चक्रवात ‘दाना’: 4 की मौत; फसलों को भारी नुकसान, लाखों हुए विस्थापित
चक्रवाती तूफ़ान ‘दाना’ ने पिछले हफ्ते ओडिशा और पश्चिम बंगाल के तटीय जिलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया। ओडिशा में लगभग 1.75 लाख एकड़ भूमि में खड़ी फसलें नष्ट हो गईं और अतिरिक्त 2.80 लाख एकड़ भूमि जलमग्न हो गई। ओडिशा में चक्रवात से कोई मौत नहीं हुई जबकि पश्चिम बंगाल में चार मौतों की पुष्टि हुई है।
चक्रवात के कारण बंगाल में करीब 2.16 लाख और ओडिशा में लगभग 3.5 लाख लोग विस्थापित हुए। चक्रवात 110 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ओडिशा के भितरकनिका और धामरा के बीच टकराया। दोनों राज्यों के तटीय जिलों में भारी बारिश हुई और तेज हवाएं चलीं, जिसके कारण कई पेड़ और बिजली के खंभे उखड़ गए।
हालांकि मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अरब सागर के ऊपर एक उच्च दबाव क्षेत्र बनने और अन्य वातावरणीय कारकों के कारण चक्रवात की तीव्रता उतनी नहीं रही जितना मौसम विभाग ने अनुमान लगाया था।
इमीशन गैप रिपोर्ट: दुनिया के देश उत्सर्जन कम करने में रहे नाकाम
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2024 के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए देशों ने जो लक्ष्य (एनडीसी) रखे हैं उन्हें लागू करने में वर्ष 2023 में कोई तरक्की नहीं हुई यानी वास्तविक इमीशन कट और वांछित लक्ष्य के बीच का अंतर पहले की तरह ही बना हुआ है। एनडीसी राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजनाएं हैं, जिन्हें पेरिस समझौते के तहत सभी देशों ने तैयार किया है। इनका मकसद वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे – आदर्श रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक – सीमित रखना है और जिन्हें देशों के द्वारा हर पांच साल में अपडेट किया जाता है।
धरती की तापमान वृद्धि में 1.5 डिग्री तक सीमित करने के लिए 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 42 प्रतिशत और 2035 तक 57 प्रतिशत की कटौती करना ज़रूरी है वरना इस सदी में ही यह वृद्धि 2.6 से 3.1 डिग्री तक हो जायेगा और इसके विनाशकारी परिणाम होंगे।
हालाँकि, पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 2030 तक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री और 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिए उत्सर्जन में क्रमशः 28 प्रतिशत और 42 प्रतिशत की कटौती की आवश्यकता है, लेकिन एनडीसी को सख्ती के साथ पूरी तरह से लागू करने पर भी 2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन में क्रमशः केवल 4 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है।
ग्लोबल नेचुरल कंजरवेशन इंडेक्स में भारत आखिरी पांच देशों में
गुरुवार को जारी 2024 ग्लोबल नेचुरल कंजरवेशन इंडेक्स में भारत को 180 देशों में से 176वां स्थान दिया गया है।
भारत को कुल 100 में से 45.5 अंक दिये गये हैं और उसे किरिबाती (अंतिम स्थान), तुर्की (179वां स्थान), इराक (178) और माइक्रोनेशिया (177) से ठीक ऊपर रखा गया है। कम स्कोर का कारण मुख्य रूप से जैव विविधता के लिए बढ़ते खतरे और भूमि के अकुशल प्रबंधन को बताया गया। सूचकांक को इज़राइल के बेन-गुरियन विश्वविद्यालय के गोल्डमैन सोनेनफेल्ट स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज और गैर-लाभकारी वेबसाइट बायोडीबी में द्वारा विकसित किया गया है।
इस महीने लॉन्च किया गया प्रकृति संरक्षण सूचकांक, चार मापदंडों पर संरक्षण प्रयासों का मूल्यांकन करता है। ये हैं: भूमि का प्रबंधन, जैव विविधता के सामने आने वाले खतरे, शासन और क्षमता, और भविष्य के रुझान। प्रत्येक देश द्वारा विकास और पर्यावरण के संरक्षण में संतुलन स्थापित करने में हुई प्रगति का आकलन किया जाता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि अब सस्टेनेबल भू-उपयोग प्रथाओं की आवश्यकता है क्योंकि शहरी, औद्योगिक और कृषि उद्देश्यों के लिए भूमि का रूपांतरण 53% तक पहुंच गया था।
चीन में डायनासोर के सबसे छोटे अंडे मिलने का दावा
दक्षिण चीन के जियांग्शी प्रांत का ऊपरी क्रेटेशियस गांझोउ बेसिन दुनिया के सबसे समृद्ध अंडा जीवाश्म स्थलों में से एक है और यहां प्रचुर मात्रा में उत्तम अंडे के क्लच और भ्रूण अंडे मिलते हैं। डायनासोर परिवार के इन अंडों की मॉर्फोलॉजी या आकृति विज्ञान में भिन्नता हो सकती है लेकिन वो अब तक खोजे गये अंडों से काफी बड़े थे। अब वैज्ञानिकों और जीवाश्म अध्ययन के विशेषज्ञों की नई खोज से जुड़ी जानकारी हिस्टोरिकल बायोलॉजी नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई है जिसमें यह दावा किया गया है कि 2021 में खोजे गये ये अंडे डायनासोर के अब तक के सबसे छोटे अंडे हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस खोज से पहले डायनासोर के जो सबसे छोटे अंडे पाये गए थे, उनकी माप 45.5 मिलीमीटर X 40.4 मिलीमीटर X 34.4 मिलीमीटर थी। लेकिन नया खोजा गया अंडा महज 29 मिलीमीटर लंबा है, जो अपने समूह का सबसे पूरा अंडा भी है। तीन वर्षों तक लगातार रिसर्च के बाद शोधकर्ताओं ने पुष्टि की है कि यह अंडे करीब 8 करोड़ वर्ष पुराने हैं।
असम की इस ‘मीठी तुलसी’ में हैं कुछ औषधीय गुण
एक नये अध्ययन में पाया गया है कि कैंडी लीफ – जिसे मीठी तुलसी भी कहा जाता है – में रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा और हृदय संबंधी बीमारियों के उपचार करने के गुण हैं। डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक कैंडी लीफ सेलुलर सिग्नलिंग प्रणाली पर असर डालता है। इसका वैज्ञानिक नाम स्टीविया रेबाउडियाना बर्टोनी है और आम भाषा में मीठा पत्ता, शुगर लीफ या मीठी तुलसी भी कहा जाता है। असम से दुनिया के कई देशों को इसका निर्यात किया जाता है।
शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि डायबिटीज और लंबे समय तक सूजन से संबंधित ऑटोइम्यून बीमारी – रुमेटॉइड गठिया, क्रोनिक किडनी रोग और ब्लड प्रेशर में भी इसका फायदा हो सकता है। फ़ूड बायोसाइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में स्टेविया की औषधीय क्षमताओं को सामने लाया गया है।
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्रियों द्वारा क्लाइमेट फाइनेंस पर तैयार की गई एक रिपोर्ट को जी-20 देशों की आलोचना के बाद कमजोर कर दिया गया। रिपोर्ट के पिछले मसौदे में करोड़पतियों पर 2 प्रतिशत टैक्स लगाने और क्लाइमेट फाइनेंस और ग्रीन इन्वेस्टमेंट से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए केंद्रीय बैंकों और विनियमन प्राधिकरणों की मदद लेने जैसे कुछ सुझाव थे जिन्हें बाद के संस्करणों में या तो हटा दिया गया या उनकी भाषा बदल दी गई।
जी-20 देशों के जलवायु और वित्त मंत्रालयों और केंद्रीय बैंकों के अधिकारी वाशिंगटन, डीसी में ‘जी-20 टास्कफोर्स ऑन अ ग्लोबल मोबिलाइजेशन अगेंस्ट क्लाइमेट चेंज (टीएफ-क्लीमा)’ की बैठक में शामिल हुए थे। वर्तमान जी-20 अध्यक्ष ब्राज़ील की इस पहल का उद्देश्य है जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जलवायु और वित्त अधिकारियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
इस बैठक में जी-20 देशों द्वारा ही कमीशन की गई इस रिपोर्ट पर चर्चा हुई, जो विशेषज्ञों के एक स्वतंत्र पैनल द्वारा तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट का उद्देश्य था विकासशील देशों की तत्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जलवायु वित्त को बढ़ाने के लिए रोडमैप प्रदान करना। लेकिन सदस्य देशों की प्रतिक्रिया के जवाब में रिपोर्ट को काफी कमजोर कर दिया गया।
कॉप-16: बायोडाइवर्सिटी लक्ष्यों के लिए वित्तीय संसाधन बढ़ाने की मांग
कोलंबिया में संयुक्त राष्ट्र बायोडाइवर्सिटी कांफ्रेंस (कॉप-16) शुरू हो चुकी है। इस सम्मलेन में लाइक-माइंडेड मेगाडायवर्स कंट्रीज़ (एलएमएमसी) ने वैश्विक जैव-विविधता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधनों में वृद्धि का आह्वान किया है। एलएमएमसी समृद्ध जैव विविधता वाले विकासशील देशों का गठबंधन है जिसका सदस्य भारत भी है। भारत ने अपने वक्तव्य में विकसित देशों से आग्रह किया है कि वह विकासशील देशों को उनके जैव विविधता लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करने के लिए तत्काल वित्त, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण संसाधन प्रदान करें।
एलएमएमसी देशों ने ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ) द्वारा निर्धारित 2030 तक सालाना 200 अरब डॉलर जुटाने के वित्तीय लक्ष्य और उपलब्ध वास्तविक फंडिंग के बीच के अंतर की ओर ध्यान आकर्षित किया। एक नए विश्लेषण के अनुसार, अधिकांश विकसित देश बायोडाइवर्सिटी फाइनेंस में अपने “उचित योगदान” का 50% से कम दे रहे हैं।
एलएमएमसी देशों ने जैव-विविधता के लिए कॉप द्वारा प्रबंधित एक विशेष फंड बनाने का प्रस्ताव रखा। भारत ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक बायोडाइवर्सिटी फ्रेमवर्क के अनुरूप जैव-विविधता की रक्षा के लिए अपनी राष्ट्रीय योजना को संशोधित किया है, जिसे सम्मेलन के दौरान जारी किया जाएगा।
2024 के अंत तक ब्रिक्स देशों की ऊर्जा क्षमता में जीवाश्म ईंधन का योगदान 50% से कम होगा: रिपोर्ट
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) ने एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। अब, संयुक्त रूप से इन देशों की स्थापित ऊर्जा क्षमता में लगभग 50% योगदान नवीकरणीय स्रोतों का होगा। इस साल के अंत तक इन देशों की जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा पर निर्भरता 50% से कम हो जाएगी।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस वर्ष, चीन, भारत और ब्राजील में 190 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता — मुख्य रूप से पवन और सौर — पहले ही जोड़ी जा चुकी है। जबकि इसके विपरीत जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा में 72 गीगावाट की वृद्धि हुई है। साल के अंत तक, संयुक्त रूप से ब्रिक्स देशों की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 2,289 गीगावाट होगी, जबकि जीवाश्म ईंधन से प्राप्त ऊर्जा 2,245 गीगावाट होगी।
कॉप-29 से पहले नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य के किसी भी पहलू पर सहमति नहीं
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर चल रही बातचीत आम सहमति हासिल करने से बहुत दूर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले महीने बाकू में कॉप29 सम्मलेन में नए क्लाइमेट फाइनेंस समझौते पर चर्चा करने के लिए किसी भी पहलू पर कोई सहमति नहीं बनी है।
विभिन्न देश अभी भी न्यू कलेक्टिव क्वान्टीफाईड गोल (एनसीक्यूजी) के किसी भी पहलू पर सहमत नहीं हैं, जिसमें नए लक्ष्य की संरचना, मात्रा और वित्त के स्रोत शामिल हैं।
एनसीक्यूजी की संरचना के संबंध में अनिश्चितता है। यह स्पष्ट नहीं है कि इसे विकसित से विकासशील देशों की सहायता के लिए एकल वित्तीय लक्ष्य के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिए या एक अधिक जटिल ढांचे के रूप में जिसमें विशिष्ट उप-लक्ष्यों के साथ वैश्विक निवेश लक्ष्य शामिल हों। ये उप-लक्ष्य विकासशील देशों की सहायता के उद्देश्य से क्लाइमेट फाइनेंस के विभिन्न स्रोतों, विषयगत उद्देश्यों और नीति मार्गदर्शन को संबोधित करेंगे।
दिवाली से पहले बिगड़ी दिल्ली की हवा, यमुना पर तैरता जहरीला झाग
दिवाली से पहले दिल्ली में वायु प्रदूषण काफी बढ़ गया है। आठ मॉनिटरिंग स्टेशनों ने वायु गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ श्रेणी में दर्ज की है।
बुधवार को दिल्ली का समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 278 दर्ज किया गया, जो मंगलवार को 268 था। हालांकि यह सोमवार को 304 और रविवार को 359 था। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में हवा की गति में उतार-चढ़ाव के कारण प्रदूषण का स्तर थोड़ा ऊपर-नीचे होता रहा है।
दिल्ली सरकार ने कहा कि उसने पटाखों पर प्रतिबंध को लागू करने के लिए 377 टीमें तैनात की हैं और अब तक 19,005 किलोग्राम पटाखे जब्त किए हैं।
पिछले कुछ दिनों से यमुना नदी में प्रदूषण का स्तर लगातार उच्च बना हुआ है, और पानी में जहरीला झाग देखा जा सकता है। दिल्ली जल बोर्ड ने यमुना नदी में अमोनिया की मात्रा अधिक होने के कारण कई हिस्सों में पानी कटौती की घोषणा की है। बिगड़ती वायु गुणवत्ता के कारण सांस संबंधी समस्याओं में 30-40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, बच्चे और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए केंद्र की निर्णय सहायता प्रणाली के अनुसार, दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों के उत्सर्जन का योगदान सबसे अधिक है।
पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने में कमी लेकिन दिल्ली की हवा पर अब भी असर: रिपोर्ट
एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि 2019 से 2023 तक, हरियाणा और पंजाब में पराली दहन की घटनाओं में उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया है, जिसमें 2022 और 2023 में उल्लेखनीय कमी आई है। हालांकि, गिरावट के बावजूद, इन आग की घटनाओं से दिल्ली की वायु स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ा।
दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन दिनों में आग नहीं लगी थी, शहर का एक्यूआई औसतन 175 (‘मॉडरेट’) था। लेकिन, आग में उतार-चढ़ाव को देखते हुए, उसी पराली जलाने के मौसम के दौरान, एक्यूआई बढ़कर 233 यानी खराब (‘पुअर’) श्रेणी में हो गया। उन दिनों जब आग जलवायु संबंधी औसत से अधिक हो गई, एक्यूआई 337 (‘बहुत खराब’) तक बढ़ गया।
पराली जलाने वाले क्षेत्रों के संदर्भ में दोनों ही राज्य महत्वपूर्ण माना गया है। आग की इन घटनाओं से दिल्ली में हवा की गुणवत्ता काफी प्रभावित हुई है, खासकर मानसून के बाद के मौसम में। परिणामों से पता चला कि आग की घटनाओं में उत्साहजनक गिरावट आई है और दिल्ली की वायु गुणवत्ता को बढ़ाने में कठिनाइयाँ जारी हैं।
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मध्य प्रदेश जला रहा पंजाब हरियाणा से अधिक पराली
भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र (आईएआरआई) के आंकड़ों के अनुसार 19 से 25 अक्टूबर के बीच मध्यप्रदेश में पराली दहन की सबसे अधिक घटनाएं हुईं जबकि पराली जलाने के लिए बदनाम पंजाब और हरियाणा में यह संख्या कम थी। आईएआरआई के आंकड़े बताते हैं कि जहां पंजाब में इस दौरान 401 और हरियाणा में 192 घटनाएं दर्ज की गईं वहीं मध्यप्रदेश में पराली जलाने की 536 घटनायें हुईं।
उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी हरियाणा की तुलना में पराली जलाने की अधिक घटनाएं पाई गई। जहां यूपी में पिछले हफ्ते 192 मामले दर्ज किए गए, वहीं राजस्थान में 203 जगहों पर पराली जलाई गई। पिछले पांच साल के आंकड़े बताते हैं कि पंजाब में पराली जलाने के मामलों में काफी कमी आई है.
दिल्ली: गंदे पानी को साफ करने के लिए 32 नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
दिल्ली जल बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दिये गये एक हलफनामे में कहा है कि वह गंदे पानी की सफाई के लिए 32 नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगायेगा। ये ट्रीटमेंट प्लांट मास्टर प्लान 2031 के तहत उन इलाकों में लगाये जायेंगे जहां पानी को साफ करने की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली जल बोर्ड का दावा है कि वह अभी करीब 60 करोड़ गैलन सीवेज़ का ट्रीटमेंट करता है हालांकि यमुना में होने वाले प्रदूषण का एक बड़ा कारण अनट्रीटेट सीवेज का इसमें छोड़ा जाना ही है। जल बोर्ड का कहना है कि योजना के तहत स्थापित किये जा रहे इन 32 प्लांट्स में एक सोनिया विहार में लगा है जो कि इसी महीने के अंत में काम करना शुरू कर देगा।
बायोमास की बढ़ती वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए इंडोनेशिया के जंगलों को खतरनाक दर से काटा जा रहा है। ज्यादातर बायोमास का उत्पादन लिए लकड़ी के छर्रों के रूप में किया जाता है, जो मुख्य रूप से दक्षिण कोरिया और जापान को निर्यात किए जाते हैं। दोनों देश इंडोनेशिया के बायोमास उद्योग में लाखों का निवेश कर रहे हैं। इंडोनेशिया की सरकारी इकाईयों ने भी बिजली उत्पादन के लिए बायोमास का उपयोग को बढ़ाने की योजना बनाई है।
2021 से अब तक 9,740 हेक्टेयर से अधिक जंगल साफ़ कर दिए गए हैं। अतिरिक्त 1.4 मिलियन हेक्टेयर से अधिक साफ़ करने के लिए परमिट जारी किए गए हैं। इनमें से कई जंगल सुमात्रा गैंडों, हाथियों और बाघों सहित कई लुप्तप्राय प्रजातियों के आवास हैं।
पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि बायोमास की बढ़ती मांग और इंडोनेशिया में कमजोर विनियमन के कारण वनों की कटाई में तेजी आ सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि लकड़ी आधारित बायोमास जलाने से कोयले की तुलना में अधिक कार्बन उत्सर्जन हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी सहित विशेषज्ञों का तर्क है कि बायोमास अपशिष्ट और अवशेषों से आना चाहिए, न कि वन भूमि से।
सोलर पीवी सेल्स के लिए भी एएलएमएम सूची जारी कर सकती है सरकार
भारत सरकार विशेष रूप से सोलर पीवी सेल्स के लिए मॉडल और निर्माताओं की स्वीकृत सूची (एएलएमएम) लॉन्च करने की योजना बना रही है। यह सूची 1 अप्रैल, 2026 से प्रभावी होगी। इसे सूची II कहा जाएगा और यह एएलएमएम सूची I के समान ही कार्य करेगी। सूची I को सोलर मॉड्यूल के लिए 2019 में लॉन्च किया गया था और इसके तहत आवश्यक है कि अनुमोदित घरेलू निर्माताओं से ही पीवी मॉड्यूल लिए जाएं। सूची II घरेलू उत्पादन को और अधिक समर्थन देने के लिए सोलर पीवी सेल्स के अनुमोदित मॉडल और निर्माताओं पर ध्यान केंद्रित करेगी।
नए दिशानिर्देशों के तहत, एएलएमएम सूची I में सूचीबद्ध सोलर मॉड्यूल, जिनकी समाप्ति तिथि 31 मार्च, 2026 के बाद है, उनमें सूची II में दिए गए सेल्स का उपयोग करना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उन्हें सूची I से हटाया जा सकता है।
भंडारण और ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने के लिए भारत ने मांगे 7 करोड़ डॉलर
ऊर्जा भंडारण और ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए भारत ने क्लाइमेट इन्वेस्टमेंट फंड (सीआईएफ) से 7 करोड़ डॉलर की मांग की है।
यह पहल भारत की नवीकरणीय ऊर्जा एकीकृत निवेश योजना का हिस्सा है, जो 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होगी। इस निवेश से नवीकरणीय क्षमता में 1,500 मेगावाट की वृद्धि अपेक्षित है। साथ ही ट्रांसमिशन इंफ्रास्ट्रक्चर में वृद्धि और कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी होने की भी उम्मीद है। फंडिंग से ग्रिड की मजबूती बढ़ने और हरित नौकरियां पैदा होने की भी संभावना है।
कम कीमत वाली रीसाइक्लिंग प्रणाली के कारण बैटरी रीसाइक्लिंग उद्योग को जोखिम: विशेषज्ञ
विशेषज्ञों ने कहा कि बैटरी रीसाइक्लिंग उद्योग को कम कीमत वाली रीसाइक्लिंग प्रणाली के कारण जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे धोखाधड़ी करने वाले इस व्यापार में बढ़ सकते हैं और पर्यावरणीय आपदाओं का संकट खड़ा हो सकता है। विशेषज्ञों ने सर्कुलर इकोनोमी को टिकाऊ बनाने के लिए न्यूनतम सीमा बढ़ाने की सिफारिश की है।
कुछ उद्योग विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि मौजूदा मूल्य निर्धारण संरचना से लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के आयात के लिए भारत को अनुमानित 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा का नुकसान हो सकता है।
स्वच्छ वैकल्पिक स्रोतों पर निर्भरता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जो जिसके लिए बैटरियों की टिकाऊ रीसाइक्लिंग एक प्रमुख शर्त है। इस कारण यह मुद्दा महत्वपूर्ण हो गया है। मटेरियल रीसाइक्लिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एमआरएआई) और विशेषज्ञों ने लिथियम रीसाइक्लिंग के लिए ईपीआर फ्लोर प्राइस को बढ़ाने का सुझाव दिया है ताकि टिकाऊ, प्रतिस्पर्धी और मानकीकृत रीसाइक्लिंग सुनिश्चित की जा सके।
एमआरएआई ने एक बयान में कहा, “एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (ईपीआर) में यह अनिवार्य है कि बैटरी निर्माता सुरक्षित रीसाइक्लिंग सुनिश्चित करें, फिर भी कम ईपीआर न्यूनतम कीमतें कम मूल्य वाली या हार्ड-टू-रीसायकल बैटरियों के संग्रह और प्रबंधन में बाधा डालती हैं। बैटरी की स्थिरता और पैमाने को हासिल करने के लिए एक उच्च ईपीआर कीमत महत्वपूर्ण है।”
ईवी एडॉप्शन बढ़ने के साथ गिरेगी यूरोप की जीडीपी, शिफ्ट होंगी नौकरियां: आईएमएफ
आईएमएफ ने ताजा वर्ल्ड इकॉनोमिक आउटलुक में कहा है कि इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की ओर बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ेगा। आईएमएफ ने कहा कि ईवी अपनाने में तेजी आने के साथ पारंपरिक ऑटोमोटिव उद्योगों को बदलाव का सामना करना पड़ रहा है, जिससे निवेश, व्यापार, उत्पादन और रोजगार पर असर पड़ेगा।
क्योंकि चीन ईवी उत्पादन में अग्रणी है, इसलिए यूरोप की जीडीपी संभावित रूप से गिरेगी और रोज़गार उन क्षेत्रों की तरफ स्थानांतरित होंगे जहां कम पूंजी लगे। चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने चीनी निर्मित ईवी पर टैरिफ लगाया है, जबकि फ्रांस और जर्मनी ने घटती मांग के बीच ईवी सब्सिडी कम कर दी है।
यूरोप ने बढ़ाया ईवी पर टैरिफ, चीन ने डब्ल्यूटीओ में की शिकायत
यूरोपीयन यूनियन (ईयू) ने चीन से आयातित कुछ इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) पर 35.3% तक अतिरिक्त टैरिफ लगाया है। ईयू ने कहा है कि चीनी सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी घरेलू निर्माताओं को अनुचित लाभ देती है। यह टैरिफ दर यूरोपीय संघ में सभी ईवी आयात पर मानक 10% शुल्क के अतिरिक्त लगाई गई है।
चीन ने इस कदम की आलोचना की और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में शिकायत दर्ज कराई है। चीनी सरकारी कंपनी एसएआईसी मोटर और उसकी सहायक कंपनियों द्वारा उत्पादित ईवी पर 35.3 प्रतिशत की टैरिफ दर लागू की जाएगी। जबकि अन्य प्रमुख निर्माताओं बीवाईडी और जेली और उनकी सहायक कंपनियों को क्रमशः 17 प्रतिशत और 18.8 प्रतिशत के टैरिफ का सामना करना पड़ेगा। टेस्ला ने यूरोपीय संघ के साथ अलग शर्तों पर बातचीत की, जिसके कारण उसपर 7.8 प्रतिशत का शुल्क लगेगा।
कोयले का प्रयोग बंद करने के लिए भारत को चाहिए 1 ट्रिलियन डॉलर
भारत को कोयले से दूर जाने (जस्ट ट्रांज़िशन) के लिए अगले 30 वर्षों में 1 ट्रिलियन डॉलर, या 84 लाख करोड़ रुपए से अधिक की आवश्यकता होगी। यह खुलासा पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन अनुसंधान थिंक-टैंक आईफॉरेस्ट (इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी) द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुआ है।
अध्ययन में कोयले पर निर्भर क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने की लागत के साथ-साथ कोयला खदानों और कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की लागत का अनुमान लगाने का प्रयास किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला कम से कम अगले एक दशक तक भारत के ऊर्जा मिश्रण का केंद्र रहेगा और इससे दूर जाना एक बड़ी चुनौती है।
भारत में चार कोयला-निर्भर जिलों के आकलन और दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी और पोलैंड में जस्ट ट्रांज़िशन आर्थिक योजनाओं की समीक्षा के आधार पर, अध्ययन में आठ ऐसे घटकों को सूचीबद्ध किया गया है जिनमें यह लागत मुख्य रूप से विभाजित होगी। इनमें खदानों को बंद करने और पुनर्उपयोग करने की लागत, कोयला संयंत्रों का रिटायरमेंट और उन साइटों का साफ ऊर्जा के लिए पुनर्उपयोग, हरित रोजगार के लिए श्रम कौशल, आर्थिक विविधीकरण, सामुदायिक समर्थन, हरित ऊर्जा के लिए निवेश, राज्यों को होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए राजस्व के वैकल्पिक साधन, और नियोजन आदि की लागत शामिल है।
2023 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा ग्रीनहाउस उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन है प्रमुख वजह
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि ग्रीनहाउस गैसों का स्तर दो दशकों में 10 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 2023 में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। रिपोर्ट के अनुसार इस वृद्धि में मानव और औद्योगिक गतिविधियों से होने वाले जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन का प्रमुख योगदान है। इसके अलावा जंगलों की आग और वनों द्वारा कार्बन अवशोषण में कमी भी इसके कारणों में से हैं।
वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की औसत सतह सांद्रता 2023 में 420 भाग प्रति मिलियन तक पहुंच गई, जो दो दशकों में 11.4% की वृद्धि है। यह (1750 से पहले के) पूर्व-औद्योगिक स्तर का 151 प्रतिशत है। 1990 के बाद से ग्रीनहाउस गैसों का वार्मिंग प्रभाव 50% से अधिक बढ़ गया है, जो मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड के कारण है, जिसका जलवायु पर लंबे समय तक प्रभाव रहता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तेजी से उत्सर्जन में कटौती के बावजूद, वर्तमान तापमान वृद्धि दशकों तक बनी रहेगी।
जीवाश्म ईंधन पर अमेरिका की निर्भरता चीन के मुकाबले अधिक
जीवाश्म ईंधन पर चीन के मुकाबले अमेरिका की ऊर्जा प्रणाली अधिक निर्भर हो रही है। रायटर्स में प्रकाशित समाचार के मुताबिक इससे विश्व में साफ ऊर्जा ट्रांजिशन में अमेरिका की छवि को भारी क्षति हो सकती है। ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका ने पिछले चार महीनों में कुल बिजली उत्पादन का औसतन 62.4% उत्पादन जीवाश्म ईंधन से किया है।
जीवाश्म ईंधन पर अमेरिका की भारी निर्भरता गर्मियों के दौरान एयर कंडीशनर के उपयोग के कारण घरेलू बिजली की मांग में बढ़ोतरी से हुई, जबकि चीन की अपेक्षाकृत कम जीवाश्म निर्भरता की एक वजह लंबी आर्थिक मंदी भी थी।
लेकिन यह भी स्पष्ट है कि चीन क्लीन एनर्जी स्रोतों का प्रयोग बढ़ाने में अधिक आक्रामक है, जिसने चीन को जीवाश्म ईंधन का प्रयोग सीमित करने में अमेरिका के मुकाबले आगे रखा है। एम्बर के अनुसार, अमेरिका में, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन पिछले पांच वर्षों में प्राथमिकता रही है और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन 2019 के बाद से लगभग 16% बढ़ गया है। लेकिन लगातार बढ़ती कुल बिजली मांग ने बिजली कंपनियों के लिए जीवाश्म ईंधन से उत्पादन में कटौती की गुंजाइश सीमित कर दी है।