर्माना इस क्षेत्र में पानी और ज़मीन को प्रदूषित करने के लिये लगाया लेकिन क्या पर्यावरण को हुये नुकसान और कंपनियों को हो रहे मुनाफे के हिसाब से यह जुर्माना पर्याप्त है? पत्रिका डाउन टु अर्थ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जिन कंपनियों पर जुर्माना लगा उनमें से 6 कंपनियों ने  साल 2018 में ही करीब 21,000 करोड़ का मुनाफा कमाया। मिसाल के तौर पर NTPC पर कुल 4.9 करोड़ का जुर्माना लगा पर पिछले साल उसका कुल मुनाफा 11,750 करोड़ रुपये था। इसी तरह रिलायंस पर 3.7 करोड़ का जुर्माना लगा जबकि कंपनी ने 2018 में 1034.8 करोड़ का मुनाफा कमाया।


साफ ऊर्जा 

सौर ऊर्जा की छलांग: मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर पार्क बनेगा। विश्व बैंक की मदद से बनने वाले इस पार्क के लिय 5000 करोड़ का बजट है। फोटो - PVmagazine India

मध्य प्रदेश में लगेगा 1000 मेगावॉट का फ्लोटिंग सोलर पार्क

भारत का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर पार्क मध्य प्रदेश के खंडवा में इंदिरा सागर बांध पर बनेगा। यह सोलर पार्क 1000 मेगावॉट का होगा। इस मामले में विश्व बैंक 5,000 करोड़ रुपये की योजना बना रहा है। अंग्रेज़ी अख़बार इकोनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश सरकार इस सोलर पार्क से  200 मेगावॉट बिजली खरीदेगी और दूसरे राज्यों से भी इस बारे में उसकी बात चल रही है। इससे पहले मध्य प्रदेश के रीवा में 750 मेगावॉट का सोलर प्लांट लग चुका है। राज्य की कुल बिजली का 20% साफ ऊर्जा के संयंत्रों से आता है।

भुगतान में देरी से टूट सकता है निवेशकों का भरोसा, बड़ी कंपनियां फिलहाल सुरक्षित

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) के मुताबिक पावर कंपनियों को भुगतान में देरी से साफ ऊर्जा क्षेत्र में निवेशकों को कर्ज़ में दिक्कत आ सकती है। हालांकि इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बड़ी कंपनियां फिलहाल इस संकट से लड़ने में सक्षम रही हैं क्योंकि उनका कारोबार कई अन्य क्षेत्रों में फैला है। इस वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में इन कंपनियों ने अपने प्रभावित प्रोजक्ट्स के लिये जो कर्ज़ लिया उसका बीमा करवाने में वह कामयाब रहीं जिसकी वजह से इनके शेयरों में 5,500 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई।

साफ ऊर्जा ग्राफ उठेगा लेकिन पेरिस डील के लिये काफी नहीं: IEA 

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने अगले 5 साल में सौर ऊर्जा क्षेत्र में शानदार बढ़त का अनुमान लगाया है।   इस बढ़त में घरों और व्यवसायिक भवनों की छतों पर लगने वाले पैनल (रूफ-टॉप सोलर) का बड़ा योगदान रहेगा। IEA के मुताबिक 2024 तक दुनिया भर की साफ ऊर्जा क्षमता में करीब 12,000 GW की बढ़ोतरी होगी जो कि 50% वृद्धि के बराबर है। लेकिन यह बढ़ोतरी पेरिस क्लाइमेट डील के तहत तय किये गये लक्ष्य हासिल करने के लिये पर्याप्त नहीं है।

पवन ऊर्जा से होगा $ 1 लाख करोड़ का कारोबार!

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) और अंतरराष्ट्रीय साफ ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के मुताबिक अगले कुछ दशकों में पवन ऊर्जा क्षेत्र में ज़ोरदार तरक्की होगी। उम्दा टेक्नोलॉजी और गिरते दामों की वजह से यह बदलाव हासिल होगा और ऑफशोर विंड प्लांट (समंदर में बनी पवन चक्कियां) इसकी आधारशिला बनेंगे। अभी ऑफशोर विंड टर्बाइन दुनिया की कुल ऊर्जा का 0.03% बिजली ही देते हैं लेकिन अगले IEA को उम्मीद है कि अगले 20 साल में पवन ऊर्जा क्षमता 15 गुना बढ़ेगी और यह 1 लाख करोड़ डॉलर का कारोबार होगा। जानकार इन आंकड़ों को अतिश्योक्ति बता रहे हैं लेकिन IRENA का कहना है कि 2050 तक यह दुनिया में बिजली का सबसे बड़ा स्रोत होगा और भारत 443 GW क्षमता के साथ विश्व में दुनिया में  दूसरा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक होगा।


बैटरी वाहन 

मेट्रो का सफर होगा आसान: ले. गवर्नर ने राजधानी के मेट्रो स्टेशनों पर बैटरी रिक्शा के लिये चार्जिंग पाइंट लगाने का प्रस्ताव दिया है। इससे मेट्रो की सवारी आसान होगी। Photo: News18

ले. गवर्नर का सुझाव: हर मेट्रो स्टेशन पर हो EV चार्जर

दिल्ली के ले. गवर्नर ने सुझाव दिया है कि शहर के हर मेट्रो स्टेशन पर बैटरी वाहन के लिये चार्जिंग पॉइंट की सुविधा हो ताकि लोगों को स्टेशन तक लाने ले जाने वाले  ई-रिक्शा अपनी बैटरी चार्ज कर सकें। दिल्ली में अभी 250 मेट्रो स्टेशन हैं और SmartE के कई ई-रिक्शा बहुत सारे स्टेशनों से चल रहे हैं। अब दिल्ली मेट्रो ने 4 स्टेशनों से एक दूसरी कंपनी को ई-स्कूटर चलाने की अनुमति दी है जिससे ले. गवर्नर के इस प्रस्ताव पर अमल होने की संभावना बढ़ गई है।

चंडीगढ़ में 2030 के बाद केवल बैटरी वाहन ही रजिस्टर होंगे

चंडीगढ़ शहर के लिये बनी बैटरी वाहन नीति का जो खाक़ा (Draft EV Policy) अभी बनाया गया है उसके मुताबिक साल 2030 से यहां केवल बैटरी वाहन ही रजिस्टर होंगे। इस समय चंडीगढ़ में पंजीकृत बैटरी वाहनों का घनत्व सबसे अधिक है। अब शहर की हवा को साफ करने की कोशिश में बसों, टैक्सियों, स्कूल कैब और रिक्शों को बैटरी चालित किया जायेगा। ग्राहक बैटरी वाहन खरीदने के लिये उत्साहित हों इसके लिये सरकार नये बैटरी वाहन का फ्री इंश्योरेंस, और होम बैटरी चार्जर लगाने पर 30% की छूट जैसी सुविधायें देगी। 

बैटरी दुपहिया वाहनों की बिक्री में 94% गिरावट, ई-कारों का बाज़ार भी पस्त

इस वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में बैटरी दुपहिया वाहनों की ब्रिक्री 94% गिर गई। यह गिरावट बैटरी वाहनों की बढ़ी कीमतों की वजह से हुई क्योंकि अब FAME-II पॉलिसी में सरकार ने पहले दी जा रही सब्सिडी को कम कर दिया गया है। पिछले साल की पहली छमाही में कुल 48,671 बैटरी दुपहिया बिके जबकि इस वित्तीय वर्ष के पहले 6 महीनों में  केवल 3000 टू-व्हीलरों की बिक्री हुई क्योंकि छूट में कटौती हो जाने से अब ये वाहन पेट्रोल-डीज़ल दुपहिया  से महंगे पड़  रहे हैं।

उधर बैटरी कारों का बाज़ार तो और भी बेहाल है। गुजरात में पिछले 6 महीने में एक ही बैटरी कार बिकी जबकि महाराष्ट्र में हर रोज़ केवल 4 बैटरी कारें बिक रही हैं जबकि लक्ष्य 274 का है।

वोल्वो: बैटरी चार्ज कराने पर कार मालिकों की जेब होगी गरम

स्वीडन की ऑटोमोबाइल कंपनी वोल्वो अब बैटरी कार मालिकों के लिये आकर्षक प्रस्ताव ला रही है। इसके तहत XC40 रिचार्ज क्रॉस-ओवर कार मालिकों को पहले साल कार चार्जिंग पर खर्च नहीं करना होगा बल्कि कंपनी की ओर से भुगतान किया जायेगा। यह योजना 2021 से चालू होगी। यह योजना कार रखने का खर्च घटाने और ग्राहकों को नये मॉडल खरीदने के लिये उत्साहित करने के लिये है।


जीवाश्म ईंधन

कुछ राहत: भारत का CO2 ईमीशन बढ़ने की रफ्तार कम हुई है लेकिन वाहनों की बढ़ती संख्या से यह ग्राफ फिर बढ़ सकता है। Photo: Carbon Registry

मंदी का असर: ईंधन की मांग गिरी

मंदी से जूझती घरेलू अर्थव्यवस्था का असर ईंधन की मांग पर दिखा है। सितंबर 2018 के मुकाबले इस साल सितंबर में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में 50 हज़ार टन की गिरावट दर्ज की गई है। पिछले साल सितंबर में कुल खपत 160.6 लाख टन थी जो इस साल 160.1 लाख टन हो गई। ट्रांसपोर्ट में इस्तेमाल होने वाले डीज़ल के अलावा सड़क निर्माण में इस्तेमाल होने वाले कोलतार वह उत्पाद हैं जिनकी मांग में गिरावट हुई।  डीज़ल की मांग 3.2% और कोलतार की 7.29% गिरी। भारत की अर्थव्यवस्था में दूसरी तिमाही में केवल 5% की रफ्तार से बढ़ी है और  आईएमएफ ने इस वित्तीय वर्ष के लिये भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार का अनुमान अब 7% घटाकर 6.1% कर दिया है। 

भारत के CO2 उत्सर्ज की रफ्तार गिरी

इस साल (2019) के पहले 8 महीनों में भारत के कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन की रफ्तार के ग्राफ में एक तीव्र ढलान दिख रहा है। पिछले 20 साल के ट्रेंड का अध्ययन करने के बाद वायु प्रदूषण के दो जानकार-विश्लेषकों ने लॉरी माइलीविर्ता और सुनील दहिया इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस विश्लेषण के लिये लॉरी और दहिया ने भारत सरकार के अलग अलग मंत्रालयों (बिजली, कोयला, पेट्रोलियम और विदेश व्यापार) के डाटा का इस्तेमाल किया।

भारत के CO2 इमीशन पिछले कुछ सालों में तेज़ी से बढ़े हैं। साल 2005 के मुकाबले अब यह दुगने हो गये हैं। पिछले 5 साल में दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन वृद्धि में 50% से अधिक भारत का योगदान है। अपने विश्लेषण में इन जानकारों ने कहा है कि कोयला पावर प्लांट्स पर घटनी निर्भरता भारत की एयर क्वॉलिटी के लिये अच्छी है कोयला बिजलीघर प्रदूषण नियंत्रण मानकों का पालन नहीं कर रहे।

साफ ऊर्जा की चैंपियन कंपनी गैस के पक्ष में

क्लीन एनर्जी डेवलपर ReNew Power ने प्राकृतिक गैस का समर्थन किया है। कंपनी के सीईओ सुमंत सिन्हा ने इसे दुनिया के पावर सेक्टर में बदलाव का ऐसा ईंधन (transition fuel) बताया है जिसके इस्तेमाल से ग्रिड सुगमता के साथ साफ ऊर्जा के नये प्लांट लगाना आसान रहेगा। हालांकि गैस को क्लीन एनर्ज़ी नहीं कहा जा सकता लेकिन दुनिया भर में इसे लो-कार्बन इकोनॉमी के नाम पर प्रोत्साहन मिल रहा है।

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.