Vol 2, September 2025 | मौसम पूर्वानुमान: क्या निजी कंपनियां भर पाएंगी कमी?

विज़ुअल: रिद्धि टंडन

Newsletter - October 1, 2025

अधिकांश स्टार्टअप बेहतर पूर्वानुमान के लिए एआई का सहारा ले रहे हैं। फोटो: रिद्धि टंडन

क्या भारतीय स्टार्टअप्स भर पाएंगे मौसम पूर्वानुमान में अहम कमी?

कार्बनकॉपी की इस शृंखला के दूसरे भाग में जानिए कैसे भारत में मौसम की भविष्यवाणी से जुड़ी खामियों को भरने के लिए स्टार्टअप्स और निजी कंपनियां नई तकनीक का सहारा ले रही हैं। लेकिन इनके सामने कई बड़े सवाल भी खड़े हैं — क्या ये मॉडल आईएमडी के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर काम कर पाएंगे?

कार्बनकॉपी की इस सीरीज़ के पहले हिस्से में हमने समझा कि क्यों भारत के मौसम पूर्वानुमान अक्सर कमज़ोर साबित होते हैं। सैटेलाइट, रडार और डेटा नेटवर्क में बड़े निवेश के बावजूद, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) अभी भी कई बार तेज़ बारिश, अचानक आने वाली बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं की तीव्रता का सही अनुमान लगाने में नाकाम रहता है — खासकर हिमालय जैसे जटिल भौगोलिक क्षेत्रों में। वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश का पूर्वानुमान बनाना पहले ही अधिक कठिन है, जबकि हीटवेव या चक्रवात का अनुमान लगाना अपेक्षाकृत आसान होता है।

दुनिया के बेहतरीन मॉडल भी स्थानीय चरम मौसमी घटनाओं (हाइपरलोकल एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स) को सटीकता से नहीं पकड़ पाते। यह भारत को एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा करता है। 150 साल से काम कर रहा आईएमडी देश में मौसम और जलवायु डेटा की रीढ़ बना हुआ है। चक्रवात पूर्वानुमान में इसकी प्रगति ने हज़ारों जानें बचाई हैं। 2012 में शुरू किए गए ‘मिशन मॉनसून’ जैसे प्रयासों से मानसून पूर्वानुमान की सटीकता में सुधार की उम्मीद है।

लेकिन सबसे मुश्किल चुनौतियों के लिए नई तकनीक, ताज़े डेटा स्रोत और तेज़ी से काम करने वाले टूल्स की ज़रूरत है।

स्टार्टअप्स का प्रवेश: पूरक की भूमिका, प्रतिस्थापन नहीं

यहीं पर भारतीय स्टार्टअप्स मैदान में उतर रहे हैं। ये आईएमडी की जगह नहीं ले सकते लेकिन काफी हद तक उसके सहयोगी की भूमिका निभा सकते हैं। कुछ कंपनियां एआई आधारित सिस्टम बना रही हैं जो गांव या शहर स्तर पर भविष्यवाणियों को और सटीक बनाते हैं। कुछ हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट लॉन्च कर रही हैं या थर्मल मैपिंग से हीट आइलैंड और बाढ़ जोखिम ट्रैक कर रही हैं।

यह सब मिलकर खुद को ‘फोर्स मल्टीप्लायर्स’ की तरह पेश कर रहे हैं — ऐसी ताकत जो राष्ट्रीय तंत्र की कमियों को भर सकती है।

सीरीज़ के इस दूसरे हिस्से में हम देखेंगे कि कैसे निजी खिलाड़ी — शुरुआती स्टार्टअप्स से लेकर नासा के साथ काम कर रही स्पेस-टेक कंपनियां — भारत में पूर्वानुमान की परिभाषा बदल रहे हैं। इनका वादा है — तेज़ी, सटीकता और नए तरह के डेटा। लेकिन चुनौतियां भी हैं। स्टार्टअप्स अभी नए हैं, उनके मॉडल किसी एक शहर में काम कर सकते हैं पर पूरे देश में नहीं। साथ ही व्यावसायिक दबाव उन्हें पब्लिक वार्निंग सिस्टम की बजाय प्राइवेट क्लाइंट्स पर ध्यान देने को मजबूर कर सकता है।

मूल सवाल यह है कि क्या यह स्टार्टअप्स सिर्फ नए प्रयोगों (इनोवेशंस) तक सीमित रहेंगे या भारत के वृहद पूर्वानुमान पारिस्थितिकी तंत्र में इस तरह घुलमिल पाएंगे कि सचमुच लोगों की जान बचा सकें।

एआई और ग्रैन्युलर डेटा पर फोकस

ज़्यादातर स्टार्टअप्स का दावा साफ़ है — आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) वो कर सकता है जो केवल भौतिक मॉडल नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए ClimateAi ऐसा क्लाइमेट रिस्क मॉडल बनाता है जो कंपनियों को लंबी अवधि की व्यवधान योजनाएँ बनाने में मदद करता है। इसके संस्थापक हिमांशु गुप्ता का कहना है कि यह मॉडल समझ सकता है कि कैसे वैश्विक घटनाएं जैसे एल नीनो, ला नीना, मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (एमजेओ) और दक्षिणी प्रशांत मानसून, भारतीय मानसून को प्रभावित करते हैं। उनके अनुसार एआई-आधारित टेक्नोलॉजी को अपडेट करना सस्ता और तेज़ है।
कुछ स्टार्टअप्स हाइपरलोकल इनसाइट्स पर काम कर रहे हैं।

SatLeo Labs, अहमदाबाद स्थित एक स्टार्टअप, सैटेलाइट सेंसर से इन्फ्रारेड बैंड कैप्चर कर सतह तापमान में छोटे-छोटे बदलाव पकड़ता है। इस ‘थर्मल इंटेलिजेंस’ को एआई से प्रोसेस करके हीट आइलैंड्स की मैपिंग करता है और लैंडफिल आग जैसे जोखिमों की चेतावनी देता है। यह कर्नाटक के तुमकुरु नगर निगम के साथ पहले से काम कर रहा है।

शैक्षणिक संस्थान भी एआई समाधान तलाश रहे हैं। आईआईटी कानपुर के कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी में प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी और उनकी टीम फिजिकल मॉडल, सांख्यिकीय तरीकों और मशीन लर्निंग को जोड़ने पर काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि जितना अधिक लोकल डेटा उपलब्ध होगा, मॉडल उतना सटीक होगा।

प्रोफेसर त्रिपाठी बताते हैं कि वर्तमान आईएमडी मॉडल 6 वर्ग किमी तक के इलाके का ही पूर्वानुमान दे सकते हैं, जो पहाड़ी इलाकों में पर्याप्त नहीं है जहां थोड़ी दूरी पर भी मौसम बदल जाता है। स्टार्टअप्स का वादा है कि वे यह अंतर खत्म कर देंगे।

एआई से आगे: स्पेस-टेक का नया प्रयोग

एआई से आगे बढ़कर कुछ कंपनियां पृथ्वी को देखने के नए तरीके खोज रही हैं। बेंगलुरु की Pixxel हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट्स का नेटवर्क बना रही है। ये सैटेलाइट्स कई तरंगदैर्घ्य पर डेटा कैप्चर कर सतह की सामग्री और वनस्पति की विस्तृत तस्वीर देते हैं।

हालांकि Pixxel का ध्यान शॉर्ट-टर्म मौसम पूर्वानुमान पर नहीं है। इसके सीईओ अवैस अहमद के अनुसार उनका फोकस है ‘क्लाइमेट इंटेलिजेंस’ — लंबी अवधि की पर्यावरणीय चुनौतियों की निगरानी और राष्ट्रीय स्तर पर पृथ्वी अवलोकन की क्षमता को मजबूत करना। अहमद का दावा है कि उनकी तकनीक मीथेन उत्सर्जन और अन्य वायुमंडलीय प्रदूषकों को सूक्ष्म स्तर पर ट्रैक कर सकती है, जो पारंपरिक सैटेलाइट नहीं कर पाते।

इनके ग्राहक कौन हैं?

ये स्टार्टअप्स फिलहाल आम जनता को सीधे मौसम पूर्वानुमान नहीं दे रहे। उनका डेटा मुख्य रूप से सरकारों और कंपनियों को बेचा जाता है। खुद आईएमडी ने गूगल के साथ समझौता किया है ताकि क्षेत्रीय स्तर पर चक्रवात से जुड़ी जानकारी साझा की जा सके और शॉर्ट-टर्म बारिश पूर्वानुमान (नाउकास्टिंग) तकनीक विकसित हो सके।

भारत का IN-SPACe (इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथॉराइज़ेशन सेंटर) ने हाल ही में Pixxel समेत कई कंपनियों के साथ साझेदारी की घोषणा की है ताकि जलवायु परिवर्तन निगरानी, आपदा प्रबंधन, कृषि, शहरी योजना और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वदेशी वाणिज्यिक पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट बनाया जा सके।

निजी कंपनियाँ भी बड़ा बाज़ार हैं। ClimateAi ने भारत में आईटीसी के साथ साझेदारी कर फसल-विशेष जलवायु जोखिम पूर्वानुमान बनाए हैं और किसानों के लिए मौसम आधारित फसल मार्गदर्शन व क्रॉप कैलेंडर तैयार किया है। आईटीसी ने नवंबर 2023 में MAARS नामक ऐप लॉन्च किया जो किसानों और आईटीसी के एग्री-बिजनेस को मदद करता है।

निवेशक भी इन तकनीकों पर दांव लगा रहे हैं। SatLeo ने हाल ही में 28 करोड़ रुपए की प्री-सीड फंडिंग जुटाई, जबकि Pixxel ने अब तक 95 मिलियन डॉलर का निवेश आकर्षित किया है। Grandview Research के अनुसार, भारत का निजी मौसम पूर्वानुमान बाज़ार फिलहाल 114.9 मिलियन डॉलर का है और 2030 तक यह 174.3 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

सीमाएं और चुनौतियां

हालांकि ये प्रयास उत्साहजनक हैं, चुनौतियां भी हैं। अधिकांश तकनीकें हीट, उत्सर्जन या लैंड-यूज़ पर केंद्रित हैं, जो बारिश की तुलना में मॉडल करना आसान है। आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर कृष्ण अचुताराव कहते हैं कि ‘चरम गर्मी घटनाओं का अनुमान लगाना आसान है क्योंकि तापमान में बदलाव बारिश की तुलना में कम तीव्र होता है। लेकिन चरम बारिश के मॉडलिंग की सटीकता अभी सीमित है।’

कई स्टार्टअप्स साइलो में काम कर रहे हैं। SatLeo फिलहाल सिर्फ सतह तापमान पर काम करता है, अन्य डेटा सेट शामिल नहीं करता। Pixxel हालांकि अपने हाइपरस्पेक्ट्रल डेटा को LiDAR, SAR और ग्राउंड डेटा के साथ मिलाता है।

सबसे बड़ी चुनौती है भरोसे की कमी। कंपनियों के क्लाइंट ज्यादातर कॉर्पोरेट हैं, जो सप्लाई चेन इनसाइट चाहते हैं, न कि सरकारी एजेंसियाँ जो जन-निकासी प्रबंधन करती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि निजीकरण का समन्वय सावधानी से होना चाहिए ताकि पूर्वानुमान खंडित न हो जाए।

विशेषज्ञों की राय

ज्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि स्टार्टअप्स उपयोगी हैं, लेकिन सिर्फ पूरक के रूप में। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने एआई और प्राइवेट पार्टनरशिप का स्वागत किया है और बताया कि आईएमडी के 1901 से डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड मशीन लर्निंग के लिए खज़ाना साबित हो सकते हैं। महापात्रा कहते हैं कि पूर्व चेतावनी किसी प्राइवेट एजेंसी या पब्लिक सेक्टर एजेंसियों से जारी नहीं होनी चाहिए बल्कि एक ही जगह (भारत मौसम विज्ञान विभाग) से जारी होनी चाहिए ताकि कोई कन्फ्यूज़न न हो।

पूर्व पृथ्वी विज्ञान सचिव डॉ. माधवन राजीवन का कहना है स्टार्ट अप्स को समझना होगा कि उनकी भूमिका एक सहयोगी की ही हो सकती है। उनके मुताबिक, “निजी खिलाड़ी डेटा को बेहतर बना सकते हैं या अतिरिक्त डेटा सेट दे सकते हैं, लेकिन आईएमडी को रिप्लेस नहीं कर पाएंगे।”

प्रोफेसर त्रिपाठी का मानना है कि इन मॉडलों का डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिए, खासकर ग्लोबल साउथ देशों के लिए जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे ज्यादा है। लेकिन वह चेतावनी भी देते हैं कि तकनीक से अकेले जलवायु संकट हल नहीं होगा — ऊर्जा निर्भरता, संसाधन उपयोग और खपत के पैटर्न में बदलाव भी उतने ही ज़रूरी हैं।

निष्कर्ष

निजी स्टार्टअप्स भारत को तेज़, सटीक और गहराई में जाने वाले इनसाइट्स दे रहे हैं। लेकिन इनकी सीमाएं भी वास्तविक हैं — जैसे सटीकता का राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाण न होना और व्यावसायिक हितों के कारण डेटा का आम जनता तक न पहुंच पाना। असली परीक्षा यही होगी कि क्या ये स्टार्टअप्स अपने नवाचारों को भारत के राष्ट्रीय मौसम पूर्वानुमान सिस्टम में इस तरह जोड़ पाएंगे कि यह सिर्फ खास ग्राहकों के लिए नहीं बल्कि पूरी जनता की सुरक्षा के लिए कारगर साबित हो।

फोटो: Pinki Halder/Pixabay

ला नीना के कारण उत्तर भारत में पड़ सकती है ज्यादा सर्दी

मौसम विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस साल उत्तर भारत में सर्दी सामान्य से अधिक होगी। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इसका कारण ला नीना परिस्थितियां हैं, जो अक्टूबर से दिसंबर तक बनी रह सकती हैं।

वैज्ञानिक बताते हैं कि पिछले साल ला नीना की परिस्थितियां कमजोर थीं, जो लंबे समय तक नहीं टिक पाईं। इस साल समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव के चलते फिर से ला नीना बनने की संभावना है।

मानसून समाप्त, दूसरे साल भी सामान्य से अधिक बारिश 

दक्षिण-पश्चिम मानसून आधिकारिक रूप से 30 सितंबर को समाप्त हो गया। लगातार दूसरे साल बारिश सामान्य से अधिक रहीहिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, यह खेती और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर है, हालांकि पहाड़ी राज्यों में आपदाओं और पंजाब में बाढ़ से भारी नुकसान भी हुआ।

26 सितंबर तक देशभर में 7% अधिक वर्षा हुई। उत्तर-पश्चिम भारत में 28%, मध्य भारत में 12% और दक्षिण प्रायद्वीप में 8% अधिक बारिश दर्ज की गई, जबकि पूर्वोत्तर भारत में 19% की कमी रही।

भारी बारिश से कोलकाता और महाराष्ट्र में तबाही, 20 की मौत

देश के पूर्व और पश्चिम दोनों हिस्सों में भारी बारिश ने जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। कोलकाता में दुर्गा पूजा से पहले 37 वर्षों की सबसे भीषण बारिश हुई, जिससे जलभराव, बाढ़ और बिजली हादसों में कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई।

मौसम विभाग के अनुसार, बारिश की तीव्रता बादल फटने जैसी थी।

वहीं महाराष्ट्र में भी भारी बारिश और बाढ़ से कम से कम 10 लोगों की जान गई और 11,800 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला गया। मुंबई में मानसून के दौरान बारिश का आंकड़ा 3,000 मिमी पार कर गया है।

जलवायु परिवर्तन से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से बढ़ते स्वास्थ्य जोखिमों और कामगारों की कमी के कारण अगले 25 सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को कम से कम 1.5 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 131 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान हो सकता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की इस रिपोर्ट ने चार प्रमुख क्षेत्रों — कृषि, भवन निर्माण, स्वास्थ्य सेवा और बीमा — पर जलवायु प्रभावों का आकलन किया।

रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ती गर्मी, बीमारियों और अन्य जलवायु जोखिमों से उत्पादकता तेजी से घटेगी। विशेषज्ञों ने कंपनियों से अपील की है कि वे अभी से अपने कार्यबल की सुरक्षा और संचालन क्षमता बढ़ाने के कदम उठाएं। ऐसा न करने पर लागत और नुकसान और भी अधिक हो सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण लड़कियों में जल्दी शुरू हो रहा मासिक धर्म: शोध

एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत में लड़कियों का पहली बार मासिक धर्म शुरू होने का समय (मेनार्की) जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो सकता है। अध्ययन में पाया गया कि अधिक नमी वाली जगहों पर लड़कियों में मासिक धर्म जल्दी शुरू होता है, जबकि उच्च तापमान के कारण यह कुछ जगहों पर देर से होता है।

बांग्लादेश की संस्थाओं, जैसे नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी, ने 1992-93 और 2019-21 के दौरान DHS सर्वेक्षण और NASA के जलवायु डेटा का विश्लेषण किया। 23,000 से अधिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन दिखाता है कि अधिकांश भारतीय राज्यों में लड़कियों में मेनार्की उम्र घट रही है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह परिणाम स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन पर सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को मजबूत करने की आवश्यकता को दर्शाता है।

भारत नवंबर में जारी करेगा संशोधित क्लाइमेट प्लान

भारत नवंबर में ब्राज़ील में होने वाले कॉप30 शिखर सम्मेलन के दौरान या उससे ठीक पहले अपना संशोधित क्लाइमेट एक्शन प्लान पेश कर सकता है। इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि नई योजना में मौजूदा तीन लक्ष्यों में विस्तार किया जाएगा। यह तीन लक्ष्य हैं जीडीपी की एमिशन इंटेंसिटी में कमी, नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी में वृद्धि और कार्बन सिंक का विस्तार। इन लक्ष्यों को 2035 तक बढ़ाने के अलावा कोई उल्लेखनीय संशोधन होने की संभावना कम हैं।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी तीसरी राष्ट्रीय-स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) 10 नवंबर को प्रस्तुत करेगा, जिसमें ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए संशोधित लक्ष्य शामिल होगा। रिपोर्ट में कहा गया कि प्रमुख उत्सर्जन कटौती देशों के बीच द्विपक्षीय समझौतों और क्लीन एनर्जी परियोजनाओं में संयुक्त निवेश से संभव हो सकती है।

भारत के ऊर्जा क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन 50 वर्षों में दूसरी बार घटा

भारत के बिजली क्षेत्र से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में कमी दर्ज की गई है। यह पिछले लगभग पांच दशकों में सिर्फ दूसरी बार हुआ है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) और ब्रिटेन स्थित कार्बन ब्रीफ की नई रिपोर्ट के अनुसार, 2025 की पहली छमाही में उत्सर्जन पिछले साल के  मुकाबले 1% घटा, जबकि पिछले 12 महीनों में इसमें 0.2% की गिरावट आई।

रिपोर्ट बताती है कि यह कमी बिजली की मांग कम रहने, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन बढ़ने और अधिक हाइड्रोपॉवर उत्पादन के कारण हुई। मार्च से मई 2025 के दौरान सामान्य से 42% अधिक बारिश ने हाइड्रोपॉवर उत्पादन बढ़ाया और एसी की खपत कम की।

इस दौरान कोयला-आधारित उत्पादन में 29 टेरावाट ऑवर (TWh) की कमी आई, जबकि सौर, पवन, जल और परमाणु ऊर्जा से 38 TWh अतिरिक्त आपूर्ति हुई। 2025 की पहली छमाही में 25.1 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता जुड़ी, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा का रहा।

2035 तक 10% तक उत्सर्जन घटाएगा चीन

चीन ने 2035 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को चरम स्तर से 7% से 10% तक घटाने का लक्ष्य रखा है। यह घोषणा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के जलवायु सम्मेलन में प्री-रिकॉर्डेड वीडियो संदेश के जरिए की। सीएनएन के अनुसार, अमेरिका ने चीन से 30% कटौती का आग्रह किया था जिसके मुकाबले यह लक्ष्य काफी कम है।

विशेषज्ञों का मानना है कि नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन और घरेलू परियोजनाओं में तेजी से वृद्धि के कारण चीन इस लक्ष्य से अधिक प्राप्त कर सकता है, जैसा कि उसने पहले भी किया है। स्वतंत्र विश्लेषण बताते हैं कि चीन का उत्सर्जन लगभग 2030 तक चरम पर पहुंचने वाला था, लेकिन यह स्तर पांच साल पहले ही प्राप्त किया जा चुका है और अब उत्सर्जन घटना शुरू हो गया है।

इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया ने भी जलवायु लक्ष्य बढ़ाया है। प्रधानमंत्री एंथनी एल्बनीज़ ने 2035 तक 2005 के स्तर से 62–70% तक उत्सर्जन घटाने की योजना का ऐलान किया। 

ट्रंप ने फिर क्लाइमेट चेंज पर दिया विवादित बयान

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में जलवायु परिवर्तन को “दुनिया के साथ किया गया सबसे बड़ा छल” बताया। रॉयटर्स के अनुसार, ट्रंप ने अपने भाषण में यूरोपीय संघ की कार्बन फुटप्रिंट कम करने की नीतियों को अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक बताया और नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश करने वाले देशों को आर्थिक संकट की चेतावनी दी। उन्होंने पवन टर्बाइन और पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर भी निशाना साधा। वैज्ञानिकों ने ट्रंप के दावों को खारिज किया और कहा कि अब तक के जलवायु मॉडल “सटीक साबित” हुए हैं। विशेषज्ञों ने उनके बयान को भ्रामक और विज्ञान-विरोधी करार दिया।

गौरतलब है कि ट्रंप पहले भी जलवायु परिवर्तन को ‘हौव्वा’ बताते रहे हैं और उन्होंने तेल-गैस ड्रिलिंग बढ़ाने और नवीकरणीय परियोजनाओं को कम करने के लिए कई फैसले लिए हैं।

फोटो: vermaruchir/Pixabay

गंगा में पैकेजिंग कचरा प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत: अध्ययन

झारखंड के साहिबगंज जिले में गंगा नदी के 34 किलोमीटर लंबे उच्च-जैव विविधता क्षेत्र में किए गए एक नए सर्वेक्षण में पाया गया है कि पैकेजिंग कचरा प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है। यह इलाका संकटग्रस्त गंगा डॉल्फिन और स्मूद-कोटेड ऊदबिलाव जैसे प्रजातियों का घर है।

वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) के शोधकर्ताओं ने 2022 से 2024 के बीच यह अध्ययन किया, जिसके नतीजे सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित हुए। सर्वेक्षण में 76 किलोमीटर क्षेत्र में 37,730 कचरे के टुकड़े दर्ज किए गए। इनमें से 52.4% पैकेजिंग कचरा था, जिसमें खाने के रैपर, सिंगल-यूज़ पैकेट और प्लास्टिक बैग शामिल थे। प्लास्टिक टुकड़े 23.3% और तंबाकू से जुड़ा कचरा 5% पाया गया। कप, चम्मच और प्लेट जैसी प्लास्टिक कटलरी 4.7% रही।

अध्ययन के अनुसार फ्लडप्लेन सबसे ज्यादा प्रदूषित थे, जहां औसतन प्रति वर्ग मीटर 6.95 कचरे के टुकड़े मिले — जो नदी किनारे (0.25 प्रति वर्ग मीटर) से 28 गुना ज्यादा है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में कचरे की मात्रा लगभग समान रही।

रिपोर्ट में बताया गया कि कुल कचरे का 87% घरेलू स्रोतों से आया, जबकि 4.5% मछली पकड़ने के उपकरण और 2.6% धार्मिक सामग्री से। बाढ़ के बाद कचरा नदी में और बढ़ जाता है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि यह कचरा जलीय जीवों के लिए गंभीर खतरा है।

दिल्ली-मुंबई में सबसे ज्यादा ओजोन प्रदूषण: सीपीसीबी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को जानकारी दी है कि ग्राउंड लेवल पर ओजोन प्रदूषण के मामले में दिल्ली और मुंबई सबसे आगे हैंटेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में 10 शहरों के 178 मॉनिटरिंग स्टेशनों से आंकड़े जुटाए गए, जिनमें दिल्ली के 57 में से 25 और मुंबई के 45 में से 22 स्टेशनों पर आठ घंटे की अवधि में ओजोन का स्तर सुरक्षित सीमा (2 प्रतिशत) से ऊपर पाया गया। कुल 178 स्टेशनों में से 65 पर सीमा का उल्लंघन हुआ।

सीपीसीबी का कहना है कि ओजोन का यह स्तर परिवहन क्षेत्र, पावर प्लांट और औद्योगिक गतिविधियों से होने वाले उत्सर्जन की वजह से बढ़ रहा है। साथ ही, प्राकृतिक स्रोतों जैसे जंगल की आग, मिट्टी से निकलने वाली गैसें, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और मीथेन उत्सर्जन भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

पराली जलाने वाले किसानों पर क्यों न हो कार्रवाई: सुप्रीम कोर्ट

सर्दियों में प्रदूषण बढ़ने की आशंका को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार से पूछा है कि पराली जलाने वाले किसानों पर सख्त कार्रवाई क्यों न की जाए। अदालत ने कहा कि दोषी किसानों की गिरफ्तारी से सही संदेश जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में खाली पदों को भरने से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को तीन महीने में रिक्तियां भरने का निर्देश दिया।

सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि पराली को जलाने के बजाय बायोफ्यूल में बदला जा सकता है। अदालत ने कहा कि अगर सरकार सचमुच पर्यावरण संरक्षण चाहती है तो कठोर दंड प्रावधान अपनाने होंगे। पंजाब सरकार ने दावा किया कि पिछले वर्षों में पराली जलाने की घटनाएं 77,000 से घटकर 10,000 रह गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि स्पष्ट किया कि उदाहरण स्थापित करने के लिए कभी-कभी गिरफ्तारी जरूरी हो सकती है।

वायु प्रदूषण से नींद पर असर: अध्ययन

एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया है कि वायु प्रदूषण से नींद की अवधि और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती हैं। द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, यह वैश्विक मेटा स्टडी जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ नर्सिंग की डॉ जुनक्सिन ली के नेतृत्व में की गई। अध्ययन में कहा गया कि लंबे समय तक बाहर के प्रदूषकों — जैसे पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड — के संपर्क में रहने से नींद की अवधि कम और खराब हो जाती है।
डॉ ली ने बताया कि यदि पीएम2.5 स्तर को आधा कर दिया जाए तो मध्यम और बुजुर्ग आयु वर्ग में खराब नींद का खतरा लगभग 10% तक कम हो सकता है। अध्ययन में यह भी सामने आया कि लकड़ी या कोयले जैसे ठोस ईंधन का उपयोग करने वाले लोगों में अनिद्रा और कम नींद की समस्या ज्यादा होती है।

मौजूदा वित्तीय वर्ष में 45 गीगावाट सौर ऊर्जा जोड़ेगा भारत

एसबीआई कैप्स (SBICAPS) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत वित्त वर्ष 2025-26 में 45 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा क्षमता जोड़ने की राह पर है। पीवी मैगज़ीन की रिपोर्ट के मुताबिक, केवल पहले पांच महीनों में ही देश ने 18 गीगावाट सौर क्षमता स्थापित कर ली है। रिपोर्ट में बताया गया कि इस बार रूफटॉप और ओपन-एक्सेस सोलर की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। कुल नए सौर संयोजनों में से 20% से अधिक अब रूफटॉप और ऑफ-ग्रिड सिस्टम से जुड़े हैं, जो पिछले वर्षों की तुलना में काफी ज्यादा है।

सौर उपकरणों पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को 12% से घटाकर 5% करने के फैसले से स्थापना और रखरखाव की लागत कम होगी। इससे घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं द्वारा सौर ऊर्जा अपनाने की गति और तेज़ होने की उम्मीद है। निर्माण क्षेत्र में भी बड़ी प्रगति दर्ज हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, एएलएमएम-I (एप्रूव्ड लिस्ट ऑफ मॉडल्स एंड मैनुफ़ैक्चरर्स) के तहत सौर मॉड्यूल की क्षमता 100 गीगावाट से अधिक हो गई है।

ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण अटकीं नवीकरणीय परियोजनाएं: रिपोर्ट

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर उसकी रफ्तार से मेल नहीं खा पा रहा। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) और जेएमके रिसर्च की एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जून 2025 तक देशभर में 50 गीगावाट से ज्यादा नवीकरणीय क्षमता अटकी हुई है। इससे परियोजनाओं में देरी, लागत में बढ़ोतरी और निवेशकों के भरोसे में कमी आई है।

वित्त वर्ष 2025 में भारत ने 15,253 सर्किट किलोमीटर (सीकेएम) ट्रांसमिशन लाइन का लक्ष्य रखा था, लेकिन सिर्फ 8,830 सीकेएम ही जोड़ी जा सकीं, यानी 42% की कमी रही। अंतर-राज्यीय नेटवर्क में यह वृद्धि पिछले 10 वर्षों में सबसे कम रही। विश्लेषण से यह भी सामने आया कि भारत के 71% अंतर-राज्यीय कॉरिडोर 30% से भी कम क्षमता पर चल रहे हैं। यह उत्पादन और बिजली ढांचे के बीच गंभीर असंतुलन को दर्शाता है।

चीन से आयातित सौर उपकरण पर भारत ने एंटी-डंपिंग जांच शुरू की

वाणिज्य मंत्रालय की इकाई डीजीटीआर ने चीन से आयात होने वाले एक सौर उपकरण और मोबाइल कवर पर एंटी-डंपिंग जांच शुरू की है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह कार्रवाई RenewSys India और ऑल इंडिया मोबाइल कवर मैन्युफैक्चरर एसोसिएशन की शिकायत पर की गई है।

आवेदकों ने दावा किया कि चीन से “सोलर एनकैप्सुलेंट्स” (EVA एनकैप्सुलेंट्स को छोड़कर) के डंपिंग आयात से घरेलू उद्योग को नुकसान हो रहा है। यह उपकरण सौर पीवी मॉड्यूल के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है। अगर जांच में यह साबित होता है कि सस्ते आयात ने भारतीय कंपनियों को वास्तविक नुकसान पहुंचाया है, तो डीजीटीआर शुल्क लगाने की सिफारिश करेगा। हालांकि, अंतिम फैसला वित्त मंत्रालय द्वारा लिया जाएगा।

गौरतलब है कि एंटी-डंपिंग जांच का उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि कहीं किसी देश से आयातित सस्ते उत्पादों के कारण घरेलू उद्योग प्रभावित तो नहीं हो रहा।

चीन में सौर क्षमता वृद्धि तीन साल में सबसे कम

चीन ने अगस्त 2025 में 7.4 गीगावाट सौर क्षमता जोड़ी, जो न केवल जुलाई के आंकड़े (11 गीगावाट) से कम है, बल्कि लगभग तीन वर्षों में सबसे कम वृद्धि है। ब्लूमबर्ग ने यह जानकारी राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन (एनईए) के ताज़ा आंकड़ों के हवाले से दी। हालांकि, इसी दौरान चीन के सौर मॉड्यूल निर्यात में पिछले साल की अपेक्षा 9.5% की बढ़ोतरी हुई और यह अगस्त में 2.4 अरब डॉलर तक पहुंच गया। कस्टम्स डेटा का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया कि निर्यात में यह उछाल वैश्विक बाजार में चीनी सौर उपकरणों की मजबूत मांग को दर्शाता है।

उद्योग समाचार पोर्टल बीजेएक्स न्यूज़ के अनुसार, साल 2025 के पहले आठ महीनों में चीन की कुल विद्युत उत्पादन क्षमता पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 18% बढ़ी। इसी दौरान सौर ऊर्जा क्षमता में 48% और पवन ऊर्जा क्षमता में 22% की वृद्धि दर्ज की गई।

फोटो: Blomst/Pixabay

भारत में बीवाईडी और टेस्ला की टक्कर

इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाली दो बड़ी कंपनियां बीवाईडी और टेस्ला अब भारत के बाजार में मुकाबले के लिए उतर रही हैं। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार बाजार है। लेकिन दोनों कंपनियों को ऊंचे आयात शुल्क और स्थानीय कंपनियों जैसे महिंद्रा और टाटा मोटर्स से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। आने वाले वर्षों में भारत का ईवी बाजार तेजी से बढ़ेगा और 2030 तक हर साल 20 से 30 लाख इलेक्ट्रिक कारें बिक सकती हैं। टेस्ला ने दिल्ली और मुंबई में शोरूम खोले हैं, वहीं बीवाईडी ने इस महीने भारत में अपनी 10,000वीं कार बेची।

उच्च बैंक गारंटी से विदेशी ईवी कंपनियों की भारत में उत्पादन की योजना अटकी

भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहता है। लेकिन विदेशी ईवी कंपनियां यहां निर्माण शुरू करने में हिचक रही हैं। इसकी एक बड़ी वजह है उच्च बैंक गारंटी। एक रिपोर्ट के अनुसार, कंपनियों को कम से कम 4,150 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी देनी पड़ती है, जो आयात शुल्क में सरकार के नुकसान के बराबर होती है।

सरकार ने भले ही भारत में पूरी तरह बनी कारों पर आयात शुल्क में छूट दी हो, लेकिन यह योजना अब तक असरदार नहीं रही है।

भारत में टेस्ला और एसआरएएम & एमआरएएम बनाएंगे बैटरी फैक्ट्री

बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम बनाने वाली अग्रणी कंपनी टेस्ला ग्रुप ने तकनीक और सतत विकास क्षेत्र की बड़ी कंपनी एसआरएएम & एमआरएएम के साथ हाथ मिलाया है। दोनों मिलकर भारत सहित 15 देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए गीगाफैक्ट्री बनाएंगे। इनमें अमेरिका, मलेशिया, ओमान, ब्राज़ील, यूएई और कंबोडिया भी शामिल हैं। पीटीआई के अनुसार, कंपनियों ने पांच गीगाफैक्ट्री बनाने के लिए 1 अरब डॉलर का समझौता किया है।  

यूरोप में ईवी बिक्री बढ़ी, लेकिन टेस्ला की बिक्री घटी

2025 में यूरोप में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 26% बढ़ी है। लेकिन इलॉन मस्क की कंपनी टेस्ला की बिक्री में गिरावट दर्ज हुई है। जर्मनी की कंपनी वोक्सवैगन अगस्त में यूरोप में सबसे ज्यादा ईवी बेचने वाली कंपनी रही, जिसकी बिक्री पिछले साल की तुलना में 45% बढ़ी। टेस्ला दूसरे स्थान पर रही, लेकिन इसकी बिक्री पिछले साल की तुलना में 23% कम हुई। तीसरे स्थान पर जर्मन कंपनी बीएमडब्ल्यू रही, जिसकी बिक्री 7% बढ़ी।

पेरिस लक्ष्य से 120% अधिक जीवाश्म ईंधन उत्पादन की तैयारी में दुनिया

‘द प्रोडक्शन गैप’ रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के देश सामूहिक रूप से पहले से भी अधिक जीवाश्म ईंधन उत्पादन की योजना बना रहे हैं। हिंदुस्तान टाइम्स ने इस रिपोर्ट के हवाले से बताया कि 2030 तक जीवाश्म ईंधन का अनुमानित उत्पादन ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आवश्यक स्तर से 120 प्रतिशत अधिक होगा।

स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट, आईआईएसडी और क्लाइमेट एनालिटिक्स द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारें 2035 तक कोयला और 2050 तक गैस उत्पादन की योजनाएं और बढ़ा रही हैं। तेल उत्पादन भी लगातार 2050 तक बढ़ने की उम्मीद है।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यह प्रवृत्ति देशों की पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को कमजोर करेगी। साथ ही, यह 2030 से पहले कोयला, तेल और गैस की वैश्विक मांग चरम पर पहुंचने के आकलन के भी विपरीत होगी। पिछले साल दुबई में कॉप28 सम्मेलन में सभी देशों ने जीवाश्म ईंधन से “न्यायसंगत” संक्रमण पर सहमति जताई थी।

प्रतिबंधों के बीच अमेरिका से अधिक तेल खरीद सकता है भारत

भारत ने संभावना जताई है कि वह अमेरिका से अधिक तेल खरीद सकता है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत और चीन पर रूसी तेल आयात घटाने का दबाव बढ़ाने के बीच अमेरिका से तेल और गैस आयात बढ़ सकता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इससे अमेरिका का भारत के साथ 41 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार घाटा कम होगा।

सरकार 25% सेकेंडरी टैरिफ हटाने और पारस्परिक टैरिफ कम करने की कोशिश भी कर रही है।

इस बीच, रॉयटर्स ने बताया कि नए प्रतिबंधों के खतरे के बावजूद भारत में रूसी यूरल कच्चे तेल की कीमत अक्टूबर में बढ़ी है।

रूसी तेल पर पूर्ण प्रतिबंध के लिए ट्रंप ने फिर यूरोप पर डाला दबाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूरोपीय संघ पर फिर दबाव डाला है कि वह रूस से तेल खरीद पर पूर्ण प्रतिबंध लगाए, ताकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए मजबूर किया जा सके। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ ने 2022 से रूसी तेल की सीधी खरीद पर रोक लगा रखी है।

इसके बावजूद थोड़ी मात्रा में रूसी तेल अब भी पूर्वी यूरोप पहुंच रहा है। साथ ही, यूरोपीय देश भारत और तुर्की से डीज़ल आयात कर रहे हैं, जहां रूसी कच्चे तेल को रिफाइन कर निर्यात किया जाता है। 

जीवाश्म ईंधन प्रदूषण से हर साल 87 लाख मौतें: रिपोर्ट

जीवाश्म ईंधन जलाने से न सिर्फ जलवायु संकट गहरा रहा है, बल्कि इससे 1.6 अरब लोगों का स्वास्थ्य भी खतरे में है। क्लाइमेट ट्रेस के नए इंटरैक्टिव मानचित्र के अनुसार, कोयला और तेल से चलने वाले बिजलीघर, रिफाइनरी और खदानें भारी मात्रा में पीएम2.5 जैसे जहरीले कण उत्सर्जित कर रही हैं।

इनमें से लगभग 90 करोड़ लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां ‘सुपर-एमिटर’ उद्योगों से अत्यधिक प्रदूषण फैल रहा है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि इस प्रदूषण से हर साल करीब 87 लाख मौतें हो रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि तत्काल कदम उठाना बेहद जरूरी है।

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